ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसर एवं चुनौतियां

23 Aug 2014
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ग्रामीण रोजगार के महत्वपूर्ण व आकर्षक क्षेत्र होने के बावजूद कृषि क्षेत्र से लोगों का पलायन जारी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में पिछले दिनों बताया गया था कि करीब 40 प्रतिशत किसान अन्य रोजगार करना चाहते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर भारी संख्या में पलायन भी ग्रामीण रोजगार की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। परंतु खुशी की बात है कि सरकार की मनरेगा सहित अन्य योजनाओं ने ग्रामीण रोजगार के अवसरों को व्यापक स्तर पर बढ़ाया है। वर्ष 2010-11 के दौरान इस योजना के तहत 5.49 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला है।यह ऐतिहासिक सत्य है कि शहरीकरण की व्यापक प्रक्रिया ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रति उदासीनता पैदा की है। शहर न केवल उत्पादन, वितरण और प्रबंधन के केंद्र बने हैं बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था की दिशा भी तय कर रहे हैं। संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्र विगत कई दशक से महज कच्चे माल के स्रोत बन कर रह गए हैं। पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था जोकि कृषि, हस्तशिल्प, लघु-कुटीर उद्योगों पर निर्भर थी, वे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण तथा वैश्वीकरण के आगमन के साथ समाप्त-सी होती चली गई। भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार कृषि नवीन तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद संकट का सामना कर रही है। भारत की कुल श्रम शक्ति का करीब 60 प्रतिशत भाग कृषि व सहयोगी कार्यों से आजीविका प्राप्त करता है। इसके बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16 प्रतिशत है। निर्यात के मामले में भी इसका हिस्सा महज 10 प्रतिशत ही है। ग्रामीण रोजगार के महत्वपूर्ण व आकर्षक क्षेत्र होने के बावजूद कृषि क्षेत्र से लोगों का पलायन जारी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में पिछले दिनों बताया गया था कि करीब 40 प्रतिशत किसान अन्य रोजगार करना चाहते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर भारी संख्या में पलायन भी ग्रामीण रोजगार की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। परंतु खुशी की बात है कि सरकार की मनरेगा सहित अन्य योजनाओं ने ग्रामीण रोजगार के अवसरों को व्यापक स्तर पर बढ़ाया है।

महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता, स्वशासन की वकालत किया करते थे। गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी और चरखे का प्रचलन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता और स्वनिर्भरता को ध्यान में रख कर किया। आज की स्थिति वैश्वीकरण के साथ विकास की है। तीव्र गति से आर्थिक विकास के नए आयामों को गढ़ा जा रहा है। परंतु इस विकास के साथ भारी असमानता भी उजागर हुई है। ग्रामीण-शहरी, अमीरी-गरीबी के बीच का अंतर व्यापक रूप से दिखता है। आज ग्रामीण क्षेत्र विकास की राह पर शहरों जैसा दौड़ पाने में लाचार बने हुए हैं। इस लाचारी को दूर करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कई अहम पहल की हैं। पीयूआरए, मनरेगा, ग्रामीण विद्युतीकरण, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वरोजगार कार्यक्रम, आधारभूत संरचना निर्माण सहित ऐसी कई योजनाएं ग्रामीण विकास व रोजगार वृद्धि हेतु चलाई जा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन योजनाओं के लाभकारी प्रभाव स्पष्ट दिखे हैं। ग्रामीण विकास, रोजगार में वृ्द्धि हुई है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीणों की स्थिति में भी सुधार आया है। कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं व प्रयासों की चर्चा यहां प्रासंगिक है।

मनरेगा


विश्व की सबसे बड़ी तथा महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 2006 में आरंभ की गई। लागू होने के 6 वर्ष के भीतर इस योजना ने वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर बदल डाली है। वर्ष 2010-11 के दौरान इस योजना के तहत 5.49 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला है। इस योजना के द्वारा अब तक करीब 1200 करोड़ रोजगार दिवस का कार्य हुआ है। ग्रामीणों के बीच 1,10,000 करोड़ रुपये की मजदूरी वितरित की जा चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष औसतन एक-चैथाई परिवारों ने इस योजना से लाभ लिया है। यह योजना सामाजिक समावेशन की दिशा में बेहतर सिद्ध हुई है। मनरेगा के द्वारा कुल कामों के 51 प्रतिशत कामों में अनुसूचित जाति व जनजाति तथा 47 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया गया। मनरेगा में प्रति अकुशल मजदूर को 180 रुपये दिये जाते हैं। इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ा है। निजी कार्यों के लिए भी पारंपरिक मजदूरी जोकि अपेक्षाकृत काफी कम थी, इसके प्रभाव स्वरूप बढ़ गई है।

निश्चित रूप से मनरेगा न केवल ग्रामीण रोजगार के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है बल्कि इसने ग्रामीणों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति को सुधारने का मौका भी प्रदान किया है।

ग्रामीण व्यापार केन्द्र


भारत तीव्र आर्थिक विकास के साथ विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। परंतु इस तीव्र विकास के साथ असमानताएं भी बढ़ी हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और कृषि क्षेत्र का पिछड़ापन विकास की समग्र परिभाषा के दायरे से बाहर है। तीव्र आर्थिक विकास का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचे, इसे ध्यान में रखकर 2007 में ग्रामीण व्यापार केन्द्र योजना शुरू की गई। चार ‘पी’ से निर्मित यह एक आदर्श योजना के रूप में सामने आई है। चार ‘पी’ अर्थात् पब्लिक, प्राइवेट पंचायत पार्टनरशिप के तहत इस योजना के व्यापक उद्देश्य हैं। इसका उद्देश्य रोजगार के साधनों में वृद्धि के साथ गैर-कृषिगत कार्यों से आय के स्रोत निर्मित करना, ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देकर ग्रामीण विकास को गति देना है। आरंभ में इस योजना के तहत 35 जिलों का चयन किया गया।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन


1999 से चल रही स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना को एक नये कार्यक्रम राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में 24 जून, 2010 को मिला दिया गया। इस नई योजना ने ग्रामीण रोजगार की संभावना को पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ाया है। यह योजना ग्रामीण स्वरोजगार के उद्देश्यों पर केंद्रित है जिसमें राज्यों को उपलब्ध धन, संसाधनों, कौशल के आधार पर गरीबी उन्मूलन की अपनी योजना चलाने की छूट है। दो वर्षों के लिए इस योजना के तहत 16400 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया जिसके तहत करीब 17 लाख गरीब युवाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण देना है।

राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन


3 जून, 2011 को इस योजना का आरंभ राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से किया गया। इस योजना का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे के 7 करोड़ लोगों को रोजगार देना था। इस योजना का संचालन और क्रियान्वयन स्वयंसहायता समूहों द्वारा किया जाता है। योजना पर 2011 में 9 हजार करोड़ रुपये व्यय किए गए।

आधारभूत संरचना निर्माण में रोजगार


ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से आधारभूत संरचना निर्माण कार्यों में भी रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं। इसके अलावा संरचना निर्माण के बाद इसके उपयोग से भी ग्रामीणों की आय बढ़ी है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, जलापूर्ति, विद्युतीकरण, दूरसंचार क्षेत्रों में कार्यों के बढ़ने से रोजगार व आय में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। स्वच्छ जलापूर्ति के लिए भारत में 35 लाख से अधिक चापाकल तथा एक लाख पाइप जलापूर्ति योजना चलाई गई। इसमें भारी संख्या में लोग लाभान्वित हुए हैं।

इसी प्रकार पिछले वित्त वर्ष में रोजाना औसतन 144 किमी सड़क का निर्माण किया गया। इस वित्त वर्ष में 151 किमी सड़क के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। विश्व बैंक के एक अध्ययन में बताया गया है कि जिन ग्रामीण क्षेत्रों का संपर्क पक्की सड़कों से है, उन क्षेत्रों में सन् 2000 से 2009 के बीच आमदनी में 50 से 100 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में सड़क निर्माण पर जब 10 लाख का निवेश होता है तब करीब 163 लोग गरीबी से बाहर निकल जाते हैं। सरकार ग्रामीण सड़क नेटवर्क को मजबूत करने के लिए व्यापक प्रयास कर रही है। इसी का नतीजा है कि ग्रामीण सड़कों की लंबाई जहां 2005-06 में 22891 किमी थी वही 2009-10 में यह बढ़कर 54821 किमी हो गई।

ग्रामीण पर्यटन और सेवा क्षेत्र में रोजगार


ग्रामीण क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता व देशज विशिष्टताओं के कारण पर्यटकों के लिए हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। इधर कुछ वर्षों से ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण पर्यटन के विकास के लिए कई व्यापक कदम उठाए हैं। पर्यटन क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार पर्यटन क्षेत्र विश्व के कुल रोजगार का प्रत्यक्ष रूप से 7 प्रतिशत तथा अप्रत्यक्ष रूप से इससे कई गुना अधिक रोजगार प्रदान करता है। भारत में ही देखें तो देश के सकल घरेलू उत्पादन में इसका योगदान 2007-08 में प्रत्यक्ष तौर पर 6 प्रतिशत तथा अप्रत्यक्ष तौर पर 9 प्रतिशत रहा है। देश में ग्रामीण पर्यटन की असीम संभावना को देखते हुए सरकार देश में हस्तशिल्प, ज्ञान, संस्कृति आदि को बढ़ावा दे रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों में आज सेवा क्षेत्र की भूमिका भी बढ़ती जा रही है। इस हेतु सरकार विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीणों को प्रशिक्षित कर रही है। दूरसंचार, चिकित्सा, शिक्षा, मरम्मती कार्यों में सरकार व्यापक सहयोग दे रही है।

स्वरोजगार


सेवा क्षेत्र के उभार, शिक्षा तकनीक, जागरूकता के बढ़ने के साथ लोगों में स्वरोजगार के प्रति काफी आकर्षण है। स्वयंसहायता समूह, खादी ग्रामाद्योग के रोजगार सृजन कार्यक्रमों, मनरेगा के तहत नवीन कार्यों मसलन तालाब निर्माण, मवेशी पालन आदि के तहत सरकार ग्रामीणों को स्वरोजगार हेतु प्रेरित व सहयोग कर रही है। इसके लिए प्रशिक्षण, कौशल विकास, संसाधन, वित्त व्यवस्था, विपणन, प्रबंधकीय क्षमता विकास के लिए सरकार व्यापक प्रावधान व प्रयास कर रही है।

नवीन संभावनाएं


औद्योगिकीकरण, आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव गांवों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक संरचना पर देखा जा सकता है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव ग्रामीण उपयोग स्तर में वृद्धि के मामले में दिखता है। ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं, सेवाओं की मांग लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती मांग ने गांवों में रोजगार के नवीन अवसरों को भी बढ़ाया है। गांवों का भविष्य रोजगार की असीम संभावनाओं से युक्त दिख रहा है। जरूरत है इसके बेहतर तरीके से नियमन, संचालित प्रबंधन के द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में ग्रामीण भागीदारी का स्तर उठाया जाए।

आज सूचना प्रौद्योगिकी, सेवा, कृषि, उद्योग सहित अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहां गांवों की जरूरत महसूस की जा रही है। गांवों का बदलता स्वरूप अब कच्चे माल के स्रोत के तौर पर नहीं दिखता। बल्कि गांव शहरों से मुकाबला करने को तैयार हो चुके हैं। सस्ता श्रम बल, सस्ती संरचना, सस्ता परिवहन व्यय आदि कुछ ऐसी विशेषताएं हैं कि अब उद्योग जगत गांवों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। संभावना है पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और निजी दोनों रूपों में गांव औद्योगिकीकृत होंगे। इस संभावना के साथ ग्रामीण रोजगार के असीम दरवाजे खुलेंगे। सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार ने ग्रामीण क्षेत्रों में संभावनाएं पैदा की हैं। कॉल सेंटर, बीपीओ, इंटरनेट संबंधी रोजगार के नए अवसर ग्रामीण क्षेत्रों की ओर रूख कर रहे हैं। यह ग्रामीण रोजगार क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी बदलाव होगा।

चुनौतियां और समाधान


नई संभावनाओं के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतियों की कमी नहीं है। इनसे निपटे बगैर हम ग्रामीण रोजगार सृजन और इसकी बेहतरी की कल्पना नहीं कर सकते।

