अकाल की मार से किसान तबाह

20 Oct 2015
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इन्द्रावती नदी के किनारे बसे ग्राम कालीपुर, बालीकोन्टा, कुड़कानार, कवि आसना आदि गाँवों के खेतों में किसानों की चहल-पहल नहीं दिखी। खेतों में धान की बालियाँ तो निकल गई हैं परन्तु पौधे पानी के अभाव में सूख गए हैं। सिंचाई साधन नहीं होने के कारण अधिकांश किसान फसलों को बचाने में बेबस दिखे। बची नमी लगातार पड़ने वाली गर्मी के कारण खत्म हो गई इसलिये बालियाँ निकलने के बाद भी धान के पौधे सूख रहे हैं।

जगदलपुर (बस्तर)। कम बारिश की भयावहता अब गाँवों में नजर आने लगी है। पानी के अभाव में जहाँ बालियाँ निकलने के बाद भी धान के पौधे सूखने लगे हैं वहीं फूलवारियों में विभिन्न प्रकार के फूल खराब हो रहे हैं। सैंकड़ों रुपए कमाने के लिये लोग खेतों में मछलियाँ पकड़ सुक्सी भी बेचते थे परन्तु इस काम में भी निराशा हाथ लगी।

इन सब के बीच ग्रामीण अब रोजी-रोटी की तलाश में पलायन की सोच रहे हैं। जगदलपुर जिले में इस साल बरसात कम होने के कारण पहले ही करीब 11 हजार एकड़ में किसान रोपा नहीं लगा पाए थे। बावजूद इसके खंडवर्षा से जिन किसानों ने कम-से-कम आठ आना फसल की उम्मीद रखी थी वे भी निराश नजर आ रहे हैं।

आसपास के गाँवों का दौरा कर किसानों के दर्द को महसूस करने की कोशिश की तो नदी किनारे के गाँवों में भी बदहाली देखने को मिली।

सूख गईं फसलें


इन्द्रावती नदी के किनारे बसे ग्राम कालीपुर, बालीकोन्टा, कुड़कानार, कवि आसना आदि गाँवों के खेतों में किसानों की चहल-पहल नहीं दिखी। खेतों में धान की बालियाँ तो निकल गई हैं परन्तु पौधे पानी के अभाव में सूख गए हैं। सिंचाई साधन नहीं होने के कारण अधिकांश किसान फसलों को बचाने में बेबस दिखे।

डोंगरीपारा कालीपुर के जयराम नाग, कल्लूराम, बालीकोन्टा के फगनूराम कश्यप, सीयाराम सेठिया, कुड़कानार के मनोज सेन, महादेव देवांगन, कवि आसना के जगन्नाथ जोशी, आसमन बघेल और किरण देवांगन ने बताया कि नदी किनारे के खेतों का पानी जल्दी रिसता है इसलिये पानी से भरे खेत भी जल्दी सूख गए हैं।

बची नमी लगातार पड़ने वाली गर्मी के कारण खत्म हो गई इसलिये बालियाँ निकलने के बाद भी धान के पौधे सूख रहे हैं। किसानों ने बताया कि धान के गर्भावस्था में पानी गिर जाये तो उसे धान के लिये वरदान माना जाता है परन्तु इस बार ऐसा नहीं हो पाया और बची-खुची फसल भी तबाह हो गई।

कारोबार चौपट


बस्तर के किसानों के लिये पानी से भरे खेत दो प्रकार की आय का जरिया रहे हैं। पहला धान की फसल और दूसरा मछली पकड़ तथा उसे सूखाकर सुक्सी के रूप में बेचने का। परन्तु इस वर्ष दोनों ही तरफ से किसानों को नुकसान हुआ है। अधिकांश खेतों में पानी ही नहीं है और जहाँ है वहाँ खेतों में मछलियाँ नहीं है।

धरमपुरा के महेश निषाद और कुमरावंड के धनसिंह सेठिया बताते हैं कि बस्तर में प्रतिवर्ष करीब पाँच करोड़ का सुक्सी का कारोबार होता है परन्तु इस बार खेतों में मछलियाँ नहीं मिलने के कारण लाखों का नुकसान हो रहा है। ऐसे में ओड़िशा और आन्ध्र प्रदेश के सुक्सी विक्रेता फायदा उठाएँगे।

गेंदा के पौधे खराब


शहर के पनारा पारा से लेकर चितरकोट तक इन्द्रावती नदी किनारे गेंदा फूलों की खेती करने वाले ग्रामीण भी पानी की कमी से परेशान हैं। पनारापारा की सुखमती माली, आसकरण, सिंघनपुर की कुसुमबती और चितरकोट की शान्ति नाग, मारकंडी नदी के किनारे बसे ग्राम रेटावंड के भोलूराम बताते हैं कि आमतौर पर दीपावली के समय गेंदा के पौधों पर काफी संख्या में फूल आते हैं इसलिये ग्रामीण इन्हें जगदलपुर लाकर बेचते रहे हैं परन्तु पानी की कमी के कारण गेंदा की बाढ़ रुक गई है और पौधों में आये फूल खराब होने लगे हैं इसलिये ग्रामीण अभी से इन्हें तोड़कर शहर लाकर बेचने लगे हैं। इधर माँ दंतेश्वरी मन्दिर के सामने फूलों का कारोबार करने वाले मनजीत बताते हैं कि बस्ती की गलियों में घूम-घूम कर ग्रामीण फूल बेच रहे हैं इसलिये फूलों का कारोबार मन्दा हो गया है।

