बुंदेलखंड में सूखे के आसार से किसान पलायन को मजबूर

Bundelkhand migration
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छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ जिला मुख्यालय सहित यहां के पिछड़े कस्बों से 40 से अधिक बसे सीधे दिल्ली और आस-पास के इलाकों के लिए संचालित हो रही है। टूरिस्ट परमिट की आड़ में मजदूरों को महानगरों तक यह बसें ले जा रही हैं। हालत भी यही है कि सरकार से हमेशा किसान को छलने के आरोप लगते रहे हैं। इस बार तो कम बारिश ने भविष्य के संकट की अभी से दस्तक दे दी है। साहब पिछली फसल को अधिक पानी ने खराब कर दिया और इस बार पानी ही नहीं बरस रहा। अब क्या करें, पेट भरने के लिए तो मजदूरी करनी ही पड़ेगी। पूरी गृहस्थी को ढो कर दिल्ली जाने वाले छतरपुर जिले के ग्राम बरेठी के रामलाल अहिरवार की यह व्यथा है। ऐसे कई किसानों की त्रासदी बुंदेलखंड अरसे से झेल रहा है। बुंदेलकंड के सागर संभाग के पांच जिलों में बुवाई का लक्ष्य 1298.22 हजार हेक्टेयर रखा गया था मगर सिर्फ 994.06 हजार हेक्टेयर भूमि पर ही बुवाई हो सकी। कारण बारिश का कम होना है।

समूचे सागर संभाग में पिछले साल एक जून से 27 जुलाई तक 720.9 मिमी बारिश हो गई थी जब कि इस बार मात्र 255.5 मिमी ही बारिश हुई है। यह आंकड़ा सागर संभाग की सामान्य बारिश से 22 फीसद कम है। बरसात के यही हालत रहे, तो अभी की खरीफ फसल के साथ आने वाली मूल रबी की फसल भी प्रभावित होगी। भविष्य के इसी संकट को देखते हुए अन्नदाता ने मजबूरी में मजदूर बनने के लिए महानगरों की ओर रुख कर लिया है।

कभी अति बारिश तो कभी सूखे के हालात से बुंदेलखंड का किसान उबर ही नहीं पा रहा है। पिछली रबी की फसल को अत्यधिक बारिश और ओलावृष्टि ने पूरी तरह तबाह कर दिया था। किसान के साथ होने का दम भरने वाली राज्य सरकार ने कर्ज वसूली के मौखिक आदेश जारी किए जिसने किसान को और अधिक तोड़ कर रख दिया। मुआवजा वितरण में धांधली का यह आलम रहा कि गरीब किसान आज भी मुआवजा पाने को मोहताज है, वहीं जोड़तोड़ करने वाले किसानों ने तंत्र की सांठ-गांठ से बंजर जमीन तक का मुआवजा ले लिया।

छतरपुर जिले के खौप निवासी देवेंद्र पंडित का कहना है कि उन्हें अब राज्य सरकार के दावों और वायदों पर भरोसा नहीं रहा। अविश्वास का ही कारण है कि सागर संभाग के पांच जिलों छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना और सागर जिलों से पलायन करने वालों का आंकड़ा लगभग पांच लाख पार कर चुका है। खजुराहो, दमोह, हरपालपुर, सागर और उत्तर प्रदेश के महोबा रेलवे स्टेशन पर पलायन करने वालों की भीड़ यह असलियत उजागर करती है।

छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ जिला मुख्यालय सहित यहां के पिछड़े कस्बों से 40 से अधिक बसे सीधे दिल्ली और आस-पास के इलाकों के लिए संचालित हो रही है। टूरिस्ट परमिट की आड़ में मजदूरों को महानगरों तक यह बसें ले जा रही हैं। हालत भी यही है कि सरकार से हमेशा किसान को छलने के आरोप लगते रहे हैं। इस बार तो कम बारिश ने भविष्य के संकट की अभी से दस्तक दे दी है। अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक सागर संभाग में औसत बारिश 1145.7 मिमी है, पर 27 जुलाई तक सिर्फ 255.5 मिमी ही बारिश हुई है। बीते साल इस अवधि तक 720.9 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।

