देश बनाने में किसान को भी साथ लिये चलें


नीति आयोग ने कहा है कि कृषि में निवेश गरीबी दूर करने का विकल्प हो सकता है। इस क्षेत्र में जितना निवेश बढ़ाएंगे उसके गुणात्मक अनुपात में गरीबी कम होगी। इस फार्मूले को दुनिया भर में माना जाता है कि कृषि क्षेत्र में निवेश गरीबी मिटाने का कारगर हथियार है।पिछले 13 साल में गरीबी मिटाने के उपाय तो किए गए लेकिन कृषि क्षेत्र पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया।

सरकार ने इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत निर्माण का जो संकल्प लिया है वह एक सराहनीय कदम है। इस अभियान की सफलता के लिये कृषि पर फोकस करने की जरूरत है। किसानों में खुशहाली लाये बिना देश से गरीबी और कुपोषण जैसा अभिशाप मिटाने का अभियान सफल नहीं हो सकता। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये सरकार को कृषि पर विशेष ध्यान देना होगा। हाल ही में सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग ने कहा है कि कृषि में निवेश गरीबी दूर करने का विकल्प साबित हो सकता है। इस क्षेत्र में जितना निवेश बढ़ाएँगे उसके गुणात्मक अनुपात में देश में गरीबी कम होगी। इस फार्मूले को दुनिया भर में माना जाता है कि कृषि क्षेत्र में निवेश गरीबी मिटाने का सबसे कारगर हथियार है।

पिछले 13 साल में गरीबी मिटाने के उपाय तो किए गए लेकिन कृषि क्षेत्र पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। इसी का नतीजा है कि फिलहाल हमारे यहाँ किसानों की आय न्यूनतम स्तर पर है। कृषि की अनदेखी के कारण ही मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में किसान आंदोलन के लिये सड़कों पर उतर रहे हैं। जोतें छोटी होने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस वजह से लोग खेती छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2004-05 से अब तक 13 साल के दौरान देश में महज 1.6 करोड़ रोजगारों का सृजन हुआ है जबकि इस दौरान 16 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा होने चाहिए थे। घाटे का सौदा साबित होने के बावजूद देश की 52 फीसद आबादी अब भी खेती-बाड़ी पर निर्भर है। करीब 60 करोड़ इस आबादी की आय में इजाफा हो जाए तो खेती की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं। वर्ष 2016-17 में किसान परिवार की औसत आय 20,000 आंकी गई है जो प्रतिमाह 1700 रुपए से भी कम है। इतनी कम रकम से परिवार का भरण-पोषण तो दूर एक गाय भी नहीं पाली जा सकती है। किसान किस स्थिति से गुजर रहा है, इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

बदलनी होंगी नीतियाँ


मोदी सरकार का ‘‘सबका साथ-सबका विकास” के नारे पर अमल किया जाए तो इसके दायरे में किसान भी आएगा। अगर इस अभियान में गरीबी मिटाने का संकल्प भी शामिल हो जाता है तो यह राष्ट्रहित में एक अच्छी पहल साबित होगी। यदि देश का किसान समृद्ध हो जाता है तो इससे निश्चित रूप से गरीबी मिट जाएगी। इससे अर्थव्यवस्था का जिस गति से विकास होगा फिलहाल इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल कर पाना आसान काम नहीं है। किसानों में खुशहाली लाने के लिये सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में बड़े पैमाने पर बदलाव करना होगा। अभी सरकार कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों में निवेश घटा रही है। विभिन्न क्षेत्रों में निजीकरण पर जोर दिया जा रहा है। ठेका और कारपोरेट खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार खेती में 57 फीसद लोग कार्यरत हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद ने वर्ष 2022 तक इस आंकड़े को 38 फीसद पर लाने का लक्ष्य रखा है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार चाहती है ग्रामीण क्षेत्र के लोग शहरों की ओर रुख करें।

ऐसे नहीं होगा समाधान


हकीकत यह है कि शहरों में रोजगार का पहले से भारी संकट चल रहा है। देश में बेरोजगारों की फौज लगातार बढ़ती जा रही है। यदि मान भी लिया जाए कि कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को शहरों में सड़क या पुल निर्माण के कार्य में लगा भी दिया जाए तो उन्हें दिहाड़ी पर ही रखा जाएगा। दिहाड़ी मजदूरी को नौकरी में शुमार नहीं किया जा सकता। सड़क का कार्य पूरा होने पर तो वह मज़दूर फिर बेरोजगार हो जाएगा। बहरहाल, खेती को फायदे का सौदा बनाकर एक साथ कई समस्याएँ दूर की जा सकती हैं लेकिन मौजूदा स्थिति में देखें तो सरकार ने जो संकल्प लिया है वह पूरा नहीं हो पाएगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए ‘‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स” में भारत 118 देशों की सूची में 97वें पायदान पर है। इस स्थिति में देश से गरीबी मिटाना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। ऐसा नहीं है कि यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। यदि ईमानदारी के साथ प्रयास किए जाएँ तो निश्चित रूप से सफलता मिल सकती है।

टैक्स में छूट हटाए


सरकार मार्च 2018 तक एलपीजी पर सब्सिडी खत्म करने जा रही है। इससे सालाना 48,000 करोड़ रुपए की बचत होगी। इस बारे में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस रकम से एक साल के लिये देश की गरीबी दूर की जा सकती है। मेरा मानना है कि उद्योगों को टैक्स में दी जा रही छूट खत्म कर देनी चाहिए। पिछले 13 साल में सरकार ने कारपोरेट सेक्टर को 55 लाख करोड़ रुपए की टैक्स में छूट दी है। यदि इस रकम की वसूली होती तो अर्थशास्त्रियों के हिसाब से 110 साल तक देश की गरीबी को दूर किया जा सकता था। मेरा तो यह मानना है कि इससे भारत में गरीबी इतिहास बन जाती। सरकार के खजाने में इतना पैसा आ जाता कि विकास के लिये उसे विदेशी वित्तीय एजेंसियों के सामने कर्ज के लिये हाथ नहीं फैलाना पड़ता।

आय बढ़ाने के उपाय


यदि सरकार निवेश बढ़ाती है तो किसानों की आय में इजाफा हो सकता है। फिलहाल देश में 7700 कृषि विपणन मंडी समितियां हैं जबकि 42,000 नई मंडिया स्थापित करने की और जरूरत है। मंडियों के अभाव में किसान अपनी फसलों को वाजिब दाम पर नहीं बेच पाता। मजबूरी में उसे यह औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ती है। यदि देश में मंडी विपणन समितियों, कोल्ड स्टोरेज और सिंचाई पर निवेश बढ़ाया जाए तो किसानों की आय बढ़ जाएगी। कुल मिलाकर सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे प्रत्येक किसान परिवार को कम से कम हर माह 18,000 रपए की आय सुनिश्चित हो जाए। यह राशि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के बराबर है। इसके बिना किसानों की समस्याएं कभी दूर नहीं हो सकतीं।

देविन्दर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ

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