बिहार में टिकाऊ और स्थायी चौर मात्स्यिकी के लिये समूह दृष्टिकोण

7 Jul 2017
0 mins read

जलग्रस्त या चौर क्षेत्रों और बाढ़कृत क्षेत्रों में कई किसानों की जमीन जलमग्न होती है इसलिये समुदाय आधारित भागीदारी और सामूहिक प्रबन्धन विकास का सबसे अच्छा और सफल माॅडल होगा। इसके लिये किसान संगठित किये जा सकते हैं ताकि वे संघर्ष को कम करते हुए साझा और सूचित निर्णय लेकर आपसी प्रतिबद्धताओं तक पहुँच सकें। इससे संसाधन के उपयोग को लेकर अनिश्चितता कम होगी और अन्त में किसान अपने प्रयासों की लागत और लाभ दोनों में हिस्सेदार रहेंगे। मिट्टी, पानी और वनस्पति तीन बुनियादी प्राकृतिक संसाधन हैं। निसन्देह, मानव जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करता है। लेकिन प्राकृतिक संसाधन भी अपने स्थायित्व के लिये मनुष्यों पर निर्भर करते हैं। प्रकृति में ऐसे तरीके और उपाय हैं जो विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के बीच एक सन्तुलन सुनिश्चित करते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी प्रबन्धन से ग्रामीण आजीविका में सुधार करना ही प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन का सर्वसमावेशी उद्देश्य है।

प्राकृतिक संसाधन ग्रामीणों की गरीबी दूर करने की आधारशिला है। गरीबी पर काबू पाने से अभिप्राय है व्यक्तिगत और सामूहिक सशक्तिकरण, उत्पादकता और आय के अवसरों को बढ़ावा देना। इसके लिये गरीब लोगों की गतिविधियों और उनके प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण की एक स्पष्ट समझ की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त सहायक नीतियों, संस्थाओं, सेवाओं और निवेश की भी आवश्यकता है।

प्राकृतिक मात्स्यिकी, बिहार के 40 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण घरों में खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। भूमिहीन गरीब लोगों को जलग्रस्त/चौर क्षेत्रों और बाढ़कृत क्षेत्रों के प्रबन्धन के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इन जलस्रोतों का सहकारी, सामूहिक प्रबन्धन और अधिक प्रभावी हो जाएगा। अगर इनमें फसलों की खेती और मात्स्यिकी सामेकित रूप से हो।

जलग्रस्त या चौर क्षेत्रों और बाढ़कृत क्षेत्रों में कई किसानों की जमीन जलमग्न होती है इसलिये समुदाय आधारित भागीदारी और सामूहिक प्रबन्धन विकास का सबसे अच्छा और सफल माॅडल होगा। इसके लिये किसान संगठित किये जा सकते हैं ताकि वे संघर्ष को कम करते हुए साझा और सूचित निर्णय लेकर आपसी प्रतिबद्धताओं तक पहुँच सकें। इससे संसाधन के उपयोग को लेकर अनिश्चितता कम होगी और अन्त में किसान अपने प्रयासों की लागत और लाभ दोनों में हिस्सेदार रहेंगे। इसके अतिरिक्त समुदाय आधारित सामूहिक दृष्टिकोण के निम्नलिखित बिन्दू हैं-

1. मछुआरों और किसानों के लिये पर्याप्त टिकाऊ और लाभप्रद आजीविका प्रदान करेगा।
2. अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी और जलीय संसाधनों के विकास और प्रबन्धन को बढ़ावा मिलेगा।
3. उद्यम और रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।
4. स्थायी उपयोग के लिये मास्त्यिकी संसाधनों और मछली जैवविविधता का प्रबन्धन होगा।

मछुआरों के समूहों का गठन


दो या दो से अधिक लोगों के पारस्परिक सम्पर्क एवं संवाद से एक समूह बनता है। यह समूह अनुभवों को साझा करने में, विचारों का संग्रह करने, प्रतिक्रिया देने और अनुभवों के विश्लेषण के लिये मंच प्रदान करने में सक्षम हैं। समूह से समर्थन और आश्वासन का एक उपाय प्रदान होता है। इसके अलावा, एक समूह के रूप में, शिक्षार्थी भी परिवर्तन कार्यवाही के लिये सामूहिक रूप से योजना बना सकते हैं।

समूह की विशेषताएँ


1. यह दो या दो से अधिक लोगों से बनता है।
2. संचार और संवाद होना चाहिए
3. संचार पारस्परिक होना चाहिए
4. समूह तब तक रहता है जब तक पारस्परिकता मौजूद हो।

कृषक रूचि समूह (FIG) अथवा आम रुचि समूह (CIG) अथवा मछली उत्पादन समूह (FPG)


आम लक्ष्य जैसे की मत्स्य बीज उत्पादन, उत्पाद विपणन, पानी का बँटवारा, आकस्मिक जरूरतों को पूरा करना इत्यादि प्राप्त करने के लिये एक साथ आने वाले लोगों के समूह, एक कृषक रुचि समूह (FIG) अथवा आम रुचि समूह (FIG) अथवा मछली उत्पादन समूह बनाता है। दूसरे शब्दों में FIG अथवा FIGs स्वेच्छा से एक साथ आने वाला एक छोटा आर्थिक रूप से सजातीय और आत्मीयतायुक्त समूह है-

1. आम लक्ष्यों को पाने के लिये
2. आपातकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिये
3. सामूहिक निर्णय के लिये
4. सामूहिक नेतृत्व और आपसी विचार, विमर्श के माध्यम से विवाद का समाधान करने के लिये

एफआईजी अथवा एफआईजीएस की विशेषताएँ


1. समरूपता
2. आम लक्ष्य
3. आपसी सहायता
4. सामूहिक कारवाई
5. 10-20 सदस्य होने चाहिए
6. भ्रांतियाँ दूर रखना
7. प्रबन्धन की कठिनाइयों को दूर करना
8. समूह के सभी सदस्यों की सुनिश्चित भागीदारी
9. समूह के सदस्यों में प्रभावी और नियमित पारस्परिक विचार-विमर्श के बीच

समूह गठन के चरणः समूह के गठन में चरण हैं-


(i) समूह गठन के पूर्व का चरण
1. प्रोत्साहक को नियमित यात्राओं से गाँव में घनिष्ठता विकसित करनी चाहिए।
2. गाँव के वातावरण और लोगों के बारे में जानकारी एकत्रित करनी चाहिए।

(ii)प्रोत्साहन चरण:-

(A) समूह गठन


उनकी एकरूपता, जरूरत समस्या, जाति, व्यवसाय, खेल, आकार, लिंग, आय स्तर के आधार पर 15-20 किसानों को एक साथ आगे आने और समूह बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

(B) बुद्धिशीलता


1. इसमें स्तर, व्यक्तिगत और समूह के हित पेश किये जाते हैं।
2. नेतृत्व उभरना
3. प्रक्रियाओं, नियमों और समूह के कामकाज की भूमिका का निर्णय करना।

(C) प्रतिमान


- सामंजस्य के लिये समूह के सदस्यों के बीच विश्वास विकसित करना।

(D) निष्पादन


- इस चरण में समूह का कार्य सम्पन्न करना होता है।

समूह को सुविधाजनक बनाना


एक समूह स्वचालित रूप से प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकता है, इसे सरलीकरण की जरूरत होती है। सरलीकरण को एक समूह के रूप में काम करते हुए सफलतापूर्वक अपने कार्य को करने की एक सचेत प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया जा सकता है। सुगमता को खुद सदस्यों या एक बाहरी व्यक्ति की मदद से निष्पादित किया जा सकता है। प्रभावी ढंग से सरलीकरण के लिये सुविधाप्रदाता को यह समझने की जरूरत है कि समूह में एक साथ क्या हो रहा है और उसे कैसे सुविधाजनक बनाया जाये।

