इटावा जनपद का भौतिक वातावरण (Physical environment of Etawah district)

15 Oct 2017
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अवस्थिति एवं सीमा :


इटावा जनपद पश्चिमी गंगा-यमुना मैदान का एक भाग है, जो उत्तर प्रदेश के कानपुर मंडल के पश्चिमी भाग का एक जनपद है। भौगोलिक दृष्टि से इसका विस्तार 26' 21'' उत्तरी अक्षांश से 27' 01'' उत्तरी अक्षांश, 68' 45'' पूर्वी देशांतर से 79' 20'' पूर्वी देशांतर के मध्य है। इस जनपद के पूर्व में औरैया, उत्तर-पूर्व में फर्रुखाबाद, दक्षिण में जालौन तथा मध्य प्रदेश का भिंड जनपद स्थित है। इसके उत्तर में मैनपुरी तथा पश्चिम में आगरा जनपद स्थित है। इटावा जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 2705.39 वर्ग किलोमीटर है तथा 2001 की जनगणना के अनुसार इटावा जनपद की कुल जनसंख्या 1338871 है। इस जनपद में 686 आबाद ग्राम एवं 8 गैर आबाद ग्राम है।

प्रशासनिक दृष्टि से जनपद में 5 तहसीलें इटावा, जसवंतनगर, सैफई, भरथना व चकरनगर है। तहसील इटावा जनपद के मध्य भाग में, जसवंत नगर तहसील जनपद के पश्चिम भाग में, सैफई उत्तरी भाग में, भरथना तहसील जनपद के पूर्वी भाग में एवं चकरनगर तहसील जनपद के दक्षिणी भाग में अवस्थित हैं। इटावा जनपद में 8 विकासखंड, जसवंत नगर, सैफई जनपद के उत्तर पश्चिम भाग में बसरेहर उत्तरी भाग में, ताखा, भरथना एवं महेवा जनपद के पूर्वि भाग में चकर नगर विकासखंड जनपद के दक्षिणी भाग में अवस्थित हैं। इटावा, जसवंत नगर, भरथना, सैफई चार नगर पालिकायें हैं। नगर पंचायत क्षेत्र में इकदिल, लखना एवं बकेवर क्षेत्र आते हैं, जो जनपद मुख्यालय के पूर्वी भाग में अवस्थित हैं। जनपद का मुख्यालय उत्तरी रेलवे लाइन द्वारा आगरा, दिल्ली तथा कोलकाता महानगरों से जुड़ा हुआ है, जो प्रदेश एवं देश की राजधानी से क्रमश: 210 किलो मीटर तथा 296 किलो मीटर दूर स्थित है। यह जनपद बुंदेलखंड, मध्य गंगा-यमुना दोआब एवं गंगा पार क्षेत्रों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, जिसके मध्य चंबल एवं क्वांरी नदियाँ सीमा का निर्धारण करती हैं। इटावा जनपद उत्तर प्रदेश के विशाल मैदान में ऊपरी गंगा के मैदान के दक्षिणी भाग का हिस्सा है जिसके अंतर्गत डॉ. आरएल सिंह के प्रादेशिक वर्गीकरण के आधार पर निम्न गंगा-यमुना दोआब तथा यमुना पार मैदान के क्षेत्र आते हैं।

तालिका सं. 2.1 जनपद की प्रशासनिक संरचनायमुना एवं चंबल इस जनपद की दो प्रमुख नदियाँ हैं, जो जनपद के दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी भाग में प्रवाहित होती हैं। जनपद के दक्षिणी-पूर्वी भाग में इन दो नदियों के अतिरिक्त तीन अन्य नदियाँ क्वारी, सिंधु एवं पाहुज का संगम हुआ है। फलत: यह क्षेत्र ‘‘पंचनद’’ क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है।

District Etawah Administrative Unitसेंगर, अहनैया, पुरहा एवं सिरसा अन्य नदियाँ हैं। वहीं दक्षिणी भाग में यमुना एवं चंबल नदियों द्वारा उत्खात स्थलाकृति/बीहड़ का विकास हुआ है जिसका क्षेत्र की आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। जनपद के उत्तरी भाग में मैदानी भाग का अधिक विस्तार है। फलत: सिंचाई सुविधाओं का अधिक विकास हुआ है। इसके विपरीत दक्षिणी भाग में बीहड़ क्षेत्र का अधिक विस्तार होने के कारण सिंचाई सुविधाओं का अपेक्षाकृत कम विकास हुआ है। इसके साथ ही कभी-कभार बाढ़ भी आ जाती है। अत: जल का समुचित प्रबंधन कर कृषि एवं अन्य सेक्टर में जलापूर्ति सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

भूगर्भिक संरचना :


“Geological setting plays a very decisive role in the ground water possibilities in the terrain” अर्थात किसी प्रदेश में भौम जल संसाधनों की गुत्थी खोलने में उसकी भू-वैज्ञानिक संरचना बहुत ही निर्णायक भूमिका निर्वाह करती है। भौम जल की प्राप्ति और वितरण भू-वैज्ञानिक संरचना पर निर्भर है, जैसे - सी. दक्षिणामूर्ति का कथन है- “The occurance and distribution of ground water depend upon characterstics of the under ground water formation”.इस प्रकार भौमजल का विस्तृत एवं गहन अध्ययन किसी भी क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक संरचना पर पूर्णरूपेण निर्भर करता है।

“The study of ground water depend upon the detailed three dimensional knowledge of the zoological distribution system plus the knowledge of how it react to these zoological Materials both physical and chemically.” अत: इटावा जनपद में भौम जल की प्राप्ति, वितरण और उसकी मात्रा का अनुमान लगाने एवं भौम जल कटिबंध निर्धारण की दृष्टि से यहाँ की भू-वैज्ञानिक संरचना का अध्ययन बड़े पैमाने पर भूमिगत जल की संभावनाओं की खोज के लिये आवश्यक है, जिससे इसका प्रयोग न केवल सिंचाई के लिये वरन घरेलू जलापूर्ति में भी किया जा सके। अध्ययन क्षेत्र जलोढ़ मृदा द्वारा निर्मित गंगा-यमुना दोआब में स्थित है, इसकी भौमकीय संरचना नूतन कल्प की सरिताकृत प्रक्रिया की देन है। क्षैतिज स्तरीय जलोढ़ की भूगर्भिक संरचना जो कि इस क्षेत्र की समतलीय धरातल के साथ समानुकूलित एवं सरल है। अवसादी जमाव की प्रक्रिया अनवरत चल रही है। जलोढ़ की मोटाई के नीचे का चट्टानी तल लगभग 1600 मीटर है।

District Etawah Location of Tubewellsआश्मिकी के आधार पर इस जनपद में धरातल से नीचे स्थित अवसादों में बालू जलधाराओं द्वारा संचारित रेत एवं चिकनी मिट्टी और कुछ स्थानों पर चिकने कंकड़ मिलते हैं। अध्ययन क्षेत्र में कंकड़ अहनैया नदी के समीप, धरातल के नीचे, 2 मीटर की गहराई पर ग्रंथिकी एवं खंड रूपों में पाये जाते हैं, वहीं भूर क्षेत्र में बिछुआ कंकड़ कहलाते हैं, जो बड़े ग्रंथिकी आकार के होते हैं। कंकड़ खड्ड क्षेत्र में स्थित है, उनको ‘‘बीहड़’’ एवं ‘‘झरना’’ नाम से जाना जाता है।

जनपद के जलोढ़ निक्षेप को 2 भागों में बांट सकते हैं- पुरातन जलोढ़ एवं नवीन जलोढ़। पुरातन जलोढ़ को ‘‘बांगर’’ कहते हैं जो मध्य प्लीस्टोसीन युग के समतुल्य है। जनपद का उत्तरी भाग भी नवीन जलोढ़ से निर्मित है।

District Etawah Reliefसामान्यत: नवीन जलोढ़ का निर्माण नदियों द्वारा पुरातन जलोढ़ को अपरदित करके हुआ है। प्रतिवर्ष सूक्ष्म कणों से युक्त पदार्थों, सरिताओं एवं बहते हुये जल द्वारा निक्षेपित किया जाता है।

किसी भी क्षेत्र में वहाँ की भूगर्भिक संरचना, आश्मिकी एवं ढाल के अनुसार धरातल का स्वरूप निर्धारित होता है। धरातलीय बनावट के अनुसार इटावा जनपद का लगभग संपूर्ण क्षेत्र यद्यपि मैदानी भाग है फिर भी नियतवाही चंबल एवं यमुना नदियों ने अपने जलीय कार्यों से कुछ क्षेत्रीय विभिन्नतायें उत्पन्न कर दी हैं। इसके किनारों पर बाढ़ के मैदान, प्राकृतिक तटबंध, कटे-फटे कगार, बीहड़ भूमि आदि निर्मित हुई है। बांगर क्षेत्र वे ऊँचे भाग हैं, जहाँ वर्तमान समय में नदियों द्वारा नवीन कांप मिट्टी का निक्षेपण नहीं हो पाता जबकि खादर मिट्टी वाला वह क्षेत्र है जहाँ 2-3 वर्षों में नदियाँ नवीन कांप मिट्टी का निक्षेपण करती रहती हैं, उन्हें ‘‘कछार’’ के नाम से संबोधित किया जाता है। जनपद का दक्षिणी भू-भाग जो यमुना पार क्षेत्र कहलाता है, समतल नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र में चंबल एवं यमुना नदियों के सहारे गहरे खड्डे एवं बीहड़ (मुख्य धारा से 4 से 6 किलोमीटर) क्षेत्र विकसित हो गया है। अध्ययन क्षेत्र का सामान्य ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पश्चिम की ओर है। उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र की समुद्री सतह की ऊँचाई 144 से 155 मीटर के मध्य है। जबकि मध्यवर्ती भू-भाग की ऊँचाई 138 से 144 मीटर के मध्य एवं दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र की ऊँचाई 132 से 138 मीटर के मध्य है।

भौतिक प्रदेश :


आश्मिकी धरातल, अपवाह तंत्र एवं मृदा आदि की विशेषताओं के आधार पर इटावा जनपद को चार भौतिक भागों में बांटा जा रहा है -

1. पचार : जो सेंगर नदी के उत्तर, उत्तर-पूर्व में है।
2. घार : सेंगर यमुना दोआब के मध्य का क्षेत्र है।
3. करका : यमुना बीहड़ क्षेत्र है।
4. पार क्षेत्र : यमुना के पार क्षेत्र जो यमुना नदी के दक्षिण में है।

District Etawah Physiographical Unit1. पचार :
यह भौतिक भाग जनपद इटावा की प्रमुख नदी सेंगर के उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित है। भरथना, ताखा विकासखंड एवं बसरेहर विकासखंड का उत्तरी भाग पचार क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह उपजाऊ समतल मैदान नदियों द्वारा लाई गयी जलोढ़ मिट्टी से बना है। इस क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का काफी विकास हुआ है। चावल एवं गेहूँ इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं। गन्ना, मक्का, आलू एवं सब्जियों की कृषि भी अच्छे ढंग से की जाती है। पचार क्षेत्र में यातायात की सुविधाओं का अधिक विकास हुआ है। इसी क्षेत्र के मध्य भाग से बड़ी रेलवे लाइन गुजरती है। भरथना इस क्षेत्र की प्रमुख अनाज मंडी है। इस क्षेत्र की जनसंख्या सघन है, जिसका कारण सिंचाई का उत्तम विकास, यातायात के साधनों की सुलभता, क्षेत्रीय सुरक्षा आदि है।

यह दोआब (गंगा-यमुना) मूलत: बांगर (पुरातन जलोढ़) का एक अंग है। पुरहा नदी थोड़ा बहुत विसर्प बनाती है। मैदानी भाग मंद ढाल के कारण संपूर्ण क्षेत्र में टीले एवं बीहड़ का अभाव है। यह समतल भूमि कहीं-कहीं बालू के कंकड़ों की उपस्थिति में असमान हो गई है।

2. घार :
इस भाग के अंतर्गत सेंगर-यमुना नदियों के मध्य का क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र को ‘‘घार’’ के नाम से जानते हैं। घार सबसे उपजाऊ क्षेत्र है। यह क्षेत्र लगभग मैदानी भाग है। कहीं-कहीं बीच-बीच में ऊसर भूमि भी विकसित हो गई है। महेवा विकासखंड में कहीं-कहीं पर ऊँची भूमि भी दिखाई देती है। ये बलुई मिट्टी के टीले हैं। जिसे ‘भुर’ भी कहते हैं। इस मैदान में सेंगर नदी विसर्पाकार बहती है। इस क्षेत्र में नहरों एवं नलकूपों का अधिक विकास हुआ है। उपजाऊ मिट्टी एवं सिंचाई सुविधाओं की उत्तम व्यवस्था के कारण कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण है। घार क्षेत्र के दक्षिणी भाग से ‘भोगिनीपुर’ नहर शाखा निकलती है जो इटावा एवं लखना के मध्य से गुजरती हुई औरैया जनपद में चली जाती है। इस क्षेत्र में परिवहन के साधनों का अधिक विकास हुआ है। नेशनल हाइवे-2 इस मैदान के मध्य से गुजरता है। सिंचाई एवं परिवहन की अच्छी सुविधाओं के कारण सघन आबादी देखने को मिलती है।

3. करका :
घार क्षेत्र के दक्षिण में यमुना नदी के सहारे-सहारे उच्च भूमि बीहड़ का क्षेत्र है। यह तीसरा भौतिक भाग है जो ‘करका’ अथवा ‘बीहड़’ के नाम से जाना जाता है। यमुना नदी के कारण बीहड़ अधिकतर कटा-फटा (नालीदार) एवं अपरदित है तथा इन क्षेत्रों में 30 से 60 मीटर तक गहरे खड्डों का निर्माण हो चुका है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र भी मैदानी भाग था, भू-कटाव के कारण सैकड़ों वर्षों की अपरदन क्रिया के फलस्वरूप आज यह क्षेत्र खड्डे भूमि के रूप में देखने को मिलता है। इस क्षेत्र में भूमि कटाव के कारण उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। खेत अतिप्रवाहित एवं असमतल वाले हैं, नालिकायें प्रतिवर्ष गहरी, चौड़ी और विस्तृत होती जा रही हैं। ऊँचे-नीचे धरातल में अति प्रवाह के कारण सर्वथा नमी की कमी महसूस की जाती है। जल तल की गहराई 30 मीटर से अधिक है। कुएँ कम एवं दूर-दूर हैं, जिन्हें आकस्मिक रूप से सिंचाई के लिये प्रयोग किया जाता है। जनपद के इसी क्षेत्र में प्राकृतिक वन फैले हुये हैं। इस क्षेत्र की मिट्टी भी घार से मिलती-जुलती है। यमुना के किनारे-किनारे बाढ़ क्षेत्र आता है जहाँ पर नवीन कांप मिट्टी का जमाव दृष्टिगोचर होता है जिसे ‘तीर’ शब्द से संबोधित करते हैं।

4. पार क्षेत्र :
यमुना पार क्षेत्र पहले ‘जनवृस्त’ क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। इस भाग के अंतर्गत यमुना एवं चंबल का मध्य भाग एवं पार का क्षेत्र सम्मिलित है। पार क्षेत्र में पूर्व की ओर जहाँ नदियों के बीच का भाग बहुत संकरा है, बीहड़ एक-दूसरे से मिल गया है और किसी प्रकार की भूमि समतल नहीं बची है। जबकि इस क्षेत्र के पश्चिम की ओर उपजाऊ दोमट मिट्टी से निर्मित एक उच्च भूमि चौड़ाई लगभग 5 से 6 किलो मीटर निर्मित हो गई है। नदियों की निम्न भूमि जिसे स्थानीय बोली में ‘कछार’ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह जलधाराओं द्वारा निर्मित बाढ़ के मैदान हैं। यह उच्च भूमि खड्ड प्रदेश में नालिकाओं एवं गिरिकाओं द्वारा पृथक होते हैं। खेत प्रतिवर्ष वर्षा के दिनों में चंबल एवं क्वारी नदियों द्वारा आकस्मिक अप्लावित रहते हैं। कभी-कभी यह क्रिया भूमि के उपजाऊ टुकड़ों को नालिकाओं और कभी-कभी उपजाऊ जलोढ़ निक्षेप में बदल देती है। नमी की बहुलता, ऊँचा धरातल कछार की प्रमुख विशेषता है। इस क्षेत्र में 3 से 4 मीटर गहरे कुएँ खोदकर सुविधापूर्वक जल प्राप्त किया जा सकता है। यमुना नदी के कछार क्षेत्र में उत्स्रुत कूप मुख्य दृश्य हैं। पार क्षेत्र में ‘गौहानी’ के कछार में इस प्रकार के उत्स्रुत कूप मिलते हैं। इन कुओं को एक बार खोदने के बाद पानी नियमित रूप से बाहर निकलता रहता है। सर्वेक्षण के समय यह भी देखा गया कि कुएँ धरातल से 7 मीटर की ऊँचाई तक जल फेंकते हैं किंतु कृषि योग्य भूमि के अभाव में अथवा यमुना नदी के कटाव के कारण इनका निरंतर पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है।

