घटता पानी बढ़ता संकट

10 Aug 2019
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घटता पानी बढ़ता संकट।
घटता पानी बढ़ता संकट।

अथाह और अपार जलनिधि के स्वामी सागर के तट पर बसा चेन्नई शहर आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहा है। 90,00,000 की आबादी वाले, देश के पाँच विशालतम महानगरों में से एक चेन्नई में भूजल तथा झीलों के सभी स्रोत सूख चुके हैं। विगत 30 वर्ष में सर्वाधिक भयानक जल संकट से जूझ रहे इस शहर के बच्चों के स्कूल बैग में किताबों से ज्यादा पानी की बोतलों का बोझ बढ़ गया है। अधिक पानी का उपयोग करने वाले व्यवसाय बंद होने के कगार पर हैं। सरकारी और निजी संस्थानों के कर्मचारियों से अपना पीने का पानी अपने साथ लाने को कहा जा रहा है। घरेलू पानी आपूर्ति के साधन नलों में आपूर्ति 10 प्रतिशत से कम है तथा जिन 4 जलाशयों से शहर को पानी की आपूर्ति होती थी, उनमें बमुश्किल एक प्रतिशत पानी ही बचा है। एक जगह पानी के झगड़े के कारण एक महिला को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

नीति आयोग की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक भूजल उपयोग करने वाला देश है, जबकि चीन और अमरीका तक में भारत से कम भूजल का उपयोग किया जाता है। भारत अनुमानतः भूजल का 89 प्रतिशत कृषि में, 9 प्रतिशत घरेलू तथा 2 प्रतिशत उद्योगों में व्यय करता है। शहरी आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत से अधिक भूजल स्रोतों से खींचा जाता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की पिछली रिपोर्ट के अनुसार इस भयंकर भूजल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच, देश के भूजल स्तर में 61 प्रतिशत तक की कमी आई है।

चेन्नई के पड़ोसी जिलों तिरुवल्लूर और कांचीपुरम, जिन्हें झीलों के जिले के नाम से जाना जाता था, की 6,000 झीलों में भी पानी लगभग सूख चुका है। सरकार ने चेन्नई से 200 किमी दूर जोलारपेट से रेलगाड़ियों द्वारा पानी लाने का फैसला किया है। ऐसे में अन्तिम आस बची है 235 किमी. दूर चोल साम्राज्य द्वारा 1,100 वर्ष पूर्व निर्मित जलाशय, जहाँ से सैकड़ों टैंकर रोजाना पानी ढुलाई में लगें हैं। 9000 लीटर के पानी टैंकर, जिसके सरकार 700 रुपये वसूलती थी, को अब निजी पानी व्यवसायियों द्वारा 4000-5000 रुपये में बेचा जा रहा है। एक निवासी के अनुसार, यदि कुछ दिन और यही स्थिति बनी रही, तो चेन्नई से लोगों का पलायन प्रारम्भ हो जाएगा। लोग भूले नहीं होंगे कि 2017 तथा 2018 में मूसलाधार बारिश के कारण यह महानगर पानी में लगभग डूब गया था। 2017 में शहर की 109 बस्तियाँ तथा 2018 में 89 बस्तियाँ पानी में डूब गई थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे अनेक संगठनों के कार्यकर्ताओं तथा आपात राहत प्रबन्धन दल के लोगों और सेना ने इन डूबे हुए इलाकों के निवासियों को भारी जोखिम उठाकर न केवल सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया था, बल्कि उनके भोजन, कपड़ों और अस्थाई आवासों की व्यवस्था भी की थी। गत 30 वर्ष से अल्पवृष्टि एवं सूखे की मार झेल रहे तमिलनाडु ने न तब इस अतिरिक्त जल को रोकने की कोशिश की और न ही सूखा पड़ने के पूर्व उससे निबटने की तैयारी।

नीति आयोग की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक भूजल उपयोग करने वाला देश है, जबकि चीन और अमरीका तक में भारत से कम भूजल का उपयोग किया जाता है। भारत अनुमानतः भूजल का 89 प्रतिशत कृषि में, 9 प्रतिशत घरेलू तथा 2 प्रतिशत उद्योगों में व्यय करता है। शहरी आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत से अधिक भूजल स्रोतों से खींचा जाता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की पिछली रिपोर्ट के अनुसार इस भयंकर भूजल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच, देश के भूजल स्तर में 61 प्रतिशत तक की कमी आई है। आईआईटी खड़गपुर तथा कनाडा के एथाबास्का विश्वविद्यालय के संयुक्त अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि भारत को प्रतिवर्ष केवल 3,000 घनमीटर वर्षा जल की आवश्यकता होती है और उसे प्रतिवर्ष लगभग 4,000 घनमीटर वर्षा जल प्राप्त होता है। यानी आवश्यकता से अधिक, लेकिन हम इस वर्षा जल का केवल 8 प्रतिशत संचित कर रहे हैं। जलशोधन एवं पुनः उपयोग हेतु बनाने की अक्षमता के कारण विश्व में यह जल संचयन, विश्व में सबसे कम है। जबकि समुद्र किनारे बसा इजराइल जैसा मरुस्थलीय देश, उपयोग किए गए पानी का 100 प्रतिशत शोधन कर, उसका लगभग 94 प्रतिशत वापस घरों में उपयोग हेतु भेज देता है। इजराइल समुद्री पानी के खारेपन को शोधित पेयजल में भी परिवर्तित करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजराइल यात्रा पर वहाँ के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसका जीवंत प्रदर्शन भी किया था।

चेन्नई में पानी के लिए लगती भीड़।चेन्नई में पानी के लिए लगती भीड़।

नीति आयोग ने अपनी पिछली रिपोर्ट में इस भयावह स्थिति को लेकर चेताया था। पर लगभग किसी राज्य ने इस पर ध्यान नहीं दिया। मूलतः बढ़ती हुई जनसंख्या, द्रुतगति से शहरीकरण तथा भारी उद्योगीकरण इस समस्या का कारण है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले वर्ष तक देश के 21 बड़े महानगर शून्य जल दिवस (जीरो वाटर डे) की स्थिति में पहुँच सकते हैं। यूरोपीय संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार अंधाधुन्ध शहरीकरण के कारण आध्रंप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली जैसे प्रदेश इस समय पानी की सर्वाधिक कमी की स्थिति में हैं। चेन्नई के वर्षा जल केन्द्र निदेशक शेखर राघवन के अनुसार, शहरों के विस्तार एवं अनियंत्रित और अनियमित भवन निर्माण गतिविधियों के कारण प्राकृतिक जल भराव क्षेत्रों को पाटा जा रहा है। पर्यावरण फाउंडेशन के संस्थापक अरुण कृष्णमूर्ति का कहना है, अनियंत्रित बोरिंग वेल के उपयोग से पानी की समस्या उठ खड़ी हुई है। हमें बोरिंग गतिविधियों पर पूर्ण नियंत्रण करना होगा। एक समाचार के अनुसार कर्नाटक सरकार अगले पाँच वर्ष के लिए बहुमंजिले भवन निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर गम्भीरता से विचार कर रही है। बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान भी न केवल भारत, अपितु भूमध्य रेखा के आस-पास के कई देशों में भूगर्भीय जल के स्तर को सुखाता जा रहा है। भीषण तपिश में भूमिगत जल की आर्द्रता भाप बनकर उड़ती जाती है और छोड़ जाती है पृथ्वी की छलनी-छलनी सूखी परतें। और हम सूखी धरती को और गहरे छेदते चले जा रहें हैं। हम भूमि की उस परत तक धरती को छेदने की स्थिति में पहुँच जाएँ कि जहाँ से पानी के स्थान पर भाप और आग की लपटें ऊपर आ जाएँ। देश के कई क्षेत्रों से धरती दरकने, सूखने, धुआं निकलने और कोयला खनन क्षेत्र में गहरी होती खदानों से आग निकलने की खबरें यदा-कदा आती रहती हैं।
 
संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की भयावहता के कारण, विश्व क्रमशः ऐसी अवस्था में पहुँच रहा है जब अमीर लोगों के पास बढ़ते हुए तापमान, भूखे से संघर्ष से बचने के साधन होंगे, परन्तु विश्व की 80 प्रतिशत से अधिक गरीब जनता को दुष्परिणाम भोगने होंगे। राज्यसभा में जलसंकट पर हुई चर्चा में केन्द्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री माधवन ने कहा कि सूखा और जल अभाव के कारण ग्रामीण जनसंख्या पहले से ही अति-जनसंख्या वाले शहरों की ओर भागेगी और इस कारण गरीबों का भोजन, पानी, आवास और महंगा होता जाएगा।
 
सन 2030 तक देश की 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या को पेयजल उपलब्ध नहीं हो सकेगा। अगले पाँच वर्ष में यदि इस समस्या का सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, एवं स्वयं जनता द्वारा कोई उपाय नहीं किया गया तो भारत को जल संकट की भंयकरतम स्थिति से जूझना होगा। अभी हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में स्वच्छता आंदोलन की तरह ही जन-मन की सक्रिय सहभागिता के साथ जल संरक्षण आंदोलन चलाने का आह्वान किया है। इस संकट से उबरना अकेले सरकार के वश में नहीं है। प्राप्त पेयजल का घरों में विभिन्न उपयोगों में सावधानीपूर्वक उपभोग करना, वर्षा जल का संचयन करना तथा उपयोग किए गए जल को पुनः उपयोग योग्य बनाने (वाटर रिसाइकलिंग) के क्षेत्र में, आवासीय इकाई स्तर से नगर निगम, महानगर तथा प्रान्तीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध स्तर से कार्य करना होगा। हमें शून्य जल की स्थिति में नहीं पहुँचने के लिए कटिबद्ध होना होगा। सरकार को छोटे घरेलू वाटर रिसाइकलिंग प्लांट बनवाकर बहुमंजिली इमारतों तथा महानगरों की कालोनियों में लगाना अनिवार्य करना होगा, क्योंकि पानी की सर्वाधिक बर्बादी इन्ही इलाकों में होती है जहाँ से, निजीकरण ताल और पेयजल से कार धोने के समाचार मिलते रहते हैं। इन पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। सर्वाधिक आवश्यकता है जनता के स्वयं चेतने की, कहा भी गया है कि रहिमन पानी राखिए, बिना पानी सब सून।

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