दलहन वर्ष में थाली से गायब दाल


दक्षिण भारत में दलहन की खेती कम पानी में और बंजर-असिंचित भूमि में की जा रही है। यदि दक्षिण भारत के किसानों को विशेषज्ञों का मार्गदर्शन और थोड़ी सी सरकारी सहायता मिले तो वहाँ दाल का उत्पादन बढ़ सकता है। पूर्वाेत्तर राज्यों के लिये केन्द्र सरकार ने दलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिये विशेष बजट का प्रावधान किया है। बजट के साथ-साथ विशेषज्ञों की टीम की देख-रेख में दलहन की खेती को पूर्वाेत्तर भारत में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह कैसा संयोग है कि वर्ष 2016 को संयुक्त राष्ट्र संघ अन्तरराष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित करता है और दलहन की कीमत इसी साल जमीन से उठकर आसमान को छूने लगता है। वर्ष 1971 में देश में औसतन प्रति व्यक्ति को 51.1 ग्राम दाल प्रतिदिन मिल जाता था। वर्ष 2013 में जब स्थिति में सुधार होना चाहिए था, उसकी जगह औसतन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिलने वाली दाल की मात्रा घटकर 41.9 ग्राम रह गई।

यह बात चिन्ताजनक इसलिये भी है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दाल की मात्रा कम-से-कम 80 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन होनी चाहिए थी। जैसाकि हम जानते हैं कि हमारे भोजन में दाल प्रोटीन का एक मुख्य स्रोत है। इसमें गेहूँ से दो गुना और चावल से तीन गुना अधिक प्रोटीन होता है।

भारत में चावल वैसे भी स्वास्थ्य मंत्रालय की चिन्ता के उस दौर से गुजर रहा है, जो डायबिटीज तक ले जाती है। वर्ष 2016 में डायबिटीज के रोग में भारत ने सीधे-सीधे चीन को टक्कर दे दी है।

सम्भव है कि आने वाले समय में भारत डायबिटीज में चीन को पीछे ना छोड़ दें। इसकी बड़ी वजह हमारे खाने में बढ़ रहा कार्बाेहाइड्रेड और कम हो रहा प्रोटीन है। वैसे इस चिन्ता को गम्भीरता से लेते हुए सरकार ने जंक फूड पर टैक्स बढ़ाने का इरादा कर लिया है। जंक फूड की देश में बढ़ रही डायबिटीज की एक बड़ी वजह के तौर पर पहचान हुई है।

भारत सरकार ने दलहन उत्पादन में वृद्धि के लिये वर्ष 2016 को दलहन उत्पादन वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय किया है। केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य विषय पर आयोजित एक परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए दिल्ली में कहा कि दलहन उत्पादन वर्ष के दौरान किसानों को ना सिर्फ उच्च पैदावार वाली दालों के बीज उपलब्ध कराए जाएँगे बल्कि इससे मिट्टी में उर्वरा शक्ति में वृद्धि की भी जानकारी दी जाएगी।

श्री सिंह के अनुसार- भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक देश है और यह दुनिया में दाल की सबसे अधिक खपत वाला भी देश है। खपत अधिक होने की वजह से यहाँ दाल आयात करना पड़ता है।

केन्द्र सरकार दलहन और तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिये 27 राज्यों के 622 जिलों में अपनी सहायता योजना के अन्तर्गत सहायता देगी।

पिछले वर्ष भारत में 31 लाख 80 हजार टन दाल आयात किया गया था। जबकि इस वर्ष 45 लाख 90 हजार टन दाल का आयात हुआ। यह आश्चर्य करने की बात है कि उसके बावजूद दाल की कीमत आसमान पर है। पिछले वर्ष 22 लाख हेक्टेयर में दाल की फसल लगाई गई थी। इस वर्ष 24 लाख हेक्टेयर में दाल की फसल लगाई गई है। इस वर्ष जमाखोरों के पास से सरकारी दबीश में एक लाख तीस हजार टन दाल बरामद हुई। यह सरकारी आँकड़ों से मिले आँकड़े हैं।

