बारिश के अभाव में बाढ़ का नजारा

10 Nov 2016
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बिहार में बाढ़ से बेघर लोग
बिहार में बाढ़ से बेघर लोग


इस बार बिहार की बाढ़ अजीब थी। राज्य के हर हिस्से में बाढ़ आई, लेकिन राज्य के किसी भी हिस्से में सामान्य से अधिक वर्षा नहीं हुई थी। बाढ़ पूरी तरह पड़ोसी राज्यों में हुई वर्षा की वजह से आई थी। बिहार के कुछ जिलों में यह कमी पचास प्रतिशत से अधिक रही। लेकिन नेपाल, झारखण्ड और मध्य प्रदेश में हुई वर्षा की वजह से यहाँ चार चरणों में बाढ़ आई। कई जगह तो बारिश की कमी की वजह से खेत परती पड़े थे, खेती नहीं हुई थी। कुछ सम्पन्न किसानों ने नलकूपों के सहारे खेती की थी कि बाढ़ आ गई और फसल डूब गई। यह सामान्य बाढ़ नहीं थी।

पड़ोसी राज्यों में हुई वर्षा से आई बाढ़ से हुए नुकसानों का जायजा लेने केन्द्रीय टीम आज तक नहीं आई है। नुकसानों के बारे में बिहार सरकार ने आकलन किया है और 22 सितम्बर को ही अपना ज्ञापन केन्द्र को सौंप दिया। उस आकलन के अनुसार बिहार में बाढ़ से लगभग 4112 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। इस आकलन का वास्तविकता से मिलान करने के लिये केन्द्रीय टीम के आगमन का कार्यक्रम तो दो बार बना, परन्तु दोनों बार कार्यक्रम टल गया है। इसका कारण स्पष्ट नहीं है।

इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केन्द्रीय टीम के आगमन में टाल-मटोल को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर केन्द्र की नीयत पर सन्देह जाहिर किया है। उन्होंने कहा है कि किसान जब अगली फसल लगा लेंगे तब केन्द्रीय टीम के आने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

बिहार सरकार ने अपना ज्ञापन 22 सितम्बर को ही अपना ज्ञापन सौंप दिया है। इसकी सरजमीनी छानबीन के लिये केन्द्रीय टीम के आगमन का कार्यक्रम पहले अक्टूबर में बना। फिर 10-11 नवम्बर को टीम के आने के बात हुई। टीम के दौरे का ब्यौरा भी बिहार सरकार को प्राप्त हुई।

इस टीम को तीन हिस्सों में बाँटकर अलग-अलग स्थानों पर जाने का कार्यक्रम था। एक टीम भागलपुर-नवगछिया, दूसरी टीम पटना अरवल और तीसरी टीम समस्तीपुर का दौरा करेगी। यह कार्यक्रम मुख्यतः गंगा की बाढ़ के प्रभाव को जाहिर करने के लिहाज से बना था। परन्तु केन्द्रीय टीम का दौरा ही रद्द हो गया है।

उल्लेखनीय है कि बाढ़ से हुए नुकसानों के एवज में क्षतिपूर्ति के मद में केन्द्रीय सहायता केन्द्रीय टीम की सिफारिशों के आधार पर ही मिलता है। इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री ने 2008 बाढ़ का भी उल्लेख किया है। तब राज्य सरकार ने बाढ़ राहत के मद में दस हजार करोड़ की माँग की थी, पर केन्द्र से केवल एक हजार करोड़ ही मिल पाया। बाद में राज्य सरकार ने विश्व बैंक से कर्ज लेकर यथासम्भव पुनर्वास का काम कर सकी।

मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में यह याद भी दिलाया है कि उन्होंने 22 अगस्त को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर एक विस्तृत पत्र सौंपा था जिसमें गंगा के पेट में जमा गाद की वजह से बिहार में हो रही तबाही का उल्लेख किया गया था। प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों से अध्ययन कराने का भरोसा तो दिया पर आज तक कुछ ठोस नहीं हुआ है।

बिहार में इस साल चार चरणों में बाढ़ आई। जुलाई में नेपाल में बारिश होने की वजह से गंडक में जबरदस्त बाढ़ आ गई। पानी के दबाव में गंडक बैराज का एक फाटक टेढ़ा हो गया।

इस बाढ़ से नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में बाढ़ और कटाव का प्रकोप अभूतपूर्व रहा। बिहार में तटबन्धों के सुरक्षित रह जाने से बाढ़ अधिक मारक नहीं हुई। पर पश्चिम चम्पारण और गोपालगंज जिलों में बाढ़ का तांडव उल्लेखनीय रहा। बाद में कोसी, महानन्दा आदि में बाढ़ आ गई। इससे पूर्वी बिहार के जिले बाढ़ में डूब गए।

कुल मिलाकर 14 जिलों के 78 प्रखण्डों में जुलाई महीने में बाढ़ की हालत बन गई। बाद में मध्य प्रदेश और झारखण्ड में हुई बारिश का असर पड़ा। मध्य प्रदेश ने सोन नदी पर बने बाणसागर बाँध से अचानक बहुत अधिक पानी छोड़ दिया। जानकारी के अनुसार उसने एकाएक 11 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ दिया जिससे गंगा उफन गई। गंगा तटवर्ती सभी बारह जिले बाढ़ की चपेट में आ गए। इनमें से कई जिलों में सामान्य से कम वर्षा हुई है।

गंगा के उफन जाने का असर अभी तक देखा जा रहा है। गंगा के तटवर्ती सभी जिलों में बाढ़ आई। बाढ़ का पानी शहरी क्षेत्रों के प्रवेश कर गया। पटना, मुंगेर भागलपुर से लेकर बनारस तक इसका असर देखा गया। नेशनल हाईवे और रेलमार्ग पर खतरा उत्पन्न हो गया।

सोन नदी पर मध्य प्रदेश में बने बाणसागर डैम से अचानक पानी छोड़ने से गंगा में एकाएक पानी आया और पश्चिम बंगाल में बने फरक्का बैराज से पानी की निकासी में अड़चन आने से गंगा उफन गई। पटना में 19 अगस्त को गंगा का प्रवाह उच्चतम स्तर से अधिक हो गया और पानी का बढ़ना जारी था। अगले दिन बक्सर से भागलपुर तक जगह-जगह गंगा खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी।

गंगा की इस बाढ़ को दो बाँधों- बाणसागर और फरक्का के संचालन में गड़बड़ी के कारण आया बताया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि गंगा की जलधारण क्षमता काफी घट गई है। उसके तल में भारी मात्रा में गाद जमा है। जगह-जगह बालू के टीले उत्पन्न हो गए हैं। थोड़ा पानी बढ़ने पर भी उसका उफन जाना स्वाभाविक है। इस बार तो अचानक अत्यधिक पानी आ गया। इसका प्रकोप पटना-बनारस शहरों पर तो दिखा ही, दूसरे तट के कस्बों और गाँवों में कहीं ज्यादा मारक अवस्था रही जिसकी चर्चा भी हो पाई।

गंगा बिहार के बीचोंबीच से बाँटती हुई पश्चिम से पूरब की ओर प्रवाहित है। आमतौर पर उत्तर बिहार के जिले बाढ़ प्रवण माने जाते हैं और दक्षिण के जिलों को सूखा प्रवण माना जाता है। इस बार यह विभाजन भी बेकार हो गया है। दक्षिण के सूखा प्रवण माने जाने वाले कुछ जिलों में औसत से अधिक वर्षा हुई है जबकि उत्तर के बाढ़ प्रवण जिलों में से अधिकांश में सामान्य से कम बारिश हुई है। इनमें शिवहर और खगड़िया जिले अव्वल हैं।

शिवहर में औसत से 65 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। खगड़िया जिला से होकर उत्तर बिहार की तकरीबन सभी नदियों का पानी गंगा में समाहित होता है। इस बार जिले में पचास प्रतिशत से कम बारिश हुई। लेकिन गंगा की बाढ़ से जिले के कई इलाके डूब गए।

दक्षिण बिहार की नदियों में पहले तो झारखण्ड क्षेत्र में हुई वर्षा की वजह से बाढ़ आई। बाद में वर्षा का आलम यह रहा कि अन्तःसलिला नदी फल्गू में भी उफान आ गया। पुनपुन नदी तो लम्बे समय तक उफनाई रही। गंगा में जल विर्सजन नहीं होने से पटना जिले के कई प्रखण्ड पुनपुन की बाढ़ में डूबे हैं। तटबन्धों पर खतरा बना हुआ है। मोरहर, हरोहर, किउल आदि दक्षिण बिहार की सभी नदियों में इस साल बाढ़ आई। पुनपुन और फल्गू आदि में झारखण्ड में हुई बारिश का पानी भी आता है।

हालांकि बिहार बहुत बड़े इलाके सूखे की हालत रही। इनमें औसत से बहुत कम बारिश हुई। कम बारिश वाले जिलों में शिवहर अव्वल है। जिले में 62 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड किया गया है। सामान्य से पचास प्रतिशत कम बारिश होने वाले जिलों में खगड़िया, मुंगेर, सहरसा, समस्तीपुर, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण और सीतामढ़ी हैं। बेगूसराय, गया, कटिहार, मधुबनी, मुजफफरपुर, सारण, सीवान व वैशाली में बारिश में कमी 30 प्रतिशत है। कुल मिलाकर राज्य के 152 प्रखण्डों में सामान्य से 40 प्रतिशत कम बारिश हुई है। हालांकि रोहतास, अरवल, औरंगाबाद, भभुआ समेत कुछ जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है। मगर इनकी संख्या मात्र नौ है। रोहतास में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई। वहाँ सामान्य से 32 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई।

सरकारी आँकड़ों के अनुसार बाढ़ से बिहार के 31 जिलों के 177 प्रखण्ड प्रभावित हुए। जिसकी आबादी 86 लाख 12 हजार 802 है। बाढ़ में 243 मौतें दर्ज की गईं। पशु-पक्षी, मकान, झोपड़ी, कच्चा मकान, फसल आदि के अलावा सड़क व स्कूल इत्यादि को नुकसान हुआ।
 

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