शिक्षण-प्रशिक्षण


सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा व प्रशिक्षण की है। हम अब भी पारंपरिक शैक्षणिक पद्धति से जुड़े हुए हैं जबकि आधुनिक समय में व्यावसायिक शिक्षा की मांग जोर पकड़ रही है। आधुनिक रोजगार हेतु हमारी शिक्षा प्रणाली बेहतर श्रम बल तैयार नहीं कर पाती। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग प्राथमिक और थोड़े-बहुत लोग माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। लेकिन यह शिक्षा विशेषीकृत नहीं होती। हमारा प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक से ही व्यवसाय केन्द्रित शिक्षण पद्धति को अपनाने के प्रति होना चाहिए।

इसके अलावा अशिक्षित लोगों के लिए वैकल्पिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। औद्योगिक प्रशिक्षण, गैर-कृषिगत कार्यों का प्रशिक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी, सेवा क्षेत्र आदि से जुड़े रोजगार हेतु आवश्यक कौशल विकास के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रयास करना होगा।

ऊर्जा उपलब्धता


नये उद्योग, उत्पादन इकाई या ग्रामीण औद्योगिकीकरण के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा ऊर्जा उपलब्धता की है। ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाओं के बावजूद अब भी 25 प्रतिशत गांव पूर्णतः विद्युतीकृत नहीं हैं। 20 राज्यों के करीब 1.15 लाख गांवों में विद्युतीकरण अब भी प्रतीक्षारत है। ग्रामीण रोजगार के लिए ग्रामीण उद्योगीकरण का रास्ता तो खुल रहा है परन्तु ऊर्जा उपलब्धता के नजरिए से यह बड़ी चुनौती है। हमें ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर ऐसे गांवों की निर्भरता बढ़ाने के प्रति गंभीर होना होगा। इसके लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे विकल्पों के प्रसार को गति देनी चाहिए।

संरचना निर्माण


इसके अलावा आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के प्रति भी हमें सचेत प्रयास करने होंगे। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क को मजबूत करने की दिशा में अच्छा काम किया है। परंतु अब भी 30 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र पक्की सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार में तो करीब 55 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र पक्की सड़क सुविधा से नहीं जुड़े हैं। पीयूआरए जैसी योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयासों से धीरे-धीरे अच्छे नतीजे आ रहे हैं। इस दिशा में हमारे लिए काफी काम शेष हैं। सड़क, संचार, ऊर्जा ये तीन चीजें उद्योगीकरण के लिए बहुत जरूरी हैं। इसे केवल ग्रामीण रोजगार के नजरिये से ही नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिहाज से देखना होगा। इन सबके साथ ग्रामीण औद्योगिकीकरण का सामना पर्यावरण के मुद्दे से भी होगा। इसके लिए पर्यावरण हितैषी उपायों को ध्यान में रख कर योजनाएं बनाने की जरूरत है।

नक्सलवाद- देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलवाद जैसी समस्या भी मौजूद हैं। नक्सली हमलों में प्रायः सरकारी इमारतों, स्कूलों, टेलीफोन टावरों, कारखानों आदि को निशाना बनाया जाता है। इस तरह की स्थितियों के साथ ग्रामीण युवाओं में विघटन की प्रवृत्ति भी पनप रही है। या तो वे शहरों में पलायन कर जाते हैं या नक्सली बन जाते हैं। दूसरी ओर, ऐसे क्षेत्रों में कोई उद्यमी भी नहीं जाना चाहता। हालांकि पिछले दिनों ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विकास के बल पर नक्सल समस्या से निपटने की रणनीति बनाई है। इसके साथ ही हमें विकास की प्रक्रियाओं में स्थानीय लोगों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। खनन, भूमि अधिग्रहण से विस्थापित ग्रामीणों को परियोजनाओं में रोजगार उपलब्ध कराने चाहिए।

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता- पारंपरिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर अत्यधिक निर्भरता है। जिस काम को 2 लोग आसानी से कर सकते हैं वहां काम के अभाव के कारण 5-7 लोग लगे रहते हैं। हमें गैर-कृषि कार्यों को प्रोत्साहन देना होगा और इसमें नये रोजगार अवसर बनाने होंगे।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं साथ ही चुनौतियां भी। इनके बेहतर तकनीकी, प्रबंधकीय, निगरानी की सुदृढ़ता की दिशा, निगरानी व प्रबंधन की जरूरत है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ई-मेल: gauravkumar15888@gmail.com)

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