भागीरथ कृषक अभियान

पृष्ठभूमि


देवास जिला अपनी अत्यंत ही उपजाऊ काली मिट्टी के लिए जाना जाता है, लेकिन एकमात्र पानी की अनुपलब्धता के कारण यहां फसल सघनता मात्र 125 प्रतिशत या उससे कम है। यदि मिट्टी की गुणवत्ता की दृष्टि से इसकी क्षमता देखें तो फसल सघनता 200 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। रबी का प्रतिशत वर्ष में हुई वर्षा के अनुसार मात्र 25 से 40 प्रतिशत ही रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से कृषक ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले कई वर्षों में रबी की फसल या तो बोई ही नहीं यदि कुछ बोई तो सिंचाई की अनिश्चितता के कारण नगण्य उत्पादन प्राप्त किया। सभ्यता के विकास के साथ ही जल स्रोतों का निर्माण एवं पानी बचाने के काम में समाज ने न सिर्फ अपनी हिस्सेदारी निभाई बल्कि समाज में सांस्कृतिक परंपरा के रूप में तालाब निर्माण को भी अपनाया। अनेक धर्मग्रथों एवं इतिहास के पन्नों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि सभ्यता के विकास के साथ ही जल संरक्षण की अवधारणा विकसित हुई लेकिन शनै-शनै नलकूप संस्कृति के प्रचलन में आ जाने से भूजल का दोहन तो अत्यधिक बढ़ गया और साथ ही जल संरक्षण की परंपरा लुप्त होती चली गई उपलब्ध जानकारी के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई नलकूपों एवं कुओं के माध्यम से की जाती है। मध्य प्रदेश में वर्ष 1999 में तत्कालीन सरकार ने पानी रोको अभियान शुरू किया था व वर्तमान सरकार ने वर्ष 2006 में जलाभिषेक अभियान प्रारंभ किया है। इन सभी प्रयासों में भी समाज की सहभागिता को केन्द्र में रखा गया लेकिन इन कार्यक्रमों का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि समाज ने जल संरक्षण की अवधारणा को तो स्वीकार किया लेकिन अपनी सहभागिता वाले पक्ष को नकार दिया। बदलते सामाजिक मूल्यों के संदर्भ में समाज की तरफ से जो मत सामने आया है वह जल संरक्षण के लिए संरचनाएं तो निर्मित होना चाहिए लेकिन यह दायित्व समाज का नहीं बल्कि सरकार का है। उल्टे ऐसी स्थितियाँ निर्मित हुई कि प्रदेश के अन्य भागों में जहां कृषि के लिए किसानों के द्वारा अपने खेतों में बांध-बंधियां बनाकर पानी रोके जाने की परंपरा पिछले छः सात सौ साल पुरानी है वहां अब किसान इस बात की मांग करने लगे हैं कि सरकार उनके खेतों में नई जल संरचनाएं बनाने के लिए अनुदान मुहैया कराए।

यद्यपि जल संरक्षण के काम में समाज की सहभागिता के लिए जितने प्रयास सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के जरिए किए गए उनके इक्का दुक्का परिणाम तो सामने आए लेकिन सारे प्रयासों के बावजूद वर्षा जल भण्डार संग्रहण/रिसन एवं पानी बचाओ आंदोलन सामाजिक आंदोलन का स्वरूप नहीं ले पाया।

यह उल्लेखनीय है कि देश के कुछ हिस्सों में कृषक अपनी चिंतनीय आर्थिक स्थिति के कारण आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यह कटु सत्य है कि किसानों की इस भयावह व चिंतनीय आर्थिक स्थिति का महत्वपूर्ण कारण चिन्हित किया जाए तो वह मात्र सिंचाई हेतु जल की अनुपलब्धता ही है। जल की कमी किसानों के लिए जहां उत्पादकता को घटाने का मूल कारण है वही उत्पादकता लागत बढ़ाने का भी कारक है। जिसके कारण कृषि घाटे का सौदा होती जा रही है।

विगत 20 वर्षो में जल की आपूर्ति अनियंत्रित भूमिगत जल के दोहन से की गई है जिसका परिणाम यह हुआ कि भूमिगत जल 700 से 1000 फीट के नीचे चला गया। इस अनुक्रम में भू-गर्भीय द्रव्य विज्ञान अध्ययन के अनुसार वर्तमान में जिले के छः में से दो विकासखंडों (देवास व सोनकच्छ) की स्थिति चिंतनीय है।

देवास जिला अपनी अत्यंत ही उपजाऊ काली मिट्टी के लिए जाना जाता है, लेकिन एकमात्र पानी की अनुपलब्धता के कारण यहां फसल सघनता मात्र 125 प्रतिशत या उससे कम है। यदि मिट्टी की गुणवत्ता की दृष्टि से इसकी क्षमता देखें तो फसल सघनता 200 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। रबी का प्रतिशत वर्ष में हुई वर्षा के अनुसार मात्र 25 से 40 प्रतिशत ही रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से कृषक ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले कई वर्षों में रबी की फसल या तो बोई ही नहीं यदि कुछ बोई तो सिंचाई की अनिश्चितता के कारण नगण्य उत्पादन (लागत से भी कम) प्राप्त किया।

डा. मोहम्मद अब्बास जो कि कृषि से स्नातकोत्तर है एवं पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर चुके है यह वर्ष 2004-05 से जिला देवास में सहायक संचालक कृषि के पद पर कार्यालय उपसंचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग में पदस्थ है उन्होंने जिले का भ्रमण किया और पाया कि जिला देवास में घटते भू-जल स्तर की चिन्ताजनक स्थिति का समाधान वर्षा जल का सतही जल संरक्षण ही एक मात्र विकल्प है, उन्होंने इस संबंध में 20-25 जागरूक कृषकों का चयन कर अपने साथ जोड़कर इसे एक अभियान का स्वरूप प्रदान करने का संकल्प लिया। इस अभियान को तत्कालीन कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव के मार्गदर्शन में भागीरथ कृषक अभियान नाम दिया। भागीरथ कृषक अभियान दल में नोडल अधिकारी सहायक, संचालक कृषि डॉ. मोहम्मद अब्बास, जिला पंचायत के परियोजना अधिकारी, जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, समस्त वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, अनुविभागीय अधिकारी सिंचाई, आरईएस, कृषि विभाग, सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी एवं सर्वेयर , ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के साथ भागीरथ कृषक मास्टर ट्रैनर, श्री प्रेमसिंह खिंची (टोंककला), श्री रघुनाथसिंह तोमर (हरनावदा), विक्रमसिंह पटेल (चिड़ावद), श्री महेन्द्र सिंह चावड़ा (टोंकखुर्द), श्री रणछोड़ पटेल (गोरवा), श्री सुभाष जलोदिया (धतूरिया), श्री पोपसिंह राजपूत (निपानिया), श्री दीलिप सिंह पवार (निपानिया), श्री अशोक यादव एवं भरत पटेल (खातेगांव) आदि ने इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

वर्ष 2005-06 में जिला प्रशासन द्वारा रेवासागर भागीरथ कृषक अभियान की शुरूआत की गई, इसके अंतर्गत मा नर्मदा म.प्र. की जीवन रेखा होने के साथ ही जिले की भी जीवन रेखा है। मा नर्मदा को प्यार व सम्मान से रेवा भी कहते हैं। लोगों की श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए किसानों के द्वारा स्वयं के व्यय से स्वयं के आर्थिक विकास के लिए स्वयं की भूमि में बनाने वाले तालाबों को रेवासागर की संज्ञा दी गई। देवास जिले के किसान भूजल की कमी के कारण रेगिस्तान होने के भय से संशक्ति है एवं अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को लेकर चिंतित है। शायद इनकी इस शंका एवं भय का एकमात्र हल तालाब निर्माण ही है। उनके इस भागीरथ प्रयास को दृष्टिगत रखते हुये किसानों का नाम भागीरथ कृषक रखा गया है, जो अपने प्रयासों से अपने खेत में तालाब बना रहे हैं। प्रथम वर्ष में कृषकों द्वारा 600 रेवासागर का निर्माण कर राशि रू. 24 करोड़ रू. जनभागीदारी की गई।

इस अभियान से कृषकों में अपनी पीढ़ी के प्रति जिम्मेदारियों की सोच में भी परिवर्तन हुआ है। जहां पहले कुछ ज़मीन क्रय करने एवं धन दौलत तथा मकान छोड़ने की बात करता था। वही उनमें यह नवीन सोच पैदा हुई कि वे अपने अगली पीढ़ी के लिए भूमि में रेवासागर निर्माण कर उसी सिचिंत भूमि देना चाहते हैं न की बंजर भूमि। वित्तीय वर्ष 2006-07 में म.प्र. शासन, किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा महत्वाकांक्षी खेत तालाब योजना शुरू की गई। इसमें लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम 16350/- रू. अनुदान का प्रावधान रखा गया। इसके अंतर्गत डा. अब्बास एवं विभागीय अमले के प्रयासों से जिला देवास में 2.02 करोड़ की लागत के 618 के खेत तालाबों का निर्माण कराया गया। उक्त निर्मित खेत तालाबों में 1.01 करोड़ की जन भागीदारी प्राप्त हुई है।

वर्ष 2007-08 में किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा बलराम तालाब योजना प्रारंभ की गई। इसमें लागत का 40 से 75 प्रतिशत अधिकतम 0.8 से 1.00 लाख रू. अनुदान का प्रावधान रखा गया। इसके अंतर्गत डा. अब्बास द्वारा कृषकों को प्रेरित किए जाने के प्रयास उल्लेखनीय रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप जिला देवास में 1800 बलराम तालाबों का निर्माण हो चुका है जिनकी लागत 54.00 करोड़ रही है एवं उक्त निर्मित खेत तालाबों में 39.40 करोड़ की जन भागीदारी प्राप्त हुई है।

डा. अब्बास द्वारा नियमित किसानों से सम्पर्क, स्वयं खेत पर जाकर तालाब स्थल का अवलोकन एवं योजना के अंतर्गत पात्र हितग्राहियों के प्रस्तावों का त्वारित निराकरण किया जाता रहा है।रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब योजना के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु डा. अब्बास द्वारा अपनाई गई रणनीति जैसे: किसान संगोष्ठी, किसान मेला, प्रदर्शनी, प्रशिक्षण, डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रदर्शन समाचार-पत्र के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार कराया गया साथ ही मीडिया का भ्रमण कराकर उपलब्धियों का व्यापक प्रचार प्रसार करने के परिणामस्वरूप उक्त योजना के क्रियान्वयन में जिला देवास मध्य प्रदेश में लगातार प्रथम रहा है।

डा. अब्बास द्वारा कृषि को लाभकारी बनाए जाने के संबंध में जिले के अंतर्गत अनेकों अभिनव प्रयास किए गए हैं जिनका विवरण अनुलग्नक क्र. - 01 पर पृथक से संलग्न है।

डॉ. अब्बास के अतुल्य प्रयास के कारण ही इस चिंताजनक परिस्थितियों में देवास में वर्षा जल संग्रहण आन्दोलन को एक सामाजिक आन्दोलन बनाने के लिए एक अवधारणा विकसित की जा सकी जिसे समाज में एक विचार के रूप में फैलाया गया। जिसे भागीरथ कृषक अभियान नाम दिया गया।

उद्देश्य -


1. जन सहभागिता से जल संरक्षण
2. सिंचाई के क्षेत्र में बढ़ोतरी करना
3. उत्पादन में वृद्धि करना
4.. सिंचाई के लिए पम्पसेट आदि चलाने में होने वाली विद्युत खपत में कमी करना।
5 आजीविका के साधनों में वृद्धि करना
6. पशु पक्षियों का संरक्षण करना
7. पर्यावरण संरक्षण
8. विश्वसनीय सिंचाई के साधन को स्थापित करना।

1. भागीरथ कृषक अभियान की अवधारणा (प्रचार-प्रसार तथा विस्तार)


डॉ. अब्बास द्वारा अपनाई गई रणनीति के अंतर्गत सर्वप्रथम कृषकों को पानी का अर्थशास्त्र “पानी की जोत” “पानी की खेती” एवं जल संग्रहण संरचना निर्माण पुण्य का खजाना को समाहित करते हुए व्यापक प्रचार प्रसार की योजना तैयार की गई।

पानी की पर्याप्त मात्रा असिंचित कृषि की तुलना में कई गुना कृषक को लाभ कमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः यदि एक कृषक जिसके पास पानी की व्यवस्था नहीं है, यदि वह Captive Irrigation की व्यवस्था करने में अपनी ज़मीन एवं धन का निवेश करता है तो एक सामान्य विश्लेषण में यह पाया है कि इस पूँजी निवेश के बदले कृषक को लाभ कई गुना हो सकता है, अतः इस अभियान में कृषक को उद्योगपति की तरह पानी में अपने लाभ के लिए निवेश करने के लिए प्रेरित किया गया।

2. लक्ष्य कौन (आयोजना तथा प्रबंधन)


विचार नया था जिसमें जल संरक्षण से “व्यक्तिगत लाभ के लिए’’ की बात की गई थी। अतः समाज को समग्र रूप से लक्ष्य नहीं रखा गया था बल्कि रणनीति ऐसे किसानों पर केन्द्रित की गई थी जो ज्यादा भूमि के स्वामी हैं तथा जो तालाब में लगने वाली पूँजी को निवेश करने की क्षमता रखते हों, वस्तुतः सामाजिक दायित्व के दृष्टिकोण से यह वे कृषक है जो भू-जल दोहन के लिए अधिक दोषी है।

प्रशिक्षण रणनीति:-


रणनीति निम्नलिखित तीन बिन्दुओं पर रखी गई थी:-
1. लक्ष्य का चयन
2. प्रशिक्षण स्थल का चयन,
3. प्रशिक्षकों का चयन।

1. लक्ष्य का चयन:-


लक्ष्य के लिए जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया उसमें 10 एकड़़ से अधिक जोत वाले लगभग 8000 किसानों को चिन्हांकित किया गया।

2. प्रशिक्षण स्थल का चयनः-


मूल विचार चूंकि जल संरक्षण के स्थान पर ‘‘Water Economics In Agriculter” पर केन्द्रित किया गया था अतः प्रशिक्षण स्थल चयन में ऐसे स्थान का चयन किया गया जहां पर किसानों के अपने लाभ के बारे में भी विचार आए व प्रशासन पर निर्भरता उसके विचारों में न आवें, इस हेतु जिला मुख्यालय, तहसील मुख्यायल, या प्रशासनिक कार्यालयों को न बनाकर कृषि उपज मण्डी समिति, उपमंडी समिति, दुग्धसंघ, किसान सहकारी संस्था आदि के कार्यालयों को बनाया गया।

3. प्रशिक्षकों का चयन:-


प्रशिक्षकों के प्रयास में खग ही जाने खग की भाषा की तर्ज पर Experience Sharing पर जोर दिया गया जिससे की लोग इस नए एवं भिन्न विचार को आसानी से स्वीकार कर सकें व अपनी संचित निधी को इस हेतु लगाने को तैयार हो सकें। अतः प्रशिक्षण के लिए विषय विशेषज्ञों के साथ ऐसे लोगों का चयन किया गया जिन्होंने पूर्व में तालाब जैसी व्यक्तिगत संरचनाओं का निर्माण कर अपनी कृषि से लाभ कमाकर परिवार की स्थिति को बेहतर बनाया था, उनका नाम “भागीरथ कृषक प्रशिक्षक’’ दिया गया।

अवधारणा की उपयोगिता -


डॉ. मोहम्मद अब्बास की रणनीति अनुसार निम्न बिंदुओं पर व्यापक परिचर्चाएं/संगोष्ठी/कार्यशाला आयोजित की गई

1- कृषक वर्ग वर्तमान में उनके पास उपलब्ध कृषि भूमि का उपयोग रबी की फसल में बमुश्किल 20 से 30 प्रतिशत ही कर पाते थे। रेवासागर/बलराम तालाब निर्माण होने से रबी की फसल मौसमी सब्जी आसानी से पैदा की जा सकेगी तथा कृषि उत्पादन में भी आशातीत वृद्धि होगी। तालाब की पाल पर आसानी से अन्य पौधों जैसे फलदार पौधे, तुअर, रतनजोत, फूल के पौधे, पपीता इत्यादि का रोपण कर, अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।

2- Agriculture Wast तालाब के पानी के साथ Recycle होगा, जिससे Humus बढ़ेगा तथा मिट्टी की उत्पादकता ठीक होगी।

3- नलकूपों से सिंचाई करते समय 400 फीट से 700 फीट के नीचे से भूजल की मात्रा को विद्युत पंप सेटों के माध्यम से निकालने में 10 एचपी का पम्प 2 एचपी के बराबर पानी देता है जिससे विद्युत पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है, अधिक गहराई से पानी खींचने में विद्युत खपत तथा व्यय अधिक व्यय होता है। रेवासागर/बलराम तालाब से जल की मात्रा को पम्प सेटों के माध्यम से कम गहराई से पानी निकालने पर विद्युत की बचत होगी, व्यय भार भी कम होगा तथा कम समय में अधिक सिंचाई होगी।

4- रेवासागर/बलराम तालाब के उपलब्ध जल में कृषक मछली पालन, सिंघाड़े की खेती एवं कमल की खेती भी कर सकता है।

5- तालाब के जल की पूर्ण मात्रा का समुचित उपयोग उपरांत विशेष परिस्थिति में यदि जल शेष रहे तो भी मिट्टी की नमी में रबी की फसल के रूप में चने आदि की फसल आसानी से ली जा सकती है।

6- रेवासागर/बलराम तालाब में वर्षभर पानी की उपलब्धता की स्थिति में पशुधन/निस्तार हेतु जल की मात्रा उपलब्ध रहेगी तथा चारा भी उपलब्ध रहेगा, जिससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी।

7- पर्यावरण संरक्षण होगा एवं भू-जल स्तर में बढ़ोतरी होगी।

प्रचार प्रसार की रणनीति


(1) 10 एकड़़ से अधिक कृषि जोत रकबा वाले 8000 किसानों का चयन कर संकल्प पत्र भरवाए गए, उनका मार्गदर्शन कर संकल्पित किसानों को मार्गदर्शन,सहयोग एवं सम्मान प्रदान करने का हर संभव प्रयास किया गया।

(2) जिला/विकासखंड के योग्य, अनुभवी, संकल्पित अधिकारी/कर्मचारी/किसानों का चयन कर मास्टर ट्रेनर्स नियुक्त कर जवाबदेही का निर्धारण।

(3) प्रशिक्षण के क्रम में किसान मेला ,कृषि उपज मंडीसमितियों, दुग्धसंध, वनसमितियों, हॉट बाजार में कार्यशाला एवं प्रशिक्षण, कृषक गोष्ठी, किसान रथ यात्रा, वीडियो फिल्म प्रर्दशन का आयोजन कर किसानों को व्यापक प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन प्रदान कर जलसंग्रहण के संकल्प सूत्र में बांधा गया।

(4) भावनात्मक लगाव के लिए संकल्पित किसानों को भागीरथ कृषक की उपाधि एवं निर्मित तालाब को रेवासागर नाम दिया गया।

(5) जिला प्रशासन की रणनीति के तहत संकल्पित भागीरथ कृषकों के रेवासागर/बलराम तालाब निर्माण के मुहुर्त संबंधी कार्यक्रम में माननीय जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन के उच्चाधिकारीयों की उपस्थिति को प्राथमिकता प्रदान की गई।

