बिहार के आठ जिलों का पानी ही पीने लायक
38 जिलों वाले बिहार राज्य के आठ जिलों का पानी ही प्राकृतिक रूप से पीने लायक है, शेष 30 जिलों के इलाके आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से प्रभावित हैं। इन्हें बिना स्वच्छ किए नहीं पिया जा सकता। बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने राज्य के 2,70,318 जल स्रोतों के पानी का परीक्षण कराया है।
इस परीक्षण के बाद ये आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग के 9 जिले के पानी में आयरन की अधिक मात्रा पाई गई है, जबकि गंगा के दोनों किनारे बसे 13 जिलों में आर्सेनिक की मात्रा और दक्षिणी बिहार के 11 जिलों में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई है। सिर्फ पश्चिमोत्तर बिहार के आठ जिले ऐसे हैं जहां इनमें से किसी खनिज की अधिकता नहीं है। पानी प्राकृतिक रूप से पीने लायक है।
आर्सेनिक प्रभावित इलाके
राज्य में सबसे अधिक खतरा आर्सेनिक की अधिकता को लेकर है। यहां बक्सर जिले से लेकर भागलपुर-कटिहार तक गंगा नदी की राह में आने वाला तकरीबन हर जिला आर्सेनिक पीड़ित है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ये जिले हैं- बक्सर, भोजपुर, सारण, पटना, वैशाली, समस्तीपुर, बेगुसराय, भागलपुर, लखीसराय, मुंगेर, खगड़िया, दरभंगा और कटिहार। आर्सेनिक प्रभावित जिलों के आंकड़े इस प्रकार हैं-
प्रभावित जिले | प्रभावित प्रखंड | प्रभावित बस्तियां |
बेगूसराय | 4 | 84 |
भागलपुर | 4 | 159 |
भोजपुर | 4 | 31 |
बक्सर | 4 | 385 |
दरभंगा | 1 | 5 |
कटिहार | 5 | 26 |
खगड़िया | 4 | 246 |
लखीसराय | 3 | 204 |
मुंगेर | 4 | 118 |
पटना | 4 | 65 |
समस्तीपुर | 4 | 154 |
सारण | 4 | 37 |
वैशाली | 5 | 76 |
कुल | 50 | 1,590 |
आर्सेनिक प्रभावित इलाकों के बारे में बात करते वक्त यह समझ लेना होगा कि दुनिया भर में बहुत कम इलाके आर्सेनिक प्रभावित हैं। एशिया में तो बक्सर से बांग्लादेश तक की गंगा पट्टी, मंगोलिया और वियतनाम-थाइलैंड के कुछ इलाके ही आर्सेनिक प्रभावित हैं।
फ्लोराइड प्रभावित इलाके
राज्य के 11 जिलों की 4157 बस्तियों के पेयजल में 1 मिग्रा प्रति लीटर से अधिक मात्रा में फ्लोराइड मौजूद है, यानी ये इलाके डेंटल फ्लोरोसिस की जद में हैं। जाहिर तौर पर इनमें से सैकड़ों बस्तियों में 3 मिग्रा प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड होगा यानि वे स्केलेटल फ्लोरोसिस की जद में होंगे और कुछ बस्तियों के पेयजल में 10 मिग्रा प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड होगा यानी वे क्रिपलिंग स्केलेटल फ्लोरोसिस की जद में होंगे यानि उनकी हड्डियां टेढ़ी हो जाती होंगी। बहरहाल राज्य में फ्लोराइड प्रभावित इलाकों के आंकड़े राज्य सरकार के मुताबिक-
प्रभावित जिले | प्रभावित प्रखंड | प्रभावित बस्तियां |
नालंदा | 20 | 213 |
औरंगाबाद | 8 | 37 |
भागलपुर | 1 | 224 |
नवादा | 5 | 108 |
रोहतास | 6 | 106 |
कैमूर | 11 | 81 |
गया | 24 | 129 |
मुंगेर | 9 | 101 |
बांका | 6 | 1,812 |
जमुई | 10 | 1,153 |
शेखपुरा | 6 | 193 |
कुल | 98 | 4,157 |
आयरन प्रभावित जिले
उत्तर पूर्वी बिहार खास तौर पर कोसी नदी से सटे इलाकों के नौ जिले आयरन की अधिकता से प्रभावित हैं। इसी वजह से इन इलाकों को काला पानी भी कहा जाता रहा है। इन इलाकों में लोगों को स्वाभाविक रूप से गैस और कब्जियत की शिकायत रहती है। पानी का स्वाद तो कसैला हो ही जाता है। बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इन इलाकों का विवरण इस प्रकार है-
प्रभावित जिले | प्रभावित प्रखंड | प्रभावित बस्तियां |
खगड़िया | 3 | 417 |
पूर्णिया | 14 | 3,505 |
कटिहार | 16 | 766 |
अररिया | 9 | 2,069 |
सुपौल | 11 | 3,397 |
किशनगंज | 7 | 1,593 |
बेगूसराय | 18 | 2,206 |
मधेपुरा | 13 | 2,445 |
सहरसा | 10 | 2,275 |
कुल | 101 | 18,673 |
वैसे तो राज्य सरकार की ओर से इन समस्याओं से निबटने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हैंडपंपों में वाटर प्यूरीफिकेशन यंत्र लगाने से लेकर बड़े-बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट प्रभावित इलाकों में लगाए गए हैं। मगर ये उपाय बहुत जल्द बेकार हो जा रहे हैं, क्योंकि समाज इनमें स्वामित्व नहीं महसूस करता। न इनकी ठीक से देखभाल की जाती है, न ही खराब होने पर ठीक कराने की कोई सुनिश्चित व्यवस्था है।