भूकम्प का पूर्वानुमान और बचाव

19 Jul 2016
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भूकम्प की पूर्व सूचना के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि इस मामले में देसी-विदेशी वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। असल में वे कई विधियों से धरती के अन्दर चल रही हलचलों की टोह लेने की कोशिश करते हैं। सीस्मोलॉजिस्ट यानी भूकम्पवेत्ता धरती की भीतरी चट्टानों की चाल, अन्दरूनी फाल्ट लाइनों की बढ़वार और ज्वालामुखियों से निकल रही गैसों के दबाव पर नजर रखकर पूर्वानुमान लगाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार का मत है कि देश में ही नहीं, दुनिया में कहीं भी भूकम्प की भविष्यवाणी के लिये किसी तकनीक या प्रौद्योगिकी का विकास नहीं हुआ है।

पिछले वर्ष लोकसभा में अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि भूकम्प की भविष्यवाणी के लिये दुनिया भर में काम जरूर चल रहा है, पर कोई तकनीक अभी विकसित नहीं हो पाई है। पर इस घोषणा से उलट हाल में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के लैमॉन्ट डॉहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिकों ने अपने आकलन के आधार पर बांग्लादेश में भारी भूकम्प की चेतावनी दी है। उनके अनुसार बांग्लादेश की सतह के नीचे मौजूद टेक्टॉनिक प्लेटों में भारी हलचल हो रही है, जिससे बांग्लादेश के बाहर यानी भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में भी तेज भूकम्प आ सकता है।

यह एक ऐसी चेतावनी है जिसे नजरअन्दाज करना मुश्किल है। पर सवाल है कि जिन फॉर्मूलों और तौर-तरीकों के बल पर दुनिया के कुछ देशों के वैज्ञानिक भूकम्प की भविष्यवाणी को मुमकिन बनाने का दावा कर रहे हैं, क्या उनका कोई आधार है। यदि हाँ, तो क्या वैसा ही सिस्टम भारत में नहीं बनाया जा सकता ताकि सैकड़ों-हजारों जानों और आर्थिक सम्पत्ति के नुकसान से बचा जा सके।

कोलम्बियाई साइंटिस्टों का आकलन है कि बांग्लादेश की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में हुई हलचल से पूर्वोत्तर का 24 हजार वर्ग मील इलाका भूकम्प की सर्वाधिक आशंका वाले क्षेत्र में बदल गया है। जमीन के अन्दर बढ़ रहे दबाव से उस इलाके में 9 तक की तीव्रता वाला भूकम्प कभी भी आ सकता है। इसके असर से नदियाँ अपना रास्ता बदल सकती हैं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बांग्लादेश के अलावा भारत के सिक्किम, मेघालय, असम, मिजोरम आदि राज्यों के करीब 14 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं।

हालांकि इस चेतावनी के साथ कोई पुख्ता तारीख नहीं दी गई है, लेकिन पिछले साल अप्रैल में नेपाल में आये भूकम्प से जितना नुकसान हुआ था, उसे देखते हुए जरूरी हो गया है कि भूकम्प के पूर्वानुमान के बारे में एक सटीक सिस्टम अपने देश में भी बने और चेतावनियों को गम्भीरता से लेते हुए भूकम्प से होने वाली क्षतियों को न्यूनतम करने का प्रयास किया जाये।

भूकम्प की पूर्व सूचना के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि इस मामले में देसी-विदेशी वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। असल में वे कई विधियों से धरती के अन्दर चल रही हलचलों की टोह लेने की कोशिश करते हैं। सीस्मोलॉजिस्ट यानी भूकम्पवेत्ता धरती की भीतरी चट्टानों की चाल, अन्दरूनी फाल्ट लाइनों की बढ़वार और ज्वालामुखियों से निकल रही गैसों के दबाव पर नजर रखकर पूर्वानुमान लगाने का प्रयास कर रहे हैं।

जापान और कैलिफोर्निया में जमीन के अन्दर चट्टानों में ऐसे सेंसर लगाए गए हैं जो बड़ा भूकम्प आने से 30 सेकेंड पहले इसकी चेतावनी जारी कर देते हैं। दावा है कि मौसमी उपग्रहों से मिले चित्रों के आधार पर पिछले साल की शुरुआत में नेपाल के बड़े भूभाग से रेडॉन गैसों की बड़ी मात्रा निकलने की बात कही गई थी, पर इन सूचनाओं का विश्लेषण कर भूकम्प की चेतावनी जारी नहीं की जा सकी। इससे साबित होता है कि दैवीय आपदाओं का समय पर पता लगाकर उनकी सूचनाएँ लोगों तक पहुँचाने और उन्हें सतर्क करने वाले सिस्टम दोषपूर्ण हैं।

आमतौर पर भूकम्प का अन्दाजा लगाने के लिये अभी जो आकलन किये जाते हैं, उनमें तापमान में बढ़ोत्तरी, हवा में नमी की मात्रा, पानी की लहरों में बदलाव को देखकर होते हैं। हमारे पूर्वज भी जिस तरह जानवरों (चूहे, साँप, कुत्ते और बन्दरों) के व्यवहार को देखकर भूकम्प का अनुमान लगाते थे, हमारे देश में कुछ जगहों पर, जैसे कि जम्मू-कश्मीर और उड़ीसा में उसका इस्तेमाल किया गया है। पर जापान समेत कई देशों ने भूकम्प को पहले से भाँपकर नुकसान को कम करने की कला सीखी है जो हमारे लिये एक सबक हो सकती है।

जैसे एक उदाहरण पाँच साल पहले 11 मार्च 2011 का है। उस दिन जापान में जबरदस्त भूकम्प आया था। भूकम्प से टोक्यो का रेल नेटवर्क थोड़ा-मोड़ा जरूर डैमेज हुआ, हफ्ते भर में रेल नेटवर्क पूरी तरह पटरी पर आ गया। भूकम्प के वक्त प्रभावित इलाके के पास से 5 शिंकानसेन ट्रेनें (बुलेट ट्रेन) 270 किमी प्रति घंटे स्पीड से भाग रही थीं, लेकिन एक भी ट्रेन पटरी से नहीं उतरी। ऐसा इसलिये मुमकिन हुआ भूकम्प को भाँप लेने वाली टेक्नोलॉजी की बदौलत। धरती हिलने का अन्देशा होते ही ट्रेनें जहाँ-तहाँ रोक दी गईं। इसके अलावा जापान में भूकम्प के वक्त परमाणु संयंत्रों का संचालन भी स्वचालित तरीके से रुक जाता है।

भूकम्पभूकम्प के पूर्वानुमान के सम्बन्ध में जापान की तैयारियाँ ऐसी हैं कि वहाँ कुछ सेकेंड पहले इसके बारे में जानकारी मिल जाती है लेकिन इसकी सार्वजनिक मुनादी नहीं की जाती, ताकि इससे कोई भय न फैले। भूकम्प के केन्द्र में तो नहीं, लेकिन उसके दायरे में आने वाले इलाकों में कुछ सेकेंड पहले वैज्ञानिक तौर पर अलर्ट कर दिया जाता है कि वहाँ भूकम्प आने वाला है। इससे जानमाल के नुकसान को कम किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि किसी इलाके में जब कोई भूकम्प आता है तो दो तरह की तरंगों (वेव्स) धरती से निकलती हैं। एक प्रकार की तरंगों को प्राइमरी और दूसरे प्रकार की तरंगों को सेकेंडरी या सीयर्स वेव्स कहा जाता है प्राइमरी वेव औसतन 6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलती है जबकि सेकेंडरी वेव औसतन 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से। इस अन्तर के चलते प्रत्येक 100 किलोमीटर में 8 सेकेंड का अन्तर हो जाता है।

यही कारण है कि भूकम्प के किसी केन्द्र से 100 किलोमीटर दूरी पर 8 सेकेंड पहले पता चल सकता है कि भूकम्प आने वाला है। भूकम्प का पहले से पता लगाने की एक नई तकनीक जर्मनी में भी विकसित की गई है। जर्मनी की एक कम्पनी सेक्टी इलेक्ट्रॉनिक्स जीएमबीएच ने जर्मन जीईओ रिसर्च सेंटर पोस्टडैम की मदद से सेक्टी लाइफ पैटर्न नामक एक ऐसा अर्ली अर्थक्वेक एंड वॉर्निंग सिस्टम बनाया है कि जो भूकम्प के केन्द्र के 40 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को 8 से 12 सेकेंड पहले पूरी कामयाबी से इसकी चेतावनी जारी कर देता है।

इसका अर्थ यह है कि अगर कोई इमारत भूकम्प के केन्द्र के एकदम नजदीक नहीं है, तो उसमें रहने वाले लोगों को भागकर अपनी जान बचाने का पर्याप्त समय मिल जाएगा। कुछ देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है, जैसे स्विट्जरलैंड में गैस वितरण कम्पनी बेसेल ने इस सिस्टम को अपना कर भूकम्प की स्थिति में पूरे शहर की गैस सप्लाई को तुरन्त रोकने का इन्तजाम कर दिया है।

बेशक, भूकम्प की कई दिन या महीने भर पहले ऐसी सटीक भविष्यवाणी सम्भव नहीं हो पा रही है कि तारीख और वक्त पूरी तरह सही ढंग से बताया जा सके, लेकिन आठ-दस सेकेंड पहले भूकम्प की मिलने वाली जानकारी भी जानमाल की क्षति कम कर सकती है, बल्कि ऐसी चेतावनी को सुनने और उस पर तुरन्त एक्शन लेने वाला तंत्र चौबीसों घंटे सक्रिय हो। यह समझने की जरूरत है कि भूकम्प से चन्द सेकेंड पहले क्या किया जाये और आपदा के असर को न्यूनतम कैसे किया जाये। ऐसे उपायों से इस प्राकृतिक के प्रभाव को सीमित किया जा सकता है और भूकम्प को इंसानी पराक्रम के आगे थोड़ा बौना किया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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