हर साल बाढ़ से क्यों परेशान है बिहार

29 Jul 2019
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हर साल बाढ़ से क्यों परेशान है बिहार।
हर साल बाढ़ से क्यों परेशान है बिहार।

बिहार में बाढ़ की विभीषिका विकराल रूप ले रही है। बाढ़ की वजह से कई गाँवों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। सवा सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु की पुष्टि सरकार ने की है। न जाने कितनों की जानकारी ही नहीं है। पिछले हफ्ते जारी सूचना के अनुसार, आकाशीय बिजली गिरने से बिहार के अलग-अलग जिलों में 39 और झारखण्ड में 12 लोगों की मौत हुई है। करीब 82 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। विडम्बना है कि उत्तर बिहार और सीमांचल के 13 जिलों पर सूखे का साया है।

नेपाल में पिछले कुछ दशकों में पत्थर के उत्खनन और जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई के कारण हालात बिगड़े हैं। सन् 2002 से 2018 तक नेपाल 42,513 हेक्टेयर वन भूमि गवां चुका है। पत्थरों का उत्खनन भी हो रहा है, जो नेपाल और भारत में तेजी से हो रहे निर्माण कार्य के लिए किया जा रहा है। बारिश का पानी रुकने की बजाए तेेजी से बहकर निकल जाता है। रेत माफियाओं ने नदियों को खोद-खोद कर गड्डों में बदल दिया है। 

असम और उत्तरप्रदेश से भी बाढ़ की विभिषिका की खबरें हैं। असम राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के मुताबिक 33 जिलों में से 20 जिलों में बाढ़ से 38.82 लाख लोग प्रभावित हैं। केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार बिहार में बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदी अलग-अलग स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। पश्चिम बंगाल के निचले इलाकों में भी भारी बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं। बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत और तनाव के काम चल रहे हैं। अभी पीड़ित परिवारों को छह-छह हजार रुपए की मद सीधे खातों में भेजी जा रही है। इसके बाद खेती से नुकसान का आंकलन होगा और किसान फसल सहायता और कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिए मदद की जाएगी। आपदा प्रबन्धन विभाग के अनुसार सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण, सहरपा, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिलों में बाढ़ है। सीतामढ़ी में सबसे ज्यादा 37 लोगों की मौत हुई है।
 
देश के सबसे प्रमुख बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में बिहार का नाम लिया जाता है। उत्तर बिहार की करीब 76 फीसदी आबादी तकरीबन हर साल बाढ़ का दंश झेलती है। देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में से 16.5 फीसदी बिहार में है और देश की कुल बाढ़-प्रभावित आबादी में से 22.1 फीसदी बिहारी है। बिहार के कुल 94,163 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से करीब 68,800 वर्ग किलोमीटर यानी कि 73.06 फीसदी क्षेत्र बाढ़ से पीड़ित है। एक मायने में बिहार में बाढ़ सलाना त्रासदी है, जो अनिवार्य रूप से आती ही है। इसके भौगोलिक कारण हैं।
 
बिहार के उत्तर में नेपाल का पहाड़ी क्षेत्र है, जहाँ वर्षा होने पर पानी नारायणी, बागमती और कोसी जैसी नदियों में जाता है। ये नदियाँ बिहार से होकर गुजरती हैं। नेपाल की बाढ़ भारत में भी बाढ़ का कारण बनती है। यह बाढ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में होती है। सन 2008, 2011, 2013, 2015, 2017 और 2019 वे वर्ष हैं, जब नेपाल और भारत दोनों देशों में भीषण बाढ़ दर्ज की गई है। कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली वे नदियाँ हैं जो नेपाल के बाद भारत में बहती हैं। जब नेपाल के ऊपरी हिस्से में भारी वर्षा होती है तो तराई के मैदानी भागों और निचले भू-भाग में बाढ़ की स्थिति बनती है। एक बड़ी खामी यह है कि नेपाल के ऊपरी इलाकों में भारी वर्षा की सूचना भारत में देर से मिलती है। समय से सूचना मिलने पर बचाव के काम पहले से किए जा सकते हैं। कई बार अफवाहें भी हालात को बिगाड़ती हैं, इसलिए विश्वसनीय सूचना नेटवर्क को विकसित करने की जरुरत है। भारत व नेपाल की सरकारों ने एक-दूसरे को बाढ़-सूचना देने की व्यवस्था विकसित की, पर इसमें आमतौर पर 48 घंटे का समय लगता है, लेकिन बिहार में बाढ़ का स्थाई समाधान क्या है ? राज्य के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने कहा है कि जब तक नेपाल में कोसी नदी पर प्रस्तावित उच्च बाँध नहीं बन जाता बिहार को बाढ़ से मुक्ति नहीं मिलेगी। उत्तर बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए सन 1897 से भारत और नेपाल की सरकारों के बीच सप्तकोशी नदी पर बाँध बनाने की बात चल रही है। सन् 1991 में दोनों देशों के बीच इसे लेकर एक समझौता भी हुआ था। इस परियोजना के साथ बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास की समस्या भी जुड़ी है, साथ ही नेपाल के लिए इसमें कोई बड़ा आकर्षण नही है। इस बाँध से सिर्फ कोसी क्षेत्र में बाढ़ से राहत मिलेगीा। उत्तर बिहार में कोसी के अलावा गंडक, बागमती, कमला, बलान और महानंदा नदी में भी अक्सर बाढ़ आती है। कोसी इलाके में यों भी बाढ़ का प्रकोप अब कम हो गया है। 

नेपाल में पिछले कुछ दशकों में पत्थर के उत्खनन और जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई के कारण हालात बिगड़े हैं। सन् 2002 से 2018 तक नेपाल 42,513 हेक्टेयर वन भूमि गवां चुका है। पत्थरों का उत्खनन भी हो रहा है, जो नेपाल और भारत में तेजी से हो रहे निर्माण कार्य के लिए किया जा रहा है। बारिश का पानी रुकने की बजाए तेेजी से बहकर निकल जाता है। रेत माफियाओं ने नदियों को खोद-खोद कर गड्डों में बदल दिया है। बिहार और झारखण्ड से इस साल आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई मौतों की खबरे भी आ रही हैं। बरसात के दिनों में जब भी एक समय तक सूखा मौसम रहने के बाद बारिश होती है, तो आकाशीय बिजली गिरती है। मानसून में मौसम का मिजाज ऐसा ही रहता है।

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