विश्व समुद्र दिवस विशेष: बढ़ता समुद्री तापमान मछुआरों को गिरफ़्तारी की ओर धकेल रहा है
17 नवंबर 2024 का वाकया है, मौसम साफ था, धूप खिली हुई थी। अरब सागर के गहरे पानी में गुजरात के पोरबंदर से कालभैरव नाव सहित कुल 40 नौकाएं मछली पकड़ने के लिए निकली हुई थीं। ये नौकाएं अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा (आईएमबी) के एकदम करीब थीं, जो गुजरात तट से मात्र 5 समुद्री मील (8 किमी) की दूरी पर है, और मछली पकड़ने के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है।
समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण मछलियों की उपलब्धता में भारी गिरावट आई है, मछलियां मिल नहीं रही हैं। मज़बूरन मछुआरों को गहरे समुद्री इलाकों में जाने को बाध्य होना पड़ रहा है। उस दिन मछुआरे अनजाने में ही प्रतिबंधित क्षेत्र में चले गए। ‘हुआ यह कि कुछ ही मिनटों में, पाकिस्तान समुद्री सुरक्षा एजेंसी (पीएमएसए) के गार्डों ने मेरी नाव को घेर लिया और मेरे सात कर्मचारियों को पकड़ लिया,’ कालभैरव नाव के मालिक दामोदर चमुडिया ने घटना के बारे में बताया।
दामोदर भाई ने बताया कि यह देख मेरी नाव के कप्तान तांडिल ने तुरंत ही भारतीय तटरक्षकों (आईजीसी) को इमरजेंसी कॉल किया। परिस्थितियों को अंदाज़ा होते ही भारतीय तटरक्षकों ने त्वरित कार्रवाई की और नाव के सभी लोगों को गिरफ़्तारी से बचा लिया, लेकिन गिरफ़्तारी से बचने की इस कोशिश में नाव को नुकसान हुआ और वह डूब गई। मछुआरों के लिए यह बहुत बड़ा नुकसान होता है। दामोदर भाई कहते हैं कि नाव डूबने के नुकसान से ज़्यादा वह अपने लोगों के सुरक्षित लौटने से राहत महसूस कर रहे हैं।
दामोदर भाई पोरबंदर के रहने वाले हैं, लेकिन उनकी नाव पर काम करने वाले कर्मचारी गुजरात के अन्य हिस्सों से आते हैं या मौसमी प्रवासी हैं। आमतौर पर हर साल अगस्त से मई तक महाराष्ट्र के पालघर जिले से प्रवासी, पोरबंदर बंदरगाह की ओर काम की तलाश में आते हैं। पालघर एक तरफ गुजरात की सीमा और दूसरी तरफ भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई से लगा हुआ है। यह मुख्य रूप से आदिवासी जिला है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी आबादी लगभग 29 लाख है, जिसमें करीब एक लाख मछुआरे हैं।
पालघर से पाकिस्तानी जेल तक
स्थानीय लोगों के अनुसार, पालघर में नाव पर काम करने वाले श्रमिक को प्रतिमाह लगभग 10,000 रुपये मिल जाते हैं। 'जबकि गुजरात में नाव मालिक, खलासियों (मजदूरों) को प्रति माह 15,000 रुपये देते हैं, साथ ही अच्छा एडवांस और मौसम के अंत में प्रोत्साहन राशि भी देते हैं,' पालघर जिले के असवली गांव के सामाजिक कार्यकर्ता गणपत लक्ष्मण बुजद बताते हैं।
सामान्यतः पालघर के मछुआरे मछली पकड़ने के मौसम में नज़दीकी दहानू बंदरगाह तक 20-30 किमी की दूरी तय करते हैं, और इसके बाद अरब सागर में मुंबई और रत्नागिरी की ओर मछली की तलाश में आगे बढ़ते हैं।
पिछले दो दशकों से मछलियों की पकड़ में लगातार कमी हो रही है, जिसके कारण मछुआरे गहरे समुद्र में जाने लगे हैं। 2019 में, महाराष्ट्र में 45 वर्षों में रिकॉर्ड सबसे कम मछली पकड़ी गई। चौंकने वाली बात यह है कि मछली की सभी प्रजातियों में भारी कमी देखी गई। इसके दो बड़े कारण हैं। एक तो जलवायु परिवर्तन, जिसका असर खराब मौसम, लंबे मानसून के रूप में दिखाई देता है। दूसरा, मछलियों के परिपक्व होने से पहले ही बड़ी संख्या में उन्हें पकड़ लिया जाना, जिसके कारण उन्हें प्रजनन कर जनसंख्या बढ़ाने का समय ही नहीं मिलता।
फलस्वरूप, साल 2015 से मछुआरे बेहतर आजीविका की तलाश में पालघर से गुजरात के बंदरगाहों की ओर पलायन कर रहे हैं, और उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। पालघर एक अविकसित जिला है, जहां बुनियादी शिक्षा तक पहुंच न के बराबर है।
यहां से पलायन करने वाले लोग या तो औद्योगिक मजदूरी, कृषि या मछली उद्योग में प्रसंस्करण जैसे रोज़गारों में लग जाते हैं। या, वे गुजरात के नाव मालिकों के आकर्षक लेकिन खतरों से भरे प्रलोभनों में फंस जाते हैं। यह हजारों मछुआरों के लिए एक कठिन स्थिति होती है। घर में रहकर न्यूनतम आय में मुश्किल से गुजारा करना या ज़्यादा आय के लिए घर से बाहर निकलना और फिर गिरफ्तारी, लंबी पीड़ादायक जेल, वापसी का नाउम्मीद जोखिम उठाना।
विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 जनवरी 2025 तक पाकिस्तानी जेलों में 217 भारतीय मछुआरे बंद थे। मंत्रालय की हालिया रिपोर्टों से यह भी स्पष्ट है कि भारत की हिरासत में भी 381 पाकिस्तानी नागरिक और 81 मछुआरे हैं।
पालघर जिले के तलासरी के जंबूगांव के मछुआरे जितेश रघु दिवा लंबी जेल यातना भुगत चुके हैं। इनका कहना है कि पालघर के मछुआरों को गुजरात की ओर मौसमी प्रवास बंद करना चाहिए, जहां वे अधिक मछली पकड़ने के लिए जोखिम उठाते हैं। इसके बजाय उन्हें आय के दूसरे रास्ते तलाशने चाहिए।
चार साल तक पाकिस्तानी जेल में बंद रहने के बाद, जितेश ने समुद्र में कभी न लौटने की कसम खाई हुई है। 'मैं अब घर पर हूं, खेती कर रहा हूं और परिवार के साथ समय बिता रहा हूं,' वे बताते हैं। उन्हें पक्का विश्वास है कि कम कमाई के बावजूद यह फैसला सही है। उन्हें इस बात से भी नाराजगी है कि ‘नाव के मालिक और कप्तान को समुद्री सीमाओं की जानकारी होती है, जबकि हम जैसे मजदूरों को पता नहीं होता। फिर भी नाव के मालिक अपने लालच में हमारे जीवन को खतरे में डालते हैं, और हम पाकिस्तान की जेल में सालों बर्बाद करते हैं।’
सभी मछुआरे नहीं लौट पाते जेल से
जितेश रघु दिवा ने 2019 से 2023 तक चार साल पाकिस्तान के सिंध में कराची की मालिर जेल में बिताए। उनके मछली पकड़ने के औजार अब उनके घर की दीवार पर सजे हैं, जो उनकी जेल यात्रा की कठोर यादों को दर्शाते हैं। अधिक मछली पकड़ने की खोज में निकले जितेश को गुजरात के मंगरोल बंदरगाह से लगभग 5 समुद्री मील (8 किमी) की दूरी पर भारत-पाकिस्तान समुद्री सीमा पर पाकिस्तान मैरिटाइम सीक्युरिटी एजेंसी (पीएमएसए) ने गिरफ्तार कर लिया था।
जब जितेश जेल में थे, तब उनकी पत्नी गर्भवती थीं। वे कहते हैं, 'मैं अपने बच्चे की शक्ल तक नहीं देख सका।' परिवार की खबरें भी उन्हें केवल व्हाट्सऐप संदेशों के ज़रिए मिलती थीं, जो मालिर जेल प्रशासन द्वारा भेजे और पढ़े जाते थे। सबसे बड़ा आघात तब लगा, जब उन्हें अपनी बहन के निधन की खबर जेल में नए आए मछुआरों से मिली।
जेल में बिताए गए दिनों को याद करते हुए जितेश बताते हैं कि उन्हें सफाई जैसे काम सौंपे गए थे, और खाना बेहद घटिया किस्म का होता था। लेकिन सबसे मुश्किल समय तब आया जब कोविड-19 ने दुनिया भर में कहर बरपाना शुरू किया। ‘खाना मिलने में भी मुश्किल होनी शुरू हो गई,’ वे कहते हैं। जो लोग जेल से शहर के अस्पताल में इलाज के लिए जाते थे, अक्सर वहीं दम तोड़ देते थे।
जितेश को कराची की अदालत में चार बार पेश किया गया। 'शुरुआत में अदालत ने कहा था कि हमें तीन-चार महीने में रिहा कर दिया जाएगा,' वे बताते हैं, 'लेकिन हम चार साल तक जेल में रहे।' जब वे घर लौटे, तो उनकी चार साल की बेटी उन्हें देखकर पास तक नहीं आई। 'उसकी नजरों में मैं कोई अनजान आदमी था,' जितेश कहते हैं। उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि अब वे घर से दूर नहीं जाएंगे।
जितेश उन चंद खुशकिस्मत लोगों में थे, जो ज़िंदा लौट आए।
लेकिन 45 वर्षीय आदिवासी मछुआरे विष्णु लक्ष्मण कोल की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। पालघर ज़िले के असवली गांव के रहने वाले विष्णु गुजरात के नाव मालिकों के लिए काम करते थे और अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले थे। अक्टूबर 2021 में उन्हें भी कई अन्य मछुआरों के साथ पीएमएसए ने समुद्री सीमा पार करने के आरोप में पकड़ लिया। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, विष्णु की मौत 17 मार्च 2024 को कराची की मालिर जेल में हो गई। विष्णु के पीछे उनकी पत्नी साखू और तीन बच्चे हैं।
'एक अकेली मां कैसे घर चला सकती है?' विष्णु की पत्नी साखू सवाल उठाती हैं। 'सरकारी अफसरों ने वादा किया था कि हर महीने ₹9,000 मिलेंगे, लेकिन 2021 में उन्हें जेल ले जाने के बाद से आज तक हमें एक रुपया नहीं मिला है।' साखू को सहारा देने वाला कोई नहीं था, यहां तक कि वह नाव मालिक भी नहीं, जिसके लिए विष्णु काम करते थे। 'मैं खुद नुकसान में हूं,' नाव मालिक ने कहा और पीछे हट गया।
दरअसल, सीमा पार जब्त की गई नावों को भारत वापस लाना एक लंबी, जटिल और लगभग असंभव प्रक्रिया है, जिसके बारे में कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
गुजरात मत्स्य सलाहकार बोर्ड के सदस्य वेलजी मसाऩी 2008 में कराची गए एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। वे बताते हैं कि 'यह एकमात्र मौका था जब पाकिस्तान सरकार ने जब्त की गई 57 भारतीय नावें भारतीय तटरक्षक बलों और नाव मालिकों को लौटाई थीं।'
हर ज़ब्त नाव सिर्फ लकड़ी और इंजन नहीं, बल्कि एक पूरे परिवार की आजीविका होती है और उसकी औसत कीमत 60 लाख रुपये होती है। भारत के पास पाकिस्तान की 200 से अधिक नावें हैं, जबकि पाकिस्तान के कब्ज़े में भारत की 1,173 नावें हैं (31 दिसंबर 2024 तक)।
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अनुसार, पिछले एक दशक में 2,639 भारतीय मछुआरों को पाकिस्तान से रिहा कराया गया, जिनमें 478 मछुआरे पिछले एक साल में लौटे हैं।
हालांकि, सीमा पार करने के अधिकतर मामलों में गिरफ़्तारी और लंबी कैद होती है, लेकिन हर घटना ऐसा मोड़ नहीं लेती, कभी किस्मत अच्छी भी होती है। 4 दिसंबर 2024 को भारत और पाकिस्तान की समुद्री एजेंसियों ने साझा अभियान में डूब रहे भारतीय जहाज़ ‘अल-पीरनपीर’ से 12 मछुआरों को सुरक्षित बाहर निकाला, यह सहयोग की एक दुर्लभ मिसाल थी।
इन सूखी संख्याओं के पीछे असली दर्द उन परिवारों का है, जिनके घर के कमाने वाले मछुआरे सालों से जेलों में बंद हैं। उनके लिए ना कोई रिहाई की तय तारीख है, ना ही कोई आर्थिक सहारा। भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के मछुआरों के परिवार बर्बादी के कगार पर हैं। कमाने वाले मुख्य सदस्य जेल में हैं, और उनके घरों की रोज़ी-रोटी अनिश्चितकाल के लिए ठप हो चुकी है।
यह संकट सीमाओं से परे है
गर्म पड़ते समुद्र और विलुप्त होती मछलियों ने पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के मछुआरों को भी गहरे संकट में डाल दिया है।
'सिंध के तटीय इलाकों, ठट्टा, बदीन और सुजावल में मछलियाँ अब नहीं बचीं,' पाकिस्तान फिशरफोक फोरम (PFF) के अध्यक्ष मेहरान अली शाह कहते हैं। 'इंडस डेल्टा से जीवन लुप्त हो रहा है। यहां के मछुआरे अब तट भरोसे नहीं रह सकते। उनके पास एक ही विकल्प है, गहरे समुद्र में जाना।' 'लेकिन जब वे अनजाने में समुद्र की अदृश्य सीमा पार कर लेते हैं, तो भारतीय तटरक्षक बल उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं। वहीं से शुरू होता है एक अंतहीन क़ैद का सिलसिला।'
'अरब सागर में लगातार बढ़ते तापमान और मौसम के अनिश्चित व्यवहार ने पारंपरिक मछली पकड़ने को टिकाऊ नहीं रहने दिया है,' क्लाइमेट एनालिटिक्स के इस्लामाबाद स्थित जलवायु विशेषज्ञ फ़हाद सईद कहते हैं। 'समुद्री तूफ़ानों की आवृत्ति में तेज़ी आई है, प्रदूषण बढ़ा है, और मछली पकड़ने की औद्योगिक गतिविधियों ने स्थानीय समुदायों की आजीविका पर गहरा असर डाला है।'
62 वर्षीय मई भागी कराची के नजदीक मालिर जिले के मछुआरा गांव इब्राहिम हैदरी में रहती हैं। वह उस चक्रवात को याद करती हैं, जिसने उनके बेटे और बहनोई को समुद्र में बहाकर अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करवा दिया था। उनका मानना है कि वे 1999 से भारत की जेल में बंद हैं। मैंने उनकी रिहाई के लिए कई बार अधिकारियों को आवेदन भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला,' उन्होंने बताया।
इस संकट से पार पाने को सिंध सरकार ने तटीय इलाकों में मछलियों की संख्या बढ़ाने के लिए चार अलग-अलग परियोजनाएं शुरू की हैं। 'पर परिणाम आने में समय लगेगा,' सिंध के मरीन फिशरीज निदेशक आसिम करीम कहते हैं।
दोहरी मार
गुजरात मत्स्य विभाग, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के सहयोग से, पाकिस्तान में बंद मछुआरों के परिजनों को हर महीने 9,000 रुपये की आर्थिक सहायता देता है, जो तब तक जारी रहती है, जब तक मछुआरे अपने परिवार के पास लौट नहीं आते। साथ ही जेल में मारे गए मछुआरों के परिवार को एकमुश्त 4 लाख रुपये की मदद भी दी जाती है।
जहाँ गुजरात की योजना में पालघर जैसे प्रवासी मछुआरों को शामिल नहीं किया गया है, वहीं महाराष्ट्र की योजना केवल नाव के लिए मुआवज़ा देने की अनुमति देती है, नाव पर काम करने वाले मजदूरों के लिए नहीं।
ये छोटी सहायता उनके गहरे ज़ख्मों पर थोड़ा मरहम तो दे ही सकती है।
ननावाड़ा, सोमनाथ के 64 वर्षीय करसनभाई सोसा 2019 से पाकिस्तान की जेल में बंद थे, क्योंकि वे समुद्री सीमा पार कर गए थे। दो साल बाद, उनका बेटा भी उसी जेल में इसी वजह से बंद हुआ।
'मुझे 2022 में भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया गया,' वे बताते हैं। लेकिन उनके बेटे हरिभाई का 25 अक्टूबर 2024 को जेल में ही निधन हो गया।
'हमारे ननावाड़ा में कोई और काम नहीं है, मछली पकड़ना ही एकमात्र विकल्प है। दुर्भाग्य से कभी-कभी हमें पकड़ लिया जाता है। लेकिन हम बेबस हैं और अपनी रोज़ी-रोटी के हमें मछली पकड़ना जारी रखना पड़ता है।'
उनका परिवार महीने के 9,000 रुपये का मुआवजा पा रहा है। बेटे के निधन के बाद, उन्हें गुजरात सरकार से 4 लाख रुपये की सहायता मिलनी चाहिए, लेकिन यह अभी तक नहीं मिली है।
महाराष्ट्र में जितेश बताते हैं कि एक स्थानीय विधायक ने आर्थिक सहायता का आश्वासन दिया था, 'लेकिन अब तक मुझे सिर्फ कुछ किलो चावल ही मिले हैं, कोई और मदद नहीं।'
महाराष्ट्र के मत्स्य मंत्री नितेश राणे ने इस मामले पर टिप्पणी के लिए संपर्क करने की कोशिश की गई, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
बीते दस वर्षों में पाकिस्तान की हिरासत में 26 भारतीय मछुआरों की मौत हुई है, जिनमें से जनवरी और मार्च 2025 में ही मालिर जेल में दो मछुआरों की मौत हुई। दूसरी मौत को कथित आत्महत्या बताया गया।
नंदिनी भास्करन द्वारा संपादित यह स्टोरी मूल रूप से The Migration Story में प्रकाशित हुई है, उनकी अनुमति से यहाँ पुनः प्रकाशित की गई है। हिंदी अनुवाद केसर सिंह का है।
मछुआरा समुदाय पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दर्शाने वाली इस कहानी ने होस्ट राइटर पिच पुरस्कार जीता है।