प्रशिक्षण, कार्यशाला, जल यात्रा, रैली आदि कार्यक्रमों का निर्धारण कर, योग्य अनुभवी अधिकारी, कर्मचारी की जवाबदेही सुनिश्चित कर जल संग्रहण संरक्षण समय की मांग, आर्थिक समृद्धि, उज्ज्वल भविष्य तथा मानव धर्म का एहसास जन-जन को कराने का लक्ष्य पूरा करने हेतु प्रशिक्षकों की टीमों का गठन किया गया। यह भी डा. मोहम्मद अब्बास की रणनीति की हिस्सा रही है। डॉ. अब्बास के भागीरथी प्रयासों के कारण ही यह अभियान एक जन आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हुआ। उन्होंने पूर्ण मनोयोग, लगन व निष्ठा के साथ स्वयं के द्वारा समर्पित भावना का परिचय देते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया उन्होंने जिले के समस्त शासकीय अमले को एकजुट कर इस अभियान को सफल बनाने में लगाया गया तथा स्वयं भी उक्त अभियान में सक्रिय रूप से जुड़ गए। दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, जहां जिस क्षेत्र से जब भी कोई कृषक का संदेश आया वे तत्काल वहां पहुंचे। संदेश के रूप में सर हम अपनी कृषि भूमि में रेवासागर/बलराम तालाब बनाना चाहते हैं तथा आपके ही कर कमलों से भूमि पूजन कार्य का श्रीगणेश करना चाहते हैं। बस इसी के साथ ही वे तत्काल वहां अपनी उपस्थिति देकर तालाब का शुभारंभ कराकर उसके पूर्ण होने तक, आवश्यक सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान करते।

आयोजन तथा प्रबंधन:-


शासन निर्देशानुसार जिला प्रशासन द्वारा जिला स्तरीय, विकासखंड स्तरीय एवं ग्राम स्तरीय जल अभिषेक समितियों का गठन किया जाकर जिला स्तरीय अधिकारियों को विकासखंड स्तरीय नोडल अधिकारी एवं विकासखंड स्तरीय अधिकारियों को संकुल प्रभारी नियुक्त कर निरंतर मार्गदर्शन/सहयोग और समीक्षा का दायित्व सौंपा गया, जिला एवं विकासखंड स्तर पर कंट्रोल रूम स्थापित किए। विकासखंड/संकुल/ग्राम स्तर पर तकनीकी अमले की नियुक्ति कर, तकनीकी मार्गदर्शन/बैंकों से किसानों को ऋण प्राप्त करने हेतु एस्टीमेट ड्राईंग तथा अन्य कागजी कार्यवाही में सहयोग देने बाबत विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए गए। मशीन मालिक एवं उनकी उपलब्धता की जानकारी का दायित्व जिला कोर ग्रुप को सौंपा गया था।

डॉ. मोहम्मद अब्बास को जिला स्तर पर भागीरथ कृषकों को तकनीकी मार्ग दर्शन प्रदान करने हेतु नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया।

प्रशिक्षण, कार्यशाला, जल यात्रा, रैली आदि कार्यक्रमों का निर्धारण कर, योग्य अनुभवी अधिकारी, कर्मचारी की जवाबदेही सुनिश्चित कर जल संग्रहण संरक्षण समय की मांग, आर्थिक समृद्धि, उज्ज्वल भविष्य तथा मानव धर्म का एहसास जन-जन को कराने का लक्ष्य पूरा करने हेतु प्रशिक्षकों की टीमों का गठन किया गया। यह भी डा. मोहम्मद अब्बास की रणनीति की हिस्सा रही है।

जिला स्तरीय कोर ग्रुप एवं विकासखंड प्रभारियों की साप्ताहिक समीक्षा बैठकें आयोजित कर प्रगति, कठिनाईयों और भावी रणनीति पर विस्तृत चर्चा की जाती।

उक्त सफल आयोजन तथा प्रबंधन के परिणाम स्वरूप जिले में (एक बीघा से पन्द्रह बीघा तक के) 6000 रेवा सागर/खेत तालाब/बलराम तालाब जिनकी भूमि सहित कुल लागत लगभग राशि रू. 250-300 करोड़ का निर्माण किसानों द्वारा स्वयं के व्यय पर किया गया।

पानी का अर्थशास्त्र


वस्तुतः अभी तक पानी बचाने के लिए जितने भी कार्यक्रम/अभियान चलाए गए, उनमें पानी को कृषि के लिए एक आवश्यक इनपुट घटक के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सका था एवं इसकी उपलब्धता या अभाव की वजह से किसान विशेष की प्रभावित आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में विचार नहीं किया गया है।

उपरोक्त अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में पानी की आर्थिक उपादेयता को निरूपित करते हुए सीधे-सीधे जल संरक्षण को किसान के आर्थिक विकास को मूल आधार मानते हुए ‘‘रेवा सागर’’ “भागीरथ कृषक अभियान’’ के नाम से एक कार्यक्रम प्रतिपादित किया गया।

श्री उमाकांत उमराव, मृदा इंजीनियर जिनको जिले में कृषकगण जल कलेक्टर के नाम से संबोधित करते हैं के ज्ञान के संदर्भ में यह महसूस किया गया कि, देवास जिले का अधिकांश भाग काली मिट्टी से युक्त है, जिसमें वर्षा का सतही जल आसानी से नहीं रिस सकता है, यानि वर्षा के समय पानी भूभाग पर गिरेगा, मगर पर्याप्त रिसाव नहीं होकर सीधे नदी-नालों के माध्यम से सागर में चला जाएगा या खेतों में भरा रहने के कारण फसल खराब करेगा मतलब साफ है कि जहां एक ओर प्रत्येक ट्यूबवेल के माध्यम से ज़मीन की चट्टानों में सिंचित जल दोहन बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर पर्याप्त मात्रा में वर्षा होने के बाद भी तुलनात्मक रूप से कम पानी भूजल स्तर को बढ़ाने या यथावत रखने के लिए ज़मीन में जाता है। यही कारण है कि, भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, इससे जहां एक ओर नलकूप खनन की तथा उससे पानी दोहन की कीमत बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर प्रतिवर्ष नलकूप असफल होने की संख्या भी हजारों में होती जा रही है। पिछले 10-15 वर्षों में बहुतायात किसानों ने अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा नए नलकूप खनन, पुराने कुओं के गहरीकरण एवं बिजली के बिल के रूप में गंवा दिया है। कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जिसमें किसानों ने अपनी पूरी खेती की कीमत के बराबर या उससे ज्यादा राशि नलकूप खनन एवं पानी की व्यवस्था में खर्च कर दिए हैं, यही एक कटु सच्चाई थी, जिसके आधार को ध्यान में रखते हुए, नवीन अवधारणा पर विचार किया गया।

विशेष रणनीति के तहत “पानी की जोत” “पानी की खेती” व “पानी के अर्थशास्त्र’’ पर आधारित महत्व को प्रतिपादित करते हुए जिले के किसानों को अभिप्रेरित कर, अधिक से अधिक सतही जल संग्रहण के लिए जल का समुचित प्रबंध व उपयोग पर जोर देते हुए एक अभिनव प्रयास किया गया, जो रेवासागर के रूप में वास्तविक रूप से भूजल के बड़े उपयोगकर्ता रहे हैं व सामाजिक दृष्टिकोण से जिन्हें भूजल की इस भयावह स्थिति के अपराधी/दोषी मान सकते हैं किंतु वे अपने आप को दोषी नहीं मानते हैं क्योंकि समरथ को नहि दोष गुसाई, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि, कृषक अपनी ज़मीन, जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है, तालाब बनाने के लिए क्यों छोड़े व तालाब बनाने के लिए गाढ़ी कमाई खर्च क्यों करे? विशेष रूप से इस पृष्ठभूमि में यह एक आम सोच है कि पानी का संचय करना व व्यवस्था करना शासकीय ज़िम्मेदारी है।

एक व्यवसायी या उद्योगपति जिस तरह अपनी बचत, पूंजी व संपत्ति का निवेश भविष्य में होने वाली आय को देखते हुए करता है, उसी तरीके से सरल भाषा में पूर्व से चिन्हित कृषकों को उनके द्वारा तालाब निर्माण करने में ज़मीन से उत्पादन बढ़ाने के रूप में किए गए निवेश, तालाब निर्माण करने में हुई लागत तथा उत्पादन बढ़ने से हुई लाभ व बिजली बिल तथा नलकूप खनन में व्यय में होने वाली कमी को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें भविष्य में होने वाली आय के बारे में प्रशिक्षण दिया गया तथा चयनित किसानों को पानी के इस अर्थशास्त्र के बारे में एक पत्र भी लिखा गया। पानी के इस अर्थशास्त्र की गणना पर यह पाया गया कि यदि किसान स्वयं के व्यय से अपनी कुल कृषि भूमि के 10वें हिस्से में 8 से 12 फीट गहरे तालाब का निर्माण कर जल संरक्षित करता है तो वह खरीफ व रबी दोनों फसलें समान रूप से ले सकता है तथा तालाब में पाली गई व्यय होने वाली लागत को एक या दो वर्ष में ही वसूल सकता है। तालाब की मेड़ पर लगाए गए फलदार वृक्ष या अन्य फसल तथा तालाब में मछली भी एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत हो सकता है। इस संदर्भ में किसान के द्वारा जल संकट के कारण खरीफ व रबी की फसल में होने वाले नुकसान तथा नलकूप खनन में होने वाले व्यय व बिजली के खर्च की बचत को भी रेखांकित किया गया है। इस तरह फसल सघनता 200 प्रतिशत या उससे भी अधिक हो सकती है व उत्पादकता तथा उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है।

डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा इस अवधारणा को समाज में फैलाने व इस पानी आन्दोलन को सामाजिक आन्दोलन बनाने के लिए प्रारंभिक दौर में पूर्व में इस अवधारणा को अपनाने वाले किसानों को ही स्रोत व्यक्ति (भागीरथ कृषक प्रशिक्षक) के रूप में चिन्हित कर एक विचार की यात्रा प्रारंभ हुई। एक खेत से दूसरे खेत, दूसरे से तीसरे ...आज तकरीबन 5228 खेतों तक पहुँचकर यह विचार जिला देवास में तालाबों के रूप में मूर्त रूप ले चुका है।

रणनीति:-


लगभग 20 प्रतिशत ग्रामीण ऐसे है जिन्होंने लगभग 80 प्रतिशत भूजल का दोहन किया है। खनन किए गए नलकूपों में सर्वाधिक हिस्सेदारी इन 20 प्रतिशत बड़े किसानों की ही है। अतः सर्वप्रथम ऐसे किसानों का चिन्हाकन किया गया, जिनके पास में कृषि जोत रकबा 10 एकड़ या इससे अधिक है एवं जिन्होंने सर्वाधिक नलकूप खनन कराए है। फिर भी पर्याप्त सिंचाई हेतु पानी प्रारंभिक सर्वेक्षण उपरांत ऐसे किसानों की संख्या जिले में लगभग 8000 प्राप्त हुई। वास्तविकता में यही लक्ष्य है जो भूजल की भयावह स्थिति के लिए जिम्मेदार है एवं जिसकी सामाजिक ज़िम्मेदारी जल संरक्षण की सबसे ज्यादा बनती है।

सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करें तो इन्हीं किसानों की ज़िम्मेदारी भूजल संपत्ति बढ़ाने की बनती है। शुरूआती चर्चाओं के उपरांत ये समर्थ कृषक भी सरकार की ओर अपेक्षा के साथ खड़े थे, इस मनःस्थिति के साथ कि सरकार की ओर से मदद हो तो ही हम कुछ कर सकते हैं, अन्यथा नहीं। जल संरक्षण करना हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है। हम अपनी जान से प्यारी ज़मीन तालाब के लिए क्यों छोड़े तथा गाढी कमाई क्यों लगाएं? पानी के अर्थशास्त्र की अवधारणा के द्वारा इन्हीं शंकाओं का उत्तर देते हुए, इन कृषकों को रेवासागर बनाने हेतु प्रेरित किया गया।

डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा लगभग 8000 कृषकों के चयन के उपरांत प्रत्येक ब्लाक के ऐसे रोलमॉडल कृषकों का चयन किया गया, जो इस अवधारणा से सहमत थे या जिन्होंने पूर्व में इस अवधारणा को अपनाते हुए कार्य कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया। उन्हें मास्टर ट्रेनर्स के रूप में तैयार किया गया तथा जल संरक्षण के आर्थिक दृष्टिकोण से सोचने व प्रेरित करने के लिए प्रशिक्षण/गोष्ठी कृषि उपज मंडियों में रखने तथा परिचर्चा में सामान्यतया प्रश्न एवं उत्तर के रूप में उनकी शंकाओं का समाधान करते हुए, प्रेरित किया गया, जिसके उदाहरण प्रस्तुत है:-

प्रश्न

उत्तर

1.आपके पास कितनी कृषि भूमि है?

10 एकड़, 20 एकड़, 50 एकड़,

2. आपकी कृषि भूमि सिंचित है या असिंचित?

अधिकतर असिंचित है।

3. सिंचाई हेतु किस पर निर्भर हैं?

बारिश के भरोसे, नलकूप एवं कुओं से

4. अच्छा तो यह बताओं कि आपके पास कितने नलकूप हैं?

दो, चार, छः दस

5. कुए कितने हैं?

एक, दो, चार

6. अभी तक आपने नलकूपों/कुओं पर कितना व्यय किया?

40 हजार से लेकर एक लाख, दो लाख, चार लाख

7. इस व्यय का इंतजाम कैसे किया?

स्वयं के द्वारा, साहूकार से, बैंक से

8. अभी तक आपने कितना व्यय किया, सरकार के पास मदद के लिए गए थे?

नहीं, सरकार से कोई मदद नहीं ली गई।

9. क्या इतने व्यय के पश्चात पानी का पर्याप्त इंतजाम सिंचाई हेतु हो पाया?

नही, पर्याप्त नहीं। गर्मी में नलकूप, कुएं सूख जाते हैं। वर्ष भर पानी उपलब्ध नहीं रहता है, निस्तार के लिए भी संकट हो जाता है।

10. बीस साल बाद क्या होगा?

फसल लेना मुश्किल होगा, गांव में पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाएगा, पशुओं के लिए पानी मिलना संभव नहीं होगा तथा चारे का भी भयंकर संकट उत्पन्न हो जाएगा, आदि-आदि

11. बच्चों को विरासत में क्यादोगे?

बंजर भूमि या सिंचित जमीन

12. जमीन की कीमत क्या होगी?

असिंचित भूमि 1.00 लाख तथा सिंचित भूमि 4.00 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर

13. क्या फरवरी माह के बाद जानवरों को पानी व चारा उपलब्ध हो पाता है?

नहीं।

14. क्या मार्च माह के बाद पक्षी दिखाई देते हैं?

सतही जल न होने के कारण पक्षी दिखाई नहीं देते हैं। वातावरण नीरस होता जा रहा है। आज पक्षी तथा कल हम भी समाप्त हो जाएंगे।

 



ऐसे कई प्रश्न कृषक वर्ग के समक्ष उनके मध्य उपस्थित होकर पारिवारिक स्तर की संगोष्ठी में, समूह चर्चाओं के माध्यम से अभिप्रेरित करने का एक प्रयास और इसी के साथ शुरूआत होती है अभियान की, जो एक नवीन सोच, नवीन तकनीक और नवीन विचारों के साथ। अब किसान वर्ग प्रति प्रश्न करता है कि, हम क्या करें, कोई रास्ता बताएं, क्या आप मार्गदर्शन देगें? तब उन्हें उनकी क्षमता, श्रम, उपलब्ध संसाधनों के बारे में विस्तार से समझाकर कि, वे क्या कर सकते हैं, इसके बारे में उनमें एक नया विश्वास पैदा कर, उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि, बगैर किसी की मदद लिए अपने स्वयं के बल पर उक्त कार्य कर सकते हैं। उन्हें बतलाया जाता है कि, यदि आप अपनी कृषि भूमि का 10वां भाग हमारे लिए नहीं, अपने परिवार के लिए, अपने लिए रेवासागर ‘‘जीवन के लिए टांग काटना पड़े तो सौदा लाभ का होगा’’ सारी ज़मीन सूखी रहने के स्थान पर अपने स्वयं के साधन व्यय से बना लेवें तो वर्तमान संकट से हमेशा के निजात पा सकते हैं। आप अपनी कृषि आय दो से तीन गुना, शेष ज़मीन से बढ़ा सकते हैं, जो कृषि अलाभकारी है, वह लाभकारी हो जाएगी। आप अपने परिवार के लिए एक लाभदायी संपत्ति विरासत में दे सकते हैं। आपकी आने वाली पीढ़ियाँ आपको याद करेगी। जिस प्रकार हम आज भी याद करते हैं, उन लोगों को, जिन्होंने व्यक्तिगत/सार्वजनिक रूप से ग्राम के आसपास तालाबों, बावड़ियों, और इस तरह के अन्य श्रेष्ठ कार्य किए हैं। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि, उनमें कई सदस्यों ने अपने लिए नहीं सामुदायिक क्षेत्र के उपयोग हेतु उक्त संरचनाओं का निर्माण किया गया था, जिनके अवशेष कई ग्रामों में आज भी मौजूद है। हम आपको आपके लिए व स्वपरिजनों के उपयोग के लिए रेवासागर निर्माण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भविष्य में आप तो इससे लाभ लेंगे ही, लेकिन प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष लाभ जो शायद अभी आपको दिखाई नहीं देता, वह जरूर मिलेगा जब समीपवर्ती जल संरचनाओं में जल स्तर बढ़ेगा, चारों तरफ पेड, पौधे, झाड़ झंकर आकार लेंगे, तब हरीतिमा संवर्धन में धरती मां का श्रृंगार होगा। पशु, पक्षी, वन्य जीवन मनुष्य सभी का जीवन सुखमय व उल्लास पूर्वक होगा, सर्वत्र पक्षियों की चहचहाट सुनाई पड़ेगी।

3. जल संरक्षण व संवर्धन कार्यों का उल्लेखनीय क्रियान्वयन


जिले में निर्मित रेवा सागर, प्रमाणिक, स्थायी, उपयोगी एवं तकनीकी रूप से गुणवत्तापूर्ण है। इसके लिए ड. मोहम्मद अब्बास द्वारा निम्नानुसार रणनीति निर्धारित कर सफल क्रियान्वयन का मार्गदर्शन किया।

1. 10 एकड़ से अधिक कृषि जोत वाले 8000 किसानों का चयन।

2. नलकूप से सिंचाई करना घाटे का सौदा है। किसानों से स्वीकार करा कर वर्षा जल संग्रहण को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने का जन सामान्य को एहसास कराना।

3. वर्षा जल संग्रहण ही एक मात्र विकल्प, किसानों की प्रगति का अन्यथा भविष्य अंधकार मय होगा यह किसानों को एहसास कराना।

4. जल संग्रहण की दिशा में जो जागेगा वही पाएगा 10 प्रतिशत भूमि में जल संग्रहण संरचना (रेवा सागर) निर्माण से 90 प्रतिशत भूमि में दो फसल उगाई जा सकती है एवं आगे की पीढ़ी हेतु जल की उपलब्धता रहेगी। लागत दो वर्षों में प्राप्त हो जावेगी इस विचार का किसानों को एहसास कराकर, किसानों को प्रोत्साहित किया।

