हिंडन के हितैषी

9 Jan 2013
0 mins read
hindon river walk
hindon river walk

किसी को व्यथित करे न करे, हिंडन पर होते अत्याचार ने मोहम्मदपुर धूमी के जयपाल को बेहद व्यथित किया। उसकी सारी रात आंखों में कटी। सुबह होते ही उसकी बेचैनी कागज पर उतर आई:

हम इसकी रेती में खेले। इस पर लगते देखे मेले।
इसने बहुत आक्रमण झेले। कहां तक इसकी व्यथा सुनायें।।

बचपन में हम भी नहाते थे। मेलों में साधु आते थे।
इसका जल लेकर जाते थे। कीचड़ लेकर क्यों कोई जाये?

भविष्य में जहर इस जल में होगा। फिर हर घर के नल में होगा।
छेद नदी के तल में होगा। फिर हम कैसे बच पायेंगे??


मवीकलां के योगेन्द्र वैदिक और आर्यवीर की चिंता और गहरी है:
शामली तेरा दुश्मन हो गया, बहा नदी में नाला।
कदै नीला-नीला जल होवे था, आज हो गया काला।
तेरा जग में कौन रुखाला री, मां आज सरकार होगी अंधी।
तने देख दिल घायल हो गया, हे हिंडन हरनन्दी।


आगे चेताते हैं:
इस जल की महिमा न भूलो। यह जीवन-ज्योति है।
अगली पीढ़ी मोती है। मोती की चमक बचायें।
सोचो! इन बच्चों को हम क्या देकर जायेंगे।
दूषित पानी से ये दूषित जीवन ही तो पायेंगे।


जयपाल, आर्यवीर, योगेन्द्र वैदिक, खिन्दौड़ा का सुशील त्यागी, मशहूर बालूशाही वाले देवेन्द्र भगत, डौला के डॉ. कृष्णपाल सिंह-कुलदीप पुण्डीर, ढिकोली के संजीव ढाका, महंन्त लक्ष्यदेवानंद, दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रो. एस. प्रकाश, सहारनपुर जैन डिग्री कॉलेज के प्रवक्ता पी के शर्मा, पावला की पाठशाला के प्राचार्य ईश्वरचंद्र कौशिक, जनहित फाउंडेशन के स्व. अनिल राणा, गाजियाबाद के एडवोकेट विक्रांत, एम एम कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. बी बी सिंह, इंजीनियर रोहित, पूर्व पुलिस उपाधीक्षक डॉ. सत्यदेव शर्मा....कितने नाम गिनाऊं... हिंडन की व्यथा ने कई को व्यथित किया। तरुण भारत संघ के जलपुरुष राजेन्द्र सिंह इसी इलाके की संतान हैं। उनके जन्मभूमि ने उन्हें भी आवाज दी। वे अपने साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान के रमेश शर्मा व राजस्थान के विधानसभाध्यक्ष रहे स्व. राजागोपाल सिंह को भी इस व्यथा में भागीदार बनाने ले आये। हिंडन व हिंडन के समाज को समझने के लिए ये सभी गांव-गांव घूमे। जन-जन को हिंडन की व्यथा सुनाई। स्कूलों में गये।हिंडन ने गांव भूपखेड़ी की जमीन को बहुत बार काटा है। उस पर संकट पहले आया। अतः भूपखेड़ी पहले चेता। भूपखेड़ी की पंचायत ने बहुत पहले प्रदेश की सरकार से अपनी गुहार की। संकट तो बागपत के नवादा पर भी आया। बागपत के प्रसिद्ध बोतल खरबूजे की मिठास खो गई है।स्थानीय नवोदय विद्यालय के बच्चे जहरीला पानी पीने को विवश हैं। मुकारी गांव का हाजमा बिगड़ चुका है।

ननौता, सहारनपुर की मिलों के प्रदूषण ने तो गांव भनेड़ा-खेमचंद के नौजवानों की शादी ही रोक दी थी। वह कंवारों के गांव के नाम से बदनाम होने लगा था। कृष्णी नदी का पानी पी लेने वाली गांव की गर्भवती भैंसे समय से पहले बच्चा फेंकने लगी थी। गांव भर में चमड़ी व पेट के रोग आम थे। कम उम्र में मौत के मामले बढ़ने लगे थे। ऐसे में कौन और क्यों अपनी बेटी को जानबूझकर बीमारी के मुंह में ढकेले इस गांव में प्रो एस. प्रकाश ने संकल्प दिखाया। संकल्प पूरा करने के लिए उन्होने यहां लंबा प्रवास किया। गांव को जोड़ा। कानूनी और जमीनी.. दोनो लड़ाई के लिए तैयार किया। पी के शर्मा ने दिन-रात एक कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अदालत को जमीनी हकीकत बताने का काम किया। जलबिरादरी के तमाम साथी सहयोगी बने। पल्स पोलियो अभियान का बहिष्कार हुआ। अंततः भनेड़ा-खेमचंद की जीत हुई। मधुसूदन घी व किसान सहकारी चीनी मिल आदि ननौता की फैक्टरियां अपना प्रदूषण समेटने को मजबूर हुईं।

हिंडन के लिए ऐसे प्रयासों के नतीजों ने थोड़ी ताकत तो दी। कई गांव संकल्पित भी हुए। अटोर, सिरोरा, गढ़ी, पूरनपुर नवादा, ललियाना, चमरावत, घटोली, डौलचा, बालैनी, मवीखुर्द और मवीकलां में इकाइयां भी बनी। सब ने अपनी-अपनी जिम्मेदारियों भी तय कीं। कई यात्राओं, प्रयोगशालों की जांच का दौर भी चला। लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून ने भी थोड़ी रुचि दिखाई। सरकार के कान पर जूं भी रेंगी। किंतु वह जूं सरकार के पूरे सिर को बेचैन नहीं कर सकी। हालांकि सरकार व समाज हिंडन की व्यथा से बेचैन हो, इसी कोशिश में विक्रांत, कृष्णपाल, प्रशांत, रमन... जैसे कई नौजवान अभी भी लगे हैं; लेकिन हिंडन की बीमारी लंबी है। हिंडन को कैंसर है। इसके लिए इलाज भी सतत् और लंबा ही चाहिए। सातत्य सुनिश्चित करने के लिए मरीज की हालत पर सतत् निगरानी के लिए निगरानी टीम चाहिए। डॉक्टर चाहिए। क्या आप हिंडन का डॉक्टर बनना चाहेंगे। हिंडन के साथ-साथ सक्रिय नौजवानों को ऐसे ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की तलाश है। क्या आप ऐसा डॉक्टर बनना चाहेंगे ?
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading