भूजल भी प्रदूषण के शिकंजे में


भूमिगत जल एक बार प्रदूषित हो जाता है तो उसके साफ होने में कई दशक लग जाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये आवश्यकता इस बात की है कि भूमिगत जल को प्रदूषित होने से बचाया जाए। लेखक के अनुसार इसके लिये जरूरी है कि अपशिष्ट जल, कचरा एवं मल-जल को यत्र-तत्र न फेंका जाए बल्कि उसका उपचार करके उसे ठिकाने लगाया जाए।

इस समय कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो प्रदूषण की चपेट में न आ गया हो। वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण रेडियो धर्मिता प्रदूषण, एवं जल प्रदूषण विकराल रूप धारण करते जा रहे हैं। भारत की प्रायः सभी नदियों का जल प्रदूषित हो गया है। झील तालाब प्रदूषित हो गये हैं। यहाँ तक कि समुद्री जल भी प्रदूषण से अछूता नहीं रह गया है। अब तो भूमिगत जल भी प्रदूषण की चपेट में आकर हमारे लिये गम्भीर संकट पैदा कर रहा है क्योंकि सिंचाई और पेयजल के रूप में भूमिगत जल का विशेष महत्व है।

भूमिगत जल के प्रदूषण का मुख्य कारण उद्योगों से निःसृत कचरा एवं घरेलू मल-जल है। खेतों की सिंचाई के पश्चात निकला जल तथा भूमि का अपरदन भी भूमिगत जल को प्रदूषित करता है। एक अनुमान के अनुसार जितने जल का उपयोग किया जाता है उसका मात्र 80 प्रतिशत अंश कचरा युक्त होकर बाहर निकलता है। ऐसे जल को ही अपशिष्ट जल और मल-जल कहा जाता है। यह अपशिष्ट जल ही नदी-नालों, झील-तालाबों एवं समुद्र में मिलकर तथा भूमि के अन्दर प्रवेश कर शुद्ध भूमिगत जल को प्रदूषित कर देता है।

पेयजल हमें दो स्रोतों से प्राप्त होता है- नदियों से एवं भूमिगत जल से। अपने देश में 113 स्वतंत्र नदियाँ हैं। जिनकी सैकड़ों सहायक नदियाँ भी हैं। कुछ क्षेत्रों में नदियों से सीधे ही पेयजल की प्राप्ति की जाती है जबकि नदी-अभावग्रस्त क्षेत्रों में कुँआ खोदकर भूमिगत जल का उपयोग पेयजल के रूप में किया जाता है। हैण्डपम्प द्वारा भी भूमिगत जल की प्राप्ति पेयजल के रूप में की जाती है।

अभी तक यह माना जाता रहा है कि भूमिगत जल स्वच्छ एवं प्रदूषणमुक्त होता है। यही कारण है कि अभी तक भूमिगत जल को हैण्डपम्प एवं कुँओं के माध्यम से सीधे-सीधे प्राप्त कर पेयजल के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। भूमिगत जल इतनी गहराई पर मिलता है कि उतनी गहराई तक प्रदूषणकारी तत्व आसानी से नहीं पहुँच पाते हैं। मिट्टी की ऊपरी परत में अनेक तरह के बैक्टीरिया होते हैं जो प्रदूषणकारी तत्वों को विखण्डित कर देते हैं तथा अन्य प्रदूषणकारी तत्व मिट्टी से प्रतिक्रिया करके प्रभावहीन हो जाते हैं। किन्तु अब अनेक स्थायी रसायनों एवं भारी धातुओं के यौगिकों का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इन रसायनों एवं धातुओं पर बैक्टीरिया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और न ही ये मिट्टी से ही प्रतिक्रिया करते हैं। फलतः ये रसायन एवं भारी धातुएँ भूमि में जल के रिसाव के साथ भू-गर्भीय जल तक पहुँचकर भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर रहे हैं।

नगरों एवं उद्योगों का ठोस अपशिष्ट एवं कचरा जब भूमि पर फेंक दिया जाता है तो एक लम्बी अवधि के पश्चात भू-गर्भीय जल प्रदूषित हो जाता है क्योंकि इन अपशिष्टों में निहित विषैला तत्व धीरे-धीरे भूमि के अन्दर प्रवेश कर भूमिगत जल को दूषित कर देता है। हरितक्रांति के तहत अधिक तथा शीघ्र उत्पादन के उद्देश्य से रासायनिक खादों और कीटनाशक तथा खरपतवारनाशक दवाओं का अन्धाधुन्ध प्रयोग किया जा रहा है। इनमें निहित विषैला तत्व भी धीरे-धीरे भूमि में प्रवेश कर भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है और ऐसा भूमिगत जल न केवल मानव अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिये भी घातक सिद्ध हो रहा है।

असल में रासायनिक उर्वरक का 50 प्रतिशत अंश ही फसल को पोषण प्रदान करता है जबकि 25 प्रतिशत भाग मिट्टी में मिलकर नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। और शेष 25 प्रतिशत अंश भूमिगत जल में मिल जाता है। एक अध्ययन से पता चला है कि पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिगत जल के प्रदूषण में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार रासायनिक तत्वों के मिलने से भूमिगत जल का अमलीकरण हो जाता है। इस अमलीकरण के प्रभाव से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकता है। इस तरह के प्रदूषित जल में कैडमियम, अल्युमिनियम, जस्ते तथा सीसे की अधिकता होती है। जिसके प्रभाव से डायरिया जैसे रोग हो सकते हैं। जल में विद्यमान नाइट्रेट पेट के कैंसर जैसे खतरनाक रोग का कारण बनता है।

अपने देश में बहुत सी बिमारियाँ प्रदूषित पेयजल के कारण ही होती हैं, जिसकी अधिकांश पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है। एक अनुमान के अनुसार प्रदूषित भूमिगत जल से देश में प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख बच्चे काल-कवलित हो जाते हैं।

भारत में भूमिगत जलसम्पदा प्रतिवर्ष होने वाली कुल वर्षा से 10 गुना अधिक अनुमानित है। 300 मीटर की गहराई में लगभग 3 अरब 70 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल भंडार विद्यमान हैं। देश में कुल उपयोग किये जा सकने वाले भूगर्भीय जल में से मात्र 33 प्रतिशत का ही उपयोग किया जा रहा है किन्तु वर्तमान समय में तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगिकरण से भूमिगत जल के उपयोग में भी तीव्र गति से वृद्धि होती जा रही है और यदि यही स्थिति बनी रही तो भविष्य में भूमिगत जल पूर्णतः विषैला हो सकता है।

राजस्थान के जोधपुर, पाली तथा बालोतरा के लघु उद्योग क्षेत्र में लगभग 1500 कपड़ा छपाई केन्द्र प्रतिदिन 1.5 करोड़ लीटर गन्दा जल खुली नालियों, नदियों के पाटों एवं तालाबों में डालते हैं। चूँकि इस क्षेत्र की मिट्टी रेतीली है इसिलिये जल के साथ विषाक्त रासायनिक कण भी क्षणकर तालाबों जलाश्यों कुँओं आदि में मिलते रहते हैं। उल्लेखनीय है कि इस जल का उपयोग 10 लाख लोग करते हैं और बिमारी का शिकार होते हैं। इस दूषित जल प्रभाव पशुओं एवं फसलों पर भी पड़ रहा है। कुँओं का जल रंगीन हो गया है। तथा उस जल में अनेक खतरनाक रसायन सम्मिलित हो गये हैं। फास्फेट के अत्यधिक उपयोग से फसलों को नुकसान पहुँच रहा है।

इसी तरह तमिलनाडु में चर्मशोधक कारखाने तथा केरल में रेशा उद्योग भी भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है। केरल के नारियल रेशा उद्योग में रेशे को पानी में डुबोकर रखा जाता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बनिक अम्लों से भूमिगत जल जहरीला हो जाता है। चर्मशोधक उद्योग के कचरे से भारी मात्रा में क्रोमियम रिसता है जो भूमिगत जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा किये गये एक अध्ययन के तहत उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भूमिगत जल में रेडियोधर्मी तत्व पाये गये हैं। इसी तरह गाजीपुर, बलिया, जौनपुर तथा मिर्जापुर जनपदों के भूमिगत जल में नाइट्रोजन, पोटाशियम, फास्फेट, सीसा, जस्ता एवं मैंगनीज जैसी विषाक्त धातु पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुई हैं।

केन्द्र प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने प्रदूषण की दृष्टि से देश में 22 समस्याग्रस्त क्षेत्रों को चुना है। 1994 में इन सभी क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने पर यह निष्कर्ष निकला कि इन सभी स्थानों पर भूमिगत जल प्रदूषित हो गया है। दिल्ली में पर्याप्त मात्रा में भूमिगत जल विद्यमान है किन्तु यहाँ की बढ़ती आबादी तथा औद्योगीकरण के चलते यहाँ का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो गया है क्योंकि नगर का कचरा और उद्योगों से निस्सृत कचरा बिना उपचारित किये ही यत्र-तत्र फेंक दिया जाता है।

देश में पर्याप्त संख्या में ताप विद्युतघर हैं जिनसे प्रतिदिन हजारों लाखों टन राख उत्पन्न होती रहती है जिसका उपयोग नहीं किया जाता है और यह बरसों तक जमीन पर पड़ी रहती है। इस फ्लाई ऐश में लगभग सभी भारी धातुएँ विद्यमान रहती हैं जो धीरे-धीरे जमीन के अन्दर प्रवेश करती रहती हैं जिससे इनके आस-पास के क्षेत्र का भूमिगत जल विषाक्त होता जा रहा है। अकेले दिल्ली में ही तीन ताप विद्युत गृह हैं, जिनसे प्रतिदिन सैकड़ों टन फ्लाई ऐश निकलती है जो बरसों वहीं पर पड़ी-पड़ी भूमिगत जल को प्रदूषित करती रहती है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब भूमिगत जल एक बार प्रदूषित हो जाता है तो उसके साफ होने में कई दशक लग जाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये आवश्यकता इस बात की है कि भूमिगत जल को प्रदूषित होने से बचाया जाए और इसके लिये जरूरी है कि अपशिष्ट जल, कचरा तथा मल-जल को यत्र-तत्र न फेंका जाए बल्कि उसे उपचारित करके ठिकाने लगाया जाए। ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में भूमिगत जल पूर्णतया विषाक्त हो जायेगा और जमीन से विषाक्त पानी निकलने लगेगा। तब हमारा जीना दूभर हो जायेगा क्योंकि जल के बिना तो हम जीवन की कल्पना कर ही नहीं सकते।

(लेखक स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया (उत्तर प्रदेश) के भूगोल विभाग में कार्यरत हैं।)

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