अब पानी के लिए भारत पर उंगली

5 Apr 2010
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पाकिस्तान इन दिनों कश्मीर के अलावा भारत द्वारा पानी की चोरी को एक बड़ा मुद्दा बना रहा है। इसलामाबाद का आरोप है कि भारत से पाकिस्तान की ओर बहने वाली चिनाब, झेलम और सिंधु नदियों पर भारत ने गैरकानूनी ढंग से बांधों का निर्माण कर लिया है और वह नदियों के प्रवाह को मोड़कर पानी अपने प्रयोग में ला रहा है। नतीजतन पाकिस्तान को पीने के पानी के अलावा सिंचाई में भी दिक्कत हो रही है।

कहा जा रहा है कि भारत और पाक के बीच नदी जल बंटवारे का मुद्दा संवेदनशील है और यह दोनों देशों के बीच युद्ध करा सकता है। जमात-उद-दावा के कुख्यात सरगना व मुंबई में 26/11 के षड्यंत्रकारी हाफिज सईद ने पिछले दिनों इस मुद्दे पर देश भर में छेड़े गए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत करते हुए लाहौर में आयोजित एक रैली में यहां तक कहा था कि अगर भारत पानी का आतंकवाद नहीं रोकता, तो पाक को अपनी सेना तैयार रखनी होगी।

नई दिल्ली का पक्ष समझने के लिए इसलामाबाद तैयार ही नहीं है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान को सिंधु जल समझौते के तहत तय हिस्से से भी ज्यादा पानी मिल रहा है। वर्ष 1960 में जल संबंधी विवाद के हल के लिए सिंधु जल आयोग बनाया गया था, जो दोनों देशों के बीच हुई तीन जंगों के बावजूद काम करता रहा। सिंधु जल संधि में तटस्थ विशेषज्ञों की राय लेने का भी प्रावधान है, जो कई बार ली जा चुकी है। वे विशेषज्ञ भी पाक के आरोपों को रद्द करते हुए कह चुके हैं कि भारत ने कोई ऐसा बांध या जलाशय नहीं बनाया, जिससे पाक की ओर बहने वाले पानी में कोई रुकावट आए।पाकिस्तान ने यह मुद्दा हाल ही में वाशिंगटन में हुई दो दिन की सामरिक बातचीत में उठाया था। लेकिन अमेरिका ने इस विवादित मसले में मध्यस्थता करने से साफ इनकार कर दिया, जिससे इसलामाबाद को निराशा हुई। लेकिन वह चुप नहीं बैठा। विगत 29-30 मार्च को लाहौर में भारतीय दल के साथ वार्षिक जल संधि वार्ता में उसने यह मुद्दा उठाया। उसने जम्मू-कश्मीर की दो नई विद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति करते हुए कहा कि इससे पाकिस्तान में जलापूर्ति प्रभावित होगी। भारत ने उसकी आशंका दूर करने की कोशिश की, लेकिन वार्ता बेनतीजा साबित हुई।

दिक्कत यह है कि नई दिल्ली का पक्ष समझने के लिए इसलामाबाद तैयार ही नहीं है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान को सिंधु जल समझौते के तहत तय हिस्से से भी ज्यादा पानी मिल रहा है। वर्ष 1960 में जल संबंधी विवाद के हल के लिए सिंधु जल आयोग बनाया गया था, जो दोनों देशों के बीच हुई तीन जंगों के बावजूद काम करता रहा। सिंधु जल संधि में तटस्थ विशेषज्ञों की राय लेने का भी प्रावधान है, जो कई बार ली जा चुकी है। वे विशेषज्ञ भी पाक के आरोपों को रद्द करते हुए कह चुके हैं कि भारत ने कोई ऐसा बांध या जलाशय नहीं बनाया, जिससे पाक की ओर बहने वाले पानी में कोई रुकावट आए।

सचाई यह है कि भारत सतलुज-प्रयास और रावी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल कर सकता है। सिंधु जल संधि के समय नहरें बनाने के लिए पाकिस्तान को उसने 60 लाख 20 हजार पौंड की मदद भी की थी। लेकिन भारत इन नदियों से पानी नहीं ले रहा और यह पानी भी पाकिस्तान पहुंच रहा है। भारत ने कुल 33 जल विद्युत परियोजनाओं पर काम शुरू किया था, जिनमें से अभी तक 14 पूरी हुई हैं, जो सभी नियमों के अनुसार हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान गैरजरूरी तकनीकी आपत्तियां उठाकर परियोजनाओं को पूरा करने में बाधा डाल रहा है। इसलामाबाद खुद को कश्मीरियों का हमदर्द बताता है, लेकिन ऐसा करके वह कश्मीरियों के हितों को नुकसान पहुंचा रहा है।

साफ है कि अपनी समस्याओं पर पर्दा डालने के लिए पाकिस्तान भारत विरोधी माहौल खड़ा कर रहा है। दरअसल वहां पिछले कुछ वर्षों से बारिश कम हुई है। जबकि भूजल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। नदियां सूख रही हैं और बांधों की क्षमता कम हुई है। देश की आबादी हर साल लगभग तीन फीसदी बढ़ रही है, जिससे जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पुराने बांध बड़ी तेजी से गाद से भर रहे हैं और कोई नया बांध बन नहीं रहा। सच तो यह है कि तमाम नदियों में पानी की कमी हो गई है।

पाकिस्तान के राज्यों में भी पानी के बंटवारे पर मतभेद हैं। सिंध, बलूचिस्तान और सीमांत प्रांत को शिकवा है कि उन्हें पानी कम मिलता है और पंजाब को ज्यादा। कालाबाग बांध बनाने का वायदा भी पाक सरकारें पूरी नहीं कर सकीं। कालाबाग सीमांत प्रांत की एक छोटी-सी बस्ती है, जहां से सिंध दरिया गुजरता है। कालाबाग बांध बनने से न केवल 3,600 मेगावाट बिजली प्राप्त हो सकती है, बल्कि खेती की जरूरत के लिए ३२ से 41 लाख क्यूसिक पानी का भंडार भी किया जा सकता है। लेकिन तीन असंतुष्ट प्रांत इस बांध का जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं। उनके मुताबिक, इस बांध से पंजाब को ही सबसे ज्यादा फायदा होगा और दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था बरबाद हो जाएगी। इसी कारण इसलामाबाद इस बांध का निर्माण चाहकर भी नहीं कर सका।

लिहाजा संदेह की गुंजाइश ही नहीं रहनी चाहिए कि पानी की उपलब्धता के मोरचे पर अपनी विफलता से ध्यान हटाने के लिए ही पाकिस्तान भारत पर जानबूझकर उंगली उठा रहा है। वह जल विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की तैयारी भी कर रहा हो, तो आश्चर्य नहीं। लिहाजा हमें इस बारे में सजग और तैयार रहना चाहिए, ताकि समय पर पाकिस्तान के झूठे आरोपों का पर्दाफाश किया जा सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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