समस्या का समाधान


अधिकांश समूह समस्याओं का समाधान करने में खुद को असमर्थ पाते हैं क्योंकि वे बाहरी स्तर पर ही समस्या का व्याख्यान करते हैं। उसके बाद वे खुद अवरुद्ध हो जाते हैं क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि समस्या कैसे उत्पन्न हुई है और वे इसे कैसे हल कर सकते हैं। इसलिये एक प्रभावी समस्या समाधान प्रक्रिया की निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

1. स्पष्ट रूप से समस्या को परिभाषित करना: यह बाहरी सतह पर कैसी दिखाई देती है क्या है या वहाँ गहरा छिपा पहलू क्या है।
2. अच्छी तरह से पता लगाने और समस्या के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास करना।
3. यदि आवश्यक हो तो कहीं से भी अतिरिक्त जानकारी लेना और इसका विश्लेषण करना।
4. समूह को थोड़ी देर के लिये आलोचना और फैसले को निरस्त करने तथा एक दूसरे के विचारों का गठबन्धन या उन्नति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। उद्देश्य इस तरह से बनाने चाहिए कि उनसे अधिक-से-अधिक विचारों और सुझावों को उत्पन्न किया जा सके। जब व्यक्ति ऐसी सोच रखने का प्रयास करते हैं तो इसे एक समूह में ‘बुद्धिशीलता’ कहा जा सकता है।

समूह में निर्णय


समूह के सदस्य इंसान है इसलिये उनका अपना व्यक्तित्व होता है। समूह के प्रत्येक सदस्य को अपने विचारों (अलग सोच) को व्यक्त करने की जरूरत है। दूसरी ओर वही लोग अपने मतभेदों को संकीर्ण करके चर्चा को समापन (अभिसरण सोच) की दिशा में से जाना चाहते हैं।

आपसी संघर्ष


यदि उचित रूप से प्रबन्धित किया जाता है तो संघर्ष एक समूह के लिये अच्छा हो सकता है। मतभेद दूर करके, समूह के सदस्य, गुणवत्ता फैसले कर सकते हैं और सन्तोषजनक पारस्परिक सम्बन्ध बना सकते हैं। एक समूह में संघर्ष का प्रबन्धन करने के लिये हमें संघर्ष की पहचान करना और संघर्ष के सम्भावित स्रोतों को पता लगाना चाहिए। उसके बाद संघर्ष को कम करने के लिये एक रणनीति विकसित करके फिर योजना पर अमल करते हैं। उसके बाद इसका मूल्यांकन तथा समीक्षा की जाती है।

निष्कर्ष


समूह प्रभावी संगठनों के लिये सम्भावित महान शक्ति है और इन लक्षणों को पूरी तरह या आंशिक रूप से हासिल कर सकते हैं। समूहों में स्वाभाविक रूप से कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता है। समूह का लक्ष्य समूह के लिये लोगों को आकर्षित करता है। अधिकांश समूह अधिकाधिक और अनौपचारिक दोनों कार्य करते हैं, वे संगठन और व्यक्तिगत सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

 

चौर क्षेत्र में मात्स्यिकी द्वारा जीविकोत्थान के अवसर - जनवरी, 2014


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

आजीविका उन्नति के लिये मत्स्य-पालन प्रौद्योगिकी

2

चौर में मत्स्य प्रबन्धन

3

पेन में मत्स्य-पालन द्वारा उत्पादकता में वृद्धि

4

बरैला चौर में सफलतापूर्वक पेन कल्चर बिहार में एक अनुभव

5

चौर संसाधनों में पिंजरा पद्धति द्वारा मत्स्य पालन से उत्पातकता में वृद्धि

6

एकीकृत समन्वित मछली पालन

7

बिहार में टिकाऊ और स्थाई चौर मात्स्यिकी के लिये समूह दृष्टिकोण

8

विपरीत परिस्थितीयों में चौर क्षेत्र के पानी का समुचित उपयोग

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading