बुन्देलखण्ड-कपिलधारा कुओं में बड़ा घोटाला


कागज़ों में कुआँ खोदने के इस भ्रष्टाचार में ग्राम पंचायत के जिम्मेदार बुनियाद तैयार करते रहे और उपयंत्री के फर्जी मूल्यांकन की रिपोर्ट से गबन का खाका तैयार होता रहा, मनरेगा की मजदूरी बैंक खातों में जमा होती है इसलिये फर्जी मस्टर रोल के आधार पर मज़दूरों के बैंक खातों से बैंक कर्मियों की मिली-भगत से राशि आहरित कर ली गई। इस खेल में कमीशन का खूब बन्दरबाँट किया जाता रहा।छतरपुर, मनरेगा के तहत सागर सम्भाग के पाँच जिलों में कपिलधारा के कुओं की खुदाई में भारी घोटाला हुआ है। सुर्खियों में आने के बाद भी प्रदेश सरकार इस महाघोटाले का सच सामने लाने से कतराती रही। जाँच की औपचारिकताएँ ही की जाती रहीं। जाँच गुम होती गई। बड़ी मछलियों को साफ बचा लिया गया। पंचायत स्तर से लेकर अधिकारी और बैंक तक इस घपले में शामिल रहे। यह महाघोटाला ढाई अरब रुपए से अधिक का है।

महात्मा गाँधी ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत बुन्देलखण्ड में सागर के पाँच जिलों में कपिलधारा कुओं को लेकर शुरुआती दौर से ही गड़बड़ियाँ सुर्खियाँ बनती रहीं। सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना और टीकमगढ़ जिले में करीब 13767 शिकायतें प्रशासनिक तंत्र के पास पहुँची। कुओं के निर्मित होने के बाद भी मज़दूरों का भुगतान न होना आम बात थी। कागज़ों में ही कुएँ खोद लिये गए। सरकारी राशि हजम कर ली गई। सागर जिले में 11953, छतरपुर में 13790, टीकमगढ़ में 9574, दमोह में 11071 और पन्ना जिले में 6935 कुएँ स्वीकृत किये गए थे। सिंचाई योजनाओं को हर खेत तक पहुँचाने की केन्द्र सरकार की योजना कपिलधारा की सागर सम्भाग में व्यय की बात करें तो करीब एक हजार करोड़ रुपए स्वीकृत किया गया था। सागर के लिये 225 करोड़, छतरपुर 245, टीकमगढ़ 176, दमोह 185 और पन्ना जिले में 121 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए थे। कपिलधारा योजना के नियमों के अनुसार निर्धारित मापदंड के अनुसार ग्राम पंचायत सम्बन्धित हितग्राही के खेत पर कुआँ खुदवाने का कार्य करती हैं। पहले एक कुआँ पर एक लाख 82 हजार रुपए व्यय किये जाते थे। लेकिन मनरेगा में मजदूरी दर के बढ़ने के साथ यह राशि 3 लाख 26 हजार रुपए हो गई है। प्रति कुआँ लाखों रुपए व्यय करने का यह अधिकार ही भ्रष्टाचार को जन्म देता रहा। ग्राम पंचायत के जिम्मेदार और मूल्यांकन करने वाले इंजीनियर की मिली भगत से कागज़ों में ही कुआँ खुदवाकर राशि हजम होने के कई मामले बुन्देलखण्ड में उजागर हुए।

कागज़ों में कुआँ खोदने के इस भ्रष्टाचार में ग्राम पंचायत के जिम्मेदार बुनियाद तैयार करते रहे और उपयंत्री के फर्जी मूल्यांकन की रिपोर्ट से गबन का खाका तैयार होता रहा, मनरेगा की मजदूरी बैंक खातों में जमा होती है इसलिये फर्जी मस्टर रोल के आधार पर मज़दूरों के बैंक खातों से बैंक कर्मियों की मिली-भगत से राशि आहरित कर ली गई। इस खेल में कमीशन का खूब बन्दरबाँट किया जाता रहा। सरपंच संघ छतरपुर के पूर्व अध्यक्ष सुंदर रैकवार कहते हैं कि सरपंच सचिव तो बदनाम है पर असली खेल तो उपयंत्रियों का होता है। कई कुएँ ऐसे हैं जिनका कार्य पूर्ण हो चुका लेकिन उपयंत्री कमीशन न मिलने तक इन्हें कागज़ों में अपूर्ण ही बताते रहे। इन्हीं कारणों से बुन्देलखण्ड में रोज़गार की गारंटी मिलने के बाद भी बड़ी तादाद में पलायन होता है क्योंकि मज़दूरों का समय पर मजदूरी न मिलने से इस योजना से मज़दूरों का मोह भंग होता गया।

पूर्व कृषि राज्य मंत्री के अपने गृह ग्राम में खुद गए थे कागजों में कुएँ प्रदेश के पिछले कार्यकाल के कृषि राज्य मंत्री बृजेन्द्र सिंह के पन्ना जिले के गृह ग्राम इटौरा में भी कागज़ों में खुदे कुओं का मामला सामने आने के बाद सनसनी फैल गई थी। वर्ष 2009-2010 के दौरान इस गाँव में खोदे गए सात कुएँ ढूँढे गए तो यह कागज़ों में मिले। इतना ही नहीं इन कुओं से सिंचाई के लिये बुन्देलखण्ड पैकेज से पम्प के लिये बीस हजार रुपए भी दिये गए। करीब 20 लाख रुपए का भ्रष्टाचार सामने आने के बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय विभाग ने पन्ना जिले के सभी कुओं का सच जानने के लिये जाँच टीमें गठित कर दी थी। इस मामले में गाँव के सरपंच, सचिव और उपयंत्रि के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का आदेश दिया गया है। पर पूरे जिले में कूप निर्माण की जाँच का क्या हुआ इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।

टीकमगढ़ जिले की जनपद निवाड़ी के ग्राम बपरौली में तो स्वयं मुख्यमंत्री का शुभकामना पत्र उपहास का कारण बना। किसान मोहनलाल लुहार को कपिलधारा कुआँ खोदने पर मुख्यमंत्री का शुभकामना पत्र प्राप्त हुआ। वह चौंक सा गया। लेकिन फिर सच्चाई भी सामने आ गई। जो इस योजना में घपलों की बानगी प्रकट कर गई। हुआ यूँ कि ग्राम सचिव और सरपंच ने मोहनलाल की आड़ में स्वयं के खेत में कुआँ खुदवा लिया और राशि का भी आहरण कर लिया। मुख्यमंत्री ने जब कुआँ खोदने पर मोहनलाल को बधाई पत्र भेजा तो इस गोलमाल का खुलासा हुआ। मोहनलाल ने इस मामले की शिकायत भी मुख्यमंत्री सहित उच्च स्तर तक की। पर कार्रवाई बेनतीजा रही।

छतरपुर जिले के लौंडी के ग्राम सिजई में तो स्वयं एक पूर्व सरपंच ने कपिलधारा कुओं से बहने वाली भ्रष्टाचार धारा की कलई खोल दी थी। लेकिन दर्जनों शिकायतों के बाद भी प्रशासन ने कुछ नहीं किया। गाँव के उसी सरपंच रामदेव पाल ने जाँच शिकायत में इस घपले का उजागर किया है। जिसके कार्यकाल में सचिव और मूल्यांकन करने वाले इंजीनियर ने इस गड़बड़ी को अंजाम दिया। मजेदार यह है कि कूप निर्माण के मस्टर रोल में बाक़ायदा मज़दूरों का काम करना बताया गया है। जिसमें गाँव के उपसरपंच सहित एक दर्जन मज़दूरों को केन्द्रीय सहकारी बैंक लौंडी के खाते से भुगतान करना बताया गया है। सचिव, इंजीनियर और बैंक कर्मचारियों की मिली-भगत से मज़दूरों के खातों में राशि जमा की गई। उनके फर्जी हस्ताक्षर कर राशि का आहरण कर लिया गया। सत्ता और प्रशासन, बैंक के नैक्सेस से मज़दूरों की मजदूरी हड़पने का यह कोई बुन्देलखण्ड में कोई नया मामला नहीं था बल्कि कमोबेस पाँच जिलों के हर पंचायत ने यह कारनामा कर दिखाया था। छतरपुर जिले की जनपद बिजावर में तो कागजों में ही कुएँ खुद गए। ग्राम पंचायत राईपुरा में दरबारी बसोर, धनुवा अहिरवार की ज़मीन पर मात्र दस फुट कुआँ खोदा गया और मजदूरी पूरी आहरण कर ली गई। वहीं मुरली पाल, झल्लू बसोर, प्रेमलाल अहिरवार, परसुआ अहिरवार और शंकर अहिरवार की ज़मीन पर तो बिना कुआँ खुदे ही राशि हड़प कर ली गई।

छतरपुर जिले में केन्द्र की राशि से संचालित इस जल संरक्षण की योजना में भारी आर्थिक अनियमितताओं के मामले को महाराजपुर विधानसभा से विधायक मानवेन्द्र सिंह ने वर्ष 2012 में विधानसभा में उठाया था। कुओं में भ्रष्टाचार की धार का सच जानने के लिये प्रदेश स्तरीय जाँच दल छतरपुर आया। रोज़गार गारंटी परिषद के गठित इस जाँच दल में आये विभिन्न विभागों के भोपाल स्तर के शीर्ष अधिकारियों को कहीं भ्रष्टाचार ही नजर नहीं आया। आरोप लगे कि अधिकारियों का सत्कार और मिलने वाले नजराने ने इस पूरे मामले को लीपने का काम कर दिया। जाँच दल के कुओं के अलावा बुन्देलखण्ड पैकेज के तहत दिये गए सिंचाई पम्पों का भी भौतिक सत्यापन जाँच में शामिल था। इस कारण दोनों ही मामलों में क्लीन चीट दे दी गई।

वर्ष 2014 में एक बार फिर इस महाघोटाले की जाँच होने की रस्म अदायगी हुई। सम्भागीय क्षेत्र में 34 दलों ने 2335 कुओं का मौके पर निरीक्षण किया। सरकार ने यह सैम्पल सर्वे कराया था। हर ब्लॉक स्तर पर कार्यपालन यंत्री की निगरानी में उपयंत्रियों को जाँच सौंपी गई। मजेदार बात यह है कि इस जाँच को भी उन्हीं उपयंत्रियों से कराया गया जो जनपद कार्यालयों में पदस्थ थे और जिनकी निगरानी में ही कपिलधारा कुओं का निर्माण कर मूल्यांकन किया जाता है। जाँच का स्वांग रचा गया क्योंकि सैकड़ों गड़बड़ियों के मामले उजागर होने पर भी कहीं कोई दोष नहीं पाया गया। जाँच के इस निष्कर्ष ने निश्चित रूप से व्यवस्थाओं की कलई खोलते हुए सरकार की ईमानदारी पर सवाल उठाया है। इस तरह यह महाघोटाला कागज़ों में दफन होकर रह गया है।

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