5. रेवासागर/बलराम तालाब निर्माण हेतु संकल्पित किसानों को प्रशासन का मार्गदर्शन, सहयोग, सम्मान और अपनापन प्रदान कर, किसानों में जल संग्रहण हेतु जन चेतना जागृत की।

6. किसानों का किसानों से संवाद कार्यक्रम आयोजित कर प्रेरणा और प्रोत्साहन की दिशा में अहम भूमिका अदा की।

7. योग्य, अनुभवी, संकल्पित अधिकारी/कर्मचारी/किसानों/स्वयंसेवी संस्था आदि का चयन कर व्यापक प्रशिक्षण/कार्यशाला/संवाद आदि कार्यक्रम आयोजित कर जल संग्रहण की दिशा में व्यापक प्रचार प्रसार कराया गया।

8. संकल्पित भागीरथ कृषकों के रेवा सागर निर्माण मुहुर्त संबंधी कार्यक्रम में स्वयं उपस्थित होकर किसानों/ग्रामीणों को प्रोत्साहित कर जन चेतना जागृत की। किसानों को ऋण उपलब्ध कराने हेतु बैंकों से सहयोग की अपील एवं विकासखंड स्तर पर तकनीकी मार्गदर्शन की व्यवस्था कर, इस प्रकार रेवा सागर निर्माण के स्थल का चयन किया गया कि जल भरण क्षेत्र से चार गुने जलग्रहण क्षेत्र में 15 इंच वर्षा जल से निर्मित संरचना पूर्णतः भर जावेगी। जिले में निर्मित 6000 रेवा सागर इस वर्ष पूर्णतः भरे हुए है।

4. अभिनव/प्रेरणादायक कार्यों का क्रियान्वयन



भागीरथ कृषक अभियान के तहत जल संग्रहण संरचनाओं के निर्माण के संबंध में उत्कृष्ट तकनीकी व्यवहारिक ज्ञान, आर्थिक सुगमता, धार्मिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण का समावेश एवं समानता तथा योग्य जनमानस का सहयोग प्राप्त कर, डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

1. तकनीकी समावेश -


तकनीकी सुदृढ़ता के क्रम में रेवा सागर निर्माण करने वाले संकल्पित भागीरथ कृषक से संपर्क हेतु तकनीकी सदस्यों की टीम का भ्रमण कार्यक्रम निर्धारित कर हितग्राहियों को उपयुक्त, स्थायी एवं कम लागत तथा उचित डिजाईन की संरचना हेतु स्थलों का चिन्हांकन कराना। जिसका परिणाम यह हुआ कि विगत वर्षा ऋतु में असामान्य वर्षा होने के बावजूद एक भी संरचना (रेवा सागर) को कोई नुकसान नहीं हुआ।

2. व्यवहारिक ज्ञान:-


संरचानाओं के स्थल चयन, आकार, गहराई एवं तालाब से निकली मिट्टी का समुचित उपयोग एवं कम से कम वर्षा में भी संरचना का पूनर्भरण हो इस हेतु ग्रामीणों के अनुभवों/विचारों को प्राथमिकता प्रदान की गई जो अनुकरणीय है।

3. आर्थिक सुगमता:-


जल अभिषेक अभियान के तहत संकल्पित भागीरथ कृषकों को जल अभिषेक अभियान अंतर्गत अधिकांश किसानों द्वारा अपने स्वयं के पास उपलब्ध संसाधनों से रेवा सागर निर्माण का कार्य संपादित कराया गया किंतु कुछ कृषकों को बड़े तालाब बनाने हेतु उनके चाहे जाने पर बैंक ऋण आदि प्राप्त करने में व्यक्तिगत रूचि लेकर पैसा और साधन सुगमता से उपलब्ध कराया। रेवा सागर निर्माण हेतु ट्रैक्टर, जे.सी.बी. मालिकों की बैठकें आयोजित कर मशीन आदि की उपलब्धता सुनिश्चित कराई। साथ ही बैंकों के अधिकारियों की बैठकें आयोजित कर रेवा सागर के ऋण प्रकरणों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने का आह्वान किया। साथ ही उन्हें एहसास कराया कि किसान के पास पानी होगा तो उसका उत्पादन बढ़ेगा जिससे वह आपका कर्ज अवश्य अदा करेगा।

4. धार्मिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-


इस क्रम में गहन चिन्तन कर जल अभिषेक के तहत निर्माण होने वाले तालाब को रेवा सागर और निर्माण करने वाले किसान को भागीरथ कृषक की उपाधियों से विभूषित करने से कार्यक्रम के प्रति जन सामान्य में श्रद्धा के भाव परिलक्षित हुए। रेवा सागर निर्माण करने वाले भागीरथ कृषकों को असंख्य जीवन (पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, लता आदि) का संरक्षक प्रतिपादित करते हुए सम्माननीय/पूज्यनीय गौरव प्रदान कर उन्हें आत्मिक सुख की अनुभूति प्रदान की गई। जो अनुकरणीय है।

5.समानता:-


जल अभिषेक अभियान के दौरान एक विशेष मीटमेंट देखा गया, रेवा सागर शुभारंभ की सूचना देने वाला कौन है, यह पूछना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा, किस क्षेत्र में है यही पूछ कर उन्हें समय देकर सही समय पर अक्सर उपस्थित होते। कभी-कभी हितग्राहियों को ढुंढवाना पड़ा। उक्त व्यवहार से जन सामान्य में कार्यक्रम के प्रति विशेष लगाव पैदा हुआ। जो उनका अभिनव प्रयास रहा।

6. योग्य जनमानस का सहयोग:-


जल अभिषेक अभियान की प्रथम जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक में विभिन्न अधिकारियों से जल एवं पर्यावरण से जुड़े हुए अधिकारियों/कर्मचारियों की जानकारी एकत्र कर जिले के माननीय जनप्रतिनिधि/स्वयंसेवी संस्थाओं/किसान संघ के सदस्यों/धार्मिक संस्थाओं के योग्य मास्टर ट्रेनर्स की टीम का गठन कर उन्हें सहयोग, साधन एवं सम्मान प्रदान कर कार्यक्रम को सफल बनाने की पहल करना उनका अभिनव प्रयास एवं अनुकरणीय पहलू रहा। जिससे जिले में विषम परिस्थितियों के रहते हुए भी 6000 रेवा सागर में लगभग 250-300 करोड़ का जन सहयोग प्राप्त करने में जिला प्रशासन सफल रहा।

उल्लेखनीय प्रयास


संपूर्ण अभियान हेतु एक सोची समझी तथा सुदृढ़ रणनीति निर्धारित कर चरणबद्ध कार्यक्रम के माध्यम से प्रभावी क्रियान्वयन संपादित करवाया गया मुख्य रूप से इसे दो हिस्से में विभाजित किया गया।

1. कृषकों को प्रेरणा देना


डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा रेवासागर अभियान में रेवासागर निर्माण हेतु प्रेरणा देने का मुख्य कार्य रोल मॉडल कृषकों “भागीरथ मास्टर ट्रेनर्स” के माध्यम से ही करवाया गया जो कि, प्रभावी एवं कारगर होने के साथ ही परिणाम मूलक भी हुआ।

2. प्रेरित किसानों को आवश्यक सहयोग एवं मार्गदर्शन


एक ओर प्रेरणा/उत्प्रेरक का कार्य रोल मॉडल कृषकों के माध्यम से करवाया वही प्रेरित किसानों को तकनीकी ज्ञान/कौशल तथा भौतिक संसाधन यथा मशीन एवं ऋण (आवश्यकतानुसार) उपलब्धता सुचारू रूप से प्राप्त हो सके इसमें जिला प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

उपरोक्त गतिविधि को निम्नानुसार विभाजन अनुसार क्रियान्वयन संभव हो सका।

अ. स्थल चयन:-


रेवासागर निर्माण हेतु प्रेरित/संकल्पित कृषकों को संरचना निर्माण हेतु स्थल चयन हेतु आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा स्थल पर ही प्रदान करने की व्यवस्था की गई। संरचना निर्माण स्थल उपयुक्त हो एवं निर्माण उपरांत उसकी उपयोगिता/सुरक्षा संबंधी सभी पहलुओं पर विचार कर कृषकों को स्थल चयन संबंधी मार्गदर्शन प्रदान किया गया।

ब. रेवासागर तकनीकी पहलू:-


स्थल चयन के साथ ही निर्माण स्थल पर ही कृषकों से उपलब्ध भूमि, ली जाने वाली फसल, उपलब्ध संसाधन आदि की जानकारी ली जाकर जल आवश्यकता तथा चयनित स्थल पर वर्षा जल आवक मात्रा के आधार पर रेवासागर की लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, आकार आदि का निर्धारण कृषक से चर्चा उपरांत स्थल पर निर्धारण कर ले आउट आदि का मार्किंग तत्काल की जाने की सुचारू व्यवस्था जिला प्रशासन के योग्य मार्गदर्शन में प्रदान की।

जिला स्तर पर एवं विकासखंड स्तर पर एक एक कंट्रोल रूम स्थापित किए गए जिसके संपर्क दूरभाष क्रमांक समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करवाए गए। साथ ही क्षेत्र विशेष हेतु निर्धारित तकनीकी अधिकारी/कर्मचारी के दूरभाष भी समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाए गए। जिससे जिले के किसी भी हिस्से में कृषक को आवश्यकतानुसार यथाशीघ्र मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।

स. वित्तिय संयोजन:-


जिले में भागीरथ कृषक अभियान में यूं तो लक्ष्य कृषक बड़े किसानों को लिया जा कर उनके पास उपलब्ध धन/संसाधन से रेवासागर निर्माण संपन्न कराए गए किंतु मध्यम तथा लघु कृषकों तथा कही कही बड़े किसानों द्वारा भी बड़े रेवासागर निर्माण हेतु कुछ वित्तिय सहायता/ऋण की आवश्यकता महसूस की गई, इस हेतु

1. सर्वप्रथम जिला स्तर पर समस्त बैंकर्स की बैठक आहूत की गई जिसमें नाबार्ड भोपाल के मुख्य महा प्रबंधक श्री माथूर एव अन्य वरिष्ठ बैंक अधिकारियों को आमंत्रित किया गया।

2. चूंकि तालाब निर्माण हेतु कृषकों द्वारा बैंको से ऋण चाहे जाने का यह प्रारंभिक अनुभव था बैंकर्स की भी इसमें विशेष रूचि नहीं थी अतः जिला स्तर पर बैठकों के माध्यम से संवाद स्थापित कर प्रकरण के तकनीकी पहलुओं, ऋण वापसी की संभावनाओं आदि आर्थिकीय पहलू प्रस्तुत कर बैंकर्स को इस हेतु कनवीन्स किया गया।

3. कृषि के अधिकारियों एवं इंजीनियर्स के संयुक्त नेतृत्व मे तालाबों के तकनीकी पहलूओं को देखते हुए कार्यवार प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की गई एवं बैंकर्स को भरोसा दिलाया गया कि, रेवासागर पर फायनेंस करना किसी भी स्थिति में फायदेमंद ही है एवं ऋण वापसी की पूर्णतः गारंटी होगी।

4. विभिन्न बैंको से ऋण प्राप्त करने के लिए कृषको के प्रकरण तैयार करने, बैंक में प्रस्तुत करने आदि हेतु जनपद स्तर से मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत एवं उनकी टीम के माध्यम से प्रकरण स्वीकृत करवाने में त्वरित कर्यवाही कर संपूर्ण सहयोग प्रदान किया गया।

द. मशीनरी की व्यवस्था:-


सीमित अवधि में आवश्यक मशीनों जैसे ट्रैक्टर, जेसीबी आदि की उपलब्धता करना भी एक चुनौती भरा कार्य था। मशीनों की कमी की वजह से मशीन मालिक खुदाई की दरें न बढ़ा दें अतः कृषकों के होने वाले इस शोषण का भी ध्यान रखा गया।

जिले के आसपास के क्षेत्र, प्रदेश के निकट के अन्य राज्यों में उपस्थित/उपलब्ध मशीनों की जानकारी उनके मालिकों के दूरभाष/पते इत्यादि की जानकारी संपूर्ण जिले में उपलब्ध कराई गई एवं खुदाई की दरों पर भी नजर रखी गई।

मशीनों की संपूर्ण जिले में क्षेत्रवार उपलब्धता कराने में शिफ्टिंग टाईम का भी ध्यान रखा गया ताकि, मशीन का अधिकाधिक समय कार्य में उपयोग किये वांछित प्रगति भी प्राप्त हो सके।

5. जल संरक्षण व संवर्धन कार्यों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक प्रभाव/परिणाम


जल संरक्षण हेतु सामाजिक आंदोलन की बुनियाद:-


रेवासागर भागीरथ कृषक अभियान के तहत जिले में लगभग 5228 रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब का निर्माण किसानों द्वारा किया गया। जिले में निर्मित इन तालाबों की लागत करोड़ों रू. आंकी गई। इतनी बड़ी राशि तालाब निर्माण के लिए समाज द्वारा आगे आकर व्यय किए जाना अपने आप में इस बात का संकेत है कि समाज में पानी बचाने की अवधारणा को स्वीकार कर लिया। दूसरे शब्दों में हम भागीरथ कृषक अभियान को सामाजिक आंदोलन की बुनियाद भी कह सकते हैं। यह एक सामाजिक आंदोलन है और इसकी निरंतरता आवश्यंभावी है।

अपेक्षित सिंचित क्षेत्र में वृद्धि:-


भागीरथ कृषक अभियान के तहत जिले में निर्मित 5228 निर्मित तालाबों से आने वाले समय में करीब 30-40 हजार हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होगी, किसी परियोजना के संचालन से इतने बड़े क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। आंकड़ों की दृष्टि से देखे तो पिछले 50 वर्षों में विभिन्न परियोजनाओं के संचालन किए जाने के बावजूद सिंचित क्षेत्र में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन भागीरथ कृषक अभियान के तहत निर्मित रेवासागर/बलराम तालाब एवं अन्य तालाबों के परिणाम स्वरूप लगभग 2.5 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी, यह अपने आप में एक रिकार्ड है।

विद्युत की बचत


वर्तमान परिदृश्य में जिले में सिंचाई के लिए भूजल का दोहन किया जा रहा है। जिले में कोई नहर या बड़ी नदी नहीं होने से किसान सिंचाई के लिए पूर्णतः नलकूप पर अवलंबित है। लगातार भूजल के दोहन से जल स्तर 500 फुट से अधिक गहराई तक चला गया है। इतनी गहराई से पानी खींचने के लिए किसान पूरी तरह विद्युत पर निर्भर है। रेवासागर/बलराम तालाब एक सतही जल संरचना है और इससे सिंचाई करने के लिए जहां एक ओर किसानों का महंगे पम्पसेट खरीदने का खर्चा कम होगा, वही वह ट्रैक्टर तथा स्थानीय संसाधनों से चरखा बनाकर परंपरागत तरीकों से सिंचाई कर सकेंगे। इससे 50 प्रतिशत तक विद्युत की बचत संभव होगी। साथ ही किसान सिंचाई के संदर्भ में आत्मनिर्भर बन सकेगा। विद्युत का संकट भी इन सतही जल संरचनाओं के कारण सिंचाई में बाधक नहीं बन सकेगा।

जल स्तर में वृद्धि


जिले में बड़ी नदी या सिंचाई के लिए नहर नहीं होने से किसान पूरी तरह से भूजल पर निर्भर है। पिछले वर्षों में लगातार भूजल दोहन से जिले में जल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। रेवासागर/बलराम तालाब के माध्यम से वर्षा जल संचित होकर जमीन के अंदर रिसेगा जिससे जल स्तर में वृद्धि होगी। जल स्तर में वृद्धि होने से आने वाले वर्षो में इन तालाबों के समीपस्थ क्षेत्रों में स्थापित हजारों नलकूप पुर्नजीवित हो सकेंगे। दूसरे शब्दों में इसे हम सीधे-सीधे करोड़ों रू की बचत के रूप में भी आंक सकते है।

पशु पक्षी एवं पर्यावरण संरक्षण


सतही जल संरचनाओं के अभाव में पिछले कुछ वर्षों से जिले में पशुओं के निस्तार की समस्या उत्पन्न होने के साथ ही अप्रवासी पक्षी भी जिले में नहीं पहुंच रहे थे, जिससे पर्यावरणीय संतुलन गड़बड़ा रहा था। रेवासागर/बलराम तालाब के रूप में निर्मित 5228 सतही जल संरचनाओं के कारण इस वर्षा ऋतु में ही जल मुर्गी, बतख आदि पक्षी एवं हिरणों के 50-50 झूंण्ड एवं अन्य जंगली जानवर तालाब के किनारे देखे जाने लगे हैं। इन सतही जल संरचनाओं में मई जून माह तक भी पानी भरा रहेगा तो ठंडे देशो से आने वाले अप्रवासी पक्षी जिले में पहुंचने लगे हैं, इससे पर्यावरणीय संतुलन में सुधार हो रहा है।

जल एवं मृदा संरक्षण


इसके अलावा बारिश के पानी के साथ बहने वाली खेत की उपजाऊ मिट्टी भी रेवा सागर/बलराम तालाब में जमा हुई हैं। जिसे बारिश के बाद निकालकर खेत में डाला गया हैं। इससे मृदा संरक्षण के साथ खेतों में फसल को प्राकृतिक खाद मिली हैं जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही उत्पादन में वृद्धि हुई है एवं जल बहाव धीमा होनें से नदी नालों के हो रहे समतलीकरण के समस्या से भी निजात मिली हैं।

डॉ. अब्बास ने नलकूप के स्थान पर तालाब से की जाने वाली सिंचाई अधिक लाभकारी है इसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रचार-प्रसार की अनेक विधाये अपनाई उदाहरण के लिए ग्राम हरनावदा में भागीरथ कृषक मास्टर ट्रैनर श्री रघुनाथ सिंह तोमर द्वारा स्वयं अपने नलकूप की शवयात्रा निकाली गई इसमें जिला प्रशासन के अधिकारियों के अलावा हजारों भागीरथ कृषकों ने भाग लिया जिसे मीडिया एवं समाचार पत्रों द्वारा प्रचारित किया गया। परिणाम स्वरूप विकासखण्ड टोंकखुर्द में विगत तीन वर्षों से नलकूप खनन नहीं किया गया। अधिकांश नलकूपों का भूजल पुर्नभरण हेतु उपयोग किया जा रहा है। जिले में विनिर्मित अधिकांश रेवा सागर 5 से 30 फीट गहरी काली/पीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में है। इस प्रकार की मिट्टी में जल रिसन बहुत कम होता है। अतः जिन किसानों ने रेवा सागर बनाए हैं। वे इसी वर्ष अधिकाधिक क्षेत्र में दो फसल आसानी से ले सकते है/ले रहे है किंतु पास के खेत में पानी का साधन नही होने से दूसरी फसल लेने में कठिनाई होगी या अधकचरी फसल ही पैदा होगी। जिसके परिणाम स्वरूप किसानों में प्रेरणा/लोभ जागेगा और भविष्य में वे आवश्यक रूप से जल संग्रहण संरचनाओं के निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करेंगे जिससे जल उपलब्धता के क्षेत्र में जिला अग्रणी होना संभावित है।

ऐसे उदाहरण भी मिल रहे हैं जिसमें लोगों ने अपने नलकूपों को बंद कर दिया है तथा हजारों नलकूप जो बंद हो चुके थें उनमें भी रेवा सागर तालाबों की वजह से पर्याप्त पानी आज की स्थिति में भी उपलब्ध है।

अभियान में जिनका सहयोग रहा हैं वे निम्नानुसार हैं:-

1. तात्कालीक कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव के निर्देशन में वर्ष 2006 में भागीरथ कृषक अभियान प्रारंभ किया गया, जिसके सफल क्रियान्वयन के परिणाम स्वरूप प्रदेश में सर्वाधिक रेवासागर खेत तालाब/बलराम तालाब एवं संरचनाओं निर्मित हुई, जिससे कि प्रदेश एवं देश में देवास जिले को पहचान मिली।

2. जिला कलेक्टर श्री मुकेश चन्द गुप्ता द्वारा कल्स्टर में खेत एवं बलराम तालाब का निर्माण किए जाने हेतु प्रेरित किया जाकर भागीरथ कृषक अभियान को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिक अदा की जा रही है। तात्कालीक कलेक्टर श्रीमती पुष्पलता सिंह, श्री सचिन सिन्हा एवं डॉ. नवनीतम मोहन कोठारी ने भी इस अभियान को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

3. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री अनिल कुमार खरे एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत टोंकखुर्द श्री नरेन्द्र सिंह भावसार, देवास के श्री राजेश कुमार दिक्षीत, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत खातेगांव, कन्नौद, सोनकच्छ एवं बागली तथा जिला पंचायत देवास के श्री योगेन्द्र मेहता, योगेन्द्र गिरि, हरिसिंह जाट आदि ने इस अभियान को सफल बनाने में विशेष योगदान प्रदान किया।

4. डॉ. डी.एन.शर्मा, संचालक कृषि किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग म.प्र. भोपाल द्वारा खेत तालाब एवं बलराम तालाब योजनांतर्गत कृषकों के लिए करोड़ों रू. की अनुदान राशि अथक प्रयास से उपलब्ध कराकर भागीरथ कृषक अभियान को सफल बनाने में सराहनीय योगदान प्रदान किया जा रहा है।

5. उक्त योजना के सफल क्रियान्वयन में प्रेरणा नायक के रूप में उपसंचालक कृषि, श्री विजय अग्रवाल एवं तात्कालीक उपसंचालक कृषि, श्री ओ.पी.चौरे का योगदान प्रसंशनीय रहा है। श्री अग्रवाल द्वारा सतत् रूप से कृषकों, कृषि विस्तार अधिकारी से लेकर सहायक संचालक कृषि के बीच समन्वय एवं योजना के समयबद्ध क्रियान्वयन हेतु सदैव प्रयास किया गया है।

6. भागीरथ कृषक अभियान से जुड़े समस्त अधिकारी जैसे, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, विकास खण्ड टोंकखुर्द - श्री पी.एस. यादव, देवास - श्री सी.एस. तौमर, सोनकच्छ - श्री ए.एल. मालवीय, खातेगांव, श्री एन.एस. गुर्जर, कन्नौद - श्री एम.एस. ठाकुर। अनुविभागीय कृषि अधिकारी सोनकच्छ - श्री पी.एस. मालवीय एवं संबंधित ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी एवं सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी एवं सर्वेयर का योगदान उल्लेखनीय रहा है।

7. डॉ. मोहम्मद अब्बास, सहायक संचालक कृषि ने भागीरथ कृषक अभियान में नोडल अधिकारी के रूप में प्रचार प्रसार कर भागीरथ कृषकों को रेवासागर एवं खेत तालाब एवं बलराम तालाब निर्माण हेतु प्रेरित कर महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

अभिनव भागीरथ कृषक अभियान एक नजर में


अभियान - भागीरथ कृषक अभियान
योजना - खेत तालाब/बलराम तालाब
समयावधि - फरवरी 2006 से जून 2011 तक
खेत तालाब - 618
बलराम तालाब - 1800
रेवासागर एवं अन्य - 2810
योग - 5228
जन सहयोग - लगभग 200-250 करोड़ रू.
अपेक्षित सिंचित क्षेत्र - 30-40 हजार हेक्टेयर की वृद्धि
भू जल स्तर में वृद्धि - 6 से 40 फिट की वृद्धि
विद्युत की बचत - सतही जल संरचनाओं से सिंचाई करने से लगभग 50 प्रतिशत विद्युत बचत संभव है।
पशु - पक्षी संरक्षण - सतही जल संरक्षण होने के कारण पशुओं के निस्तार की व्यवस्था होगी तथा अप्रवासी पक्षी भी यहां पहुँचेंगे। अतः तालाब पशु पक्षियों के संरक्षण में लाभकारी हो रहे हैं।

प्रभावी आकलन:-


रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब एवं अन्य निर्मित संरचनाओं से प्राप्त हुए लाभों का प्रभाव आंकलन में मुख्य रूप से जो बातें ध्यान में आई वे निम्नानुसार है:-
ग्रामीण क्षेत्रों में रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब निर्माण वाले क्षेत्रों में आजीविका के साधनों में बढ़ोतरी होकर कृषकों की सिंचाई जल आपूर्ति सुनिश्चित हुई एवं मछली पालन, उद्यानिकी जैसी गतिविधियों के प्रति भी किसान का ध्यान आकृष्ट हुआ।

रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब मालिक कृषकों ने रबी में 100 प्रतिशत क्षेत्र में बुवाई की तथा निर्धारित तीन से चार सिंचाई अपनी फसलों में प्रदान की जिससे फसल की मात्रा तथा गुणवत्ता में वृद्धि हुई।

डॉ. अब्बास द्वारा किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप जिला देवास की निम्न पंचायतों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है।

क्र.

नाम/ग्राम पंचायत का नाम

पुरस्कार का नाम

पुरस्कार वर्ष

मंत्रालय जिसके द्वारा दिया गया

1.

गोरवा

भूमिजल संवर्धन पुरस्कार

2007-08

भारत सरकार जल संसाधन मंत्रालय

2.

धतुरिया

भूमिजल संवर्धन पुरस्कार

2008-09

भारत सरकार जल संसाधन मंत्रालय

3.

टोंकखुर्द

सर्वश्रेष्ठ सफलता की कहानी पुरस्कार

2009-10

भारत सरकार जल संसाधन मंत्रालय

4.

चिड़ावद

भूमिजल संवर्धन पुरस्कार

2010-11

भारत सरकार जल संसाधन मंत्रालय

 



राज्य/राष्ट्र/अंतरराष्ट्रीय अध्ययन दलों द्वारा भ्रमण कर कार्य का अवलोकन


रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब एवं अन्य सिंचाई तालाबों द्वारा की जा रही सिंचाई के परिणाम स्वरूप ग्रामों की आर्थिक उन्नति देखने हेतु प्रदेश के 30 से अधिक जिलों के 25 हजार कृषकों द्वारा जिला देवास को भ्रमण किया जा चुका है।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर:-


अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘‘इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट’’ (आईडब्ल्यूएमआई) अमेरिका के वैज्ञानिक डॉ.. मेरेडीथ ए जार्डेनो, दिल्ली के डॉ.. आर.पी.एस. मलिक एवं गुजरात के डॉ.. तुषार शाह, एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) अध्ययन दल के सदस्य जोय श्री राय, विधूषा, व्हीसमरा शेखरा, ऐडरवान यांग, बरक्ड ऐजीन एवं डॉ.. एस.के. शर्मा - इंग्लैंड, यूनाईटेड किंगडम, श्रीलंका एवं दिल्ली इंटरनेशनल फूड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाईजेशन (एफएओ) ईटली की रूलर इंजीनियर दोमिति वैली, अंतरराष्ट्रीय पत्रकार विवेक एवं प्रभात रंजन, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, रियान एलीस आस्ट्रेलिया से आए दलों द्वारा जिले में भागीरथ कृषक अभियान अंतर्गत निर्मित तालाबों का अवलोकन भ्रमण कर एवं कृषकों से चर्चा कर उनकी सामाजिक एवं आर्थिक तथा जीवन स्तर के विकास, पर्यावरण में आए बदलाव, मिट्टी की उर्वरता एवं गुणवत्ता पर अध्ययन करने हेतु जानकारी प्राप्त की। एशीयन न्यूज इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा रेवासागर/बलराम तालाब एवं उससे मिले सार्थक परिणामों की फिल्म शूटिंग कर प्रचार प्रसार किया।

राष्ट्रीय स्तर:-


मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डा. राजेन्द्र सिंह राजस्थान अलवर, संयुक्त सचिव, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली से श्री मुकेश खुल्लर जी, श्री महेश कुमार, श्री ए.पी.एस भदौरिया उपायुक्त कृषि मंत्रालय भारत सरकार, डॉ.. एस.के.शर्मा ग्राउंड वाटर रिसोर्सेस, डॉ.. आर.के. गुप्ता राष्ट्रीय सलाहकार एनएफएसएम, डॉ.. आर.पी. सिंह निदेशक दलहन भारत सरकार नई दिल्ली, शेहनवाज एवं कृष्ठ एडवांस रिर्सच डेवलपमेंट दिल्ली, डॉ.. ए.कुमार मसूरी आदि ने भ्रमण कर किए गए कार्य की सराहना की।

राज्य स्तरः-


प्रमुख सचिव, किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग भोपाल, श्री इन्द्र नील शंकर दाणी, कृषि उतपादन आयुक्त, श्रीमती रंजना चौधरी, कृषि उत्पादन आयुक्त, आयुक्त, संभाग भोपाल, श्री नाइडू जी, आयुक्त, संभाग उज्जैन, श्री टी. धर्माराव, सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग भोपाल श्री अजय तिर्की, संचालक, कृषि किसान कल्याण तथा कृषि विकास, डा. डी.एन. शर्मा, श्री संग्राम सिंह तोमर, संयुक्त संचालक, कृषि, श्री एस.के. भटनागर, श्री एच.एस. मेहर, डा. राजेन्द्र पाठक, अध्यक्ष, किसान आयोग, मध्य प्रदेश शासन भोपाल डी.पी. दूबे आई.ए.एस सचिव, म.प्र. कृषक आयोग एवं डॉ. विवेक शर्मा कार्ड भोपाल द्वारा भी जिला देवास में कराए गए कार्यों के अवलोकन के पश्चात् कराए गए कार्यों की प्रशंसा की गई है।

जिला स्तर:-


कलेक्टर शाजापुर श्रीमति सोनाली एन.वायनगणकर, मंदसौर कलेक्टर श्री महेन्द्र ज्ञानी, धार कलेक्टर श्री ब्रजमोहन शर्मा एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत देवास, शाजापुर, धार, उज्जैन, मंदसौर, खरगौन, राजगढ़, सीहोर, रतलाम, इन्दौर, अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, बुरहानपुर एवं खण्डवा के अलावा छतरपुर, विदिशा भोपाल द्वारा भ्रमण पश्चात् अधिकारियों द्वारा अपने संबंधित अधिनस्त अधिकारियों एवं कृषकों के साथ जिले में भ्रमण किया गया। भ्रमण कर देवास जिले में अपनाए गए उक्त मॉडल को स्वयं के जिलों में अपनाए जाने के संबंध में जिले के अधिकारियों को निर्देशित किया गया है। जिले एवं प्रदेश के अन्य लगभग 30 जिलों से लगभग 25000 कृषकों ने जिले में निर्मित तालाबों का भ्रमण एवं अवलोकन कर निर्माण हेतु संकल्प लिया।

जनप्रतिनिधि:-


मुख्यमंत्री म.प्र. शासन, श्री शिवराजसिंह जी चौहान, कृषि मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमारिया, सिंचाई मंत्री श्री अनूप मिश्रा, प्रभारी मंत्री श्रीमंत तुकोजीराव पंवार एवं पारस जैन सांसद श्रीमती मिनाक्षी नटराजन, सज्जनसिंह वर्मा, प्रभारी मंत्री, कृषि मंत्री, सिंचाई मंत्री एवं अन्य अनेकों विधायकों ने भी भ्रमण अवलोकन कर जिले के भागीरथ कृषकों की सराहना की।

मीडिया:-


अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रदेश स्तर एवं जिला स्तर, जी.टीवी. सहारा, आज तक, माध्यम टीवी, ईटीवी, जेन टीवी, सिटी चैनल एवं लोकल चैनलों द्वारा डक्यूमेंट्री फिल्म तैयार कर देवास जिले में भागीरथ कृषक अभियान अंतर्गत किए गए कार्यों का प्रचार प्रसार किया गया। रेवासागर/खेत तालाब/बलराम तालाब योजना के अंतर्गत किए गए उत्कृष्ट कार्यों के अवलोकन हेतु प्रदेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेकों समाचार पत्रों एवं मीडिया द्वारा जिला देवास में किए गए कार्यों का समाचार पत्रों में लेख एवं डाक्यूमेंट्री बनाई जाकर प्रदर्शित की गई है। मध्य प्रदेश शासन के जल अभिषेक अभियान के अंतर्गत जन सम्पर्क विभाग द्वारा डाक्यूमेन्ट्री तैयार की जाकर मध्य प्रदेश के समस्त जिलों को भेजी गई है।

स्वतंत्र रूप से किए गए मूल्याकंन एवं प्रभावों के आंकलन:-


1. अशासकीय संस्था ‘‘विभावरी” द्वारा जुलाई 2007 में (16 माह पश्चात )स्वतंत्र रूप से अध्ययन किया गया था। अध्ययन में 1500 खेत तालाब निर्माण एवं 78 करोड़ रूपए की जनभागीदारी की जाने का उल्लेख किया गया है। उक्त खेत तालाबों द्वारा 15 हजार हेक्टेयर में सिंचाई की जा सकेगी। सिंचाई के कारण गेहूं फसल के उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

2. राष्ट्र स्तरीय अन्य अशासकीय संस्था ‘‘सेंटर फॉर अडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट’’ भोपाल द्वारा 2007 में स्वतंत्र रूप से अध्ययन किया गया था।

3. अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘‘इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट’’ नई दिल्ली द्वारा भी जिला देवास में वर्ष 2010 में स्वतंत्र रूप से अध्ययन किया गया है। अध्ययन पश्चात् उक्त मॉडल को अन्य जगहों पर अपनाए जाने हेतु अनुसंशित किया है। जिसके परिणाम निम्नानुसार पाये गए -

1. क्रापिंग इन्टेनसिटी में 120 से 198 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
2. रबी फसल क्षेत्रफल में 22 से 98 वृद्धि हुई है।
3. दुग्ध उत्पादन 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं।
4. मृदा संरक्षण एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
5. जैवविविधता में वृद्धि हुई हैं।
6. ग्रामों में ट्रैक्टर, कार आदि की संख्या में वृद्धि के साथ लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है।
7. वेनेफिट, कास्ट रेशों 1.48 से 1.92 पाया गया है एवं लगाई गई पूँजी 2.5 से 3 वर्षों में वापस प्राप्त की गई हैं।

पहल की मुख्य बातें/विशिष्टताएं, उदाहरणस्वरूप:-


1. पारदर्शिता और भागीदारी
2. पहल का नवीनीकरणीयता और उसकी पुनरावृत्ति
3. क्रिया पद्धति की बढ़ती क्षमता और परिणामों की प्रभावकारिता
4. नेतृत्व प्रदर्शन/नामांकितों द्वारा समूह कार्य
5. पहल का संपोषण

नलकूप की अंत्येष्टी एवं रेवासागर की वर्षगांठ:-


डॉ. अब्बास ने नलकूप के स्थान पर तालाब से की जाने वाली सिंचाई अधिक लाभकारी है इसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रचार-प्रसार की अनेक विधाये अपनाई उदाहरण के लिए ग्राम हरनावदा में भागीरथ कृषक मास्टर ट्रैनर श्री रघुनाथ सिंह तोमर द्वारा स्वयं अपने नलकूप की शवयात्रा निकाली गई इसमें जिला प्रशासन के अधिकारियों के अलावा हजारों भागीरथ कृषकों ने भाग लिया जिसे मीडिया एवं समाचार पत्रों द्वारा प्रचारित किया गया। परिणाम स्वरूप विकासखण्ड टोंकखुर्द में विगत तीन वर्षों से नलकूप खनन नहीं किया गया। अधिकांश नलकूपों का भूजल पुर्नभरण हेतु उपयोग किया जा रहा है।

निर्मित तालाबों से आई समृद्धि:-


डॉ. मोहम्मद अब्बास एवं सहयोगी टीम की प्रेरणा से निर्मित तालाबों से अनेक देवास जिले के तालाब सघनता वाले विकासखण्ड टोंकखुर्द और खातेगांव में सतही जल एवं भूजल स्तर के साथ भी क्षेत्र में हरितमा में भी काफी वृद्धि हुई जिससे ग्रामीण में दुग्ध उत्पादन एक स्थाई आय का स्रोत बन गया। क्षेत्र के किसानों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर के साथ ही जीवन स्तर में अप्रत्याशित सुधार हुआ।

ग्रामीणों ने तालाबों के लागत की भरपाई के साथ ही बैंकों में एफडी भी करा रखी है। गांव में बड़े-बड़े महलों जैसे मकान बने हैं। आधुनिक कृषि उपकरणों के साथ ही कीमती चार पहिया वाहन, कारें किसानों ने खरीद रखी है। किसानों के बच्चे बड़े-बड़े शहरों के अच्छे स्कूल, कॉलेजों में पढ़ रहे हैं। कई स्कूल, कालेज की बस प्रतिदिन ग्रामों में जाती है। ग्रामीणों की सोच में परिवर्तन हुआ है। क्षेत्र के तालाबों को देखने आने वाले भ्रमण दालों का ग्रामीण आकास्मिक स्वागत करने के साथ ही निशूल्क भोजन भी कराते हैं।

डॉ. मोहम्मद अब्बास द्वारा किया गया कार्य अतुलनीय एवं प्रेरणा स्रोत और कृषि को लाभकारी बनाने में नींव का पत्थर साबित हुआ। में डॉ. अब्बास एवं सहयोगी दल के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ भागीरथ कृषक अभियान को राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु नामांकित करने में गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।

कृषि को लाभकारी बनाए जाने के संबंध में किए गए अभिनव प्रयास


1. किसान खेत पाठशाला का आयोजन एवं क्रियान्वयन
2. फसल प्रदर्शन
3. कृषि विज्ञान मेला आयोजन
4. कृषक संगोष्ठी आयोजन
5. कृषक भ्रमण
6. कृषि अनुसंसाधन संस्थानों के साथ समन्वय
7. किसान दीदी एवं किसान मित्रों के साथ कृषकों को प्रेरित किया गया
8. प्रदेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय विभागीय अधिकारियों के क्षेत्र भ्रमण के दौरान समन्वय एवं तकनीकी मार्गदर्शन
9. विभिन्न मीडिया एवं समाचार पत्रों के साथ समन्वय
10. दैनिक समाचार पत्रों के माध्यमों से कृषकों की उपज के उचित उत्पादन हेतु सामयिक सलाह
11. कृषि वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों के साथ फसल क्षेत्र भ्रमण एवं कृषकों की समस्या का तत्काल निराकरण
12. कृषकों को बीज उत्पादन में तकनीकी मार्गदर्शन

डॉ. मोहम्मद अब्बास
सहायक, संचालक कृषि
जिला देवास म.प्र.

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading