हिमालय पर और बड़े भूकम्प की आशंका (Himalayas and large Earthquakes)

सिंगापुर स्थित नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की अर्थ ऑब्जरवेटरी से जुड़े पॉल टाप्पिओनियर के अध्ययन के मुताबिक, काठमांडू में 1255 और 1934 में आए भूकम्प अभूतपूर्व यानी ऐसे थे जिनसे भूमि की ऊपरी परत फट गई थी। ऐसे में दबी हुई ऊर्जा भूकम्प के रुप में उभरती है। चूँकी 1934 में नेपाल के भूकम्प स्थल के पश्चिम या पूर्व में भूमि फटने के कारण भूकम्प आने सम्बन्धी रिकॉर्ड नहीं मिले हैं, सो अब भूकम्प आने की आशंका है।

25 अप्रैल को भीषण भूकम्प से भारी तबाही के लिए इमारतों के निर्माण की खराब गुणवत्ता को प्रमुख कारण के तौर पर गिनाया जा सकता है। नेपाल भूवैज्ञानिक दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित क्षेत्रों में शुमार किया जाता है। यह भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के यूरेसियन प्लेट के संधि स्थल पर स्थित है। इस कारण से टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने से एक प्रकार का दबाव बनता है। जिससे जब-तब भूकम्प की आशंकाएँ बनी रहती हैं। नेपाल में भूकम्पों का लम्बा इतिहास रहा है। वर्ष 1255, 1344, 1833, 1866 और 1934 में भूकम्प आए जिनसे खासी तबाही हुई।

इन भूकम्पों को समझने-जानने के लिए दशकों शोध किए गए। शोधों से मिले निष्कर्षों के आधार पर काफी समय से माना जाता रहा है कि एक बड़ा भूकम्प, ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक किसी भी समय आ सकता है। लेकिन कब आएगा और किस जगह पर आएगा? कहा नहीं जा सकता। हिमालयी पट्टी में अनेक एसी जगहें हैं, जहाँ काफी मात्रा में अभी ऊर्जा एकत्रित है, जो ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक का कारण बन सकती है।

रिक्टर स्केल पर 7.9 क्षमता के भूकम्प ने 25 अप्रैल को काफी नुकसान किया है, लेकिन इसे ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ नहीं कहा जा सकता। वैसा बड़ा नहीं जो 8 की क्षमता वाला होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोरेडो बॉल्डर के भू-विज्ञानी रोजर बिलहम, जो हिमालय क्षेत्र में भूकम्पीय अध्ययन से जुड़े रहे हैं, ‘भूकम्प उस क्षेत्र में आते हैं, जो प्रतिवर्ष 18 मि.मी. संकुचित होता है।’ उनका कहना है कि अभी आया भूकम्प एकत्रित दबाव के रिलीज होने के कारण आया है। उनकी टीम ने हिमालयी क्षेत्र में उन स्थानों को चिन्हित किया जहाँ भूकम्प आने की आशंका है।

भूकम्प की सम्भावना पहले से थी


सिंगापुर स्थित नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की अर्थ ऑब्जरवेटरी से जुड़े पॉल टाप्पिओनियर के मुताबिक, ‘नेपाल में आया भूकम्प कोई अचरज नहीं है। इसके आने के पहले से ही सम्भावना थी। बेहद अधिक क्षमता के भूकम्प का अनुमान था। माना जा रहा था कि काठमांडू और पोखरा के बीच किसी स्थान पर यह तबाही मचाएगा।’ टाप्पिओनियर ने भूकम्पिय सम्बन्धी अध्ययन की दृष्टि से काफी काम किया है।

उनके एक अध्ययन के मुताबिक, 1255 और 1934 में आए भूकम्प अभूतपूर्व यानी ऐसे थे जिनसे भूमि की ऊपरी परत फट गई थी। ऐसे में दबी हुई ऊर्जा भूकम्प के रुप में उभरती है। चूँकी 1934 में नेपाल के भूकम्प स्थल के पश्चिम या पूर्व में भूमि फटने के कारण भूकम्प आने सम्बन्धी रिकार्ड नहीं मिले हैं, इसलिए वहाँ भूकम्प आने की खासी आशंका है।

हालाँकि हालिया भूकम्प ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ नहीं है, लेकिन इससे तबाही काफी हुई है। तो इस बर्बादी के क्या कारण हैं? नेपाल में भवन निर्माण की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, निर्माण सामग्री भी अच्छी क्वालिटी की नहीं होने से नुकसान हुआ है। टाप्पिओनियर के मुताबिक, भूकम्प की आशंका वाले स्थानों पर निर्माण कार्यों के लिए हालाँकि नियम बनाए गए हैं, लेकिन उनका अनुपालन कोई नहीं करता। चूँकि अंदाजा लगाया जाना असम्भव है कि कब और कहाँ ग्रेट हिमालयन भूकम्प आएगा, इसलिए जरूरी है कि स्कूलों, अस्पतालों और अग्नि समन केन्द्रों को मजबूत बनाया जाए। साथ ही, आपदा प्रबन्धन योजनाएँ भी बनाई जानी चाहिए। बिलहम कहते हैं, ‘हम बीते दो दशकों से काठमांडू में इन उपायों पर काम करते रहे हैं और हमें जल्द ही जानने को मिलेगा कि उपाय कितने कारगर रहे।’

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