खड्ड कटिबंध की कछार भूमि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्नता मिलता है। चंबल नदी के कछार का महत्त्व क्वारी नदी के कछार से अधिक है। प्रथम में दूसरी की अपेक्षा तलछट जमाव का बाहुल्य रहता है। परिणामस्वरूप उत्पादन में भिन्नता मिलती हैं। उत्पादकता की दृष्टि से इसकी उचित देखभाल की व्यवस्था नहीं है। साधारणत: ये बस्तियों से दूर हैं। जहाँ विशेषकर वर्षा ऋतु में पहुँचना कठिन है। चंबल एवं यमुना के बीच में एक सकरी समतल पट्टी है जिसमें कृषि की जाती है।

अपवाह तंत्र :


जनपद इटावा का अपवाह प्रतिरूप सामान्यत: यहाँ के धरातल के स्वाभाव व उसके ढाल द्वारा निर्धारित होने के साथ भू-वैज्ञानिक दशाओं, प्रवणता की मात्रा, भू-आकृति के प्रकार, मृदा एवं वनस्पति द्वारा भी निर्धारित होता है। चंबल एवं उनकी सहायक नदियों को यदि देखा जाये तो वे द्रुमाक्रितिक अपवाह प्रतिरूप को जन्म देती हैं। इटावा जनपद का अपवाह यमुना-चंबल एवं यमुना की सहायक नदियों द्वारा होता है। यमुना, क्वारी, चंबल, सेंगर, पहुज, अहनैया, पुरहा एवं सिरसा जनपद की नदियाँ हैं।

अध्ययन क्षेत्र का सामान्य ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। जिसका अनुकरण यहाँ की बहने वाली नदियाँ करती हैं। नियतवाही नदियों में यमुना, क्वारी, चंबल, सेंगर हैं। मौसमी नदियों के अंतर्गत पुरहा, अहनैया एवं सिरसा का नाम आता है। भू-पृष्ठीय अपवाह किसी भू-भाग अथवा क्षेत्र की भूगर्भिक संरचना, भू-स्वरूप अथवा ढाल के अनुसार नियंत्रित होता है। जनपद का संपूर्ण भाग यमुना नदी तंत्र के अंतर्गत आता है, जिसमें चंबल एवं क्वारी नदियों का संपूर्ण भाग यमुना नदी प्रणाली के अंतर्गत है। जिसमें चंबल एवं क्वारी नदियों का अपवाह क्षेत्र यमुना के दक्षिण भाग में है। यमुना से दक्षिण का अपवाह क्षेत्र विशिष्ट प्रकार का है। क्योंकि पंचनद क्षेत्र में चंबल यमुना में, क्वारी सिंधु में, सिंधु यमुना में तथा पहुज क्वांरी में मिलती है।

यमुना जो इस जनपद की प्रमुख नदी है, 24 किलोमीटर तक की दूरी तक जनपद की दक्षिणी सीमा (इटावा तथा आगरा) निर्धारित करती है। जनपद में इसका प्रवाह मार्ग ढाल 18.4 सेमी प्रति किलोमीटर है। जनपद में इसकी लंबाई 112 किलोमीटर है। इसका प्रवाह मार्ग विसर्पाकार एवं घुमावदार है। इसमें प्रमुख विसर्प इटावा नगर के समीप एवं पंचनद क्षेत्र के निकट विकसित है। इस नदी के किनारों पर बड़े-बड़े कगार विकसित हो गये हैं। इसका जलस्रोत यमुनोत्री ग्लेशियर होने के कारण वर्ष भर जल प्रवाहित होता रहता है।

District Etawah Drainage Systemचंबल नदी जनपद की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका प्राचीन नाम ‘चर्मण्वती’ है। इसी के नाम पर इसे चंबल के नाम से जाना जाता है। यह इंदौर जिले की ‘मऊ’ तहसील में ‘जनापाऊ’ की पहाड़ियों के पास से निकलती है। विसर्पयुक्त घाटी में प्रवाहित चंबल नदी ने अपने दोनों पार्श्वों पर 3 किलोमीटर से 4 किलोमीटर तक विस्तृत बीहड़ पट्टियों का निर्माण विगत चार सौ वर्षों की समयावधि में किया है। यह अध्ययन क्षेत्र में ‘भरेह’ व ‘कचारी’ ग्रामों के पास यमुना में मिल जाती है। चंबल यमुना की सहायक नदी है, इटावा तहसील के मुरांग ग्राम में प्रवेश करती है और कुछ दूरी तय करती हुई यमुना नदी में मिल जाती है। यह नदी भी विसर्प बनाती हुई बहती है, इसकी चौड़ाई 1000 मीटर के लगभग है। वर्षा ऋतु में बाढ़ के कारण इसका जल दायें किनारे की ओर अधिक भू-भाग जलमग्न कर देता है। नदी के कगारों की ऊँचाई लगभग 10 मीटर से 30 मीटर तक है। उन्हीं के सहारे बड़े खड्डों का निर्माण हुआ है, जिससे अधिकांश भाग बीहड़ में परिवर्तित हो गया है। इस नदी का तलीय भाग हल्का कांपीय एवं रेतीला है।

क्वारी एक नियतवाही नदी थी, अब ग्रीष्मकाल में इसका पानी सूख जाता है। फलत: इसे भी मौसमी नदी की श्रेणी में रखा गया है। यह चकरनगर तहसील की दक्षिणी सीमा (लगभग 6 किलोमीटर) निर्धारित करती है। यह जनपद में 40 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई ‘‘पंचनद’’ क्षेत्र में सिंधु से मिल जाती है। क्वांरी नदी की बीहड़ पट्टी में अपरदन की गहनता चंबल नदी की बीहड़ पट्टी की अपेक्षा कम है इसी कारण क्वांरी नदी के खड्डे कम गहरे हैं। इनकी गहराई 2 मी. से 10 मी. तक है। यद्यपि बीहड़ क्षेत्र सामान्यत: कृषि के लिये अनुपयुक्त है। परंतु न्यून अपरदित क्षेत्रों में जहाँ शासन ने कृषकों को पट्टे दे दिये हैं, कृषि की जाती है। यह नदी चंबल से बिल्कुल समांतर विसर्पाकार प्रतिरूप बनाती है। इस तरह के अपवाह को समांतर अपवाह प्रतिरूप भी कहा जाता है।

सेंगर नदी भी एक नियतवाही नदी है। जो जनपद के मध्य भाग में यमुना नदी के उत्तर दिशा में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। सेंगर नदी ‘‘बांगर’’ क्षेत्र की प्रमुख नदी है। परंतु वर्षा ऋतु में इसका जल फैल जाता है, जिससे बाढ़ क्षेत्र निर्मित हो जाता है।

जनपद की मौसमी नदियों में अहनैया, पुरहा एवं सिरसा प्रमुख है। ये तीनों मिलकर यमुना के उत्तरी मैदानी भाग में वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती है। ये सभी नदियाँ प्रवाह विहीन जलराशियों से परिपोषित है, परंतु वर्षा ऋतु में इसका प्रवाह प्रभावी हो जाता है और ये ग्रीष्म ऋतु में प्राय: सूख जाती हैं।

जनपद के उत्तरी क्षेत्र में समतल निचला भू-भाग है, जिसके कारण क्षेत्र में उथली झीलें निर्मित हो गयी हैं, जिसमें हरदोई, राहन, जरौली और बरालोकपुर (तहसील इटावा) सरसई नावर, कुनैठा, मुहौली, कुदरौल, सौवथना, उसराहार, रमायन, (भरथना तहसील) विस्तृत तालाब निर्मित हुये हैं। इन झीलों एवं तालाबों का उपयोग फसलों की सिंचाई एवं मत्स्य पालन में किया जाता है।

मिट्टियाँ :
प्राकृतिक संसाधनों में मृदा भी मनुष्य के लिये बहुमूल्य संसाधन है, जिसमें वह सदियों से जीविका हेतु खेती करता आ रहा है लेकिन कृषि में जितना महत्त्व मृदा का है, उतना ही महत्त्व जल का है। वस्तुत: मृदा एवं जल में अटूट संबंध है। समस्त पौधों का जीवन मिट्टी द्वारा प्राप्त जल पर निर्भर है। मिट्टी का अध्ययन केवल कृषि के लिये ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, वरन भौमिक जल की दशा एवं रचना के अध्ययन में भी सहायक है। जैसा कि हम जानते हैं कि भौमिक जल के पुनर्भरण का जलस्रोत वर्षा है किंतु मिट्टी का आवरण यह निर्धारित करता है कि जितना जल रेचिक भौमिक जल भंडार के पुनर्भरण हेतु मिट्टी में प्रवेश करता है। उसकी स्यंदन क्षमता मिट्टी के गठन, मोटाई एवं सघनता की मात्रा पर निर्भर होती है। धरातलीय प्रवाह केवल उस समय होता है जब वर्षा की तीव्रता भूमि की अन्त:स्यंदन क्षमता से अधिक होती है। यथा- क्ले मिट्टी की संरचना अनेक सूक्ष्म कनों से होती है तथा अधिक अंतराली जल रखते हुये कम अन्त:स्यंदन क्षमता पाई जाती है। जबकि शुष्क बलुई मिट्टी अधिक मात्रा में जल को शोषित तथा पास करेगी।

वर्तमान अध्ययन में पेयजल आपूर्ति के संबंध में मिट्टी की विशेषताओं के महत्त्व का अध्ययन करना आवश्यक है। भौतिक गुण यथ- रचना, संरध्रता, पारगम्यता और विशिष्ट लब्धि जल की भूमिका एवं बहि:स्रावी निस्यंदन की प्रकृति निर्धारित करता है। मिट्टी के रासायनिक गुण, जल के गुणों को (विशेषतया पेयजल उद्देश्यों हेतु जल को) प्रभावित करते हैं।इस जनपद की मिट्टी का वैज्ञानिक अध्ययन कानपुर में स्थित ‘चन्द्रशेखर आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी’ के मृदा सर्वेक्षण संगठन के द्वारा किया गया है। उसके द्वारा किये गये वर्गीकरण को ही यहाँ पर दर्शाया गया है।

नवीन कांप (टाइप-1) :


मिट्टियाँ जो पूर्ण पेडोन की गहराई तक बलुई दोमट से लेकर चीका दोमट वाली हल्के धूसर से हल्के भूरे रंग की हैं। साथ ही साथ एक उदासीन रूप लेकर साधारण क्षारीय है। इस मिट्टी में गहराई के साथ जैव तत्वों का वितरण असमान है और इसका आश्मिकी असंतत्व वृहत रूप से स्थूल बालू से परिलक्षित होता है जो यह सिद्ध करता है कि ये मिट्टियाँ युवा फ्लेवियल वाली हैं। ये मिट्टियाँ जनपद में इटावा तहसील के अंतर्गत एक सकरी मैदानी पट्टी में स्थित है। जहाँ ये प्रत्येक वर्ष बाढ़ से प्रभावित होती हैं।

सेंगर फ्लैक्ट्स लवणीय :


ये मिट्टियाँ जो चीका दोमट वाली हैं, 120 से 180 मीटर की गहराई तक संहत चिपचिपी और सुघट्य अवमृदा एवं कैल्शियम पदार्थों से ढकी हुई हैं तथा रंग में गहरे धूसर से धूसर हैं। यह साधारण से लेकर उच्च मात्रा तक घुलनशील हैं। इस मृदा की ऊपरी सतह में सूक्ष्म से लेकर साधारण, मध्यम पट्टिकृत संरचना है, जबकि अवमृदायें मध्यम से उच्च साधारण प्रिज्मीय संरचना वाली हैं। इसका पीएच मान 7 से लेकर 11 तक है। इस मिट्टी में खारापन अधिक पाया जाता है। इसलिये इसे ऊसर मिट्टी कहते हैं। ये मिट्टियाँ इटावा तहसील में सेंगर नदी के किनारे एवं जनपद के उत्तर पूर्व में सेंगर एवं पुरहा नदियों के दोआब में बहुतायत रूप में छोटे-बड़े ऊसर टुकड़ों में मिलती हैं।

सेंगर फ्लैट्स लवणीय (टाइप-2) :


ये मिट्टियाँ सतह पर दोमट से चीका दोमट वाली हैं और रंग में धूसर से भस्म धूसर वाली हैं, जबकि अवमृदायें मृत्तिका दोमट से लेकर पानसू मृत्तिका हैं। ये चिकने स्तरों पर साधारण चूनायुक्त हैं। जनपद में सेंगर नदी के उत्तरी-पूर्वी भाग में एक बड़े क्षेत्र को ये मिट्टियाँ घेरे हुये हैं और ये अधिक उत्पादीय हैं।

यमुना उच्च भूमि बलुई (टाइप-3 ए) :


इस वर्ग की बलुई दोमटर मिट्टियाँ फीकी भूरे से हल्के भूरे रंग तथा अवमृदा भूरे पीले से पीले भूरे रंग की होती हैं। ये गहराई में मंद से साधारण चूनायुक्त हैं। साथ ही साथ मंद से साधारण क्षारीय और पारगम्य होने के कारण जल स्तर नीचा है। उसके परिणामस्वरूप जल न्यूनता की समस्या बनी रहती है। उच्च भाग में इस मिट्टी को ‘भूर’ तथा निम्न भाग में ‘झाबर’ कहते हैं। इसका पी. एच. मान 7.50 हैं। ये मिट्टियाँ सेंगर और यमुना दोआब एवं यमुना और चंबल दोआब में स्थित हैं।

यमुना उच्च भूमि लोमी (टाइप-3 बी) :


इस वर्ग की मिट्टियाँ बलुई से दोमट वाली हैं। रंग में धूसर भूरे से लेकर पीली भूरी हैं। ये मृदायें उदासीन से साधारण क्षारीय हैं तथा साधारण पारगम्य होने के साथ-साथ उर्वर हैं। ये मृदायें जनपद में टाइप-3 से संलग्न क्षेत्रों में मिलती हैं।

यमुना निचली भूमि (टाइप-4) :


इस वर्ग की मिट्टियाँ बलुई से दोमट वाली हैं। रंग में धूसर से गहरे धूसर वाली हैं, जबकि अद्य:स्थल पर चीका मृत्तिका दोमट से मृत्तिका वाली है। अवमृदा क्रोमा में ये सूक्ष से साधारण विशिष्ट लाल भूरे रंग से युक्त हैं। ये मिट्टियाँ सेंगर फलैट्स के क्षेत्र में छोटे-छोटे क्षेत्र में स्थित हैं और संपूर्ण जनपद में मृदा वर्गों के एक छोटे से भाग को परिलक्षित करती हैं।

यमुना मिश्रित जलोढ़ भूमि :


ये मिट्टियाँ गहरे धूसर से मृत्तिका दोमट वाली हैं। इसके सूखने पर छोटे से मध्यम आकार के ‘दर’ बन जाते हैं। यमुना के वैसाल्टिक जलोढ़ प्राय: गंगेय जलोढ़ द्वारा ढकी हुई हैं अथवा इसके विपरीत हैं और इस रूप में द्विखण्डीय परिच्छेदिका को प्रस्तुत करती हैं, जिसमें आश्मिकी असांतत्य स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस वर्ग की मिट्टियाँ इटावा एवं भरथना तहसीलों के दक्षिणी भाग में कहीं-कहीं पाई जाती हैं।

वनस्पति :


जल संसाधनों पर प्रभाव डालने वाले कारकों में वनस्पति महत्त्वपूर्ण कारक हैं। “The pressure of dense regetative cover over a soil increases the infilteration capacity of the soil to a considerable extent”. सघन वनस्पति का मिट्टी के ऊपर आवरण मिट्टी की अन्त:स्यंदन क्षमता को बढ़ा देता है, जिससे भौम जल भंडारों में वृद्धि होती है।

वनस्पति की वृद्धि के साथ जल संसाधनों की वृद्धि से वनस्पति की अभिवृद्धि होती है। वन, वर्षा प्रादेशिक जल निकास मृदा नमी पर प्रभाव डालते हैं। ये तापक्रम की कठोरता में कमी, वायुमंडलीय आर्द्रता में वृद्धि, जल तल को ऊँचा रखने में सहयोग तथा जल प्रवाह की मात्रा के निर्धारण में योग देते हैं। कृषि रहित क्षेत्रों में वर्षा जल एवं भौम जल का उपयोग प्राकृतिक वनस्पति करती है। जो मानव के लिये अनेक प्रकार से उपयोगी होकर अप्रत्यक्ष रूप से जल संसाधन के उपयोग का माध्यम है।

संसार में जल एवं जीव का घनिष्ट संबंध है। इस संदर्भ में निम्न पंक्तियां दृष्टव्य हैं :

“Organic life very likely originated in water of prehistoric seas, many form of plants and animals have long migrated to the land, but their physiology is still inextricably connected with water. There are not exceptions and the water available for there growth determines in large measure, where tree can grow what kind can grow and how they can grow?”

