एक विकट समस्या का सरल हल

Published on
4 min read

पुआल बिछाने तथा बनमेथी उगाने जैसे मेरे विनम्र उपायों से कोई प्रदूषण नहीं होता। वे कारगर भी होते हैं, क्योंकि वे समस्या के मूल स्रोत को ही खत्म कर देते हैं। जब तक विराट प्रौद्योगिकी उपचारों में लोगों की इस आधुनिक श्रद्धा को ही उलट नहीं दिया जाता, तब तक प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही रहेगी।

अतः प्रतीत ऐसा होता है कि सरकारी ऐजेंसियों का प्रदूषण बंद करने का कोई इरादा नहीं है। दूसरी दिक्कत यह है कि प्रदूषण के सारे पहलुओं को एक जगह एकत्र कर एक ही साथ हल किया जाना चाहिए। इस समस्या को वे लोग हल नहीं कर सकते, जो उसके किसी एक ही पहलू या हिस्से से ही मतलब रखते हैं। जब तक प्रत्येक व्यक्ति की चेतना में बुनियादी बदलाव नहीं आ जाता तब तक प्रदूषण बंद नहीं होगा। मसलन, किसान सोचता है कि भीतरी समुद्र से उसे कोई सरोकार नहीं है। वह मानता है कि मछलियों की देखभाल का काम मत्स्य-पालन दफ्तर के अधिकारियों का है तथा महासागर-प्रदूषण के बारे में सोचने के लिए प्रदूषण परिषद है। समस्या की असली जड़, इस तरह का विभाजित सोच रही है। सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले रासायनिक उर्वरकों अमोनियम सल्फेट, यूरिया, सुपर-फास्फेट आदि का बहुत थोड़ा सा हिस्सा ही खेतों के पौधों द्वारा जस्ब किया जाता है।

उनकी बाकी मात्रा पहले नदियों और झरनों में रिसकर पहुंचती है। और फिर वहां से बहकर भीतरी समुद्र में। ये नाईट्रोजन युक्त मिश्रण शैवालों और प्लवकों का भोजन बनते हैं। और उन्हीं के कारण हम समुद्र में लाल ज्वार उठते देखते हैं। बेशक, प्रदूषण में औद्योगिक कूड़ों तथा मरक्यूरी का योगदान भी होता है। लेकिन जापान में अधिकांश जल-प्रदूषण का कारण कृषि रसायन ही हैं। यानी, लाल समुद्री ज्वार-भाटों की जिम्मेदारी किसानों पर है। वह किसान, जो कि प्रदूषण रसायन अपने खेतों में डालता है, वे बड़ी कंपनियां जो इन रसायनों का निर्माण करती हैं तथा वे ग्रामीण अधिकारी जो इन रसायनों के सुविधाजनक होने में विश्वास करते हुए किसानों से उनके उपयोग की सलाह देते हैं, ये सभी जब तक इस समस्या पर गंभीरता से चिंतन नहीं करेंगे, तब तक जल-प्रदूषण का सवाल नहीं हल हो सकेगा।

अभी तो स्थिति यह है कि जो लोग किसी भी प्रकार के प्रदूषण से प्रत्यक्षतः प्रभावित होते हैं, वही उससे सक्रिय रूप से निपटने को तैयार होते हैं, जैसा कि भिजुशिमा के समुद्र में खनिज तेल बह जाने पर बड़ी तेल कंपनियों के विरुद्ध वहां के मछुआरों ने आंदोलन किया था। फिर कोई विद्वान प्रोफेसर इस समस्या से निपटने के लिए शिकोकू द्वीप का पेट फोड़कर उसमें से प्रशांत महासागर का तुलनात्मक रूप से स्वच्छ पानी भीतरी समुद्र तक लाने का प्रस्ताव रख देता है। इस तरह की ही बातों पर बार-बार अनुसंधान किए जाते हैं। और उनसे समस्या का सही हल कभी नहीं निकल पाता। मुद्दे की बात यह है कि हम जो कुछ भी करें, हालत बद-से-बदतर ही होती है। जितने ज्यादा जटिल प्रतिरोधी उपाय अपनाए जाते हैं, समस्या उतनी ही ज्यादा उलझती जाती है।

चलिए, माना कि एक पाईप शिकोकू द्वीप के आर-पार बिछाकर उसमें से प्रशांत महासागर का पानी वाकई पंप करके भीतरी समुद्र में छोड़ा जाने लगा। यह भी माना कि शायद इससे भीतरी समुद्र साफ हो जाएगा। मगर सोचिए कि इस्पात के पाइप बनाने वाले कारखाने को चलाने के लिए इतनी सारी बिजली कहां से आएगी, और फिर पानी पंप करने के लिए बिजली लगेगी ही। इस सब के लिए कंक्रीट और अन्य ऐसी ही सामग्रियाँ जुटानी होंगी। यह यूरेनियम का आणविक केंद्र भी स्थापित करना होगा। जब इस ढंग से समस्याओं के हल निकाले जाते हैं, तो वे उन दूसरी और तीसरी पीढ़ी की समस्याओं को ही जन्म देते हैं, जो पहली वाली से कहीं ज्यादा जटिल और व्यापक होती हैं।

यह चीज कुछ वैसी ही है, कि एक लालची किसान सिंचाई की ग्राहक-नाली ज्यादा चौड़ी खोल देता है, और उसके धान के खेत में ढेर सारा पानी घुस आता है। मेढ़ में दरार पड़ती है और वह धसक जाती है। इसके बाद मरम्मत करना जरूरी हो जाता है। दीवारों को मजबूती प्रदान करनी पड़ती है तथा सिंचाई नहरों को भी चौड़ा करना पड़ता है। पानी की बढ़ी हुई मात्रा संभावित खतरे को बढ़ाती ही है, और इसके बाद यदि मेढ़ फिर टूटी तो उसे फिर से बनाने में इससे भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। जब भी किसी समस्या के लक्षणों से निपटने का निर्णय लिया जाता है तो यह पहले से मान लिया जाता है, कि इन दुरुस्ती उपायों से ही खुद समस्या का हल भी हो जाएगा। लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है।

यह बात इंजीनियरों के दिमाग में नहीं उतरती। ये सारे प्रतिरोधी उपाय, जो कुछ गलत हैं, उसकी बड़ी संकुचित परिभाषा पर आधारित होते हैं। मानव द्वारा किए गए उपाय तथा उपचार बहुत ही सीमित - वैज्ञानिक सच्चाईयों और निर्णय बुद्धि से पैदा होते हैं। कोई भी सही उपाय इस ढंग से कभी कारगर नहीं हो सकता। पुआल बिछाने तथा बनमेथी उगाने जैसे मेरे विनम्र उपायों से कोई प्रदूषण नहीं होता। वे कारगर भी होते हैं, क्योंकि वे समस्या के मूल स्रोत को ही खत्म कर देते हैं। जब तक विराट प्रौद्योगिकी उपचारों में लोगों की इस आधुनिक श्रद्धा को ही उलट नहीं दिया जाता, तब तक प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही रहेगी।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org