बुन्देलखण्ड पैकेज में दरार


सूखे की वजह से खबरों में लगातार बना हुआ बुन्देलखण्ड अचानक बाढ़ का शिकार हो रहा है। केन, बेतवा, धसान, जनूनी, सोनार जैसी नदियाँ इस क्षेत्र में बहती हैं। कई गाँवों में सब कुछ बह रहा है और लोग समझ नहीं पा रहे कि करना क्या है? दामोह, पन्ना, टिकमगढ़ और सागर के कई गाँवों से बाढ़ की खबर आ रही है। किसी के हताहत होने की खबर अब तक नहीं है। सूखे लिये त्राहिमाम करने वाले गाँव अचानक बहने लगे।

देश में सरकारी पैसों की खुली लूट को समझाने के लिये आमतौर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता अपने-अपने राज्यों के बुदेलखण्ड पैकेज का ही जिक्र करते हैं। बुन्देलखण्ड पैकेज का दुरुपयोग का हाल यह बयान करता है कि सरकार किसी की भी हो, लूट का तंत्र हमेशा एक ही रहता है।

भ्रष्टाचार का शासन सास्वत है। हर सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने के वादे के साथ सत्ता में आती है और सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के पूरे तंत्र का हिस्सा बनकर काम करने लगती है। यह सब दशकों से लगातार बिना किसी रुकावट के होता चला आ रहा है।

पन्ना जिले में 32 करोड़ की लागत से नवनिर्मित सिरस्वाहा बाँध टूट गया। यही हालत बिलखुरा बाँध की भी है। पन्ना के ही वृंदावन बाँध में भी दरारें साफ दिखाई देने लगी हैं। पन्ना के बढ़ीपडरिया में नहरे टूटने की खबर है। सिरस्वाहा और बिलखुरा बाँध 07 जुलाई को बह गए।

अब बताया जा रहा है कि इसे बनाने में जो सामग्री इस्तेमाल की गई थी, वह दोयम दर्जे की थी। लेकिन जब यह बनाया जा रहा था, उन दिनों इस बात की परवाह किसी ने नहीं की। बाँध के पानी में बह जाने की यह पहली घटना नहीं है, चार साल पहले बितरी मूरमूटू बाँध ऐसे ही दोयम दर्जे के निर्माण सामग्री इस्तेमाल करने की वजह से पानी में बह गया। वैसे बाँध के बह जाने पर जिला प्रशासन ने जाँच बिठा दिया है।

हाल तक सूखे की वजह से खबरों में लगातार बना हुआ बुन्देलखण्ड अचानक बाढ़ का शिकार हो रहा है। केन, बेतवा, धसान, जनूनी, सोनार जैसी नदियाँ इस क्षेत्र में बहती हैं। कई गाँवों में सब कुछ बह रहा है और लोग समझ नहीं पा रहे कि करना क्या है? दामोह, पन्ना, टिकमगढ़ और सागर के कई गाँवों से बाढ़ की खबर आ रही है। किसी के हताहत होने की खबर अब तक नहीं है। सूखे लिये त्राहिमाम करने वाले गाँव अचानक बहने लगे।

राष्ट्रीय राजमार्ग 86 पर जरूरत से लम्बा जाम बाढ़ की वजह से लग गया। घंटों गाड़ियाँ खड़ी रहीं। किसी तरह की पूर्व योजना का वहाँ साफ अभाव था। जबकि अधिक बारिश होने की लगातार भविष्यवाणी मौसम विज्ञानी कर रहे थे।

इन जिलों के कई गाँव में बाढ़ का पानी लगा रहा और बिजली भी गायब रही। जिसकी वजह से ग्रामीणों को कई जगह कई-कई किलोमीटर तक गेहूँ लेकर आटा चक्की तक जाना पड़ता था। ऐसे समय में आम आदमी के दिमाग में यह सवाल जरूर आता होगा कि बुन्देलखण्ड पैकेज में करोड़ों रुपए आया। वह सारा पैसा खर्च कहाँ हुआ?

दूसरी तरफ जिन बाँधों पर पानी के संरक्षण के नाम पर जिन पैकेज का सरकारी पैसा खर्च हुआ था, उनमें कई बाँधों के टूटने की खबर स्थानीय अखबारों में छप रही हैं। बाँध बनने से स्थानीय लोगों को यह आशा थी कि इस तरह के सरकारी प्रयासों से उनकी सूखे की समस्या का समाधान होगा।

वे नहीं जानते थे कि बाँध निर्माण के नाम पर जिस तरह पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, आने वाले समय में उससे वैसे अपेक्षाकृत परिणाम मिलने मुश्किल हैं। जैसाकि हम सब जानते हैं कि बुन्देलखण्ड पैकेज बुन्देलखण्ड को सूखे की समस्या से स्थायी निजात दिलाने के लिये आवंटित हुआ था। लेकिन इस वर्ष भी जिस तरह के भयानक सूखे से बुन्देलखण्ड गुजरा है, उससे बुन्देलखण्ड पैकेज के सार्थक खर्च किये जाने पर सवाल तो उठता ही है।

सरकार द्वारा 19 नवम्बर 2009 को 6760 करोड़ रुपए बुन्देलखण्ड पैकेज के मद में मध्य प्रदेश के नाम पर स्वीकृत है, यह जानकारी सरकार में मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह ने सदन को दी। वित्त वर्ष 2012-13, 2013-14 और वर्ष 2014-15 के लिये उन्होंने 743 करोड़ रुपए राज्य को आवंटित किये जाने की बात भी सदन को बताई।

बुन्देलखण्ड पैकेज के नाम पर सूखे से निपटने के लिये किस तरह पानी की तरह पैसा बहाया गया है, इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि पैसे के दुरुपयोग से मध्य प्रदेश की सरकार अंजान है, स्थानीय अखबारों में इससे जुड़ी खबरें लगातार छपती रहीं हैं। यह सवाल विधानसभा में भी पहले उठाया जा चुका है लेकिन मध्य प्रदेश की सरकार ने बुन्देलखण्ड पैकेज की अनिमियतता को कभी गम्भीरता से नहीं लिया।

यदि मध्य प्रदेश की सरकार बुन्देलखण्ड पैकेज के पैसों के अनाप-शनाप खर्च को लेकर वास्तव में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है तो उसे इस पूरे मामले की जाँच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करानी चाहिए। वैसे मध्य प्रदेश में विपक्ष इस बात की माँग भी कर रहा है कि बुन्देलखण्ड पैकेज की गड़बड़ी की जाँच सीबीआई को सौंप दी जाये। अब देखना होगा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पूरे मामले को कितनी गम्भीरता से लेते हैं।

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