गंगा में खनन पर उत्तराखंड सरकार और संस्था आमने-सामने


गंगा नदी में खनन को लेकर उत्तराखंड सरकार और पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्था मातृसदन आमने-सामने आ डटे हैं। गंगा नदी में खनन को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट के द्वारा लगाई गई रोक पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थगनादेश दे दिया है, जिससे गंगा नदी में अब खनन का काम फिर से चालू हो जाएगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर राहत महसूस की है। क्योंकि गंगा नदी में नैनीताल हाईकोर्ट के द्वारा खनन पर रोक लगाने से राज्य सरकार को तगड़ा झटका लगा था। हाईकोर्ट ने 5 दिसम्बर 2016 को गंगा में खनन पर रोक लगाई थी।

डेढ़ साल से गंगा नदी में खनन का काम बिल्कुल ठप पड़ा था, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही थी। राज्य सरकार ने गंगा नदी में खनन खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। उत्तराखंड सरकार के खनिज विभाग के निदेशक विनय शंकर पांडेय ने बताया कि एक महीने पहले राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ स्थगनादेश दिया है। उन्होंने कहा कि अब गंगा में खनन का काम हो सकेगा और राज्य सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी होगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि सरकार वैध और ईमानदार तरीके से खनन की हिमायती है। राज्य के विकास और सूबे को राजस्व हानि से बचाने के लिये वैज्ञानिक और नियन्त्रित खनन की आवश्यकता है। कौशिक ने कहा कि अवैध खनन के राज्य सरकार पूरी खिलाफ है। अवैध खनन से सरकार को राजस्व की हानि तो होती ही है और साथ ही माफियावाद को भी बढ़ावा मिलता है।

दूसरी ओर मातृसदन ने आरोप लगाया कि सरकार गंगा में खनन को लेकर भ्रम फैला रही है। मातृसदन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के स्थगनादेश के बाद भी गंगा में खनन नहीं हो सकेगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जिस फैसले पर स्टे दिया है, वह फैसला आने से पहले गंगा नदी में खनन बंद था। मातृसदन के प्रवक्ता ब्रह्मचारी दयानंद का कहना है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पर्यावरण संरक्षण की धारा पाँच के तहत गंगा नदी के पाँच किलोमीटर के दायरे में कोई भी खनन गतिविधि नहीं हो सकती है।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में अतिक्रमण और उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के बीच सम्पत्ति बँटवारे को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में मोहम्मद सलीम ने एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसकी सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गंगा नदी में खनन पर रोक लगा दी थी। उत्तराखंड सरकार और खनन समर्थकों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थगनादेश दिया है। मातृसदन के मुताबिक गंगा नदी में खनन दो जून 2015 के पहले से बन्द है। इसलिये गंगा नदी में खनन का काम नहीं हो सकता। ब्रह्मचारी दयानंद के मुताबिक राज्य सरकार खनन माफियाओं को लाभ पहुँचाने के लिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं।

ब्रह्मचारी दयानंद के मुताबिक राज्य सरकार और खनन माफिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का गलत तरीके से प्रचार कर रहे हैं। मातृसदन के संस्थापक-संचालक स्वामी शिवानंद सरस्वती का कहना है कि गंगा में खनन को लेकर सूबे की भाजपा सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस की हरीश रावत सरकार से दो कदम आगे निकल गई है। उन्होंने कहा कि हरीश रावत सरकार की तरह ही त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार भी खनन माफियाओं को बढ़-चढ़कर संरक्षण दे रही है।

मातृसदन के प्रवक्ता ब्रह्मचारी दयानंद ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में मातृसदन ने इस मामले की सुनवाई के लिये अपनी याचिका दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान न्यायालय के समक्ष मातृसदन ने अपना पक्ष रखा था। परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष को सुनवाई में शामिल नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मातृसदन हाईकोर्ट के फैसले में पक्षकार नहीं है। इसलिये इस मामले में मातृसदन का पक्ष नहीं सुना जा सकता है। गंगा नदी में खनन को लेकर मातृसदन अपना पक्ष अलग से रख सकता है। जिस पर सुनवाई की जा सकती है। ब्रह्मचारी दयानंद ने कहा कि वे जल्दी ही गंगा नदी में खनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेंगे। गंगा नदी में खनन को लेकर मातृसदन और त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई है। मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती का कहना है कि गंगा में खनन के चलते गंगाजल को साफ रखने वाले कछुओं और मछलियों के जीवन पर संकट खड़ा हो गया है।

1. खनन को लेकर संस्था मातृसदन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेगी।

2. सुप्रीम कोर्ट के स्थगनादेश के बाद खनन का काम फिर से शुरू हो जाएगा।

3. संस्था का आरोप : राज्य सरकार खनन माफियाओं को लाभ पहुँचाने के लिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं।

4. राज्य सरकार का पक्ष : सरकार वैध और ईमानदार तरीके से खनन की हिमायती है। राज्य के विकास और सूबे को राजस्व हानि से बचाने के लिये वैज्ञानिक और नियंत्रित खनन की आवश्यकता है। अवैध खनन के राज्य सरकार पूरी खिलाफ है।

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