हिमालयी जैव विविधता पर खतरा है काली बासिंग

काली बासिंग जैव विविधता पर कैंसर की तरह है।
काली बासिंग जैव विविधता पर कैंसर की तरह है।

काली बासिंग जैव विविधता पर कैंसर की तरह है जो अन्य पौधों से पोषक पदार्थों और आवास के लिए प्रतिस्पर्धा करता है, सफल भी होता है। जिसके कारण अन्य पौधों को पोषक तत्व और आवास नहीं मिल पाता। वो धीरे-धीरे कम हो जाती है जिससे जैविक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियां संकटग्रस्त हो रही हैं जिसका प्रभाव प्रकृति से मिलने वाले पदार्थों पर पड़ रहा है।

जैविक आक्रमण आज जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है और जैव विविधता की हानि और स्थानीय प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए प्राथमिक कारण के रूप में जाना जाता है। विदेशी जातियां जो स्थानीय रूप से प्रभारी हो जाती हैं और प्राकृतिक समुदायों पर आक्रमण करती हैं उन्हें आक्रमक प्रजाति के रूप में जाना जाता है। एक आक्रमणकारी पौधे, पशु या सूक्ष्म जीवों की एक प्रजाति है जो आम तौर पर मनुष्यों के द्वारा अनजाने या जानबूझकर कर नुकसान पहुंचाया जाता है। आक्रमणकारी प्रजातियां अपने आक्रामक स्वभाव के कारण त्वरित गति से अपने अधिग्रहण क्षेत्र का विस्तार करती हैं और स्थानीय जातियों से प्रतिस्पर्धा करती हैं। धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित कर लेती हैं। 

काली बासिंग को नियंत्रित करने के लिए प्रोसेसिडोकेर्स यूटिलिस का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन यह केवल पौधों के तनों पर गाॅल बनाता है तथा पौधे को अधिक नुकसान नहीं पहुंचता तथा इसका प्रयोग भी अधिक सफल नहीं हो पा रहा है। अतः भविष्य में हमें जैवविविधता को बचाने के लिए काली बासिंग का इसके अतिदोहन के द्वारा ही इसका उन्मूलन किया जा सकता है। इसके गुणों का उपयोग कई लाभदायक उत्पाद भी प्राप्त किये जा सकते हैं। 

काली बासिंग या वनमारा एस्टरेसी कुल का एक विदेशी पौधा है जिसकी उत्पत्ति का स्थान उत्तरी अमरीका का मैक्सिको माना जाता है और यह पूरे विश्व में अनाज के बीजों के साथ यहीं से फैला। यह पौधा समुद्र तल से 4000 फीट से 6500 फीट पर सार्वाधिक रूप से पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र की जलवायु इसके लिए सबसे अनुकूल मानी जाती है इसी कारण यह इन क्षेत्रों में सर्वाधिक रूप से पाया जाता है। काली बासिंग पूरी दुनिया के लिए आतंक बना हुआ है। यह पौधा मुख्य रूप से ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों एंव शीतोष्ण क्षेत्रों जैसे अमरीका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका, भारत, थाइलैण्ड और चीन में बहुत तेजी से फैल रहा है। यह पौधा लगभग 93 देशों और 250 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है। 

अपने गुणों के कारण यह पौधा बहुत कम समय में ही पूरी दूनिया में पैर पसार चुका है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के साथ खेत बंजर हो रहे हैं इन पर पनपने के लिए इसको स्थान मिल रहा है। यहां चीड़ और बांज दोनों के जंगलों में हर साल आग लगती रहती है जिसके कारण यहां की वनस्पतियां तो समाप्त हो रही हैं लेकिन इनकी जगह काली बासिंग ले रहा है। बांज के जंगलों में इसको नमी के साथ-साथ पोषक पदार्थ भी प्राप्त होते हैं इसलिए यहां भी यह तेजी से फैल रहा है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के कारण खाली हो चुके खेतों और नई बन रही सड़कों में भी यह बहुत तेजी से बढ़ रहा है। जो जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है।

काली बासिंग के कुप्रभाव 

काली बासिंग के द्वारा वनों, कृषि योग्य भूमि, छोटी नदियों, चरागाहों पर कब्जा कर लिया गया है जिसके कारण वनों से मिलने वाले वस्तुएं नहीं मिल पा रही हैं। दुधारु जन्तुओं के लिए चारा उपलब्ध नहीं हो रहा है। छोटी नदियां सूख रही हैं और पानी की कमी के कारण खेतों को पानी नहीं मिल रहा पा रहा है। काली बासिंग को फैलाने में मनुष्य का बड़ा हाथ रहा है मैक्सिको से भारत की यात्रा भी मनुष्य के द्वारा की गयी। आज यह नदियों के द्वारा लायी जाने वाली रेत के कारण यह दूर-दूर तक फैल रहा है और नई जगहों पर उग रहा है। काली बासिंग हवा के द्वारा अपने आस पास के क्षेत्र में फैलता रहता है। 

काली बासिंग वहां पर अधिक पाया जाता है जहां औषधीय पौधे अधिक पाये जाते हैं। इसके कारण कई औषधीय पौधे जैसे- समुया, जीरा हल्दी, ब्राम्ही, कन्डाली, पुदीना, किनगौड़ आदि धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं। काली बासिंग के अतिक्रमण के कारण जंगलों और चारागाहों में घास कम हो रही है जिसकी वजह से पालतू पशुओं के लिए चारा नहीं मिल पा रहा है। जिससे दूध की मात्रा घट रही है और पशुओं की कार्य क्षमता कम हो रही है जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आर्थिक और शारीरिक स्वास्थय पर पड़ा है। हमारे क्षेत्र में पायी जाने वाली छोटी नदियों के किनारे काली बासिंग की मात्रा बढ़ रही है जिसके कारण पानी की मात्रा कम हो रही है और खेतों के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। छोटी नदियों में पाई जाने वाली निमैकैलिस मछली तो लगभग गायब हो चुकी है। काली बासिंग की झाड़ियां नमी वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक फैल रही है और सुअर भी नमी वाले स्थानों पर अधिक रहते हैं जिसके कारण सुअरों को पर्याप्त एवं आरामदायक आवास उपलब्ध हो रहा है। जिसके कारण उनकी जनसंख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो रही है। 

काली बासिंग के उपयोग

पर्वतीय क्षेत्रों में यूपैटोरियम एडेनोफोरम की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है इसकी जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण है एक तो इसके एलीलेपैथिक गुणों के कारण असके आस पास कोई भी पौधा वृद्धि नहीं कर पाता है। दूसरा इसकी पत्तियों को कोई भी जन्तु नहीं खाता और यह पौधा आसानी से कहीं भी उग सकता है, बड़ी तेजी से वृद्धि करता है। इसकी गन्ध से कई जीव दूर भागते है इसकी इन्हीं खूबियों का इस्तेमाल कर इससे कई तरह के पदार्थ बनाए जा सकते हैं जिससे यहां के स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल अपनी जीविकोपार्जन के लिए कर सके और जैवविविधता को नष्ट होने से बचाया जा सके।

हरी खाद के रूप में

काली बासिंग को हरी खाद के रूप में प्रयोग करने के लिए सबसे पहले इसके पौधों को जड़ से काटकर लाया जाता है फिर इसके कोमल भागों एंव पत्तियों को काटकर इसके छोटे छोटे टुकड़े किए जाते हैं ताकि ये मिट्टी के साथ आसानी से मिल जाये। खेतों में हल चलाते समय भी नालियां बनाकर उसमें काली बासिंग की पत्तियों एंव कोमल तनों को डालकर उसके ऊपर पाटा लगा दिया जाता है जिससे ये मृदा के नीचे दब जाते हैं और सड़ने के बाद इनकी खाद बन जाती है।

धूमक के रूप में- उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में मच्छरों की संख्या लगातार बढ़ रही है इसकी पत्तियों तथा टहनियों को सुखाकर जलाने से मच्छर दूर भागते हैं। इनको भागने के लिए भी काली बासिंग का उपयोग किया जा सकता है।

जैव उर्वरक के रूप में- इसका प्रयोग जैव उर्वरक के रूप है तथा साथ ही साथ इसका उपयोग हरी खाद के रूप में भी किया जा सकता है। 

जैविक दवाईयों- इसका प्रयोग कई प्रकार की दवाईयां बनाने के लिए भी किया जा रहा है। जैसे यदि चोट लग जाती है तो घाव को संक्रमण से बचाने के लिए इस पर काली बासिंग की पत्तियों को पीसकर लगा दिया जाता है। तथा रक्त प्रवाह को रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसका प्रयोग प्रतिदाह या सूजन कम करने के लिए भी किया जाता है।

भूमि संरक्षण- जहां एक तरफ काली बासिंग छोटे पौधों को नष्ट करता है वहीं यह मृदा संरक्षण का कार्य भी करता है क्योंकि इसकी जड़ें मिट्टी को जकड़ कर रखती हैं। जहां पर मृदा कटाव बड़ी तेजी से हो रहा है वहाँ पर इसका उपयोग किया जा सकता है।

काली बासिंग का जैविक नियंत्रण

काली बासिंग को नियंत्रित करने के लिए प्रोसेसिडोकेर्स यूटिलिस का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन यह केवल पौधों के तनों पर गाॅल बनाता है तथा पौधे को अधिक नुकसान नहीं पहुंचता तथा इसका प्रयोग भी अधिक सफल नहीं हो पा रहा है। अतः भविष्य में हमें जैवविविधता को बचाने के लिए काली बासिंग  का इसके अतिदोहन के द्वारा ही इसका उन्मूलन किया जा सकता है। इसके गुणों का उपयोग कई लाभदायक उत्पाद भी प्राप्त किये जा सकते हैं।

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