भोजन सिर्फ जीने के लिए नहीं होता

प्राकृतिक रूप से पके हुए पौधों की अपेक्षा, बे-मौसम, अप्राकृतिक परिस्थितियों में उगाई गई सब्जियों और फलों में विटामिन और खनिज की मात्रा बहुत कम होती है। कोई ताज्जुब नहीं कि गर्मियों की उन सब्जियों, जिन्हें जाड़ों में उगाया गया होगा, में वो स्वाद और खुशबू नहीं होगी जो जैव तथा प्राकृतिक तरीकों से खुली धूप में उगाई गई होंगी।

सबसे अच्छा तो यही होता है कि हम हमेशा स्वादिष्ट भोजन ही करें, लेकिन अधिकांश लोगों के लिए खाना शरीर को पुष्ट रखने, काम करने के लिए शक्ति संचय करने तथा लंबी उम्र तक जिंदा रहने का एक जरिया है। माएं अक्सर अपने बच्चों को खाना आग्रहपूर्वक खिलाती हैं, भले ही वह उन्हें रूचिकर न लगता हो, क्योंकि वैसा करना उनके लिए ‘अच्छा’ है। लेकिन पोषण को स्वाद से अलग नहीं किया जा सकता। पौष्टिक खाना शरीर के लिए अच्छा तो होता ही है। वे हमारी भूख को शांत करने के साथ ही अपने आप में रूचिकर भी होता है। सही आहार को अच्छे स्वाद से अलग किया ही नहीं जा सकता। आज से कुछ समय पहले तक इस इलाके के किसानों का दैनिक भोजन चावल, जौ और मीसो होता था। उसमें सब्जियां भी शामिल होती थीं। इस आहार से ही उन्हें लंबी आयु, मजबूत जिस्म तथा बढ़िया सेहत प्राप्त होती थी। महीने में कभी-कभी दावत के तौर पर वे सिझाई हुई सब्जियां, भाप में पकाया लाल फलियों से युक्त चावल खा लेते थे। चावल पर आधारित इसी सादे भोजन से किसानों के स्वस्थ और तगड़े जिस्म का बढ़िया पोषण हो जाता था।

बिना पॉलिश के भूरे चावल तथा सब्जियां पूरब के लोगों का परम्परागत भोजन रहा है। यह पश्चिम के अधिकांश समाजों से बहुत ही अलग है। पश्चिमी पोषण विज्ञान के मुताबिक हर रोज के भोजन में निश्चित मात्रा में विटामिन, मांड, प्रोटीन, खनिज आदि अवश्य होने चाहिए। इनके बिना अच्छे स्वास्थ्य और संतुलित भोजन की वे कल्पना नहीं कर पाते हैं। इसी विश्वास के चलते वहां की माएं अपनी संतानों को ‘पौष्टिक’ खाना खाने को बाध्य करती हैं। कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है कि, कई तरह के सिद्धांतों तथा व्याख्याओं पर आधारित पश्चिमी आहार विज्ञान अपने आप में परिपूर्ण है, लेकिन असलियत यह है कि उनका यह विज्ञान जितनी समस्याओं को हल करता है उससे कहीं ज्यादा निर्माण करता है। पाश्चात्य पोषण विज्ञान की सबसे बड़ी समस्या यह है कि, उसमें मानव के आहार का प्रकृति-चक्र के साथ तालमेल मिलाने की कोशिश नहीं की जाती। इससे जो आहार सामने आता है वो मानव को प्रकृति से दूर ले जाता है। इसका सबसे अफसोसजनक नतीजा यह होता है कि, हम में प्रकृति के प्रति एक भय तथा असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है।

दूसरी समस्या यह है कि भोजन का मानव की आत्मा और भावनाओं से सीध संबंध होने के बावजूद इन मूल्यों की पूरी तरह अनदेखी कर दी जाती है। यदि मानव को मात्रा एक दैहिक (फिज्योलौजिकल) वस्तु मान लिया जाता है तो आहार के बारे में कोई तर्कसंगत समझदारी नहीं पैदा की जा सकती। जब जानकारी को टुकड़ों-टुकड़ों में एकत्र कर भ्रामक निष्कर्ष निकाले जाते हैं, तो उनसे ऐसी खुराक ही बनती है जो अपूर्ण तथा प्रकृति से दूर ले जानेवाली होती है। पश्चिम का विज्ञान पूरब के इस दार्शनिक विचार को पकड़ ही नहीं पाता कि, ‘एक ही चीज के भीतर सब चीजें होती हैं लेकिन अगर सभी चीजों को आपस में गड़मड़ कर दिया जाए तो उसमें से कोई एक चीज नहीं निकल सकती। हम तितली का चाहें जितना विश्लेषण या जांच-पड़ताल करें, लेकिन हम उसे बना नहीं सकते। यदि पश्चिम के कथितरूप से वैज्ञानिक आहार को व्यापक स्तर पर अपना लिया जाए, तो कल्पना कीजिए कि कौन-कौन सी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। सबसे पहले तो उच्च क्वालिटी वाला मांस, अंडे, दूध्, सब्जियां, रोटी (पाव) तथा अन्य खाद्य पदार्थों की उपलब्धता साल के बारहों महीनों में लगातार बनाए रखना होगा।

इससे इनके बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा लंबे समय के लिए स्टोरेज की व्यवस्था करनी होगी। इस आहार को अपनाने के कारण जापान में अभी ही गर्मियों में उगने वाले सलाद, खीरा, ककड़ी, बैंगन तथा टमाटर जैसी सब्जियां सर्दियों में उगाई जाने लगी हैं। वह दिन दूर नहीं है जब किसानों से कहा जाएगा कि, वे सर्दियों में आड़ू तथा वसंत में तेंदू की फसल काटें। यह उम्मीद करना ही बहुत बेमानी है कि, हम बगैर मौसम का ध्यान रखे तरह-तरह के खाद्यों की आपूर्ति बनाए रख कर ही संतुलित आहार प्राप्त कर सकते हैं। प्राकृतिक रूप से पके हुए पौधों की अपेक्षा, बे-मौसम, अप्राकृतिक परिस्थितियों में उगाई गई सब्जियों और फलों में विटामिन और खनिज की मात्रा बहुत कम होती है। कोई ताज्जुब नहीं कि गर्मियों की उन सब्जियों, जिन्हें जाड़ों में उगाया गया होगा, में वो स्वाद और खुशबू नहीं होगी जो जैव तथा प्राकृतिक तरीकों से खुली धूप में उगाई गई होंगी। सारी गड़बड़ी का मुख्य कारण रासायनिक विश्लेषण, पोषकता अनुपात तथा ऐसे ही अन्य विचार हैं। आधुनिक विज्ञान जिस भोजन की तजवीज करता है, वह पूरब के परम्परागत भोजन से अलग होने के कारण जापान के लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading