बूँदों से महामस्तकाभिषेक

Water scarcity
Water scarcity

झरनिया की पहाड़ी पर डबरी बनने और उसमें पानी रुकने के बाद मुंजाखेड़ी के हरिसिंह और उनके साथियों ने एक विकास स्वप्न देखा। उन्होंने मन में ठान ली कि ये दुनिया को इस पथरीली जगह रबी की फसल लेकर ही दिखाएँगे। उन्हें बूँदों पर भरोसा था और आप जानते ही हैं बूँदें तो संकल्प का दूसरा नाम हैं। पराक्रमी समाज को देखकर तो उनकी आत्मा भी प्रसन्न हो जाती है। कतिपय लोगों ने हरिसिंह को कहा भी कि इस भीषण सूखे में जब परम्परागत खेत ही जवाब दे गए तो तुम क्या पथरीली जमीन पर रबी की फसल ले सकोगे?

...आज हम आपको पानी के एक और चमत्कार से रूबरू कराएँगे। इसके कर्ताधर्ता हैं श्री हरिसिंह।

उज्जैन के नरवर क्षेत्र के गाँवों में से एक है मुंजाखेड़ी। यह उज्जैन से 18 किमी. दूर बसा है। यह एक छोटा-सा कस्बा है जो पानी आन्दोलन का पर्याय बन चुका है। गाँव में 100 डबरियाँ लोग बना चुके हैं और यह आँकड़ा 250 तक छूने की जद्दोजहद चल रही है। इससे अन्दाजा लगाना आसान है कि घर-घर, नाते-रिश्तेदारों और मित्रों के बीच प्रमुख चर्चा यही रहती है कि कौन-कितनी डबरियाँ बनाकर पानी बाबा को रोकने की कोशिश कर रहा है। लोग कहते हैं- ‘समाज में आजकल समाज हित और प्राकृतिक संसाधनों को लेकर चर्चा नहीं होती है। ऐसा नहीं है। थोड़ी कोशिश की जाये तो गाँव की पहली प्राथमिकता जल संचय हो सकती है। उज्जैन के गाँव-गाँव हमने डबरियों का जुनून देखा है। समाज अब इतना जागृत हो रहा है कि अनेक गाँवों में तो पानी के अलावा किसी मुद्दे पर चर्चा करना लोगों को ज्यादा रास भी नहीं आता है। मुंजाखेड़ी भी इन्हीं गाँवों में से एक है।

हम आपको गाँव में ज्यादा न घुमाते हुए मुंजाखेड़ी के मस्तक याने गाँव के पहाड़ी क्षेत्र के शिखर पर ले चलेंगे।

जनाब, आप चलिए तो …! यहाँ आपको एक अनूठापन नजर आएगा। ...पहाड़ों पर पानी खोजने की यात्रा से भी दो कदम आगे।

मुंजाखेड़ी की इस पहाड़ी का नाम है झरनिया की पहाड़ी। यहाँ दो पहाड़ियों के बीच छोटी-सी ढलान के पास एक ऐसा स्थान है, जहाँ पानी रोका जा सकता था। अनादिकाल से यहाँ कुछ पानी झरता भी रहा है, इसलिये इसे झरनिया की पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। पानी समिति अध्यक्ष बलराम जाट, हरिसिंह और गाँव-समाज ने यहाँ पानी रोकने का संकल्प लिया। हरिसिंह ने इस मामले में पहल की। यह वाकई एक बड़ी चुनौती थी। यह डबरी दो पहाड़ियों के बीच ऐसे स्थान पर है, जहाँ से प्राकृतिक रूप से पानी रिस रहा है। वह तीन-चार स्थानों से अलग-अलग आ रहा है। यह पानी गर्मी में भी थोड़ा भरा रहता था और आस-पास के गाँवों के मवेशी पानी पीते थे। सभी ने तय किया कि इस स्थान पर डबरी बनाई जाये।

भूजलविद और परियोजना अधिकारी श्री डी.के. पाठक कहते हैं- “इस पहाड़ी की चट्टानी संरचना ऐसी है कि पानी एकदम रिसकर जमीन में प्रवेश नहीं करता है।”

झरनिया की पहाड़ी पर समाज ने मिलकर प्रथम चरण में 10 डबरियों की एक संरचना तैयार कर ली। यहाँ अब बूँदों की रिसन नहीं बूँदों का एक विशाल समाज छोटे से तालाब में विचरण करने लगा। इस पूरी वीरान पहाड़ी पर भी भला ये बूँदें चमत्कार रचने से कैसे पीछे हट सकती हैं। यहाँ तो इस वीरानी में बूँद समुदाय का यह गुंजन सुनाई देने लग गया:

सूखे से हर कदम
हर जगह एक
नई जंग है…
जीत जाएँगे जंग
जो
हरिसिंह जैसे संग हैं…!


