साफ पानी के लिये लड़नी होगी लड़ाई

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पांच नदियों के लिए खासा लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में देश के अन्य हिस्सों की भांति पानी की किल्लत इन दिनों चरम पर है। किल्लत हो भी क्यों न, सरकारी हैडपम्पों के खराब होने की वजह से गांव-देहात में पीने के पानी और रोजमर्रा की जरूरत में इस्तेमाल करने के लिए लोग मोहताज हो गए हैंसाफ पानी हमारे लिए कितना जरुरी है ,जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर कोई आज साफ पानी पाने के लिए मिनरल वाटर का इस्तेमाल करने में जुटा हुआ है .ये सब शहरी इलाके में मिनरल वाटर का इस्तेमाल तो आम बात है लेकिन बेचारे क्या करें गाँव वाले जो दो जून कि रोटी नहीं जुटा सकने में कामयाब नहीं हो सकते साफ पानी जुटाएं कहाँ से लायें।

इटावा जिले में चम्बल नदी के किनारे बसे सैकडों गाँव के बासिन्दे साफ पानी तो पीना दूर चम्बल नदी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे है,ये पानी साफ है या नहीं ये सवाल बहस का नहीं है सवाल ये है कि जब सरकार कि जिम्मेदारी है कि वो अपनी प्रजा को साफ पानी मुहैया कराएगी फिर साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है.ये पानी किस तरह से मुहैया होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है,सरकारी आला अफसरानों ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है, कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है.

नतीजन इटावा जिले के चंबल नदी के आसपास के तकरीबन दो सौ गांवों के ग्रामीण अपना हलक तर करने के लिए चंबल नदी का वह पानी पीने को बाध्य हो गए हैं ,जहां जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं व शरीर की गर्मी शांत करते हैं। इसकी बजह है कि जल निगम के नकारापन के कारण यहां के हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो गया है।

भीषण गर्मी में पानी का हर ओर संकट ही संकट नजर आ रहा हैं। जल स्तर गिर जाने के कारण चंबल इलाके में पानी की त्राहि-त्राहि मची हुयी हैं। चंबल क्षेत्र के वाशिंदे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पेयजल की पूर्ति के लिये चंबल नदी के पानी से गुजरा कर रहे हैं। करीब दौ सौ से अधिक सरकारी हैडपंपों के खराब हो जाने की वजह से चंबल में पानी को लेकर मारा मारी मची हुयी है।

पांच नदियों के लिए खासा लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में देश के अन्य हिस्सों की भांति पानी की किल्लत इन दिनों चरम पर है। किल्लत हो भी क्यों न, सरकारी हैडपम्पों के खराब होने की वजह से गांव-देहात में पीने के पानी और रोजमर्रा की जरूरत में इस्तेमाल करने के लिए लोग मोहताज हो गए हैं वैसे तो पूरे इटावा में त्राहि-त्राहि मची हुई है और सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति इस समय चम्बल नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांव में दिख रही है।

जहां लोग भोर होते ही पीने के पानी के बर्तनों को लेकर सीधे चम्बल नदी पर अपनी जिन्दगी बचाने के लिए जा पहुंचते हैं और तीन चार घंटों की कवायद के बाद उन्हें मात्र पीने का ही पानी मिल पा रहा है। चम्बल नदी के किनारे बसे लोगों के लिए स्नान करना तो दूर, उनके लिए पीने का पानी आजकल गम्भीर समस्या बना हुआ है। टूटे फूटे हैडपम्प पड़े हुए हैं और सरकारी विभाग इस ओर नजर बन्द किए हुए हैं।

चम्बल इलाके में पछायगांव से लेकर भरेह तक के तकरीबन दौ सैकड़ा से अधिक गांवों का जल स्तर पहले से ही काफी नीचे जा चुका है। इस भीषण गर्मी में जल स्तर करीब पांच मीटर से नीचे चला गया है जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर हैडपम्पों ने पानी देना बन्द कर दिया है और इतना ही नहीं सरकारी सूचना को हम सही माने तो दो सौ से अधिक हैडपम्प स्थाई रूप से पानी देना बन्द कर चुके हैं और इससे कहीं अधिक अस्थाई तौर पर हैडपम्प खराब हैं। इसी वजह से चम्बल किनारे बसे गांव के लोग अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए चम्बल के पानी का इस्तेमाल खुद तो कर ही रहे हैं अपने मवेशियों को भी वही पानी पिला रहे हैं इन सबके बाबजूद जल निगम के अधिशासी अभियन्ता गोपीराम बड़ी तसल्ली से कहते हैं कि हैडपम्प तो खराब हैं लेकिन कोई आदमी चम्बल नदी से पानी पीने के लिए नहीं इस्तेमाल कर रहा है। इन अधिकारियों से यह कौन पूछे कि इटावा मुख्यालय पर बैठकर साठ किमी दूर की समस्या को कैसे समझा जा सकता है।

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