धरती पर पानी बचाने की चुनौती

dharti par pani bachane ki chunauti
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हमारे मुल्क में शुद्ध पेयजल एक गंभीर और ज्वलंत समस्या है। कितनी विडंबना है कि गंगा और गोदावरी का देश भारत भी प्यासा है। भारत का कोई ऐसा अंचल नहीं है जहां शुद्ध पेयजल की समस्या न हो। यह समस्या सरकार के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव के लिए बड़ी चुनौती है। पानी के कुप्रबंधन की समस्या से अगर भारत जल्द न निपटा तो भविष्य में स्थितियां और भयावह होती जाएगी। पानी के प्रबंधन में भारत की जनसंख्या और गरीबी बड़ी चुनौतियां हैं। पानी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के बीच विवाद इस समस्या को और गहरा सकता है। सरकार को निश्चित ही इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे। प्रदूषित पेयजल से जनता को बचाने के लिए कारगर प्रयास करने की जरूरत है।बढ़ती आबादी, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उपलब्ध संसाधनों के प्रति लापरवाही ने मनुष्य के सामने पानी का संकट खड़ा कर दिया है। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि जीवन जल में ही पैदा हुआ, फला-फूला। इसीलिए कहा गया है कि जल ही जीवन है। जल के अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। हमारे मुल्क में शुद्ध पेयजल एक गंभीर और ज्वलंत समस्या है। कितनी विडंबना है कि गंगा और गोदावरी का देश भारत भी प्यासा है। भारत का कोई ऐसा अंचल नहीं है, जहां शुद्ध पेयजल की समस्या न हो। यह समस्या सरकार के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव के लिए बड़ी चुनौती है। विकास के साथ-साथ जल की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। ग्रामीण अंचल में पेयजल का अभाव अरसे से रहा है। औद्योगिकीकरण एवं बढ़ती जनसंख्या के कारण शहरों में भी शुद्ध पेयजल की किल्लत बढ़ती जा रही है।

ग्रामीण अंचल के लोग पेयजल के लिए अधिक परिश्रम करते हैं। काफी श्रम के बाद उन्हें दो बूंद पानी प्यास बुझाने के लिए मिलता है। गर्मी के दिनों में यह स्थिति और भी विकट हो जाती है। कई किलोमीटर दूर चलकर लोग आवश्यकतानुसार पानी जुटाते हैं। उन्हें जो जल मिलता है वह अधिकांशतः प्रदूषित ही होता है। प्रदूषित जल शहरी लोगों के लिए एक बड़ी समस्या है। लोगों को पेयजल के लिए केवल श्रम ही नहीं करना पड़ता बल्कि पैसा भी खर्च करना पड़ता है।

विश्व की नदियों में प्रति वर्ष बहने वाले 41,000 घन किमी जल में से केवल 14,000 घन किमी का ही उपयोग किया जा सकता है। 14,000 घन किमी जल ऐसे स्थानों से गुजरता है जहां आबादी नहीं है और यदि है भी तो उपयोग करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार केवल 9,000 घन किमी जल का उपयोग पूरे विश्व की आबादी करती है। स्थानीय जल की उपलब्धता जनसंख्या से बहुत प्रभावित होती है। कनाडा में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1,22,000 घन मीटर है। जबकि माल्टा में मात्र 70 घन मीटर है। सहारा रेगिस्तान के आसपास स्थित देश और मध्य-पूर्व एशिया के देशों में जल का जबर्दस्त अभाव है। रूस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के कई क्षेत्रों में भी पानी की कमी है। जहां बेल्जियम में प्रति वर्ष 12.5 घन किमी जल का उपयोग होता है वहां ओमान में उपयोग के लिए मात्र 0.66 घन किमी जल उपलब्ध है। बेल्जियम में यह मात्र 1270 घन मीटर प्रति वर्ष है और ओमान में 540 घन मीटर प्रति वर्ष है।

विशेषज्ञों के अनुसार यदि 2000 या इससे अधिक व्यक्तियों के बीच प्रति वर्ष दस लाख घन मीटर की खपत हो तो जल की कमी हो जाती है। इतने ही जल के लिए इंग्लैंड, इटली, फ्रांस, भारत और चीन में औसतन 350 व्यक्ति है, जबकि टयूनेशिया में 2000 व्यक्ति और इस्राईल तथा सऊदी अरब में 4000 व्यक्ति है।विशेषज्ञों के अनुसार यदि 2000 या इससे अधिक व्यक्तियों के बीच प्रति वर्ष दस लाख घन मीटर की खपत हो तो जल की कमी हो जाती है। इतने ही जल के लिए इंग्लैंड, इटली, फ्रांस, भारत और चीन में औसतन 350 व्यक्ति है, जबकि टयूनेशिया में 2000 व्यक्ति और इस्राईल तथा सऊदी अरब में 4000 व्यक्ति है। नेपाल, स्वीडन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश में प्रति वर्ष दस लाख मीटर जल सौ से भी थोड़े ज्यादा और जापान में 2000 व्यक्ति इतने जल का उपयोग कर पाते हैं। उत्तरी अमेरिका में जल की वास्तविक खपत 2230 घन मीटर प्रति वर्ष, पश्चिम यूरोप के देशों में 656 घन मीटर तथा जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 945 घन मीटर प्रति व्यक्ति है। वर्ष 1950 में विश्व में प्रति व्यक्ति जल की औसत खपत मात्र 1000 घन मीटर प्रति वर्ष थी, जो 1980 में बढ़कर 3600 घन मीटर हो गई।

विकासशील देशों में जल की उपलब्धता में बहुत असमानता है। अफ्रीका के लोसेथो क्षेत्र में केवल 13 प्रतिशत व्यक्तियों को पीने का साफ पानी मिलता है जबकि लीबिया में 96 प्रतिशत जनसंख्या को यह सुविधा मिली हुई है। भारत में 70 फीसदी से अधिक आबादी को पीने का पानी जबकि पराग्वे में केवल 25 फीसदी को पानी मिल पाता है। विश्व में लगभग 1.6 अरब व्यक्तियों को जो पूरी आबादी का 24 प्रतिशत है, पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता है। इस प्रकार गंदे पानी के इस्तेमाल से होने वाले रोगों जैसे हैजा, टाइफाइड, दस्त, पेचिश, मलेरिया और आंतों के रोगों से करीब 50 लाख व्यक्ति हर साल मौत का शिकार होते हैं।

विश्व में जल संसाधन


भारत में विश्व के धरातलीय क्षेत्र का लगभग 2.45 प्रतिशत, जल संसाधनों का 4 प्रतिशत, जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत भाग पाया जाता है। देश में एक वर्ष में प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4000 घन किमी है। धरातलीय जल और पुनः पूर्ति योग्य भूमि-जल 1869 घन किमी उपलब्ध है। इसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1122 घन किमी है।

एक जानकारी के मुताबिक धरती पर 29,40,00,000 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, पृथ्वी पर अधिकतर पानी तरल अवस्था में उपलब्ध होता है, क्योंकि हमारी धरती (सौर व्यवस्था) सोलर सिस्टम की सीध में स्थित है, अतः यहां तापमान न तो इतना होता है कि पानी उबलने लगे न ही इतना कम कि वह बर्फ में बदल जाए। जब पानी जमता है तब विस्तारित होता है जबकि ठोस बर्फ पानी पर तैरती है।

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जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परंतु अलवणीय जल कुल जल का करीब 3 प्रतिशत ही है। वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लायक है। अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है। इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई-झगड़े संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बनते रहते हैं।

हमारे देश में योजना पूर्व यानी वर्ष 1951 के दौरान प्रति व्यक्ति वार्षिक उपलब्ध जल संसाधन लगभग 5200 घन मीटर था। वर्ष 1990 के बाद यह बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण आदि के कारण घटकर मात्र 2200 घन मीटर रह गया जो एक गंभीर स्थिति की ओर संकेत करता है। ग्रामीण एवं शहरी भारत दोनों में ताजे शुद्ध पेयजल का स्रोत भूमिगत जल ही है। यह कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

पेयजल की सबसे अधिक समस्या गांवों में है। भारत गांवों का देश है और यहां की लगभग 80 प्रतिशत आबादी गांवों में ही रहती है जिनके जीविकोपार्जन का साधन कृषि है। ग्रामीण जनता को केवल पानी के लिए ही जल नहीं चाहिए बल्कि सिंचाई के लिए भी जल की जरूरत पड़ती है। गांवों में जल के स्रोत नदी, कुआं, नलकूप, झरना, बसावट आदि प्रमुख हैं। गर्मी के दिनों में इन जल स्रोतों की स्थिति दयनीय हो जाती है। इन दिनों जल की बढ़ती मांग के कारण जल स्रोतों का दोहन तेजी से बढ़ जाता है जिसके चलते इन स्रोतों से पानी मिलना कठिन हो जाता है।

ग्रामीण इलाकों में नलकूपों की संख्या अभी बहुत कम है और जो नलकूप लगे हैं उसमें से अधिकतर खराब ही रहते हैं। गर्मियों में कुओं का पानी सूखने लगता है। अब तो भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन के कारण जलस्तर गिरता जा रहा है इसका असर कुओं तथा अन्य जल स्रोतों पर पड़ने लगा है। जो पानी मिलता है वह भी प्रदूषित होता है। पहाड़ी इलाकों में तो पानी कोसों दूरी तय करने के पश्चात मिलता है।

हमारे देश में योजना पूर्व यानी वर्ष 1951 के दौरान प्रति व्यक्ति वार्षिक उपलब्ध जल संसाधन लगभग 5200 घन मीटर था। वर्ष 1990 के बाद यह बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण आदि के कारण घटकर मात्र 2200 घन मीटर रह गया जो एक गंभीर स्थिति की ओर संकेत करता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड में पेयजल की स्थिति जो है, वही अधिकतर प्रदेशों के गांवों की है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और दक्षिण बिहार के गांवों में पानी की समस्या इतनी गंभीर है कि कहीं-कहीं ग्रामीणों को पानी की कीमत भी चुकानी पड़ती है। ग्रामीण अंचलों में स्वच्छ और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अनेक विकास योजनाएं प्रारम्भ की गई थी। पेयजल को एक भारी चुनौती के रूप में स्वीकार किया गया।

वर्ष 1986 में शुरू किए गए राष्ट्रीय पेयजल मिशन ने इस दिशा में वैज्ञानिकों द्वारा बताये गए उपाय को क्रमबद्ध रूप से स्वरूप दिया। वर्ष 1991-92 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन को 190 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि प्रदान की गई ताकि 1992-93 के दौरान बिना पेयजल स्रोत वाले सभी गांवों में पीने के पानी की व्यवस्था की जा सके। बाद में इस मिशन का नाम राष्ट्रीय पेयजल मिशन से बदलकर राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।

1977 में मार-डेल-प्लाटा, अर्जेंटीना में हुए संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन में 1 अप्रैल 1981 से 31 मार्च 1991 के दशक को जल आपूर्ति तथा स्वच्छता दशक के तौर पर मनाने की बात कही गई जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के 31वें अधिवेशन में मान लिया गया। रियो के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान भी वर्ष 2015 तक सबको शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही गई थी। भारत ने भी इन सम्मेलन में भाग लिया था। संगठित जल आपूर्ति हमारे देश में 1870 के दशक में कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई में शुरू हुई। स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1980 में वर्ल्ड हेल्थ नामक पत्रिका में कही थी कि जल आपूर्ति और स्वच्छता दशक का एक मुख्य कार्य हमारे 5,60,000 गांवों में स्वच्छ जल की आपूर्ति होनी चाहिए। जल आपूर्ति तो अब देश के एक बड़े भाग में पहुंच रही है, पर इसमें कितना जल स्वच्छ या सुरक्षित है, कहना मुश्किल है।

जल को शुद्ध करने वाली कुछ विधियां


मानवीय गतिविधियों, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण इकाइयों के मुक्त हुए अवयव से जल गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है। दुनिया भर में जल गुणवत्ता मापन डाटा और मॉनीटरिंग की कमी के साथ इस दिशा में जन साधारण के अज्ञान का भी पर्यावरण और जल गुणवत्ता पर असर पड़ता है। जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति प्रशासनिक उदासीनता भी इसका कारण है। लिहाजा इसका प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्वस्थ वातावरण और बेहतर सेहत के लिए 20 से 40 लीटर शुद्ध जल चाहिए होता है।

जिन विकासशील देशों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है वहां सीवेज सुविधाएं नहीं हैं जिसका असर पीने योग्य जल में प्रदूषण के रूप में फैलता है। जल संरक्षण और शोधन की कई तकनीकें हैं। किसी भी विधि में पहला कार्य जल में से मिट्टी के कण, लकड़ियों के टुकड़े, कचरा और जीवाणुओं को हटाना होता है। लिहाजा स्वच्छ जल प्राप्त करने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है, फिर चाहे वह कोई भी हो। आइए, यहां जानते हैं पानी को साफ कर पीने योग्य बनाए जाने वाली कुछ विधियों के बारे में।

रासायनिक प्रक्रिया


नदियों का जल उनके किनारे जलकुंडों में एकत्र करके रखा जाता है ताकि प्राकृतिक जैव स्वच्छता प्रक्रिया अपना काम कर सके। स्लो सैंड फिल्टर्स के मामले में यह क्रिया विशेष तौर पर इस्तेमाल में लाई जाती है। इसके बाद फिल्टर किए गए पानी में वायरस, प्रोटोजोआ और जीवाणुओं को हटाने का काम किया जाता है। हानिकारक जीवाणुओं को हटाने के बाद उन्हें रसायन या पराबैंगनी किरणों की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। जो अब तक बचे रह गए जीवाणुओं का सफाया कर देता है। कृषि आदि के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले पानी में यह रासायनिक और जैविक क्रिया अक्सर जरूरी होती है।

स्कंदन और ऊर्णन


यह दोनों पारंपरिक विधियां हैं जो रसायनों के साथ काम करती हैं। जो छोटे कणों को एकत्र करता है और वह फिल्टर में रेत या अन्य कणों के साथ जा जुड़ते हैं। इसी तकनीकी के नये स्वरूप में पानी को बिना रसायनों के परिष्कृत करने के लिए रासायनिक माइक्रोस्कोपिक छेद वाली पालीमर फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है जिसे माइक्रो या अल्ट्रा फिल्टरेशन मेम्ब्रेन कहते हैं। मेम्ब्रेन मीडिया यह निर्धारित करता है कि पानी के बहाव के लिए कितना दबाव जरूरी होगा और किस आकार के माइक्रोब निकल सकते हैं।

कार्बन फिल्टरिंग


घरों में चारकोल से होकर आने वाला पानी इस्तेमाल होता है। चारकोल जो कार्बन का एक रूप है कई विषैले तत्वों को अपने अन्दर समाहित कर लेता है। दो तरह के कार्बन फिल्टर होते हैं। पहला गन्युलर चारकोल जो कई विषाक्त तत्वों जैसे पारा, आर्गेनिक रसायन कीटनाशकों और अन्य तत्वों को हटा पाने में सक्षम ऐसे सभी विषाक्त तत्व को हटाने में कारगर होता है।

डिस्टलिंग


डिस्टलेशन में पानी को उबाल कर उसका वाष्प प्राप्त किया जाता है। चूंकि पानी में मिलने वाले तत्व आमतौर पर वाष्पित नहीं होते हैं। लिहाजा वह उबलते हुए पानी में ही रहते हैं। डिस्टीलेशन पानी को पूरी तरह स्वच्छ नहीं करता हैं क्योंकि बॉयलिंग प्वाइंट पर कई प्रदूषित तत्व जीवित रहते हैं और भाप के साथ बची रह गई अवाष्पित बूंदों के कारण इसके बावजूद, डिस्टलिंग से 99.9 प्रतिशत स्वच्छ जल प्राप्त हो सकता है।

पानी बचाए रखने के तरीके


रोजमर्रा के जीवन में हम कुछ बुनियादी और किफायती तरीके अपनाकर पानी की बचत कर सकते हैं। बस इसके लिए हमें ध्यान देना होगा कुछ ऐसे कार्यों पर जिसमें पानी इस्तेमाल होता है और व्यर्थ भी जाता है क्योंकि अक्सर ऐसे कार्य हम करते तो रोज हैं पर उस पर हमारा ध्यान नहीं जाता है। यह तरीके बेहद मामूली है और इन्हें अपनाने के लिए जरूरी है केवल इच्छा-शक्ति की। तो आइये जाने ऐसे ही कुछ उपायों को—

1. यह जांच करें कि आपके घर में पानी का रिसाव न हो।
2. आवश्यकता के अनुसार ही जल का उपयोग करें।
3. इस्तेमाल के बाद पानी के नलो को बंद रखें।
4. मंजन करते समय नल को बंद रखे तथा आवश्यकता होने पर ही खोले।
5. नहाने के लिए अधिक जल को व्यर्थ न करें। संभव हो तो फव्वारे के स्थान पर बाल्टी और टब आदि में पानी भर कर इस्तेमाल करें।
6. ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिससे अधिक जल की खपत न होती हो।
7. खाद्य सामग्री तथा कपड़ों को धोते समय नलों को खुला न छोड़ें।
8. जल को नाली में बिल्कुल न बहाए बल्कि इसे अन्य उपयोगों जैसे- पौधों अथवा बगीचे को सींचने अथवा सफाई इत्यादि में लाएं।
9. सब्जियों तथा फलों को धोने में उपयोग किए गए जल को फूलों तथा सजावटी पौधों के गमलों को सींचने में किया जा सकता है।
10. पानी की बोतल के आखिर में बचे हुए जल को फेंके नहीं बल्कि इसका पौधों को सींचने में उपयोग करें।
11. पानी के हौज को खुला न छोड़ें।
12. तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कूड़ा न फेंके।
13. स्वास्थ्य की दृष्टि से जरूरी है कि घर के कूलर और गमलों आदि में पानी न जमने दें। इससे उनमें मच्छर नहीं पलेंगे।
14. जिस फिल्टर में आप पानी पीने के लिए साफ करते हैं उसे नियमित तौर पर साफ करते रहें। यदि इलैक्ट्रिक फिल्टर है तो उसे कंपनी द्वारा बताए गए तरीके से ही साफ रखे और ध्यान दें कि वह कभी ओवरफ्लो न हों।
15. घर के साथ-साथ सार्वजनिक नलों आदि पर भी ध्यान दें। यदि वह बह रहे हैं तो यह न केवल सामूहिक बल्कि निजी नुकसान की भी श्रेणी में आता है।

वर्षा जल संग्रहण कब और कैसे


वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूजल भंडार को भरने के लिए भी किया जाता है। यह कम मूल्य और पारिस्थितिकरण अनुकूल विधि है जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्डों और कुओं में एकत्र किया जाता है।

1. पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियां और मेंढक आदि साफ करते रहते थे वही जल पूरे गांव के और पशुओं आदि के काम में आता था। जरूरी है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।
2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रखने में हर बार एक लीटर जल बचाने का कारगर उपाय उत्तराखंड जल संस्थान ने बताया है। इस विधि से जल बचाया जा सकता है।
3. आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है। गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में पेयजल के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए खारे जल का प्रयोग करके शुद्ध जल संरक्षण किया जा रहा है।
4. घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करने के लिए एक या दो टंकी बना कर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढका जाए तो जल संरक्षण किया जा सकेगा।
5. बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
6. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों में पानी गड्ढे बना कर एकत्र किया जा सकता है।
7. जंगल कटने पर वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूजल सूखता जाता है। इसलिए वृक्षारोपण जल संग्रहण में बेहद जरूरी भूमिका निभाता है।