वास्तव में जीव की उत्पत्ति प्रागैतिहासिक समुद्रों के जल से हुई है। इसमें कई प्रकार के पौधे और पशु भूमि पर काफी समय पूर्व आ गये थे। यदि उनकी शारीरिक बनावट को उत्पत्ति की दृष्टि से देखा जाये तो उनका अभी भी जल से अभिन्न संबंध स्पष्ट दिखाई देता है। पेड़-पौधे इसके अपवाद नहीं है।

District Etawah Forestउनके विकास के लिये जो जल प्राप्त है, वह उनकी सीमा निर्धारित करता है। अर्थात इससे ज्ञात होता है कि कहाँ पेड़-पौधे उगाये जा सकते हैं? किस प्रकार के उगाये जा सकते हैं और कितने बड़े उगाये जा सकते हैं? इस प्रकार जल और वनस्पति का एक दूसरे से घनिष्ट संबंध है। वनस्पति की प्रचुरता जल की प्रचुरता पर तथा वनस्पति की न्यूनता जल की न्यूनता पर निर्भर करती है। अत: किसी क्षेत्र में वनस्पति के अवलोकन मात्र से वहाँ के जल संसाधनों का आभास होने लगता है। भू-सतह पर वनों का वितरण जल प्राप्ति से निर्धारित किया जा सकता है।

“The distribution of vegetation over the surface of the earth in controlled more by the availability of water than any other single factors. Almost every plant process in affected directly or indirectly by the water’s supply.”

भारत में केवल 19.2 प्रतिशत क्षेत्र पर वन पाये जाते हैं। उत्तर प्रदेश में 7.15 प्रतिशत वन क्षेत्र की तुलना में जनपद इटावा में कुल क्षेत्रफल के 14.67 प्रतिशत क्षेत्र पर वन पाये जाते हैं। अध्ययन क्षेत्र में वनों का वितरण असमान है। चकरनगर विकासखंड में अधिकतम 32.04 प्रतिशत, भरथना विकासखंड में न्यूनतम 6.39 प्रतिशत भाग पर वन पाये जाते हैं। मानचित्र सं. 2.7 से स्पष्ट है कि वन प्राय: यमुना-चंबल नदियों के तटों के निकट बीहड़ में पाये जाते हैं। जनपद के उत्तरी एवं उत्तरी-पूर्वी भाग में कृषि योग्य भूमि का विकास होने से वन क्षेत्र कम है। बढ़पुरा विकासखंड में वन क्षेत्र 23.14 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है। इन दोनों विकासखंडों का यदि योग कर दिया जाये तो लगभग 55 प्रतिशत से अधिक हो जाता है। अर्थात समस्त वन क्षेत्र के आधे से अधिक भाग इन दोनों विकासखंडों में केंद्रित है। इसका प्रमुख कारण इन विकासखंडों के मध्य यमुना एवं चंबल नदियों का गुजरना है। जनपद में 36054 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र के अंतर्गत है।

यदि समग्र तालिका पर दृष्टिपात करें तो पाया जाता है कि अपने समस्त प्रतिवेदित क्षेत्र के 10 प्रतिशत अथवा उससे अधिक वन क्षेत्र वाले विकासखंड यमुना एवं चंबल नदियों के मध्य पड़ते हैं। उनकी भूमि ऊबड़-खाबड़ है जिसके कारण वहाँ अधिक वन क्षेत्र पाया जाना स्वाभाविक है। इन वन क्षेत्रों में वनोपज के रूप में बेर, बबूल, बांस, शीशम एवं बिलायती बबूल इत्यादि बहुतायत मात्रा में हैं। इसके अतिरिक्त महेवा एवं जसवंत नगर का कुछ भाग यमुना नदी के किनारे स्थित है। अत: इन विकासखंडों में भी वन क्षेत्र का प्रतिशत 10 प्रतिशत से अधिक है।

ये वन विभिन्न प्रकार की व्यापारिक लकड़ी, घास-फूस तथा अन्य कीमती उत्पादों को प्रदान करते हैं। इटावा वन विभाग के अनुसार जल स्तर उन स्थानों पर नीचा हो गया है जहाँ वन आवरण समाप्त कर दिये गये हैं और सूखा पड़ जाता है। विभिन्न प्रकार के वन, मिट्टी की नमी, जल रिसाव दर कायम रखते हैं और अंतत: जल भंडार को समृद्ध करते हैं।

जलवायु कारक :


जलवायु का महत्त्व भौगोलिक नियंत्रण के रूप में जल संसाधन के वितरण और स्वरूप पर स्पष्ट दिखाई देता है। जलवायु के मूल तत्व यथा- तापमान, वायुदाब, हवायें, वर्षा एवं आर्द्रता हैं, जो अंततोगत्वा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जल संसाधन के स्रोतों के स्वभाव और उपलब्धता से प्रभावित होते हैं। वर्षण की मात्रा परिवर्तनशीलता तथा विश्वसनीयता, अनावृष्टि तथा बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता का भी जल संसाधन आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान है। अत: इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

तापमान :


तापमान के स्थानिक कालिक वितरण का प्रभाव जल संसाधन की आपूर्ति के स्रोतों पर वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा प्रत्यक्ष रूप से तथा वर्षा द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। अध्ययन क्षेत्र में दैनिक तथा मौसमी तापमानों में परिवर्तनशीलता पाई जाती है। वार्षिक मौसम तापमान का परिसर 19.40C है। औसत मासिक तापमान का अध्ययन करते समय पुन: अत्यधिक परिवर्तनशीलता दिखाई देती है। इटावा जनपद के हीदर ग्राफ से स्पष्ट है कि नवम्बर से जून तक औसत मासिक तापमान की परिवर्तनशीलता का औसत 25.40C से 26.10C है, किंतु नम मानसून के महीने में परिवर्तनशीता कम हो जाती है। जनवरी के महीने में औसत न्यूनतम तापमान 3.40C है जबकि मई के महीने में अधिकतम तापमान 45.90C तक है। तापमान की पराकाष्ठाओं को आरेखी निरूपण द्वारा प्रस्तुत किया गया है। तापमान की अधिकतम पराकाष्ठायें मई एवं फरवरी के महीनों में क्रमश: 45.90C और 5.40C हैं।

जनपद का तापमान मार्च के प्रारंभ से जून के अंत तक बढ़ता है। मैनपुरी केंद्र का औसत वार्षिक तापमान 24.70 C रहता है। औसतम मासिक तापमान की विभिन्नता मैनपुरी केंद्र के हीदर ग्राफ से स्पष्ट है। मार्च के महीने से तापक्रम में वृद्धि आरंभ हो जाती है और मई से लेकर जून के पहले पक्ष तक का समय सबसे गर्म बना रहता है। जून महीने का औसत तापक्रम 34.70C है। अधिकांशत: मई एवं जून में अधिकतम दैनिक तापमान 490C तक पहुँच जाता है। जून के अंतिम सप्ताह में आकस्मिक वर्षा के कारण तापमान में कमी देखी जाती है। मैनपुरी केंद्र का अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान क्रमश: 49.80C तथा 3.40C रिकॉर्ड किया गया है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की समाप्ति के बाद दैनिक तापमान सितंबर से घटना प्रारंभ हो जाता है। अक्टूबर में रात ठंडी तथा तापमान 13.90C से नीचे पहुँच जाता हैं। इस प्रकार तापमान जुलाई से घटना प्रारंभ हो जाता है। दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। दिसंबर में औसत न्यूनतम तापमान 4.30C तथा अधिकतम 16.40C अंकित किया गया है। शीत ऋतु में ही पश्चिम से आने वाली शीत हवाओं के कारण शीत लहरी का प्रभाव बना रहता है। क्योंकि इसके प्रभाव से कभी-कभी तापक्रम 20C या 30C तक आ जाता है।

