दम तोड़ते तालाब और कुएं ही आस

20 Apr 2011
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बुंदेलखंड के आधे हिस्से की एक तिहाई आबादी का पलायन


खजुराहो का 1200 साल पुराना कुंआ आज भी दे रहा पानी।खजुराहो का 1200 साल पुराना कुंआ आज भी दे रहा पानी।झांसी/टीकमगढ़, 19 अप्रैल। पानी के संकट के कारण आधे बुंदेलखंड की एक तिहाई से ज्यादा आबादी का पलायन हो चुका है अब यह और तेज होता जा रहा है। बुंदेलखंड के कुछ जिलों के गांवों में पहुँचने पर हर तीसरा-चौथा घर बंद मिला। बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में फैला हुआ है जिनमे हमीरपुर, जालौन, महोबा, झांसी, ललितपुर, बांदा, चित्रकूट, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दतिया और दमोह जैसे जिले शामिल हैं। इनमें से आधा दर्जन जिलों से एक तिहाई आबादी का पलायन हो चुका है। करीब चार महीने पहले बांदा में स्वास्थ्य विभाग ने पल्स पोलियो कार्यक्रम के बाद अपनी रपट में बताया कि जिले में 55,000 घरों पर ताले मिले। बांदा के विधायक और कांग्रेस के मीडिया प्रभारी विवेक सिंह ने कहा-सरकार के आंकड़ों को लें तो दो लाख से ज्यादा लोगों का पलायन सिर्फ बांदा जिले में हुआ है। कुछ जिलों में स्थिति और गंभीर है। सरकार को समूचे बुंदेलखंड में आपात स्थिति घोषित कर पानी और पलायन के संकट को दूर करना चहिए। पानी का संकट समूचे बुंदेलखंड में गहराया हुआ है पर आज भी आधे हिस्से में दम तोड़ते ताल, तालाब और कुएं लोगों को कुछ जीवन दे रहे हैं। यह महत्वपूर्ण पहलू है।

बुंदेलखंड सदियों से पानी के संकट से जूझता रहा है पर विकास के नाम पर जिस तरह पिछले कुछ साल से पर्यावरण से खिलवाड़ करते हुए जंगल और पहाड़ काटे जा रहे हैं उससे समूचे बुंदेलखंड में पानी का संकट गंभीर होने वाला है। तीस फीसद से ज्यादा भूमिगत जल समाप्त हो चूका है और पानी के संकट से जूझती एक तिहाई आबादी पलायन कर चुकी है। पर यह संकट उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड के आधा दर्जन जिलों में कहीं ज्यादा है जबकि मध्य प्रदेश के हिस्से में आज भी बदहाल होते ताल, तालाब और कुँए लोगों को पानी दे रहे हैं। इसकी वजह उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन जिलों में जंगल पहाड़ काटने के बाद तालाबों और कुओं को पाट देना है। महोबा से झांसी के रास्ते में मध्य प्रदेश के दो तीन जिले आते हैं। वैसे भी यह इलाका इस तरह दोनों राज्यों के बीच गुंथा हुआ है कि एक ही रास्ता कई बार उत्तर प्रदेश और कई बार मध्य प्रदेश से गुजरता है। इनकी साझी संस्कृति है तो साझी विरासत भी। पर राजनीतिक संस्कृति ने इन्हें बांट दिया है। जिससे बुंदेलखंड के एक हिस्से में ताल तालाब हैं और दूसरे में वे बेदर्दी से खत्म किए जा रहे हैं। बांदा, हमीरपुर, जालौन से लेकर महोबा तक में ताल-तालाब का पानी सूख चुका है। उस पर अतिक्रमण कर लोग घर बनवाते जा रहे हैं जबकि छतरपुर से लेकर टीकमगढ़ तक पानी भरे ताल-तालाब और कुएं नजर आ जाएंगे। हमीरपुर से महोबा की तरफ चलें तो रास्ते के दोनों ओर कांटे वाले बबूल मिलेंगे। हवा में क्रशर की धूल से साँस घुटने लगेगी। जबकि महोबा से झाँसी के लिए आगे बढ़ते ही मध्य प्रदेश की सीमा से कुछ पहले ही नजारा बदल जाता है। उत्तर प्रदेश की सीमा में जहाँ कांटे वाला बबूल था तो सीमा पार करते ही सड़क पर महुए के फूल बिखरे नजर आए और ताजा हवा भी। प्राकृतिक संसाधनों का जिस बेदर्दी से दोहन उत्तर प्रदेश में हो रहा है वह खतरनाक संकेत है। जंगल खत्म हो चुके हैं और सड़क के किनारे तक के छायादार वृक्ष काट डाले गए हैं। क्रशर उद्योग से पहाड़ खत्म हो रहे हैं। भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे जा चुका है। बुंदेलखंड के इस अंचल में सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं। महोबा में तो टीबी का अलग अस्पताल खोल दिया गया है।

किशनगढ़ का पानी भरा तालाब।किशनगढ़ का पानी भरा तालाब।पानी के संकट के चलते पलायन बढ़ता जा रहा है। गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक समूचे महोबा में पांच लाख लोग पलायन कर चुके हैं। जबकि चित्रकूट में तीन लाख से ज्यादा, ललितपुर में चार लाख, झांसी में साढ़े तीन लाख और हमीरपुर व जालौन से नौ लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं। दूसरी तरफ छतरपुर और टीकमगढ़ से दस लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं। दतिया, दमोह, पन्ना और सागर में पलायन अन्य जिलों के मुकाबले कम है। महोबा से झांसी के रास्ते में छतरपुर और टीकमगढ़ पड़ता है जहाँ पानी का संकट तो है पर इस तरफ जैसा गंभीर नहीं है। रास्ते में करीब दो दर्जन से ज्यादा तालाब दिखे जिनमें पानी नजर आया। ज्यादातर ताल ताल और तालाब चंदेलों के बनाये हैं। इसी तरह हजार साल पुराने प्राचीन कुएं आज भी लोगों को पानी दे रहे हैं। टीकमगढ़ और छतरपुर में चंदेलों ने बारह सौ से ज्यादा तालाब बनवाए जिसमे बदहाली के बावजूद बहुत से तालाब में आज भी पानी है। किशनगढ़ में चंदेलों के तालाब से ही जीवन चलता है। यह तालाब आज तक नहीं सुखा। छत्तरपुर में प्रताप सागर जैसे ताल में पानी नजर आएगा तो खजुराहों में हजार साल पुराने कुएं से पंपिंग सेट के जरिए लान पर पानी डालते देख कोई भी हैरान हो सकता है। दरअसल बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश वाले हिस्से में आज भी जंगल बचे हुए हैं तो पहाड़ भी सुरक्षित है जिससे भू-जल स्तर और नदियों में पानी भी उत्तर प्रदेश के मुकाबले ज्यादा रहता है। पानी और पेड़ की वजह से दूर गांवों में रहने वाला आदिवासी अपना जीवन बसर कर लेता है। किशनगढ़ के आगे आदिवासियों का एक गाँव है बिहरवारा। इस गांव में पानी का कोई श्रोत नहीं है। गांव की महिलाएं, बच्चे और बूढ़े जवान सभी करीब दो किलोमीटर दूर एक पहाड़ी के नीचे जाकर पानी लेते हैं। नहाना और अन्य काम भी यहीं होता है तो गाय और बकरी भी साथ जाकर पानी पीती हैं। बावजूद इसके बरसात के दौरान ज्वार बाजरा जैसी फसल, नरेगा की मजदूरी और महुआ इन्हें पलायन करने से रोके हुए है। गांव के गौरीशंकर ने कहा - नरेगा की मजदूरी से हमें करीब छह हजार रुपया मिल जाता है। बरसात में एक फसल ले लेते हैं तो इस समय महुआ से करीब छह हजार की आमदनी हो जाएगी। इससे काम तो चल जाता है पर पानी का संकट है। किशनगढ़ में कभी पानी का संकट नहीं होता क्योंकि वहां का ताल भरा रहता है।

इस इलाके में महुआ का फूल पंद्रह से लेकर एक महीने तक टपकेगा जो सुखाने के बाद बारह रुपए किलो बिक जाता है। एक दिन में तीस से चालीस किलों महुआ का फूल एक परिवार इकठा कर लेता है जो सूखने के बाद आधा वजन का रह जाता है। यानी दो सौ से लेकर तीन सौ रुपए रोज का मिल जाएगा। यह सिर्फ इसलिए क्योंकि यहाँ जंगल बचा है और ताल तालाब में पानी है। इसलिए इस तरफ महुए का फूल दिखता है तो बुंदेलखंड के उस तरफ बबूल का कांटा।

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