सागर जिले में 313.7, दमोह में 321.70, पन्ना में 226.9, टीकमगढ़ में 197.9 और छतरपुर जिले में 217.2 मिमी बारिश हुई है। यह आंकड़ा सागर संभाग की सामान्य वर्ष से 22 और पिछले साल की तुलना में 42 फीसद कम है। मानसून के रूठने का सीधा असर बुवाई पर पड़ा है। सागर संभाग के पांच जिलों में कृषि विभाग ने 1298.22 हेक्टेअर भूमि पर बुवाई का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसके विपरीत मात्र 994.06 हेक्टेयर जमीन पर ही बुवाई हो सकी।

कभी मूसलाधार बारिश और कभी सूखे से बुंदेलखंड का किसान उबर ही नहीं पा रहा है। किस्मत से लड़ना उसके जीवन की नियति बन चुका है। आपदा के बाद उम्मीदें सरकार पर टिकी होती हैं पर भ्रष्ट तंत्र के चक्रव्यूह में फंस कर अन्नदाता दिनों दिन कर्ज में दबता जा रहा है। मजदूर बन कर शहरों की ओर पलायन करना उसकी मजबूरी है। परिवार सहित गांव छोड़ने से स्कूल चले हम जैसे अभियान के सरकारी आंकड़े भी झूठे लगते दिखते हैं। साथ ही पलायन रोकने वाली योजनाओं का भी झूठ पिटारा खुलता है।

बुंदेलखंड में खतरे की घंटी हैं सूखे जलाशय


उत्तर प्रदेश की सरकार बुंदेलखंड के हालात से बेखबर है। यहां एक दर्जन से अधिक जलाशय हैं जिनकी स्थिति बेहद चिंताजनक है। इन बांधों में पानी तलहटी को छू रहा है। सूखे ने खरीफ की फसल को बुंदेलखंड में चौपट कर दिया। अब बारिश न होने से रबी की फसल पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं।

बुंदेलखंड में लगभग एक दर्जन जलाशय हैं जिनके भरने से किसानों को खुशी होती है। इसके अलावा माताटीला बांधा के फुलगेज में पानी भरने से बिजली का उत्पादन भी होता है। लेकिन जुलाई के अंत तक यहां पानी की स्थिति बेहद खराब है। सिंचाई विभाग खंड एक के आंकड़ों के मुताबिक माताटीला बांध में मौजूदा समय में 301.75 मीटर पानी है जो तलहटी में माना जाता है। जलाशयों व नदियों की पैमाइश समुद्र की ऊंचाई से की जाती है। विभाग का कहना है कि 2014 जुलाई में 308.46 मीटर तक पानी था। यही माताटीला बांध की कुल क्षमता है। इसके ऊपर यहां खतरे का सायरन बजने लगता है। यहां मौजूदा समय में 193.18 मीटर पानी है। न्यूनतम स्तर 192.94 मीटर का है। इस बांध में एक मीटर से भी कम पानी जो न के बराबर है क्योंकि इस बांध के पानी से बिजली बनाई जाती है। सुकवा बांध की बात करें तो इसका न्यूनतम स्तर 270.27 मीटर का है। इसमें न्यूनतम स्तर से भी कम पानी है। यहां वर्तमान में 269.80 मीटर का जल स्तर है।

वहीं पहूज बांध मौजूदा समय में 230.30 मीटर पर है। इसका न्यूनतम स्तर 322.26 मीटर का है। यह तलहटी छूने लगा है। सपरार बांध भी वर्तमान में 3270-70 मीटर के जल स्तर पर है जबकि न्यूनतम 21.59 का है। यह भी न्यूनतम से नीचे है। इस बांध को पूरा करन के लिए 224.64 मीटर का जल स्तर चाहिए। कम बारिश के कारण बुंदेलखंड के इन बांधों में भी पानी की कमी है। पानी की कमी से सिंचाई तो प्रभावित होगी साथ ही पेयजल का संकट भी गहराएगा।

बुंदेलखंड की समस्या पर प्रदेश सरकार गंभीर नहीं नई हुई तो यहां भी किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। सूखे से खरीफ की फसल पूरी तरह चौपट हुई अब रबी की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है।

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