Relative Humidity in, Hythergraph

वायुदाब, हवा, आर्द्रता :


शीत ऋतु में हवा का दबाव बढ़ता है और तापमान कम हो जाता है। संपूर्ण क्षेत्र उच्च वायुदाब की पेटी में आ जाता है। जनवरी माह में सबसे अधिक वायुदाब अंकित किया गया। पंजाब की उच्च वायुदाब की पेटी हवा की दिशा को नियंत्रित करती है और उत्तर-पश्चिमी हवाओं को गंगा घाटी की ओर मोड़ती है। उत्तरी हवायें निम्न वायुदाब प्रवणता के कारण धीमी गति से चलती हैं। हवा की औसत अधिकतम गति जून के महीने में पाई जाती है।

तालिका सं. 2.2 इटावा जनपद - जलवायु सम्बन्धी आंकड़ेJanpad Etawaha wayu ki gatiDistrict Etawah Mainpuri Stationगर्मी के मौसम में इटावा जनपद का तापमान निरंतर बढ़ता है और वह निम्न वायुदाब की पेटी में आ जाता है। मार्च, अप्रैल, मई में प्राय: औसत वायुदाब क्रमश: 994.22, 988.90 तथा 984.05 मिलीबार तक हो जाता है।

तालिका सं. 2.3 इटावा जनपद का औसत वायुदाबगर्मी तेजी से बढ़ती है तथा गर्म पछुआ हवायें 60 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से प्रवाहित होने लगती हैं। जो ‘लू’ कहलाती हैं। ये हवायें बहुत गर्म और शुष्क होती हैं तथा बीच-बीच में धूल भरे अंधड़ चलने लगते हैं। कभी-कभी इसमें तेज बौछार एवं ओले भी पड़ते हैं। ग्रीष्मकालीन महीनों में अधिक तापमान के कारण मैदानी भाग में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। जबकि हिंद महासागर में उच्च वायुदाब होता है और हवायें समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं। जुलाई, अगस्त, सितंबर व अक्टूबर के महीने में हवाओं का औसत वेग क्रमश: 3.52, 3.04, 2.72 एवं 1.76 किलोमीटर प्रति घंटा है। दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण वायुमंडलीय दशाओं में परिवर्तन होता है।

वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन की दर पर आर्द्रता का सीधा प्रभाव पड़ता है। इस क्षेत्र में तापमान असमान वितरण के कारण औसत मासिक आपेक्षिक आर्द्रता भिन्न है। शीत ऋतु में आपेक्षिक आर्द्रता 57.2 प्रतिशत रहती है और अप्रैल तथा मई में कम हो जाती है। आपेक्षित आर्द्रता दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी मौसम में अधिक रहती है। उच्चतम एवं न्यूनतम आर्द्रता अगस्त और मई के महीनों में पाई जाती है। जनपद की औसत वार्षिक आपेक्षिक आर्द्रता केवल 55.84 प्रतिशत है।

वर्षण :


जल संसाधन का मूल आधार वर्षण है। वर्षण का जल ही मनुष्य को सतही जलाशयों एवं भूमिगत जल भंडारों के रूप में उपलब्ध रहता है। जल न केवल जीवन का आधार है बल्कि मनुष्य के विभिन्न क्रियाकलापों को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। यद्यपि वर्षण का जल कुल जल संपूर्ति के लिये पर्याप्त नहीं है फिर भी यह जल का प्रमुख स्रोत है, जिसका विभिन्न उपयोगी तथा अनुपयोगी उद्देश्यों हेतु प्रयोग किया जाता है। अध्ययन क्षेत्र में वर्षण का मुख्य रूप वर्षा है। इसका योगदान कुल वार्षिक वर्षण का 99 प्रतिशत है। कुल वार्षिक वर्षण में ओले का योगदान नगण्य है। अध्ययन क्षेत्र में ओला वृष्टि शीत तथा पूर्व मानसून मौसम में होती है। चक्रवात वर्षण के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं वर्षा तो कहीं-कहीं तड़ित झंझावात आते हैं, किंतु उनका वर्षण काल एक या दो दिन में समाप्त हो जाता है। इटावा जनपद उष्णकटिबंधीय पेटी में आता है जो क्रमश: आर्द्र मानूसन मौसम तथा शीत मौसम में बंगाल की खाड़ी तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत में आने वाले उष्ण कटिबंधीय तथा भूमध्यसागरीय चक्रवातों से वर्षा प्राप्त करता है।

वर्षा का स्थानिक तथा कालिक वितरण :


जनपद में वर्षा का वितरण असमान है। वर्षा का वार्षिक औसत वितरण 702.6 मिलीमीटर है। परंतु वर्तमान अध्ययन से स्पष्ट है कि जनपद के उत्तरी-पूर्वी भाग में वर्षा औसत से अधिक होती है। उत्तर-पूर्व से दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम की तरफ जाने पर वर्षा की मात्रा में गिरावट देखी जा सकती है। मानचित्र 2.8 से स्पष्ट है कि उत्तरी-पूर्वी भाग में भरथना तहसील एवं इटावा का लगा हुआ भाग है। परिणामस्वरूप इटावा में 806 मिलीमीटर तथा भरथना में 748 मिलीमीटर वर्षा होती है। इसके पश्चात ज्यों-ज्यों हम दक्षिण की ओर बढ़ते हैं औसत वर्षा की मात्रा में कमी आ जाती है। भरथना तहसील के दक्षिण में चकरनगर तहसील है जो वर्षा की न्यून मात्रा (567 मिलीमीटर) प्राप्त करता है। इसके पूर्व में सैंफई एवं जसवंत नगर तहसीलें स्थित हैं जो क्रमश: 687 और 705 मिलीमीटर वर्षा प्राप्त करती हैं। इस प्रकार जनपद के उत्तर-पूर्व भाग से दक्षिण एवं पश्चिम की ओर जाने पर वर्षा के वितरण में कमी देखने को मिलती है।

तालिका सं. 2.4 तहसीलवार औसत वार्षिक वर्षा (1990-2005)जनपद में वर्षा का मौसमी वितरण जल के अनुप्रयोग एवं प्रयोग को प्रभावित करता है। जनपद में वर्ष के विभिन्न महीनों में वर्षा का मौसमी वितरण असमान है। कुल वर्षा की 80 प्रतिशत से अधिक जलवृष्टि वर्षाकाल के चार महीनों जून, जुलाई, अगस्त तथा सितंबर तक हो जाती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दो महीने लगभग 60 प्रतिशत से अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं। ग्रीष्म ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है। अप्रैल और मई में संपूर्ण वर्ष की 1.4 प्रतिशत तक वर्षा होती है। जनपद में शीत ऋतु में 4.25 से लेकर 6.0 प्रतिशत तक वर्षा होती है। अत: शीत ऋतु में संपूर्ण क्षेत्र में कुछ न कुछ वर्षा अवश्य होती है। ग्रीष्म ऋतु में जनपद में सबसे अधिक इटावा तहसील (730 मिलीमीटर) वर्षा की मात्रा प्राप्त करता है। इसके बाद चारों ओर जाने पर वर्षा के वितरण में कमी देखी जाती है मानसूनोत्तर मौसम में उत्तर-पूर्वी भाग में सबसे अधिक वर्षा होती है। इसके बाद दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी भाग में जाने पर वर्षा की मात्रा घटती चली जाती है।

District Etawah Normal Annual Rainfall (1990-2005)तालिका सं. 2.5 इटावा जनपद में वर्षण का माहवार वितरण (1990-2005)मासिक वर्षा के वितरण की प्रथम विशेषता प्रत्येक माह की वर्षा प्रतिशत में भिन्नता तथा दूसरी विभिन्न वर्षों में किसी माह की अधिकतम और न्यूनतम वर्षा में बृहद अंतर का होना है। औसत मासिक वर्षा के वितरण का प्रत्यक्ष प्रभाव विभिन्न उपयोगों हेतु धरातलीय एवं भौमिक जल की उपलब्धता पर पड़ता है। वार्षिक वर्षा के परिवर्तन का चित्रण विभिन्न वर्षामापी स्टेशनों के माहवार वर्षा आंकड़ों द्वारा स्पष्ट हो जाता है। यद्यपि प्रत्येक महीने की वर्षा में बहुत अधिक विभिन्नता है किंतु यह ध्यान देने योग्य है कि वर्ष में कोई भी महीना वर्षाविहीन नहीं है, जैसा कि उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है।

वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन :


जल संसाधन की उपलब्धता के संदर्भ में इसका अध्ययन महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि भौमिक जल का विसर्जन और विभिन्न स्रोतों द्वारा उसके पुन: पूर्ति का प्रभाव विभिन्न स्रोतों के जल स्तर पर पड़ता है। जो कि अधिकांशत: जल संसाधन की उपलब्धता के प्रमुख स्रोत हैं। वर्षा के वितरण का सीधा प्रभाव क्षेत्र में जल की अधिकता एवं कमी पर पड़ता है। जल अजैविक या भौतिक संगठन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। सूर्यताप के माध्यम से जल का वाष्पीकरण होता है। जल वर्षा के कुछ भाग का वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में वाष्प के रूप में नष्ट हो जाता है। वर्षा के जल के कुछ भाग का भू-सतह के नीचे अंत:संचरण हो जाता है जो मिट्टियों में भंडारित होता है। इस मृदा जल भंडार से कुछ जल वाष्पीकरण द्वारा तथा कुछ जल वनस्पतियों से वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में चला जाता है। नदियों, तालाबों, झीलों, मिट्टियों आदि से जल का वाष्पीकरण, वनस्पति द्वारा वाष्पोत्सर्जन तथा वर्षा का जल धरातलीय जल स्रोतों में पहुँचने से पहले वाष्पीकरण द्वारा जल, जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में वापस हो जाता है।

जब भौमिक जल स्तर में वृद्धि होती है तो वाष्पन भी बढ़ जाता है। वाष्पन की दर मिट्टी की संरचना पर निर्भर करती है। नग्न मृदा पर वास्तविक वाष्पन का अभिकलन वाह्य वाष्पन की विभिन्न दशाओं के कारण मृदा सतह पर अनिश्चित हो जाता है। इटावा जनपद के वाष्पन व वाष्पोत्सर्जन के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। परिणामत: अधिक स्पष्टता के साथ इसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।

सांस्कृतिक वातावरण


जनसंख्या वृद्धि :
सृष्टि का आदि और अंत जल से होता है। प्रत्येक प्राणी के जीवित रहने के लिये प्राथमिक आवश्यकता जल की होती है। इसलिये जहाँ कहीं नाम मात्र को भी जल पाया जाता है या जल मिलने की संभावना मात्र है, मनुष्य उन्हीं स्थानों पर कुआँ खोदकर अथवा बांध बनाकर अपनी जल संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर लेता है। मानव इतिहास इस बात का साक्षी है कि मानव सभ्यता का विकास जल स्रोतों के निकट हुआ है जिन स्थानों में जल पर अधिक नियंत्रण किया जा सकता है, वहीं जनसंख्या केंद्रित हो जाती है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती गई वैसे ही मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जल संसाधनों का भी विकास होता गया।

तालिका सं. 2.6 से स्पष्ट है कि जनपद में जनसंख्या वृद्धि की दो अवस्थायें पाई जाती हैं। प्रथम 1901 से लेकर 1921 की अवधि में जनसंख्या में निरंतर ह्रास हुआ है। इसके साथ ही जल संसाधन की प्रगति भी धीमी हुई है। जिसका स्पष्ट उदाहरण सिंचाई साधनों के प्रक्षेत्र का कम होना है। सन 1901 में जनपद की कुल जनसंख्या 806806 थी। सन 1921 में जनसंख्या घटकर 760128 हो गई। इस अवधि में जनसंख्या में ह्रास दो कारणों से हुआ। प्रथम प्राकृतिक और द्वितीय राजनैतिक। प्राकृतिक कारणों से यहाँ विभिन्न प्रकार की महामारियाँ जैसे- हैजा, मलेरिया, इन्फ्लूएन्जा आदि का प्रकोप रहा है। साथ ही जलाभाव के कारण यह क्षेत्र बहुत समय तक अकालग्रस्त भी रहा है। फलस्वरूप जन्म दर की तुलना में मृत्यु दर अधिक रही है। राजनैतिक कारणों में प्रमुख रूप से प्रथम विश्व युद्ध है।

तालिका सं. 2.6 जनसंख्या की वृद्धि (1901-2001)नोट : 2001 की सूचनायें जनपद की 2005 की भौगोलिक सीमा पर आधारित हैं।

द्वितीय अवस्था जनपद में 1921 से लेकर 2001 तक पाई जाती है। यद्यपि 1901 की तुलना में 1921 में जनसंख्या घटी है। तथापि 1921 के बाद से द्वितीय अवस्था का प्रारंभ हुआ है। इस अवस्था में जनपद में उत्पादन वृद्धि, यातायात के साधनों का विकास एवं बीमारियों पर नियंत्रण की सुविधा प्राप्त हो जाने से जनसंख्या में तीव्रता के साथ नियमित वृद्धि हुई है। 1921 से 1931 एवं 1941 के मध्य जनसंख्या की वृद्धि तेजी से हुई है। 1941 से 1951 के मध्य जनसंख्या में वृद्धि की दर काफी मंद रही क्योंकि इस समय वर्ष 1950 में गर्मियों के महीनों में हैजा महामारी प्रकोप ने जनांककीय गति को अपनी पुरानी स्थिति में वापस ला दिया। वर्ष 1951 के पश्चात जनसंख्या में तेजी से वृद्धि दर क्रमश: 23.0, 20.0, 22.0 तथा 11.1 प्रतिशत थी। शोधार्थी ने 1991-2001 के दशक के विकासखंड वार जनसंख्या वृद्धि के आंकड़े अभिकलित किये हैं, जो निम्न तालिका में दर्शाये गये हैं।

तालिका सं. 2.7 विकासखण्डवार जनसंख्या की वृद्धि (1991-2001)तालिका क्र.सं. 2.7 दर्शाती है कि सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि दर विकासखंड बसरेहर में 31.7 प्रतिशत रही है। भर्थना एवं ताखा विकासखंडों में क्रमश: 23.32 एवं 22.39 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर रही है। निम्न जनसंख्या वृद्धि दर (20 प्रतिशत से कम) के अंतर्गत जसवंत नगर, बढ़पुरा, सैफई, चकरनगर एवं महेवा हैं, जिनकी वृद्धि दर क्रमश: 18.5, 14.8 एवं 9.1 प्रतिशत है।

District Etawah Growth of Population 1991-2001जनसंख्या घनत्व :
जनपद में जनसंख्या के घनत्व का अध्ययन करते समय यह तथ्य सामने आता है कि जनपद के पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम भाग में (सैफई विकासखंड को छोड़कर) प्राकृतिक जल संसाधनों पर जनसंख्या का भार बहुत अधिक है। समतल मैदानी भाग एवं यातायात की उत्तम व्यवस्था, सिंचाई सुविधाओं का पूर्ण विकास होने से जनसंख्या घनत्व अधिक है। जबकि दक्षिण एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग में जनसंख्या का घनत्व कम देखने को मिलता है।

तालिका सं. 2.8 जनपद इटावा में ग्रामीण जनसंख्या घनत्व (2001)जनपद में जनसंख्या का गणितीय घनत्व काफी कम है। जनसंख्या का वितरण पक्ष जनसंख्या के घनत्व से अपृथक है जो जनसंख्या संकेंद्रण की स्थिति के मूल्यांकन हेतु मात्रात्मक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। 2001 में जनपद की जनसंख्या का घनत्व उत्तर प्रदेश में 690 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर तथा भारत में 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर की तुलना में 494.89 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हैं। जनसंख्या का वितरण पक्ष जनसंख्या के घनत्व से अपृथक है जो जनसंख्या संकेन्द्रण की स्थिति के मूल्यांकन हेतु मात्रात्मक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। तालिका संख्या 2.8 में विकासखंड वार गणितीय जनसंख्या घनत्व प्रदर्शित किया गया है।