एक तरफ दाल की कीमत बढ़ती जा रही है, जबकि एक अनुमान के अनुसार दाल की बढ़ती कीमतों के बावजूद किसानों की रुचि दिन-प्रतिदिन दाल की खेती में कम होती जा रही है। सिर्फ उत्तर भारत की बात करें तो यहाँ दाल की खेती का रकबा लगभग 25 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। बताया जा रहा है कि इसकी बड़ी वजह जोखिम है।

आमतौर पर किसान कर्ज लेकर खेती करते हैं और खेत की फसल से उनके सारे सपने जुड़े होते हैं। इसलिये वह ऐसी किसी भी खेती से परहेज करता है, जिसमें अधिक जोखिम उठाना पड़े। इसका परिणाम है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, जम्मू कश्मीर में दाल की खेती में कमी दर्ज की गई है।

देश में मुख्य दलहन की फसल चना और अरहर है। यह दोनों मिलकर देश की पचास फीसदी से अधिक जरूरत पूरी कर देते हैं। इसके बाद मूँग और उड़द की दाल का नम्बर आता है। आज जब दाल आम आदमी की पहुँच से दूर हो गया है, छत्तीसगढ़ की सरकार ने आम आदमी तक दाल को पहुँचान के लिये एक सफल प्रयास किया है। जिसकी चर्चा की जानी चाहिए।

छत्तीसगढ़ की सरकार प्रत्येक आदिवासी परिवार को आवश्यक प्रोटीन की पूर्ति के लिये पाँच रुपए किलो के हिसाब से दस रुपए में दो किलो चना प्रत्येक महीने उपलब्ध करा रही है। इस योजना के अन्तर्गत लगभग 48 हजार क्विंटल चने का वितरण प्रत्येक महीना हो रहा है। इसी प्रकार गैर आदिवासियों को दो किलो दाल बीस रुपए में उपलब्ध कराई जा रही है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को इस प्रकार सरकार ने पोषण कार्यक्रम से जोड़कर पूरे देश के लिये एक मिसाल कायम किया है।

बीते तीन-चार दशकों में जहाँ देश में आबादी बढ़ने से दाल की माँग बढ़ी है, दूसरी तरफ घरेलू पैदावार में हम उसके मुकाबले दलहन का उत्पादन बढ़ाने में असफल रहे हैं। दक्षिण भारत में दलहन की बढ़ी खेती हमें थोड़ा आशान्वित जरूर करता है लेकिन उत्तरी भारत में लगातार दलहन की खेती की बढ़ती उपेक्षा निराश भी करती है।

गौरतलब है कि दक्षिण भारत में दलहन की खेती कम पानी में और बंजर-असिंचित भूमि में की जा रही है। यदि दक्षिण भारत के किसानों को विशेषज्ञों का मार्गदर्शन और थोड़ी सी सरकारी सहायता मिले तो वहाँ दाल का उत्पादन बढ़ सकता है। पूर्वाेत्तर राज्यों के लिये केन्द्र सरकार ने दलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिये विशेष बजट का प्रावधान किया है।

बजट के साथ-साथ विशेषज्ञों की टीम की देख-रेख में दलहन की खेती को पूर्वाेत्तर भारत में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। देश के 27 राज्यों के 623 जिलों के 474 कृषि विकास केन्द्रों को दलहन की खेती अभियान के क्रियान्वयन से जोड़ने के साथ-साथ उनके लिये लक्ष्य भी निर्धारित किया जाना चाहिए।

पूरी दुनिया के देश अपने यहाँ दाल के इस अन्तरराष्ट्रीय वर्ष में दाल उत्पादन को बढ़ाने की अलग-अलग योजनाएँ बना रहे हैं। उम्मीद है अगले साल भारत में बनी योजनाओं का परिणाम देख पूरा देश खुश होगा और अगले वर्ष दाल इतनी महंगी नहीं होगी कि आम आदमी की थाली से दाल की कटोरी फिर गायब हो जाये।

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