जैव विविधता पर खतरा और विलुप्त होती मछलियाँ


केरल की पुकुडी और नीलगिरी मिस्टस जैसी मछलियाँ विलुप्त होने की कगार पर है। वैसे केरल का जिक्र यहाँ महत्त्वपूर्ण इसलिये है क्योंकि इस राज्य में पहले 07 मछलियों की प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर थी। जिसे अब चार पर ले आया गया है। केरल विलुप्त होती मछलियों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये एक रोल माॅडल हो सकता है। खतरा सिर्फ मछलियों को लेकर नहीं है बल्कि कथित विकास के अन्धे दौर में देश की जैव विविधता खतरे में है। देश भर में तालाब बनाने की योजना और साथ में मछली पालन को सरकारें प्रोत्साहित कर रही हैं। लेकिन चिन्ता की बात है कि अपने देश में मछलियों के संरक्षण से जुड़ी हुई कोई नीति सरकार के पास नहीं है। हमने कभी इस दिशा में विचार ही नहीं किया। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में मछलियों को नजरअन्दाज कर दिया गया। समुद्री मछली शार्क के संरक्षण हेतु वर्ष 2001 में इसके शिकार पर रोक लगाई गई।

आईयूसीएन (द इंटरनेशनल यूनियन फाॅर कंजरवेशन फाॅर नेचर) के अनुसार 30 के आस-पास मछलियों की ऐसी प्रजातियों की पहचान पश्चिमी घाट पर हुई हैं। जो खतरे में हैं। जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। यदि जल्दी उनके संरक्षण के लिये कुछ नहीं किया गया तो वे खत्म हो सकती हैं। यह भी सच है कि पश्चिमी घाट पर जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। उत्खनन का काम बढ़ गया है। बाँध बनाया गया है। यह सब जैव विविधता को बनाए रखने के लिए खतरे की श्रेणी में आते हैं।

जिन 30 प्रजातियों के विलुप्ति के कगार पर होने की बात की जा रही है, यह स्थिति एक-दो सालों में नहीं आई है। दशकों में हम इस स्थिति पर पहुँचे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इस तरफ ध्यान देने की हमने कभी जरूरत ही नहीं समझी।

उभयचर जन्तुओं पर आई एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया के अन्दर सबसे अधिक विलुप्त होने की कगार पर जन्तु भारत में हैं। जिनकी संख्या 70 के आस पास है। इनकी विलुप्त होने की स्थिति को जीएए (वैश्विक उभयचर आकलन) भी इस बात पर सहमति जता चुका है।

भारत के अन्दर विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों में 13 को गम्भीर खतरे की श्रेणी में सूचिबद्ध किया गया है। 31 खतरे की स्थिति में है और बाकि बचे हुए खतरे की चपेट में आने की स्थिति में आ गए हैं। भारत में डाॅल्फिन की घटती संख्या भी खतरे की घंटी है, जिसे लेकर चेत जाने की जरूरत है।

एनबीएफजीआर (द नेशनल ब्यूरो आॅफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज) ने भारतीय मछलियों की विविधताओं का एक डाटाबेस तैयार किया है। जिसमें उन्होंने 2246 स्वदेशी मछलियों के सम्बन्ध में जानकारी जुटाने में सफलता पाई है और 291 भारत में मौजूद विदेशी नस्ल की मछलियों की जानकारी है। यह जलचरों पर शोध करने वाले छात्रों के लिये बेहद उपयोगी होगा।

केरल की पुकुडी और नीलगिरी मिस्टस जैसी मछलियाँ विलुप्त होने की कगार पर है। वैसे केरल का जिक्र यहाँ महत्त्वपूर्ण इसलिये है क्योंकि इस राज्य में पहले 07 मछलियों की प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर थी। जिसे अब चार पर ले आया गया है। केरल विलुप्त होती मछलियों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये एक रोल माॅडल हो सकता है। खतरा सिर्फ मछलियों को लेकर नहीं है बल्कि कथित विकास के अन्धे दौर में देश की जैव विविधता खतरे में है।

आईयूसीएन (द इंटरनेशनल यूनियन फाॅर कंजरवेशन आॅफ नेचर) ने अपनी रिपोर्ट में विलुप्त होने वाली प्रजातियों की जो रेड लिस्ट जारी की है, उनमें 132 भारतीय पौधे-जीव-जन्तु ऐसे हैं, जो विलुप्त होने की अन्तिम अवस्था में हैं।

इस चुनौती को गम्भीरता से लेने की जरूरत है और विकास के जिस माॅडल पर आज हम बाँध बनाए जा रहे हैं, असीमित खनन में लगे हैं और पेड़ों की बेलगाम कटाई चल रही है और पहाड़ों को खत्म करने के अन्तहीन सिलसिला जारी है, इस विकास के माॅडल पर समय आ गया है कि एक बार हम फिर से पुनर्विचार करें।

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