District Etawah Density of Population 2001जनपद के ग्रामीण जनसंख्या का घनत्व 381.01 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। चकरनगर विकासखंड का जनसंख्या का घनत्व सबसे कम 143.48 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। जबकि इसकी तुलना में बसरेहर विकासखंड का जनसंख्या घनत्व सर्वाधिक 688.69 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। घनत्व प्रतिरूप में उच्च विभिन्नता, उच्चावच, मिट्टी की उर्वरता, कृषि भूमि का प्रतिशत, सिंचाई सुविधायें, परिवहन जाल तथा अधिवास विकास के प्रतिरूप की भिन्नता के कारण होता है। बसरेहर, महेवा, जसवंतनगर एवं भरथना में जनसंख्या घनत्व अधिक है। जिसके मुख्य कारण यहाँ की समतल भूमि, सिंचाई सुविधाओं का विकास, परिवहन की उत्तम व्यवस्था आदि हैं। सबसे कम जनसंख्या का घनत्व चकरनगर एवं सैफई विकासखंडों का क्रमश: 13.48 एवं 187.68 प्रति वर्ग किलोमीटर है। मध्यम जनसंख्या का घनत्व बढ़पुरा एवं ताखा विकासखंडों में क्रमश: 465.07 एवं 401.75 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर पाया जाता है।

जनसंख्या वितरण का प्रतिरूप :
जनसंख्या का स्थानिक वितरण भौतिक सीमाओं और मनुष्य की आवश्यकता पर निर्भर है। आर. डब्ल्यू. स्टील के अनुसार - धरातल पर जनसंख्या का वितरण क्षेत्र की सामान्य निवास्यता द्वारा नियंत्रित होता है। इस क्षेत्र में जनसंख्या वितरण प्रतिरूप, भू-आकृति, वर्षा की मात्रा, मिट्टी की दक्षता, कृषि योग्य भूमि का प्रतिशत, सिंचाई सुविधायें, फसलों के प्रकारों तथा संचार के साधनों से प्रभावित होता है। विकासखंडवार जनसंख्या का वितरण तालिका 2.9 से स्पष्ट है।

तालिका सं. 2.9 जनपद इटावा की ग्रामीण जनसंक्या (2001)जनपद इटावा में कुल जनसंख्या 76.99 प्रतिशत ग्रामीण अंचलों में निवास करती है। जनसंख्या का मुख्य संकेंद्रण जनपद के उत्तरी-पूर्वी भाग एवं उत्तरी-पश्चिमी भाग में हुआ है। इसका मुख्य कारण उपजाऊ कृषि योग्य भूमि का अधिक प्रतिशत, सिंचाई सुविधाओं का विकास इत्यादि रहा है। सबसे कम जनसंख्या दक्षिण भाग (चकरनगर) में पाई जाती है। जिसका प्रमुख कारण बीहड़ क्षेत्र का अधिक विस्तार होने से वहाँ सिंचाई एवं परिवहन के साधनों का सीमित विकास होना है। फलत: जनसंख्या दबाव कम है। जनपद में सबसे अधिक जनसंख्या 190941 महेवा विकासखंड में है। तत्पश्चात भरथना, जसवंतनगर एवं बसरेहर विकासखंडों में क्रमश: 145180, 144280 तथा 141268 जनसंख्या है। सबसे कम जनसंख्या चकरनगर एवं सैफई विकासखंड में क्रमश: 72585 तथा 93709 अगणित की गई।

इटावा जनपद का सबसे बड़ा नगर है जो जनपद का मुख्यालाय है। यह उत्तरी रेलवे लाइन (मुगलसराय से दिल्ली) एवं राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2 (एनएच-2) पर स्थित है। यहाँ दो-दो बहुसंकाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय प्रथम कर्मक्षेत्र महाविद्यालय (पुरुष व महिला) तथा पंचायती राज महाविद्यालय के अतिरिक्त एक इंजीनियरिंग कॉलेज भी है। प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों में सुमेर शाह का किला, टिक्सी मंदिर, नीलकंड मंदिर एवं जामा मस्जिद आदि उल्लेखनीय हैं।

तालिका सं. 2.10 जनपद इटावा में नगरीय जनसंख्या (2001)इसके मध्य में विक्टारियल मेमोरियल स्थित है जिसको देखने के लिये दूर-दूर से लोग आया करते हैं। यहाँ की जनसंख्या 210453 है। भरथना, भरथना तहसील का मुख्यालय है, जो टूंडला एवं कानपुर रेलवे लाइन पर पड़ता है। यह जनपद मुख्यालय से लगभग 21 किलोमीटर दूर है। इसकी जनसंख्या 38789 है। यह मुख्यत: अनाज मंडी के रूप में प्रसिद्ध है। जसवंत नगर जनपद मुख्यालय के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित है जो तहसील मुख्यालय भी है। इसकी जनसंख्या 25333 है। बकेवर, लखना एवं इकदिल नगर पालिकायें हैं। बकेवर और इकदिल दोनों ही राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2 पर स्थित हैं। बकेवर में एक बहुसंकाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय व ग्राम्य विकास प्रशिक्षण संस्थान है। इकदिल पशु बाजार के लिये प्रसिद्ध है जो सबसे बड़ा क्षेत्रीय बाजार है। लखना में प्राचीन काली माँ का मंदिर (कालिका मंदिर) बहुत प्रसिद्ध है। सप्ताह में प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को यहाँ पर मेला लगता है। दूर-दूर से लोग बड़ी श्रद्धा के साथ काली मां मंदिर के दर्शन के लिये आते हैं। इसकी जनसंख्या 10470 है।

जनसंख्या संगठन :
किसी क्षेत्र की जनसंख्या में जनसंख्या संगठन के अंतर्गत मानव का पुरुष-स्त्री अनुपात, आर्थिक सुस्थिति, भाषा, धर्म जाति आदि के आधार पर इन सभी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। पेयजल की आपूर्ति एवं उपलब्धता जनसंख्या के लिंगानुपात, आर्थिक सुस्थिति एवं सामाजिक संरचना आदि को किस प्रकार प्रभावित करती है। अध्ययन क्षेत्र में इन तथ्यों का विश्लेषण निम्न प्रकार किया गया है।

लिंगानुपात :
किसी भी क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विकास में जनसंख्या का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा कुल जनसंख्या में स्त्रियों एवं पुरुषों के अनुपात के आधार पर कृषि कार्यों एवं जल संसाधन हेतु श्रम की उपलब्धता का ज्ञान होता है। किसी भी कार्य में लगे श्रम को नकारा नहीं जा सकता। ‘‘अन्तरराष्ट्रीय पेयजल आपूर्ति एवं सफाई दशक’’ के अध्ययन और सर्वेक्षण में भी महिलाओं को ही जल की व्यवस्था का मुख्य कारक माना है। किंतु नीति निर्माण और कार्यक्रमों में अभी भी महिलाओं की प्राय: पूर्णत: उपेक्षा की जा रही है, जबकि महिलायें ही समाज का वह महत्त्वपूर्ण अवयव हैं जो यह निर्धारित करता है कि जल का कहाँ पर सही उपयोग हो सकता है। अध्ययन क्षेत्र में लिंग अनुपात को तालिका सं. 2.11 में दिखाया गया है –

तालिका सं. 11 जनपद इटावा का लिंगनुपात (2001)उपरोक्त तालिका जनपद इटावा में 2001 का लिंगानुपात दर्शाती है। यहाँ 720749 पुरुषों के पीछे 618122 स्त्रियाँ हैं। इस प्रकार जनपद का लिंगानुपात 858 है, जबकि उत्तर प्रदेश का लिंगानुपात 898 तथा भारत का 933 है। निम्न लिंगानुपात का मुख्य कारण यह है कि यहाँ के लोग लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक प्राथमिकता देते हैं। इसके अतिरिक्त विवाहित स्त्रियों की मृत्युदर अधिक है। इसका मूल कारण बाल विवाह एवं प्रसूत चिकित्सा की अपर्याप्त सुविधा है।

यहाँ यह तथ्य भी प्रकाश में आता है कि जनपद की ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या में लिंगानुपात में पर्याप्त भिन्नता है।

District Etawah Sex Ratio 2001

 

इटावा जनपद में जल संसाधन की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रबंधन, शोध-प्रबंध 2008-09

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

प्रस्तावना : इटावा जनपद में जल संसाधन की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रबंधन (Availability Utilization & Management of Water Resource in District Etawah)

2

भौतिक वातावरण

3

जल संसाधन की उपलब्धता का आकलन एवं वितरण

4

अध्ययन क्षेत्र में कृषि आयाम

5

अध्ययन क्षेत्र में नहर सिंचाई

6

अध्ययन क्षेत्र में कूप एवं नलकूप सिंचाई

7

लघु बाँध सिंचाई

8

जल संसाधन का कृष्येत्तर क्षेत्रों में उपयोग

9

जल संसाधन की समस्यायें

10

जल संसाधन प्रबंधन

 

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