पलायन की तैयारी


फूलरथ की परिक्रमा देखने आये ग्राम सिंघनपुर के यादराम सेठिया, मनोज कश्यप, कवि आसना के सदाराम नाग और सारगुड़ के नरसिंह कश्यप, कुलगाँव के सुरेन्द्र कश्यप बताते हैं कि गाँव के बहुत से लोग आन्ध्र प्रदेश की मिर्ची बाड़ियों से लेकर पांडिचेरी के टाईल्स फ़ैक्टरियों में काम करने जाते हैं।

दशहरा के बाद वे भी मवेशियों के लिये पैरा इकट्ठा करने के बाद रोजी-रोटी के लिये बाहर जाने वाले हैं। चूँकि गाँवों में रोज़गार मूलक काम कई साल से नहीं हो रहे हैं।

कागजों में ही सिमटी जल क्रान्ति


जल संरक्षण एवं प्रबन्धन को सुदृढ़ बनाने केन्द्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी जल क्रान्ति अभियान यहाँ बस्तर सम्भाग में अभी तक कागजों में ही चल रही है। सम्भाग के बस्तर को छोड़ बाकी जिलों में जल ग्राम का चयन जिला स्तरीय समितियाँ कर चुकी हैं भले ही वहाँ जल प्रबन्धन पर काम शुरू नहीं हुआ है पर यहाँ बस्तर जिले में जल ग्राम का ही चयन अभी तक नहीं किया जा सका है।

अभियान अन्तर्गत प्रथम चरण में सांसद आदर्श ग्राम की तर्ज पर जिला, ब्लाक स्तर पर एक-एक ग्राम को जल क्रान्ति के तहत जल ग्राम के रूप में चयन कर वृहद स्तर पर जल प्रबन्धन एवं जल संरक्षण को सुदृढ़ बनाने की योजना है।

केन्द्र सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने मई 2015 में ही योजना की रूपरेखा राज्य सरकारों को जारी कर दी थी और छत्तीसगढ़ शासन ने भी प्रदेश के सभी जिलों को जून में ही कार्रवाई शुरू करने दिशा-निर्देश जारी कर दिये थे। इसके बाद तीन माह बीतने को है अभी तक जिला स्तर पर समितियाँ गठित कर कुछ जिलों में जल ग्रामों का ही चयन किया जा सका है।

दरअसल मानसून सीजन में जल प्रबन्धन व संरक्षण के लिये जल ग्रामों में प्रयास शुरू कर दिया जाना चाहिए था पर ऐसा कुछ हो नहीं पाया। मध्य बस्तर जिले में 15 सितम्बर को कलेक्टर की अध्यक्षता में जल क्रान्ति अभियान के लिये समिति की बैठक हुई थी जिसमें कलेक्टर अमित कटारिया ने तेजी से काम शुरू करने निर्देशित किया था।

समिति के सदस्य सचिव जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियन्ता प्रमोद राजपूत से इस बारे में चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि जल ग्राम का चयन जल्दी ही कर लिया जाएगा और काम भी शीघ्रता से शुरू करेंगे पर इसके लिये कोई समय सीमा वह नहीं बता पाये।


जल क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत चयनित जल ग्राम में वर्तमान में बन्द हो चुके जल निकायों जलाशय,टैंक और इनके कमांड में इनकी वितरण प्रणाली की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनरुद्धार, वर्षाजल संचयन और भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण, अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण, किसानों की सक्रिय भागीदारी के लिये जन जागरुकता कार्यक्रम, जल के कुशल उपयोग के लिये सूक्ष्म सिंचाई, जल-जमाव वाले क्षेत्रों की पुनर्बहाली के लिये बायो-ड्रेनेज, समुदाय आधारित जल निगरानी, नई तकनीकों और प्रौद्योगिकी का प्रयोग, सतही और भूजल का प्रदूषण उपशमन तथा जल प्रयोक्ता संघों और पंचायती राज संस्थाओं का क्षमता निर्माण आदि कार्य किये जाने का प्रस्ताव है।

जल क्रान्ति अभियान में शामिल प्रत्येक जल ग्राम में कितने और कैसे काम हो रहे हैं इसका मूल्यांकन भारत जल सप्ताह के दौरान करने के लिये कहा गया है। जल ग्रामों में भूजल में आयरन, आर्सेनिक और फ्लोराइड की अधिकता के मामले में निवारण कर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की बात भी कही गई है।

किस जिले ने किस ग्राम को बनाया जल ग्राम?


कोंडागाँव जिले में जोबा और हनुआ जल ग्राम होंगे। इसी जिले के माकड़ी ब्लाक में ओंडरी, फरसगाँव में हाटचपई, केशकाल में हिचका व राजपुर में कोड़केरा, नारायणपुर जिले में ऐड़का एवं रेमावंड, दंतेवाड़ा में कुंदेली व भोंगाम, सुकमा में छिंदगढ़ व झापरा, बीजापुर जिले में बुधमा, कर्रेपारा व कांकेर जिले में पुसवाड़ा को जल ग्राम के लिये चयनित किया गया है।

मध्य बस्तर में जल ग्राम का चयन नहीं किया गया है। जल क्रान्ति अभियान के क्रियान्वयन के लिये जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में सात से लेकर दस सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। जिसमें सदस्य सचिव जल संसाधन विभाग के सम्बन्धित जिले के कार्यपालन अभियन्ता हैं। सदस्य में पीएचई के ईई, जनपद के सीईओ, सीएमओ, उप संचालक मत्स्य, उप संचालक पशु चिकित्सा, उप संचालक कृषि व अनुविभागीय अधिकारी जल संसाधन शामिल हैं।

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