अब इस रोंगटे खड़े कर देने वाली जंग की कहानी दिल थाम कर सुनिए-

झरनिया की पहाड़ी पर डबरी बनने और उसमें पानी रुकने के बाद मुंजाखेड़ी के हरिसिंह और उनके साथियों ने एक विकास स्वप्न देखा। उन्होंने मन में ठान ली कि ये दुनिया को इस पथरीली जगह रबी की फसल लेकर ही दिखाएँगे। उन्हें बूँदों पर भरोसा था और आप जानते ही हैं बूँदें तो संकल्प का दूसरा नाम हैं। पराक्रमी समाज को देखकर तो उनकी आत्मा भी प्रसन्न हो जाती है। कतिपय लोगों ने हरिसिंह को कहा भी कि इस भीषण सूखे में जब परम्परागत खेत ही जवाब दे गए तो तुम क्या पथरीली जमीन पर रबी की फसल ले सकोगे?

आपको यह भी बता दें कि यहाँ पहाड़ी पर न तो कोई कुआँ है और न ही बिजली का खम्भा। तब पानी इन नवसृजित खेत तक कैसे पहुँचेगा। हरिसिंह ने इसका भी इन्तजाम किया। ट्रैक्टर में पंखे लगाकर पानी फेरने की व्यवस्था की।

इस दिलचस्प जंग के परिणाम तो जानिएः हरिसिंह ने इस वीरान और सुनसान पहाड़ी पर इतिहास रच दिया। उन्होंने 40 बीघा जमीन पर चने की फसल बो दी और पर्याप्त पानी उपलब्ध कराकर उसे लहलहा दिया। पानी आन्दोलन के संचालनकर्ता डी.के. पाठक, एम.एल. वर्मा, बलराम जाट, हरिसिंह व स्थानीय समाज ने आकलन कर मोटा अनुमान लगाया कि पहाड़ी की उस डबरी ने हरिसिंह को लगभग दो लाख रुपए मूल्य प्रदाय करने वाली फसल को खेत में खड़ा कर दिया। इंशा अल्लाह, बूँदों की भी यह नेक मनोकामना पूरी हो।

...समाज दो कदम और आगे बढ़ता है। इस डबरी के ऊपरी ओर 15 डबरियाँ और बनाई जा रही हैं। विशाल मात्रा में पहाड़ी पर जल संचय होगा। पानी समिति अध्यक्ष बलराम जाट कहते हैं- “हमारा विश्वास है कि इस पानी से पहाड़ी की 100 बीघा जमीन पर रबी फसल लेने का नया इतिहास रचा जा सकता है।” अगली जंग दिलीप जाट और सत्यनारायण लड़ने की सोच रहे हैं। जाट कहते हैं- “पूरे गाँव में जब ढाई सौ डबरियाँ पूरी हो जाएँगी तब चप्पे-चप्पे पर आपको पानी रुका हुआ मिलेगा। फिर सूखा आये या रेगिस्तान, हमें फर्क नहीं पड़ेगा।” गाँव में दो आरएमएस भी बनाए जा रहे हैं। एक तालाब अलग से बनाया गया है। इन डबरियों की वजह से सूखे के दौरान भी हमने सामान्य वर्षा जितने क्षेत्र में बोवनी की है। गाँव में लगभग 50 ट्यूबवेल रिचार्ज किये हैं। श्री डी.के. पाठक कहने लगे- “पास में एक पीर बढ़ला की खदान है। यहाँ पर भी इसी तरह पानी झरता है। वहाँ पर भी यदि जल संरचना तैयार हो जाये तो 50 किसानों को फायदा हो सकता है।”

पानी रुकने से प्रसन्नचित्त हरिसिंह ने पहाड़ी पर ही वट वृक्ष के नीचे स्थापित भेरू महाराजजी के दर्शन कराए। वे कहने लगे- “हम लम्बे अर्से से इनकी पूजा करते आ रहे हैं। इन पर पूरी आस्था रही है। विश्वास था यह संकल्प भी पूरा हो जाएगा। हम जब भी कोई काम का मुहूर्त करते हैं, इनके सामने नारियल बदारते (तोड़ते) हैं।”

हमने भी दर्शन किये। विदा लेने के पहले हम सोचने लगे -

...एक गाँव मुंजाखेड़ी! उसके ऊपर झरनिया की पहाड़ी। यहाँ रुकी बूँदें। और इनसे आई वीरानी में फसलों की बहार…!

...गाँव का ऊँचा मस्तक! और इन नन्हीं-नन्हीं बूँदों से पर्वत पर अभिषेक।

...बूँदों से मुंजाखेड़ी का महामस्ताभिषेक!

 

बूँदों के तीर्थ


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

बूँदों के ठिकाने

2

तालाबों का राम दरबार

3

एक अनूठी अन्तिम इच्छा

4

बूँदों से महामस्तकाभिषेक

5

बूँदों का जंक्शन

6

देवडूंगरी का प्रसाद

7

बूँदों की रानी

8

पानी के योग

9

बूँदों के तराने

10

फौजी गाँव की बूँदें

11

झिरियों का गाँव

12

जंगल की पीड़ा

13

गाँव की जीवन रेखा

14

बूँदों की बैरक

15

रामदेवजी का नाला

16

पानी के पहाड़

17

बूँदों का स्वराज

18

देवाजी का ओटा

18

बूँदों के छिपे खजाने

20

खिरनियों की मीठी बूँदें

21

जल संचय की रणनीति

22

डबरियाँ : पानी की नई कहावत

23

वसुन्धरा का दर्द

 


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading