गर्मी में भारत जैसा बन गया यूरोप

16 Jul 2019
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फ्रांस में गर्मी में तपती धूम में प्यास बुझाने के लिए पानी भरते लोग।
फ्रांस में गर्मी में तपती धूम में प्यास बुझाने के लिए पानी भरते लोग।

कल्पना कीजिए कि आप भारत की गर्मी से परेशान हो गए हैं। इससे बचने के लिए किसी पहाड़ी स्थान पर जाना चाहते हैं, लेकिन वहां भी बहुत गर्मी है। लगता है कि इससे अच्छा तो किसी ठंडे देश में ही चले जाते  और फिर आप स्वीटजरलैंड जैसे ही किसी देश की तरफ उड़ लेते है, लेकिन जब यहां आते हैं तो पाला पड़ता है, 38 और 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान से। इसके अलावा पहाड़ी इलाकों की धूप भी बहुत तीखी होती है। पिछले कुछ दिनों से ऐसे नजारे मैंने हर जगह देखे हैं। फ्रांस में तो इतनी गर्मी थी कि सांस फूलती थी। खबरों के अनुसार वहां लोग गर्मी से बचने के लिए बीयर पीकर पानी में उतर जाते हैं और उनमें से बहुत से डूब जाते हैं। गर्मी से लड़ने के तरीके भी इन्हें मालूम नही हैं। इसलिए इन्हें लगता है कि अगर गर्मी से बचना है तो नंगे बदन रहा जाए। इस कारण डिहाइड्रेशन और तरह तरह के रोगों के शिकार भी होते हैं।

भारत में तो गर्मी और लू से निपटने के लिए तरह-तरह के तरीके मौजूद हैं, जिन्हें बचपन से सिखाया जाता है। पानी पीकर निकलो, पसीने से नहा कर बाहर से आए हो तो पंखे में नीचे मत खड़े हो, मगर इन देशों में इन बातों के बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम। ऐसा लगता है कि आने वाले सालों में ठंडे और गर्म देशों का फर्क मिट जाएगा।

पिछले 11 सालों से यह लेखिका यहां आती रही है। 2008 में जब पहली बार आई थी तो दोपहर में बाहर निकलने पर स्वेटर पहनना पड़ता था। शॉल ओढ़नी पढ़ती थी। फिर भी ठंडक महसूस होती थी। 2010 में जब पहली बार फ्रांस गई थी तो रात और दिन के वक्त वहां बहुत गर्मी महसूस हुई थी। तब भूरे-पूरे सूरज वाले दिन को किसी बोनस की तरह देखा जाता था और लोग बड़ी संख्या में धूप खाने निकल पड़ते थे। इन देशों में कुछ साल पहले तक कोई पंखे या एयर कंडीशनर के बारे में नहीं जानता था। अब घर-घर में यह उपकरण मिल सकते हैं। इसके अलावा एक मुश्किल यह भी है कि अधिकांश घरों के चारों तरफ शीशे लगे हैं। इनके कारण गर्मी और अधिक लगती है, क्योंकि घर का निर्माण ठंड से बचने के लिए किया जाता है, इसलिए ऐसी तकनीक इस्तेमाल की जाती रही, जिससे घर अधिक से अधिक गर्म रहे, लेकिन अब जब तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है, तो लोगों में त्राहि-त्राहि मची है। फ्रांस में रिकॉर्ड तापमान 45.9 और स्विट्जरलैंड में बहुत स्थानों पर 40 डिग्री सेल्सियस तक रहा है। बारिश में तो पुरानी कारों के चलने पर रोक लगा दी गई थी। 90 संस्थानों में से 25 में पानी के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई गई। स्कूलों को बंद कर दिया गया था।

समझ में नहीं आ रहा कि गर्मी की मुसीबत से कैसे निपटें। ग्लोबल वॉर्मिंग, जलवायु परिवर्तन की बातें अरसे से की जाती रही हैं। मगर व्यापारिक हितों के सामने इन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया गया, जबकि इन देशों में न हरियाली की कमी है न पानी की। अपने यहां के बारे में तो कहा जा रहा है कि अगर ऐसा ही रहा तो अगले 30 साल में हिमालय के अधिकांश ग्लेशियर पिघल जाएंगे। कभी सोचा है कि तब क्या होगा ? गंगा, यमुना और हिमालय से निकलने वाली तमाम नदियों का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। पहले ही हमारे यहां पानी की बेहद कमी है और जंगल लगातार कटते जा रहे हैं। यूरोप के देश शायद जलवायु परिवर्तन से आने वाली आफतों का हल आसानी से ढूंढ लेंगे क्योंकि यहां की आबादी बहुत कम है, मगर हम क्या करेंगे ? जहां आबादी इस गति से बढ़ रही है कि जल्द ही चीन को पीछे छोड़ देंगे। अधिक आबादी माने अधिक संसाधनों की जरूरत। पानी इनमें सबसे बड़ी जरूरत है। जिस पानी के लिए हमारे यहां मारामारी मची है। आगे आने वाले दिनों में इतनी विशाल  आबादी की जरूरत आखिर कैसे पूरी होगी ? पानी कम खर्च कैसे करें, इसके उपाय सुझाए जा रहे हैं। पानी को महंगा करने की बातें की जा रही हैं। ऐसे उपायों की सबसे बड़ी चुनौती वे ही लोग होंगे जो साधनहीन हैं, क्योंकि पानी महंगा हो जाए तो अमीर, उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग तो अपना काम चला लेंगे, मगर गरीबों का क्या होगा ? विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले सालों में ऐसी ही गर्मी पड़ेगी। सोचें कि भारत में तो गर्मी और लू से निपटने के लिए तरह-तरह के तरीके मौजूद हैं, जिन्हें बचपन से सिखाया जाता है। पानी पीकर निकलो, पसीने से नहा कर बाहर से आए हो तो पंखे में नीचे मत खड़े हो, मगर इन देशों में इन बातों के बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम। ऐसा लगता है कि आने वाले सालों में ठंडे और गर्म देशों का फर्क मिट जाएगा। अब जब बारिश होने लगी है तो भारत की तरह यहां लोगों ने चैन की सांस ली है। 

 

 

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