घना में रौनक तो है साइबेरियाई सारस नहीं
साइबेरियाई सारस सहित यहां आने वाले सभी विदेशी पक्षी शाकाहारी होते हैं जो कि यहां कि वनस्पतियों पर निर्भर रहते हैं जबकि सभी प्रकार के देशी पक्षी मांसाहारी होते हैं। इनके लिए यहां मिलने वाली वनस्पतियों और मछलियों के साथ दूसरे जीव-जंतुओं के लिए प्राकृतिक तौर पर बहकर आने वाला पानी ही चाहिए। घना की झीलों को ऐसा पानी देने का एकमात्र स्रोत राजस्थान के करोली जिला स्थित पांचना बांध था जिसका पानी घने के साप स्थित अजान बांध को दिया जाता था वहां से यह पानी घना में आता था लेकिन पिछले सालों के दौरान पांचना बांध से घना को पानी देना बंद कर दिया गया था।
किसी समय साइबेरियाई सारस (साइबेरियन क्रेन) के लिए विश्वविख्यात रहे राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित केवलादेव पक्षी विहार घना में इस बार चंबल से मिले पानी से रौनक लौट आई है। सुंदर और दुर्लभ पक्षियों के कलरव से घना फिर से आबाद हो गया है। पिनटेल डक, कूट, स्पॉटेड बिल्ड डक जैसी विदेशी और पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, ओपन बिल, स्टॉर्क आदि देशी पक्षियों ने केवलादेव का वैभव पुनः लौटा दिया है। पिछले कई साल से घना में चली आ रही पानी की कमी ने इस पक्षी अभ्यारण्य के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया था। केवलादेव को वर्ष 1985 में विश्व प्राकृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया था जबकि 1981 में इसे राष्ट्रीय पक्षी उद्यान का दर्जा दिया गया था। पिछले एक दशक से लगातार पानी के सूखते स्रोत के कारण केवलादेव विश्व प्राकृतिक धरोहर सूची के मापदंडों पर खरा नहीं उतर पा रहा था। 2,873 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की करीब 375 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं।
देसी और प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा है घना का केवलादेव पक्षी विहार
झील के जीव-जंतु हैं इनका आहार
पर्पल हेरोन
पानी की बहुतायत ने लौटाई पार्क की रौनक
झील में तैरता पिनटेल डक
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