ई-प्रशासन ने बदला ग्रामीण परिवेश

ई-प्रशासन सरकार एवं नागरिकों के मध्य संपर्क सेतु का कार्य करता है, इसके माध्यम से शासन की नीतियां-कार्ययोजनाएं जैसी महत्वपूर्ण सूचनाएं सीधे तौर पर आमजन तक पहुंचती हैं, सूचना संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा भारतीय आर्थिक विकास को गति मिल रही है। ई-प्रशासन के लिए भारत सरकार अरबों रुपए व्यय कर रही है, महज इसलिए कि ग्रामीण भारत के निर्धन लोगों को उनकी निर्धनता, निरक्षरता, कुपोषण, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से निजात मिल सके। इस संदर्भ में ई-प्रशासन काफी हद तक कारगर साबित हुआ है। ग्रामीण भारत में जो सकारात्मक विकास एवं परिवर्तन हो रहे हैं, उसमें ई-प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है। ई-प्रशासन के लाभ- भारत में ई-प्रशासन से लाभ को दो रूपों में देखा जा सकता है- आर्थिक लाभ और सामाजिक लाभ।

आर्थिक लाभ- आमतौर पर ग्रामीण वर्ग के युवाओं को रोजगार देकर, किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत देकर और उत्पादन में आई कमी को रोक कर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

सामाजिक लाभ- इसके अंतर्गत ग्रामीण भारतीय किसान ई-प्रशासन का ज्ञान प्राप्त कर कृषि, स्वास्थ्य, मौसम का पूर्वानुमान, फसल प्रणाली, शिक्षा, वित्त एवं बीमा और सरकारी निर्णय प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी आदि की जानकारी प्रदान कर लाभ पहुंचाता है।

भारत में सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

ई-चौपाल- इसकी स्थापना जून 2000 में आईसीटी के कृषि व्यवसाय प्रभाग ने की थी। इसकी रूपरेखा छोटे-छोटे खेतों, कमजोर बुनियादी ढांचों और बिचौलियों की भागीदारी के लक्षणों से युक्त भारतीय कृषि की अनूठी विशेषताओं से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई थी। किसानों को दलालों और बिचौलियों की अवसरवादी कार्यप्रणाली से बचाने के लिए यह उन्हें कृषि यंत्रों, मौसम, फसल और अन्य संबंधित विषयों के बारे में सूचनाएं प्रदान करता है। परियोजना किसी किसान का वित्तीय विवरण नहीं रखती। ई-चौपाल की गुमटियों में अनके भाषाओं में किसानों को बाजार की ताजा जानकारी मुहैया कराई जाती है। साथ ही यह बहुमूल्य सुझावों और परामर्श प्राप्त कर दोतरफा संप्रेषण की सुविधा भी प्रदान कराता है। परियोजना से 8 राज्यों (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में फैली अपनी 6,500 गुमटियों के माध्यम से 40 हजार से भी अधिक गांवों के 40 लाख से अधिक किसानों ने लाभ उठाया है। ई-चौपाल को अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल चुकी है। (www.echoupal.com)

परियोजना के अंतर्गत पंजाब के प्रमुख गांवों और अन्य संभाव्य क्षेत्रों में ग्रामीण सूचना गुमटियां स्थापित की जाती हैं, जिन्हें जागृति ई-सेवा केंद्र कहा जाता है। प्रत्येक केंद्र के लिए क्षेत्र के शिक्षित युवा अथवा पूर्व सैनिकों को विक्रय अधिकार (फ्रैंचाइज) दिया जाता है और प्रत्येक केंद्र लगभग 30 हजार लोगों की सेवा करता है। इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य करीब 1,000 ग्रामीण युवाओं को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करना है। जागृति ई-सेवा- जागृति का शुभारंभ मार्च 2003 में हुआ था। यह ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, वित्तीय, यात्रा और ई-प्रशासन से लेकर संचार सेवा तक प्रदान करती है। समूची प्रणाली अविलंब किसी भी भाषा में बदली जा सकती है। जागृति जनसाधारण के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का एक माध्यम है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की जरूरतों पर विशेष जोर दिया गया है। डी-कॉमर्स (देसी-कॉमर्स) नामक इसकी गतिविधियों में भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग शामिल है। मार्गदर्शक, सूचना और कृषि संबंधी जानकारियां देने के अलावा यह केंद्र राजस्व अर्जित करने के लिए मोबाइल फोन और बस टिकट की बिक्री, बीमा, पैसे का हस्तांतरण और अन्य सेवाएं भी प्रदान करता है। जागृति नेटवर्क के जरिए ई-मेल को घर तक पहुंचाने का काम भी किया जाता है। चूंकि यह सेवा गांव केंद्रित है, इसलिए इसे आईटीई (आरएस) अर्थात आईटी जनित ग्रामीण सेवाएं कहकर भी पुकारा जाता है। परियोजना के अंतर्गत पंजाब के प्रमुख गांवों और अन्य संभाव्य क्षेत्रों में ग्रामीण सूचना गुमटियां स्थापित की जाती हैं, जिन्हें जागृति ई-सेवा केंद्र कहा जाता है। प्रत्येक केंद्र के लिए क्षेत्र के शिक्षित युवा अथवा पूर्व सैनिकों को विक्रय अधिकार (फ्रैंचाइज) दिया जाता है और प्रत्येक केंद्र लगभग 30 हजार लोगों की सेवा करता है। इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य करीब 1,000 ग्रामीण युवाओं को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करना है। (www.jagriti.com)

ई-उत्तरांचल- परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड राज्य के लोगों को एक-दूसरे के निकट लाना है ताकि वे संस्कृति, परंपरा, समाचार और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे पूर्वजों के विचारों के बारे में अपनी राय का आदान-प्रदान कर सकें। इस वेबसाइट पर बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे गांवों की बैठकें भी आयोजित की जा सकती हैं। दूरदराज के गांवों में ‘जनजागरण सभाएं’ आयोजित की जाती हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि इससे उत्तराखंड के लोग न केवल अपने राज्य बल्कि पूरे देश और यहां तक कि समस्त विश्व से जुड़ सकेंगे। यह परियोजना मार्गदर्शी कार्यक्रमों के माध्यम से जीविका के बारे में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा देने का प्रयास करती है। (www.euttaranchal.com)

टेली-मेडिसीन- अपोलो अस्पताल इस परियोजना के माध्यम से ग्रामीण भारत के लाखों लोगों को उच्चस्तरीय विशेषज्ञता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। टेली-मेडिसीन का तात्पर्य डॉक्टरों से दूर रहने वाले मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए आईसीटी का उपयोग करना है। ‘मेड-इंटेग्रा’ सॉफ्टवेयर का उपयोग कर मरीज और विशेषज्ञ डॉक्टर एक-दूसरे को देखते हुए बातचीत कर सकते हैं। यह विभिन्न राज्यों में 45 से अधिक टेली-मेडिसीन केंद्रों का संचालन करता है। 6 हजार से अधिक लोग इस सुविधा का लाभ उठा चुके हैं और न्यूरोसर्जरी से लेकर बाल-हृदयविज्ञान के बारे में 3,500 से अधिक मामलों में टेली-परामर्श सफलतापूर्वक दिए जा चुके हैं। (www telemedconsult.com)

आकाश-गंगा- यह परियोजना गुजरात की डेयरी सहकारी समिति चला रही है। परियोजना में डिस्क (डीआईएसके-डेयरी सूचना सेवा में कियोस्क) के उपयोग के जरिए दूध की खरीद से लेकर हिसाब-किताब रखने तक, दुग्ध व्यवसाय के सभी कार्यों को एक साथ जोड़कर ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों की सहायता के लिए आईसीटी का उपयोग किया जाता है। आकाश-गंगा से गुजरात सहित 8 राज्यों के 34 जिलों के 1,000 से अधिक गांवों के करीब 2 लाख लोग लाभ उठा रहे हैं। यह अपने एकाउंटिंग साॅफ्टवेयर में कारोबार का विवरण भरकर समूची जानकारी जनता को उपलब्ध कराता है। इस परियोजना को भारत में और विदेशों में कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। इसे संयुक्त राष्ट्र आईसीटी विकास कार्यक्रम ने सर्वोत्तम प्रयोग के रूप में मान्य किया है। (www.akashganga.in)

टीएनसीडीडब्ल्यू (तमिलनाडु महिला विकास निगम)- इस परियोजना का उद्देश्य तमिलनाडु की महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। टीएनसीडीडब्ल्यू नागरिकों के जन्म एवं मृत्यु, भूमि और राजस्व अभिलेखों के बारे में एक आधारभूत आंकड़ा कोष का रख-रखाव करता है। परियोजना नारीसंवेदी विषयों और राज्य पर अनुसंधान के लिए स्वयंसेवी संगठनों और महिलाओं को प्रोत्साहित करती है। आय वृद्धि, व्यावसायिक प्रशिक्षण, विचार-विमर्श आदि अपने विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए यह नागरिकों को प्रोत्साहित कर उनके साथ संबंध जोड़ता है। इसने 31 जिलों में 3,91,927 स्वयंसहायता समूहों (एसएचजी) का गठन किया है जिनमें 60,01,418 महिला सदस्य हैं। टीएनसीडीडब्ल्यू ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 22 अरब 11 करोड़ 12 लाख 45 हजार रुपए की बचत की है। (www.tamilnadu woman.org)

ज्ञानदूत- ज्ञानदूत की शुरुआत जनवरी 2000 में मध्य प्रदेश के धार जिले में की गई थी। यह सरकार द्वारा नागरिकों को दी जाने वाली सेवा (जी 2 सी) इंट्रानेट आधारित पोर्टल है। ज्ञानदूत का उद्देश्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) को ग्रामीण लोगों तक पहुंचाने के लिए एक किफायती, प्रतिकृति तैयार करने योग्य, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और वित्तीय रूप से व्यावहारिक प्रादर्श तैयार करना है।

परियोजना का लक्ष्य जनजातीय-बहुल मध्य प्रदेश के निर्धन ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वामित्व और तकनीकी दृष्टि से नई सोच वाली संपोषणीय गुमटियों की स्थापना करना है। ये गुमटियां ग्राम पंचायत भवनों में लगाई गई हैं। कुल 31 गुमटियों का यह नेटवर्क 311 पंचायतों में फैला हुआ है और 600 से अधिक गांवों के 5 लाख से अधिक लोगों की सेवा करता है। ज्ञानदूत नागरिकों के वित्तीय विवरण भी रखता है और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (बीपीएल) की सूची जैसी सेवाएं भी प्रदान करता है। यह उपभोक्ताओं को हिन्दी भाषा में ऑनलाइन शिक्षा भी प्रदान करता है। (www.gyandoot.nic.in)

लोकमित्र- हिमाचल प्रदेश में लोगों को सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की जानकारी देने के लिए इसका विकास राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) ने किया है। इसका एक और उद्देश्य विभिन्न सरकारी अधिकारियों से संवाद स्थापित करने और प्रशासनिक प्रक्रिया में उनके सक्रिय और प्रत्यक्ष योगदान के बारे में लोगों से संवाद के लिए एक मिलन बिन्दु (इंटरफेस) मुहैया कराना था। लोकमित्र लोगों का पता, संपर्क हेतु फाेन नंबर, आयु, ड्राइविंग लाइसेंस आदि के बारे में सारी सूचनाएं जमा करता है। इसमें एक शिकायत निवारण प्रणाली भी है, जो विभिन्न मुद्दों पर लोगों की शंकाओं का निराकरण करती है। इसमें स्थानीय भाषा में संप्रेषण के लिए ई-मेल भेजने की सुविधा भी उपलब्ध है। यह लोगों के विचार जानने के लिए उनको आमंत्रित करता है और अपनी सेवा का दायरा बढ़ाने के लिए फीडबैक की सुविधा भी उपलब्ध कराता है। लोग ऑनलाइन उत्पादों का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। (www.himachal.nic.inelokmitra.htm)

जनमित्र का मुख्य उद्देश्य सरकारी कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए लोगों को एकल खिड़की सुविधा प्रदान करना है। कंप्यूटरीकरण के जरिए विभिन्न सरकारी कार्यप्रणालियों को सरल बनाना, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और संवेदनशील प्रशासन सुनिश्चित करना, प्रशासन और लोगों के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना और सूचना के अधिकार को एक प्रभावी साधन के रूप में ग्रामवासियों को सौंपना जनमित्र के अन्य महत्वपूर्ण कार्य हैं। जनमित्र- जनमित्र की शुरुआत मार्च 2002 में की गई थी। यह एक समेकित ई-प्लेटफार्म है जिसको राजस्थान के झालावाड़ जिले में क्रियान्वित किया जा रहा है। उत्तराखंड में भी इसकी प्रतिकृति अपनाई गई है। कलेक्ट्रेट के सभी विभागों और अनुभागों को लोकल एरिया नेटवर्क (एलएएन) के जरिए जोड़ा गया है। जनमित्र का मुख्य उद्देश्य सरकारी कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए लोगों को एकल खिड़की सुविधा प्रदान करना है। कंप्यूटरीकरण के जरिए विभिन्न सरकारी कार्यप्रणालियों को सरल बनाना, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और संवेदनशील प्रशासन सुनिश्चित करना, प्रशासन और लोगों के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना और सूचना के अधिकार को एक प्रभावी साधन के रूप में ग्रामवासियों को सौंपना जनमित्र के अन्य महत्वपूर्ण कार्य हैं। दूरदराज के तहसील और विकासखंड कार्यालयों के कंप्यूटरों को ‘डायल-अप’ सुविधाओं के माध्यम से जोड़ा गया है। यह ग्रामीण ‘इंट्रानेट’ सामुदायिक सूचना केंद्रों (सीआईसी) के माध्यम से लोगों को ई-प्रशासन, ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य, और ई-वाणिज्य सेवाएं प्रदान करता है। (www.rajasthan.gov.in)

बेलंदूर- सीओएमपीयूएसओएल (कॉम्पसॉल) द्वारा विकसित यह भारत का पहला आईसीटी जनित ग्राम, ग्राम पंचायत ई-प्रशासन समाधार है। बेलंदूर बंगलुरू से करीब 20 किमी दूर स्थित है। इससे राज्य के सभी जिला एवं ताल्लुका कार्यालय और ग्राम पंचायतें जुड़ी हुई हैं। समिति की बैठकों का केबल टेलीविजन पर प्रसारण किया जाता है। इसका साॅॅफ्टवेयर लोगों की संपत्ति, कर संग्रह, जन्म एवं मृत्यु प्रमाणपत्र और अन्य वित्तीय विवरणों को संजोकर रखता है। यह समिति के सदस्यों की बैठक आयोजित करता है और उसमें भाग लेने के लिए ग्रामवासियों को छूट देता है।

लोकवाणी- लोकवाणी की परिकल्पना सितबंर 2004 में सीतापुर के जिला कलेक्टर ने की थी। यह सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी में शुरू किया गया कार्यक्रम है और इसको उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में (88 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या और 39 प्रतिशत साक्षरता दर) चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य ग्रामवासियों को नीति-निर्माताओं के साथ निर्बाध रूप से जोड़ना है। परियोजना में सूचना का अधिकार नीति का समावेश किया गया है। यह लोगों को शिकायतों और याचिकाओं, भू-अभिलेखों, निविदा सेवा, रोजगार सेवाओं और सरकारी योजनाओं से संबंधित सूचनाओं के बारे में सेवा प्रदान करती है। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए लोगों को विकास कार्यों का ब्यौरा, उचित मूल्य की दुकानों को राशन का आबंटन, ग्रामसभाओं को भेजी गई राशि आदि के बारे में जानकारी दी जाती है। ऑनलाइन जन शिकायत निवारण सेवा अब तक की सबसे लोकप्रिय सेवा रही है। जून 2008 तक इसे 1,17,179 शिकायतें मिली थीं, जिनमें से 1,13,793 (97 प्रतिशत) का निपटारा किया जा चुका है।(www.sitapur.nic.inelokvani)

टीकेएस (टाटा किसान संसार)- टाटा किसान संसार यानी कृषि केंद्र महाराष्ट्र के किसानों की आदि से लेकर अंत तक सभी समस्याओं का समाधान करता है। किसानों को कब कौन-सी फसल लेनी चाहिए, से लेकर उपज का अधिकतम लाभ लेने के लिए उन्हें कैसे बेचा जाए, इन सब प्रश्नों का समाधान टीकेएस प्रदान करता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्र की इस अनूठी अवधारणा से देश की कृषि का चेहरा बदल रहा है और ग्रामीण रहन-सहन की गुणवत्ता में सुधार आ रहा है। टीकेएस किसानों को पोषक तत्वों का यथासंभव अनुकूल उपयोग करने, पौध-संरक्षण, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं के उपयोग, पानी और बीजों से जुड़ी सभी प्रकार की सेवा प्रदान करता है। टीकेएस उपग्रह प्रौद्योगिकी और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) की मदद से मिट्टी, भूजल और मौसम के बारे में सामयिक सूचनाओं पर नजर रखता है। उत्पादों की बिक्री के लिए प्रत्येक केंद्र पर खुदरा दुकानें खोली गई हैं। परंतु इनमें ऑनलाइन बिक्री नहीं होती। (www.tatatkk.com)

दृष्टि- दृष्टि पूर्वोत्तर के राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, और अरुणाचल प्रदेश सहित 12 राज्यों में कार्यरत है। इनमें बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और तमिलनाडु भी शामिल हैं। इसने अपने भागीदार के साथ मिलकर अफ्रीका में भी काम शुरू किया है। दृष्टि ई-प्रशासन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वाली ग्रामीण नेटवर्किंग और विपणन सेवाओं के लिए राजस्व अर्जित करने वाले मंच के रूप में काम करती है। यह अपने ई-काॅमर्स और कृषि व्यापार के माध्यम से नागरिकों को ऑनलाइन क्रय-विक्रय की सुविधा प्रदान करती है। यह लोगों को राशन कार्ड भी जारी करती है, यह उनके बारे में सभी आवश्यक बुनियादी सूचनाएं रखती है। यह प्रणाली लोगों की शिकायतों का निराकरण करने और ग्राहकों के साथ संबंध स्थापित करने का प्रयास करती है। इससे लोगों को सरकारी सूचनाओं, शिक्षा, रोजगार आदि के बारे में मदद मिलती है। दृष्टि देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में 45,000 गुमटियों (कियोस्क) का संचालन करती है। प्रत्येक गुमटियों का प्रबंधन ग्रामीण उद्यमी करते हैं। दृष्टि को विश्व आर्थिक मंच का टेक्नोलाॅजी पायोनियर्स पुरस्कार, वर्ष का सामाजिक उद्यमी पुरस्कार, अशोकाफाउंडेशन फेलोशिप पुरस्कार, डेवलपमेंट मार्केट प्लेस पुरस्कार, सर्वोत्तम आईसीटी कथा पुरस्कार, सर्वाधिक संभावनाओं वाला सामाजिक उद्यमी पुरस्कार और स्टाॅकहोम चैलेंज पुरस्कार जैसे अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। (www.drishtee.com)

निष्कर्ष- इन परियोजनाओं की सफलता यह दर्शाती है कि ऐसे अनेक तरीके हैं जिससे आईसीटी ग्रामीण भारत में उत्पादकता को बढ़ावा दे रही है। स्थानीय लोगों के समाधानों का आदान-प्रदान कर, कृषि एवं बाजार आदि से जुड़ी महत्वपूर्ण और व्यावहारिक सूचनाओं को सुलभ कराने जैसे अनेक कार्यों के जरिए आईसीटी ग्रामीण क्षेत्रों का परिदृश्य बदलने का काम कर रही है। विकास के क्रम में तेजी लाने के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर आईसीटी के अनुकरणीय प्रयास किए जा रहे हैं। आईसीटी पर ज्यादा जोर देने के बजाय इन परियोजनाओं को नागरिकों की सेवा के लिए संपोषणीय प्रणालियों के विकास पर ध्यान देना होगा। इसमें लोगों को सस्ती, अधिक कार्यकुशल और त्वरित सेवा प्रदान करने की क्षमता है। वर्तमान में आईसीटी का उपयोग निकायों और नगरपालिकाओं में खुलापन, पारदर्शिता और प्रभाविकता लाने वाले साधन के रूप में किया जा रहा है। अतएव यदि राज्य और केंद्रीय सरकार प्रत्येक जिले और विकासखंडों में इसे लागू करने पर जोर दे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए आईसीटी का पूरा लाभ उठाया जा सकता है। आईसीटी व्यापक भागीदारी का कोई समाधान नहीं है बल्कि केवल उसका साधन भर है और कोई साधन उतना ही प्रभावी होता है जितना कि उसका उपएाग। इन साधनों का उपयोग लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इन तत्वों के कारण भावी परिवर्तनों और परिणामों के बारे में सही-सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। वेब विशेषज्ञता और काम करने के घंटों का अभाव ई-प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती है। बहुपक्षीय सहयोग और वेब विकास के साधन और सांचे संभवतः इसका समाधान हो सकते हैं। इसके अलावा, सुरक्षा संबंधी मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं, चाहे वह शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण।

सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा संचार साधनों का विकास हुआ है तथा ई-प्रशासन के माध्यम से देश के प्रत्येक क्षेत्र में इसका प्रसार भी हुआ है, किंतु बावजूद इसके कई ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां ई-प्रशासन की कार्यप्रणाली से वहां के लोग अपरिचित हैं। अतएव सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में इसके और अधिक प्रचार-प्रसार की जरूरत है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी का लाभ प्रत्येक गांव को मिले, इस दिशा में प्रयास नितांत जरूरी हैं और यह सब दृढ़ इच्छाशक्ति तथा संकल्प के बिना संभव नहीं है। इसलिए जरूरत है कि इसका क्रियान्वयन यथाशीघ्र ग्राम पंचायत स्तर पर हो और पंचायत प्रमुख सुदूरवर्ती गांवों की पहचान करके इसे लागू कराने हेतु तत्पर रहे, तभी इसकी उपयोगिता एवं सार्थकता सही अर्थों में सिद्ध हो सकेगी।

[लेखक शा. महाविद्यालय, पथरिया, जिला दमोह (म.प्र.) में अतिथि विद्वान (अर्थशास्त्र) हैं।]
ई-मेल: dr.gajendrarawat@gmial.com

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