बदलाव की चाहत में बदलू नहीं बदला

31 Jan 2014
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01 फरवरी 2014/ जहां चाह वहां राह की कहावत चरितार्थ होते दिख रही है। बुन्देलखण्ड के सूखाधारी क्षेत्र महोबा जिले के गांवों में । जिले के कबरई विकासखण्ड में बरबई गांव के किसान बदलू विश्वकर्मा के पास खेती के नाम पर साढ़ॆ तीन एकड़ जमीन है। जिसमें मेहनत-मशक्कत के बावजूद भी मिलने वाली फसल इतनी भी नहीं होती थी, कि परिवार के खर्चे चल सकें। बदलू कभी हार नहीं माना, वह घाटे-मुनाफे को अनदेखा कर खेती करता रहा । पुस्तैनी काम से चलने वाली रोटी को ट्रैक्टरों ने चाट लिया। एक समय था कि बढ़ई,लोहार, विश्वकर्मा गांव के प्रत्येक किसान की खेती में हिस्सेदार थे। होते भी क्यों न उनकी मेहनत से बनाये गये हल, बक्खर,पहटा,गाड़ी,हंसिया,खुरपी,फावड़ा,कुलहाड़ी आदि सभी कुछ किसानी के काम को आसान बनाते थे। वह जो खेती और किसान परिवार की जरूरत के लिए बनाये जाने वाले कृषि यन्त्रों की जरूरतें ट्रैक्टरों ने समाप्त कर दिया। अब ये गांव की उद्योग इकाइयां दमा बीमारी की गिरफ्त में है। देश में सैकड़ों-हजारों नहीं लाखों इकाइयाँ मृतःप्राय होकर विलुप्त होती गईं । हंसते–खेलते,लहलहाते लाखों आश्रित परिवार जो सदा समृद्ध थे। वह बेरोजगारी के चलते महानगरों में ईटा-गारा ढोने के लिए विवश हो गये।बदलू भी इसका शिकार होकर दिल्ली जा कर मजदूर बना था।

बदलू को हमेशा अपनी खेती अपना घर याद आता रहा । खेती को सूखते देख भी वह गहरे अंधेरे के बाद खेती को आशा का दीप मान भरोसा बना रहा । वह हर समय अपनी खेती की खुशामद कर नई-नई योजना बनाता रहता था। आखिर बदलू धन के आभाव के बावजूद भी अपने संकल्प को नही बदला । बदलू के बदलाव के दिन आ ही गये जब अपना तालाब बनाने की पहल का हिस्सा बना किसान बदलू ।

बदलू का संकल्प-अपना तालाब बना विकल्प

किसान बदलू विश्वकर्मा ने अपने खेत में अपना तालाब बनाने की ठान ली । तो जोड़-जुगाड़ कर २०-२५ हजार रूपये का इन्तजाम कर किया। जे.सी.बी. मशीनों की कमी के चलते तालाब निर्माण में हो रही देरी से चिन्तित था बदलू । बदलू ने अपना तालाब बनाने के लिए संकल्प पत्र जो भरा था। संकल्प पत्र भरने वाले किसानों के खेत में भूमि पूजन भी हुआ था। इस भूमि पूजन में स्वयं जिलाधिकारी अनुज कुमार झा अपने सहयोगियों के साथ खेत तक पहुंचे। भूमि पूजन में अपना तालाब अभियान के सम्वाहक सदस्य भी शामिल हुए। बदलू कई दिनों तक अपने तालाब को बनाने के लिए मशीन की टोह लगाता रहा। किसान ने अपने खेत में तालाब बनाने के लिए जे.सी.वी.मशीन की खुराक डीजल मंगवाकर भी रख लिया था। जून२०१३ में बदलू के खेत में उपलब्ध पैसों से 24×15×3 मी.के आकार का तालाब निर्माण पूरा हो सका। किसान बदलू अपने खेत के दशवें हिस्से पर तालाब बनाना चाहता था। पर पैसों की कमी के चलते अभी पूरा नहीं हुआ। आज भी किसान बदलू विश्वकर्मा अपने संकल्प पर अडिग है। वह इस बात से अश्वस्त होकर कहते हैं कि हमारे क्षेत्र में किसानों की समस्याओं का एक मात्र विकल्प अपने खेत के दसवें हिस्से में बना तालाब ही है।

अबकी बरस, बरसी है बदरिया

बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश में पत्थरों की मण्डी बने कबरई कस्बा क्षेत्र के करीबी गांव बरबई में एक गंवई कहावत अक्सर सुनने को मिलती थी । जब भी गांव में पूछंते कि बरसात कैसी हुई। तो जवाब में यही मिलता कि नाकाफी है । उनसे जब बताते कि भैया पड़ोस के गांव में तो पानी कल से बरस रहा है। जवाब में मुहावरा सुनने को मिलता कि गॆर-गॆर बरसै- बरबई गांव तरसै। पर इस साल इस मुहावरे को भी ग्रहण लग गया। आधे जून से ही बादलों ने धरना धर लिया। आये तो फिर वापस जाने का नाम ही नही लिया। ऐसा लगा कि बीते कई सालों का लेन-देन बराबर करने आये है ये बादल।

बरबई गांव में दो दर्जन किसानों ने तालाब बनाने के लिए मन बनाया था। 18 किसानो ने तो संकल्प पत्र ही भर दिया था। उसमें से 14 किसानों के खेतों में भूमि पूजन भी जिलाधिकारी महोबा के द्वारा एक ही दिन सम्पन्न हुआ था। पर पानी के असमय बरसने से किसानों के मंसूबे धरे के धरे रह गये। किसान बदलू के खेत में भी बनते तालाब के बीच पानी आ पड़ा था । जितना पानी आया उसे सहेज पाने के लिये तालाब का आकार छोटा पड़ गया । इतना पानी बरसता देख बदलू के दिल में लालच भी आता रहा । उसे लगता था कि मेरा तालाब और बड़ा होता तो सारा का सारा पानी समेट लेता। बदलू बरसात के दिनों में यही स्वप्ने बुनता रहा कि पानी के सहारे अपने खेत में कौन से बीज डालूंगा । वह यह भी सोंचता था कि अधिक पानी होता तो पड़ोसियों को भी दे पाता । बदलू ही नही उस गांव के बहुतेरे किसानों को भी यही महशूस हुआ । इस साल तालाब बनाने की पहल की तो पानी भी आया। गांव की महिलाएं जिनके माथे पर पीने के पानी की परेशानी हमेशा हैरानी बन झलकती थी। वही महिलाएं इस साल की वर्षा देख उल्लास में गुनगुनातीं हुई कहतीं हैं,अबकी बरस बरसी है बदरिया।

अवर्षा,सूखा,असमय वर्षा से बरबई गांव के पेयजल श्रोतों पर भी खासा प्रभाव पड़ा था। इससे पशुपालन का शौक-समस्या बनकर खड़ा हो गया था ।किसानों ने तभी तो अपने दुधारु जानवरों को भूंखे-प्यासे देख औने-पौने दामों पर बेंच दिया। आखिरकार उनकी खुरांक भी तो भारी पड़ रही थी किसानो पर। जब चारा-भूसा भी अपने खेत का न हो तब खरीद कर पशुओं का पेट भरने के माने है पशू की मूल कीमत खिला देना। बदलू अपने खेत की फसलों की प्यास बुझाने की हैसियत जुटा चुका था। अपने तालाब के पानी से सिंचाई के लिए डीजल पम्प रखने की बात भी कर ली। पर इससे पहले फिर बरसात हो गई। खेत की फसलों को पानी तो मिल ही गया। रहा-सहा तालाब भी और भरकर -छलकने लगा। तालाब के होने से बदलू के खेत में वर्षा के भरे पानी से फसलें खराब नहीं हुई। इस साल की अच्छी वर्षा को देख अपने तालाबों के बनने से इन्द्र देव की भेजी गयी मदद मान रहें हैं यहां के किसान।

किसान का नाम

-बदलू विश्वकर्मा पुत्र श्री पुन्ना विश्वकर्मा ग्राम का नाम- बरबई
विकासखण्ड - कबरई
जनपद-महोबा
बुन्देलखण्ड,उ.प्र.

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