जल संरक्षण की पहल


1. जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए आप भी पहल कर सकते हैं। लोगों को जल की गुणवत्ता और
सेहत के बीच रिश्ते पर जागरूक कर सकते हैं।
2. शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर हिस्सों में पक्के फर्श होने से पानी जमीन के अंदर न जाकर किसी जल स्रोत की तरफ बह जाता है। रास्ते में यह अपने साथ हमारे द्वारा बिखेरे खतरनाक रसायनों, तेल, ग्रीस, कीटनाशकों एवं उर्वरकों जैसे कई प्रदूषक तत्वों को ले जाकर पूरे जल स्रोत को प्रदूषित कर देता है। इसलिए इन रसायनों से जल स्रोतों को बचाने के लिए पक्के फर्श के विकल्पों का चुनाव करें। संभव हो तो छिद्रित फर्श बनाए जा सकते हैं। स्थानीय पौधे भी लगाए जा सकते हैं।
3. खेती के लिए भूमि कटाव नियंत्रण और पोषक तत्व प्रबंधन योजनाओं वाली तकनीक का प्रयोग करें।
4. विषैले रसायनों का प्रयोग कम से कम करें।

कुछ तथ्य


1. हर दिन दुनिया भर के पानी में 20 लाख टन सीवेज, औद्योगिक और कृषि कचरा डाला जाता है।
2. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर साल हम 1500 घन किमी पानी बर्बाद कर देते हैं। दुनिया भर में 2.5 अरब लोग पर्याप्त सफाई के बिना रह रहे हैं।
3. दुनिया की आबादी के 18 फीसदी या 1.2 अरब लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है।
4. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है जलजनित बीमारियां। युद्ध सहित सभी तरह की हिंसाओं से मरने वाले लोगों से कहीं ज्यादा लोग हर साल असुरक्षित पानी पीने से मर जाते हैं।
5. दुनिया में सलाना होने वाली कुल मौतों में से 3.1 फीसदी पर्याप्त जल साफ-सफाई न होने से होती है। असुरक्षित पानी से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में 22 लाख मौतें होती हैं। भारत में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण यह बीमारी है। हर साल करीब पांच लाख बच्चे इसका शिकार बनते हैं।
6. भूजल पर आश्रित दुनिया में 24 फीसदी स्तनधारियों और 12 फीसदी पक्षी प्रजातियों की विलुप्ति का खतरा है, जबकि एक तिहाई उभयचरों पर भी लटकी है तलवार।
7. 70 देशों के 14 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को विवश हैं।
8. पेय जल और इसकी साफ-सफाई पर किए जाने वाले निवेश की रिटर्न दर काफी ऊंची है। हर एक रुपये निवेश पर 3 रुपये से 34 रुपये आर्थिक विकास रिटर्न का अनुमान लगाया जाता है।
9. पानी और साफ-सफाई के अभाव में अफ्रीका को होने वाला आर्थिक नुकसान 28.5 अरब डालर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच फीसदी है।

जल प्रबंधन की जरूरत


पानी के कुप्रबंधन की समस्या से अगर भारत जल्द न निपटा तो भविष्य में स्थितियां और भयावह होती जाएंगी। पानी के प्रबंधन में भारत की जनसंख्या और गरीबी बड़ी चुनौतियां हैं। पानी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के बीच विवाद इस समस्या को और गहरा सकता है। सरकार को निश्चित ही इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे। प्रदूषित पेयजल से जनता को बचाने के लिए कारगर प्रयास करने की जरूरत है।

लोगों में स्वच्छ पेयजल के लिए सरकार द्वारा जितने कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनकी समीक्षा भी आवश्यक है। यह केवल सरकारी प्रयास से ही संभव नहीं बल्कि इसके लिए सामाजिक एवं औद्योगिक संगठनों को भी आगे आना होगा। पेयजल कार्यक्रम के लिए आवंटित धनराशि के उचित उपयोग को सुनिश्चित करना चाहिए। इसके लिए जनता को भी सृजग और सतर्क रहना होगा और अपने हक के लिए उन्हें लड़ना भी होगा।

(लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

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