हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी

20 Jul 2014
0 mins read
भारत सरकार को पांचवी पंचवर्षीय योजना में हिमालयी क्षेत्रों के विकास की याद आई थी, जो हिल एरिया डेवलपमेंट के नाम से चलाई गई थी। इसी के विस्तार में हिमालयी क्षेत्र को अलग-अलग राज्यों में विभक्त किया गया, लेकिन विकास के मानक आज भी मैदानी हैं। जिसकी वजह से हिमालय का शोषण बढ़ा है, गंगा में प्रदूषण बढ़ा है, बाढ़ और भूस्खलन को गति मिली है। इसलिए हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी इस पर गंभीरता पूर्वक गंगा नदी अभियान को कार्य करना होगा।भगीरथ ने गंगा को धरती पर उतारा। गंगा के पवित्र जल को स्पर्श करके भारत ही नहीं दुनिया के लोग अपने को धन्य मानते हैं। गंगा को अविरल बनाए रखने के लिए हिमालय में गौमुख जैसा ग्लेशियर है। इसके साथ ही, हिमालय से निकलने वाली नदियां हैं उनको नौ हजार से भी अधिक ग्लेशियरों ने जिंदा रखा हुआ है। इसलिए गंगा और उसकी सहायक नदियों की अविरलता हिमालयी ग्लेशियरों पर टिकी हुई है।

हरिद्वार गंगा का पहला द्वार कहा गया है लेकिन गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ से गंगा में मिलने वाली सैकड़ों नदी धाराएं गंगा जल को पोषित और नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। हिमालय के साथ विकास के नाम पर जो छेड़-छाड़ दशकों से चल रही है उससे गंगा को बचाने की जरूरत है।

हिमालय से गंगा सागर तक मिलने वाली सभी नदियों से 60 प्रतिशत जल पूरे देश को मिलता है। यह जल 5 दशकों से कम होता जा रहा है। गोमुख ग्लेशियर प्रति वर्ष 3 मीटर पीछे जा रहा है।

कभी बर्फ अधिक तो कभी कम पड़ती है लेकिन पिघलने की दर उससे दोगुना हो गई है। हिमालय पर बर्फ का तेजी से पिघलने का सिलसिला सन् 1997 से अधिक बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन इसका एक कारण है। दूसरा वह विकास है जिसके कारण हिमालय की छलनी कर दी गई है। इसके प्रभाव से हिमालय से निकलने वाली गंगा और इसकी सहयक नदियां सांप की तरह तेजी से डंसने लग गई हैं।

अंधाधुंध विकास से खतरे में हिमालय16-17 जून 2013 की ऐतिहासिक आपदा के समय का दृश्य कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिसने गंगा के किनारे बसे लोगों के तामझाम नष्ट करने में एक मिनट भी नहीं लगाया। अगर यह जल प्रलय रात को होता तो उत्तराखंड के सैकड़ों गांव एवं शहरों में लाखों लोग मर गए होते लेकिन इस विचित्र रूप में गंगा ने सबको गवाह बनाकर दिखा दिया कि मानवजनित तथाकथित विकास के नाम पर पहाड़ों की गोद को छीलना कितना मंहगा पड़ सकता है। दूसरी ओर, इस आपदा में देशी-विदेशी हजारों पर्यटक, श्रद्धालुओं को यह संकेत मिल गया है कि हिमालय के पवित्र धामों में आना है तो नियंत्रित होकर आइए।

यूपीए की सरकार में हिमालय इको मिशन बनाया गया था। इसके तहत समुदाय और पंचायतों को भूमि संरक्षण और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ करनी थी इसके पीछे मुख्य मंशा यह थी कि हिमालय में भूमि प्रबंधन के साथ-साथ वन संरक्षण और जल संरक्षण के काम को मजबूती दी जा सके, ताकि गंगा समेत इसकी सहायक नदियों में जल की मात्रा बनी रहे लेकिन ऐसा करने के स्थान पर आधुनिक विज्ञान ने सुरंग बांधों को मंजूूरी देकर गंगा के पानी को हिमालय से नीचे न उतरने की सलाह दे दी गई है। जबकि बिजली सिंचाई नहरों से भी बन सकती है।

वर्तमान भाजपा की सरकार ने गंगा बचाने के लिए नदी अभियान मंत्रालय बनाकर निश्चित ही सबको चकाचौंध किया है, जिस अभियान को पहले ही कई स्वैच्छिक संगठन, साधु-संत और पर्यावरणविद् चलाते रहे हैं वह अब सरकार का अभियान बन गया है।

यह पहले से काम करने वालों की उपलब्धि ही है। लेकिन गंगा स्वच्छता के उपाय केंद्रीय व्यवस्था से ही नहीं चल सकते हैं। यह तभी संभव है जब गंगा तट पर रहने वाले लोगों के ऊपर विश्वास किया जा सके।

बाहर से गंगा सफाई के नाम पर आने वाली निर्माण कंपनियां जरूर कुछ दिन के लिए गंगा को स्वच्छ कर देंगी, लेकिन समाज की भागीदारी के बिना गंगा फिर दूषित हो जाएगी। इसके लिए यह जरूरी है कि गंगा के उद्गम से गंगा सागर तक प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व हरियाली बचाने वाले समाज को रोजगार देना होगा।

जो समाज गंदगी पैदा करता है उसे अपनी गंदगी को दूर करने की जिम्मेदारी देनी होगी। नदी तटों पर बसी हुई आबादी के बीच ही पंचायतों व नगरपालिकाओं की निगरानी समिति बनानी होगी। लेकिन इसमें यह ध्यान अवश्य करना है कि इस नाम पर सरकार जो भी खर्च करे वह समाज के साथ करेे। ताकि उसे स्वच्छता के गुर भी सिखाए जा सकें और उसे इसका मुनाफा भी मिले। इसके कारण समाज और सरकार दोनों की जिम्मेदारी तय होगी। दूसरा हिमालय के बिना गंगा का अस्तित्व संभव नहीं है।

अंधाधुंध विकास से खतरे में हिमालयअब न तो कोई भगीरथ आएगा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रयास तभी सफल हो सकता है जब गंगा नदी के तट पर बसे हुए समाजों के साथ राज्य सरकारें ईमानदारी से गंगा की अविरलता के लिए काम करें। अगर इसे हासिल करना है तो हिमालय के विकास मॉडल पर विचार करना जरूरी है आज के विकास से हिमालय को बचाकर रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए हिमालय नीति जरूरी है। ताकि गंगा की अविरलता, निर्मलता बनी रहे।

बजट में भी हिमालय को समझने के लिए उत्तराखंड हिमालय अध्ययन केंद्र भी बनने जा रहा है, जो स्वागत योग्य है। लेकिन हिमालयी क्षेत्रों के बारे में गढ़वाल, कुमाऊं जम्मूकश्मीर, उत्तर पूर्व और हिमाचल के विश्वविद्यालयों ने तो पहले से ही शोध और अध्ययन किए हुए हैं, जिसके बल पर हिमालय के अलग विकास का मॉडल तैयार हो सकता है। यहां तक कि उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने नदी बचाओ अभियान के दौरान हिमालय लोक नीति का मसौदा - 2011 भी तैयार किया है।

भारत सरकार को पांचवी पंचवर्षीय योजना में हिमालयी क्षेत्रों के विकास की याद आई थी, जो हिल एरिया डेवलपमेंट के नाम से चलाई गई थी। इसी के विस्तार में हिमालयी क्षेत्र को अलग-अलग राज्यों में विभक्त किया गया, लेकिन विकास के मानक आज भी मैदानी हैं। जिसकी वजह से हिमालय का शोषण बढ़ा है, गंगा में प्रदूषण बढ़ा है, बाढ़ और भूस्खलन को गति मिली है। इसलिए हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी इस पर गंभीरता पूर्वक गंगा नदी अभियान को कार्य करना होगा।

(लेखक- सुरेश भाई अध्यक्ष उत्तराखंड सर्वोदय मंडल एवं नदी बचाओ अभियान से जुड़े हैं। ईमेल- hpssmatli@gmail.com)

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading