जलक्षेत्र सुधार एवं ढाँचागत बदलाव की समीक्षा

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पानी की फिजूलखर्ची का प्रमुख कारण है कि लोगों को यह लगभग मुफ्त के भाव उपलब्ध करवाया जाता है। इसलिए मुफ्त में पानी की आपूर्ति को लोग अपना अधिकार समझते हैं। पानी की फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का तरीका यह है कि पानी की दरें लागत खर्च वापसी के हिसाब से तय की जाएँ। संचालन और संधारण खर्च के साथ निजी निवेश पर सुनिश्चित लाभ भी प्राप्त होना चाहिए। गत दो दशकों से विभिन्न स्तरों पर अखबारों, विचार गोष्ठियों और सभाओं में `पानी´ पर बहस जारी है। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, अनेक देशों कीसरकारों, संचार-माध्यमों आदि सभी ने इस मुद्दे को अत्याधिक महत्व दिया है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और शोध-प्रबंधों में यह विषय छाया रहा है। इसकी वजह दुनिया के कई विकासशील देशों में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों द्वारा प्रायोजित `सेक्टर रिफार्म´ लागू किया जाना रहा हैं। इन परिवर्तनों के संदर्भ में बुनियादी सुविधाओं की कमी और उनके कारणों को समझने की आवश्यकता है।अस्सी के दशक से प्रारंभ बदलावों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं को आर्थिक मदद देने की प्रवृत्ति कम होने लगी थी। इस दौरान अंतराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों ने पूँजी के बल पर विकासशील देशों की बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन प्रारंभ करवाए। इससे इन देशों की बुनियादी सुविधाओं की पुनर्रचना अथवा ढाँचागत बदलाव अथवा क्षेत्र सुधार की प्रक्रिया तेज हुई। इसकेलिए सार्वजनिक क्षेत्रों में संस्थागत बदलाव, विनिवेशीकरण तथा तकनीकी ज्ञान वृद्धि पर बल दिया गया।

इस संपूर्ण प्रक्रिया में पूँजी तथा आधुनिक तकनीकी ज्ञान की बड़ी आवश्यकता थी। अत: इन वित्तीय एजेंसियों ने धन के साथ तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण देने के लिए हाथ बढ़ाए। उम्मीद थी कि इससेआर्थिक विकास की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा और लोगों का जीवनस्तर सुधरेगा। अत: अनेक विकासशील देशों ने बाहरी मदद से बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में बड़ी परियोजनाएँ क्रियान्वित की। विश्व बैंक, यू.एस. एड, इंटर-अमेरिकन विकास बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि ने इन प्रस्तावित परिवर्तनों के लिए हरसंभव प्रयास किए। ये प्रयास मुख्य रूप से निम्न तीन प्रकार के हैं -

अ) निजीकरण की जमीन तैयार करना

ब) ढाँचागत बदलाव की शुरूआत

स) ढाँचागत बदलाव का दौर

ढाँचागत बदलाव : पैरोकारों के तर्क

पानी एक बाजारी जिंस
लागत वापसी
राज्य की भूमिका में बदलाव
निजी क्षेत्र की भागीदारी
व्यवस्था का विकेंद्रीकरण
बिन पानी सब सून
पानी लोगों का अधिकार
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