आज पानी नहीं बचाओगे तो कल क्या पियोगे

22 Mar 2018
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गर्मियों में कई क्षेत्रों में पानी की किल्लत होती है। इस दौरान जल संरक्षण पर कई प्रकार की बातें होती हैं लेकिन ठोस कदम नहीं उठाये जाते। इस पर गम्भीरता से सोचने की जरूरत है।

भूजलदेहरादून शहर अपनी करीब छह से सात लाख आबादी के लिये जमीन के नीचे से रोजाना 170 लाख लीटर पानी निकालकर उपयोग करता है। पानी की इस मात्रा के बराबर पानी जमीन पर संरक्षित करने के लिये फिलहाल कोई भी योजना काम नहीं कर रही है।

देहरादून शहर में इस समय करीब दो सौ ट्यूबवेल हैं। रोजाना पेयजल सप्लाई के लिये इन्हें औसतन 16 घंटे तक चलाया जाता है। जिससे करीब 170 लाख लीटर पानी रोजाना जमीन से निकाला जा रहा है।

इसके अलावा प्राकृतिक स्रोत से भी तीस एमएलडी पानी सप्लाई के लिये एकत्र किया जाता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के कार्यालयाध्यक्ष अनुराग खन्ना के अनुसार शहर में तेजी के साथ भूमिगत जलस्तर गिरता जा रहा है। कारगर जलनीति न होने से सरकार भूमिगत जल के दोहन पर कोई अंकुश नहीं लगा पा रही है। बड़े मॉल व शॉपिंग कॉम्पलेक्स आम जनता के हिस्से का पानी खींच लेते हैं और जनता प्यासी रह जाती है।

निजी बोरवेल से बेलगाम तरीके से भूमिगत जल का उपयोग किया जा रहा है। यही वजह है कि पिछले पाँच सालों में शहर के कई ट्यूबवेल की क्षमता घटती जा रही है, कुछ ट्यूबवेल तो पूरी तरह सूख भी चुके हैं। सहस्त्रधारा रोड व हरिद्वार राजमार्ग पर नवादा जैसे इलाके अपनी अन्दरूनी भौगोलिक स्थिति के कारण पूरी तरह ड्राई इलाके माने जाते हैं। जहाँ जलस्तर सत्तर मीटर से नीचे पहुँच चुका है। इससे भविष्य में भारी दिक्कत होगी।

1. 260 मिलियन लीटर प्रतिदिन है देहरादून में पानी की माँग
2. 200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है देहरादून में पानी की खपत
3. 170 मिलियन लीटर प्रतिदिन ट्यूबवेल से मिल रही सप्लाई
4. तीस मिलियन लीटर प्रतिदिन प्राकृतिक स्रोत से मिल रहा पानी
5. शहर में प्रति व्यक्ति 135 लीटर प्रति व्यक्ति है पानी की जरूरत

कृषि जमीन वाले क्षेत्रों में हो रहा भूजल रिचार्ज


कृषि जमीन वाले इलाकों में पानी रिचार्ज हो रहा है, लेकिन आने वाले समय में जब इन इलाकों में भी आबादी का दबाव बढ़ेगा। स्थिति असन्तुलित होती चली जायेगी।

सरकार को और ध्यान देने की जरूरत


पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार देहरादून में भूजल रिचार्ज करने के इलाके तेजी से कंक्रीट में बदलते जा रहे हैं। बढ़ती आबादी इसकी बड़ी वजह है। परेड ग्राउंड, पवेलियन, रेंजर्स, गाँधी पार्क जैसे ग्राउंड शहर के बीचो-बीच न होते तो बरसात का पानी सीधा बहता हुआ शहर से बाहर निकल जाता। बरसाती पानी को संरक्षित करने पर सरकारी एजेंसियों का खास ध्यान नहीं है।

 

दून में भूजल की स्थिति

दूधली

22.38

मोथरोवाला

11.49

कुआँवाला

15.14

बल्लीवाला

57.8

मालदेवता

12.87

ननूरखेड़ा

71.24

तरला नागल

75.21

पुरुकुल गाँव

27.18

माजरा

27.97

बद्रीपुर

8.88

हरबंशवाला

57.34

कांवली

13.52

नंदा की चौकी

17.4

सेलाकुई

10.24

ऋषिकेश

17.25 मीटर

भानियावाला

40.02

सहसपुर

12.77

हरबर्टपुर

10.31

विकासनगर

27.98

डाकपत्थर

26.17

ढकरानी

11.3

गहराई मीटर में

 

कई जगह सूख रहे ट्यूबवेल


देहरादून में केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किये गये शोध से तेजी से कम होते जा रहे जल क्षेत्र की तस्दीक होती है। यदि हम नहीं चेते तो भूजल अनन्त गहराइयों में चला जायेगा।

जल बोर्ड ने डोईवाला, सहसपुर और विकासनगर क्षेत्र में भूजल के बारे में जो तथ्य पेश किये हैं उसके अनुसार लगातार ट्यूबवेल से तेजी से शहरी और आबादी क्षेत्र से पानी बाहर खींचा जा रहा है, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग और अन्य मुनासिब बातों के बारे में नहीं सोचने से एक के बाद एक ट्यूबवेल सूखते जा रहे हैं। कनक चौक, आशारोड़ी का ट्यूबवेल इसका उदाहरण हैं।

बोर्ड के रवि कल्याण के अनुसार डोईवाला में इस समय भूजल 14698, सहसपुर में 15284, विकासनगर में 6474 हेक्टेयर मीटर उपलब्ध है। जिसमें पानी का प्रतिदिन उपयोग डोईवाला में 1411, सहसपुर में 1570, विकासनगर में 1948 हेक्टेयर मीटर तक हो रहा है। 2025 तक डोईवाला पानी की जरूरत इन इलाकों में काफी बढ़ जायेगी। जिसमें डोईवाला में 1345, सहसपुर और विकासनगर में 1357 हेक्टेयर मीटर पानी चाहिए।

राज्यों में भूजल स्तर का हो रहा भरपूर दोहन पर बचाने की दिशा में पहल नहीं


बिहार - दस साल में 25 फीट नीचे चला जायेगा जल


बिहार के जिलों में जलस्तर में गिरावट आई है। राज्य के नौ जिलों के 14 प्रखंड में समस्या बहुत गम्भीर है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड का कहना है कि ये सभी सेमी क्रिटिकल स्टेज पर हैं। बेगूसराय, गया, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर, नालंदा, पटना, नवादा, समस्तीपुर और वैशाली के 14 प्रखंड सेमी क्रिटिकल हैं। जलस्तर पिछले दस साल में करीब 10 से 15 फीट घटा है। जलदोहन का यही हाल रहा तो दस साल में भूगर्भ जल का स्तर मौजूदा की तुलना में 20 से 25 फीट नीचे चला जायेगा।

उत्तराखंड - लगातार गिर रहा भूजल स्तर


उत्तराखंड में मौजूदा भूमिगत जलस्तर न्यूनतम 10 मीटर और अधिकतम 130 मीटर है। राज्य में बीस साल में भूजल 2 से 4 मीटर तक गिरा है। भगवानपुर, जसपुर, काशीपुर में भूमिगत जलस्तर की खराब स्थिति है। यहाँ अत्यधिक दोहन से हर साल 2 से 4 मीटर तक भूजल का स्तर गिर रहा है। राज्य में हर साल जमीन के अन्दर से 7.30 लाख मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी निकल रहा है। राज्य में होने वाली औसतन 1500 मिमी बारिश के कारण भूजल का बड़ा हिस्सा रिचार्ज हो जाता है।

दिल्ली - हर साल गिर रहा भूजलस्तर


केन्द्रीय भूजल बोर्ड का कहना है कि दिल्ली में भूजलस्तर निरन्तर गिर रहा है। यमुना से सटे पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो सभी इलाकों में दो से पाँच मीटर हर साल भूजल स्तर गिर रहा है।

उत्तर प्रदेश - भूजल दोहन दो साल बाद 85 प्रतिशत बढ़ेगा


प्रदेश के 43 जिलों के 179 ब्लॉक पानी के अतिदोहन संकट से जूझ रहे हैं। भूगर्भ जल विभाग के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 में विभाग ने प्रदेश में भूजल दोहन की दर 54.31 फीसदी आंकी थी जो 2020 में इसके 85 फीसदी से अधिक रहने का अनुमान है।

झारखंड - भूजलस्तर में चार मीटर की गिरावट


झारखंड के शहरों में भूमिगत जलस्तर की बेहद खराब स्थिति है। भूमिगत जल की उपयोग दर 22.5 प्रतिशत है, उपयोग में लाये गये पानी से कम है। पिछले दो दशक में दो से चार मीटर भूजल स्तर में गिरावट आई है। बोकारो के बेरमो, चंद्रपुरा, चास, धनबाद जिले के बाघमारा, बलियापुर, धनबाद, झरिया और तोपचांची, पूर्वी सिंहभूम जिले के गोलमुरी और जुगसलाई, रामगढ़ जिले के मांडू, पतरातू और रांची के कांके, खलारी, ओरमांझी और रातू इलाके जलसंकट से जूझ रहे हैं।

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