एक मरती हुई नदी गोमती

8 Sep 2009
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गोमती नदीजब आसमान में बादल छाए हुए थे और पूरा लखनऊ शहर सावन के स्वागत की तैयारी कर रहा था, अचानक गोमती का तट मरी हुई मछलियों से पट गया। अब तो हर सुबह गोमती का तट मरी हुई मछलियों की बदबू से पटा रहता है। यह सिलसिला पिछले 25 दिनों से जारी है। कहा जा रहा है कि सीतापुर के चीनी कारखाने से गंदा पानी छोड़ा गया था, उसी से मछलियां मर रही हैं। न कोई उत्तेजना, न चिंता और न ही समाधान का कोई प्रयास!

कभी गोमती लखनऊ के बाशिंदों के जीवन-जगत का मुख्य आधार हुआ करती थी। सूर्य की अस्ताचलगामी किरणें इस नदी की अथाह जलराशि से परावर्तित होकर पूरे शहर को सुनहरे लाल रंग से सराबोर कर देती थी (गौरतलब है कि लखनऊ में गोमती के बहाव की दिशा पूरब-पश्चिम है)। लेकिन आज शहरीकरण की चपेट में आकर गोमती गंदा नाला बनकर रह गई है।

पीलीभीत से 32 किमी दूर पूरब दिशा में ग्राम बैजनाथ की फुल्हर झील (माधो टांडा के करीब) गोमती का उद्गम स्थल है। करीब 20 किमी तक इसकी चौड़ाई किसी छोटे नाले-सी संकरी है, जहां गरमियों में अक्सर पानी का नामोनिशान नहीं मिलता। फिर इसमें गैहाई नाम की छोटी-सी नदी आकर मिलती है और एक छिछला जल-मार्ग बन जाता है। अपने उद्गम स्थल से 56 किमी का सफर तय करने के बाद जब इसमें जोकनई आकर मिलती है, तो गोमती का पूरा रूप निखर आता है। फिर यह काफी धीमी गति से शाहजहांपुर और खीरी होती हुई आगे बढ़ती है। मुहमदी से नीचे आकर इसके जलमार्ग का स्वरूप बदल जाता है और इसका पाट 30 से 60 मीटर चौड़ा हो जाता है।

लगभग 560 किमी चलकर जब गोमती लखनऊ पहुंचती है, तो इसके तट धीरे-धीरे उठते हुए 20 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं। लखनऊ के बाद यह काफी चक्कर काटती हुई बाराबंकी, सुलतानपुर और जौनपुर जिलों से गुजरती है। सई नदी, जो लगभग 560 किमी तक गोमती के समानांतर बहती आती है, जौनपुर से नीचे इसमें मिल जाती है। इस तरह 900 किलोमीटर का सफर तय करती हुई गोमती जौनपुर व बनारस जिलों से गुजरकर गाजीपुर के सैदपुर में गंगा में विलीन हो जाती है।

लखनऊ में गोमती का सफर 12 किलोमीटर रहता है और यहां पर इसमें छोटे-बड़े 25 नालों से औद्योगिक व घरेलू कचरा गिरता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर यकीन करें, तो गोमती नदी लखनऊ आने तक काफी निर्मल रहती है। लेकिन लखनऊ से गंगा में मिलने तक इसमें “डी” व “वी” स्तर का प्रदूषण व्याप्त रहता है।

सनद रहे, बोर्ड के मानदंडों के मुताबिक, “डी” स्तर का पानी केवल वन्य जीवों और मछली पालन के योग्य होता है, जबकि “वी” स्तर के पानी को मात्र सिंचाई, औद्योगिक शीतकरण व नियंत्रित कचरा डालने लायक माना जाता है।

वैसे गोमती में प्रदूषण की शुरुआत लखनऊ से 50 किमी पहले सीतापुर जिले के भट्टपुर घाट से ही हो जाती है, जहां गोमती की प्रमुख सहायक नदी सरिया उससे मिलती है। सरिया के पानी में सीतापुर जिले के शक्कर एवं शराब के कारखानों का कचरा मिला होता है। जैसे-तैसे गोमती लखनऊ तक सरिया के कचरे से मुक्त हो पाती है कि करीब 20 लाख आबादी वाले इस शहर का कोई 1,800 टन घरेलू कचरा व 33 करोड़ लीटर गंदा पानी इसमें रोजाना घुल जाता है। इसके अलावा शहर के भीतर स्थित कोई आधा दर्जन बड़े कारखाने भी बगैर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए अपना कचरा गोमती में गिरा रहे हैं।

स्थिति यह है कि जिस गऊघाट से शहर में जलापूर्ति के लिए गोमती का पानी लिया जाता है, वहीं पर एक बड़ा गंदा नाला आकर नदी में मिलता है। इस घाट पर पानी में ऑक्सीजन यानी बीओडी का स्तर 1.35 तक रह जाता है, जबकि पीने लायक पानी में बीओडी का स्तर 6.5 से 8.5 होना चाहिए।

चूंकि गोमती बर्फीले पहाड़ों से नहीं निकली है, सो गरमी के दिनों में इसका जल स्तर काफी कम हो जाता है। तब इसका प्रदूषण स्तर चरम पर होता है, क्योंकि उन दिनों में पानी के बहाव से कई गुणा अधिक सीवेज इसमें मिलता है। गोमती के प्रदूषण का एक बड़ा कारण सभी नालों का बैराज से पहले अपस्ट्रीम में मिलना भी है। लखनऊ के अनियोजित विकास का उदाहरण कुकरैल नाला है। यह नाला पहले बैराज के बाद नदी में मिलता था, लेकिन कुछ साल पहले इसकी दिशा बदलकर बैराज से पहले कर दी गई। स्थानीय प्रशासन इस प्रदूषण से निपटने में खुद को असहाय पाता है। जब अधिक गंदगी बढ़ जाती है, तो जल विभाग बैराज के फाटक खोल देता है। इसके कारण एक तो गऊघाट पर पानी कम हो जाता है और दूसरा पानी में ऑक्सीजन की मात्रा काफी घट जाती है व मछलियां मरने लगती हैं।

राज्य सरकार ने कई साल पहले ब्रिटेन की मदद से 200 करोड़ की लागत का गोमती ऐक्शन प्लान शुरू किया था। पता नहीं, उसके क्या नतीजे रहे। अभी पिछले वर्ष 28 जुलाई, 2008 को 345 मिलियन लीटर दूषित पानी प्रतिदिन शोधित करने की क्षमता वाले शोधन-यंत्र का शिलान्यास हुआ है। कहा जा रहा है कि यह देश का सबसे बड़ा जल-शोधन संयत्र होगा। पता नहीं, कब होगा? हां, आज की हकीकत तो यही है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण अब गोमती एक मरती हुई नदी है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
 
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