बुन्देलखण्ड में गिरता जल स्तर भविष्य के गम्भीर संकेत

 

अब तो कोख का पानी भी सूख चुका है


सूखासूखे बंजर होते खेत, पानी की बूँद पाने की कशमकश और अघोषित अकाल जैसे हालात। बुन्देलखण्ड में जिस तरह से जल स्तर सतह की ओर नीचे जा रहा है। वह भविष्य के लिये गम्भीर संकेत है। अगर अभी भी नहीं चेते तो बडी देर हो जायेगी। वैसे भी 300 से 400 फुट पानी का स्तर नीचे चले जाने से यह इलाक़ा डार्क जोन श्रेणी में आने लगा है। जहाँ जल संचय की योजनाओं पर तो पानी की तरह खर्च किया गया है लेकिन अधिकांश योजनाओं के कागजी स्वरूप होने से धन संचय ने बाजी मार ली।

पिछले पाँच सालों के आँकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो बुन्देलखण्ड के सागर संभाग के पाँच जिलों में तीन वर्ष औसत बारिश से 45 से 30 प्रतिशत तक कम बारिश आंकी गई। वर्ष 2012-13 के दौरान 1032.4, 2014-15 में 725.44 एवं इस वर्ष 643.2 मिमी ही बारिश का पैमाना रहा जबकि संभाग की औसत बारिश 1145.7 मिमी है। तय था कि सूखा के हालात संकटमय होंगे। उम्मीदें थी तो जल संरक्षण योजनाओं का सच जानने कि अरबों रूपये खर्च करके बुन्देलखण्ड के जलस्तर को सुधारने में कितनी कामयाबी मिली। इसका सच देखा जा रहा है कि पानी के लिये त्राही-त्राही मची है। सिंचाई के अभाव में खेती का रकवा कम हो गया और किसान भूखमरी के हालात से जूझ रहा है।

बुन्देलखण्ड के जल स्तर में इस तेजी से गिरावट आ रही है कि समय रहते नहीं चेते तो यह इलाक़ा रेगिस्तान का रूप लेता जायेगा। पिछले वर्ष मई माह में सेंट्रल वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के नार्थ सेन्टर ने मानसून पूर्व गिरते जल स्तर की मॉनिटिरिंग की जिसकी रिपोर्ट चौंकाने वाली है। जाँचने के तौर सागर संभाग के चार जिलों में कुछ कुओं के माध्यम से यह मॉनिटिरिंग की गई। दमोह जिले में 6.50 से 49.40 मीटर तक जल स्तर गिरा पाया था। इसी तरह पन्ना में 9.38 से 24.61, सागर में 17.77 से 46.85 एवं टीकमगढ़ जिले में 5.62 से 13.30 मीटर तक ग्राउंड लेवल से जल स्तर नीचे चला गया था। विभाग ने पोस्ट मानसून ग्राउंड वाटर सर्वे किया तो कुछ गाँव ऐसे पाये गये जहाँ 8 से 10 मीटर जल स्तर कम हुआ।

सागर जिले में जलस्तर जाँचने के लिये 100 गाँवों को चिन्हित किया गया था। जाँच में 58 गाँवो का जलस्तर कम होना पाया गया। मॉनसून के दौरान हुये इस सर्वे में जल स्तर बढ़ने की उम्मीदें थी लेकिन मात्र 0.02 से 1.5 मीटर तक ही जलस्तर बढ़ना पाया गया। जो मॉनसून में बढ़ने वाले जल स्तर का आधा भी नहीं था। जानकारों के मुताबिक बारिश के दिनो में 3 से 5 मीटर तक जलस्तर बढ़ जाया करता है। जानकारों का कहना है कि प्राकृतिक रूप से बरसने वाली रिमझिम बारिश के पानी को मिट्टी सोखती है। जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज होता है। सावन भादो माह में तेज बारिश होने से यह पानी बहकर नदी नालों में बहकर चल गया जिससे मिट्टी की प्यास तक नहीं बूझ पायी।

इस बार गाँव की अपेक्षा सबसे अधिक सूखे का असर शहरो में देखने को मिल रहा है। बोरिंग का काम करने वाले जगदीश विश्वकर्मा बताते हैं कि छतरपुर जिले में अमूमन 300 फुट तक पानी मिलने की संभावनायें रहती थी लेकिन अब 500 फुट तक भी भगवान भरोसे उम्मीदें रहती है। यही कारण है कि जिन बोरिंगो में पानी था जल स्तर के तेजी से घटने पर वे बोरिंग सूख चुकी है। चूँकी शहरी इलाक़ों में जल संचय जैसे अहम पहलू को नजरअंदाज कर हर गली मोहल्ले की सड़को को सीमेंट कांक्रीट से निर्मित कर दिया गया। महत्त्वपूर्ण यह भी है कि जलसंचय की योजनाओं को धन संचय के लालचियों ने कागजी रंग दिखा दिया। जब धरती के अंदर ही पानी जमा नहीं होगा और पूरी तरह इसी पानी के दोहन के भरोसे रहा जायेगा तो भविष्य में रेगिस्तान जैसे हालातों को बुलावा ही दिया जा रहा है। जिसकी आहट अभी से सुनाई देना शुरू हो चुकी है।

Keywords:
Bundelkhand in Hindi, Drought in Bundelkhand in Hindi, Water crisis in Hindi, water shortage in Hindi, water scarcity in Hindi, Central Water Resource Department in Hindi, Desert in Hindi, Desertification in Hindi, Water conservation schemes in Hindi, Borewell in Hindi

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading