जैविक खेती से धान की उपज बढ़ाने की मेडागास्कर पद्धति

धान की खेती
धान की खेती

मेडागास्कर पद्धति धान की पैदावार बढ़ाने की नई पद्धति है जिसमें कम पानी, कम बीज और बिना रासायनिक खाद के दोगुना से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस नई पद्धति में धान के खेत में पानी भरकर रखने की जरूरत नहीं है। क्योंकि खेत में पानी भरे रखने से पौधे का सम्पूर्ण विकास नहीं होता। अगर खेत में पानी भरा हो तो पौधे की अधिकांश जड़े बालियाँ निकलने से पहले ही सड़ जाती है और उसकी बढ़वार कमजोर होती है। इसलिये उत्पादन भी कम होता है।

दूसरी तरफ मेडागास्कर पद्धति में खेत में पानी भरकर नहीं रखने से पौधे की जड़ों का समुचित विकास होता है। मिट्टी में पौधे की जड़े फैलती है। गोबर व कम्पोस्ट खाद से मिट्टी में समाहित जीवांश को जीवाणुओं द्वारा पचाकर पौधों को पोषण उपलब्ध कराते हैं। इससे ज्यादा कंसा आते हैं और ज्यादा उत्पादन होता है।

बीज का चुनाव


1. इस पद्धति में सिर्फ एक एकड़ में 2 किलो ही बीज चाहिए।

2. आप अपने क्षेत्र और मिट्टी के हिसाब से उपलब्ध देशी बीज का चुनाव कर सकते हैं।
3. अगर बारिश के पानी के भरोसे खेती करना है तो जल्दी पकने वाली (हरूना) धान लगाएँ यानी 100 से 125 दिन की अवधि वाली किस्म लगाएँ।
4. अगर सिंचाई की सुविधा है तो देर से पकने वाली (मई धान 130-150 दिन) किस्म लगा सकते हैं।

बीज का उपचार


1. बीज को नमक पानी में उपचारित कर हल्का बीज हटा दें।
2. उपचारित बीज को दिन भर ताजा पानी में भिगो दें।
3. भीगे हुए बीज को बोरी में बाँधकर एक-दो दिन तक अंकुरण के लिये रखे।
4. अंकुर फूटते ही नर्सरी में बोएँ।

नर्सरी तैयार करने का तरीका


1. समतल जगह में गोबर खाद आदि डालकर अच्छे से तैयार कर लें।
2. ढाई फीट चौड़ी और 10 फीट लम्बी क्यारियाँ बना लें।
3. क्यारी जमीन से 3-4 इंच ऊँची होनी चाहिए।
4. क्यारियों के बीच में पानी निकासी के लिये नाली होनी चाहिए।
5. क्यारियों को समतल कर अंकुरित बीज को बोएँ।
6. बीज ज्यादा घना न डालें, दूर-दूर रहें (एक डिस्मिल में 2 किलो बीज)
7. गोबर खाद की हल्की परत से ढक दें।
8. नमी कम होने पर हाथ से पानी सींचें।

रोपाई


1. रोपाई के लिये 10-12 दिन का ही थरहा होना चाहिए।
2. पहले गोबर खाद डालकर खेत को तैयार कर लें।
3. रोपाई के दो रोज पहले मताई करें और समतल करें।
4. एक या दो दिन बाद ही निशान लगाने के लिये पानी निकाले।
5. दतारी जैसे औजार से निशान खींचें।
6. रोपाई के निशान 10-10 इंच के अन्तर से डालें।
7. 8-10 कतार के बाद पानी निकासी के लिये नाली छोड़ दें।
8. थरहा से पौधों को सावधानी से मिट्टी के साथ निकालें और खेत में ले जाएँ।
9. लगाते समय एक-एक पौधे को अलग-अलग करें।
10. पौधा अलग करते समय जड़ों के साथ बीज और मिट्टी भी लगी रहे।
11. दतारी से बने चौकोर निशान पर एक-एक पौधा रोपें।

खाद की व्यवस्था


1. इसमें गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद आदि का ही प्रयोग करें।
2. रासायनिक खाद बिल्कुल भी डालने की जरूरत नहीं है।
3. प्रति एकड़ पका हुआ 6-8 ट्रैक्टर ट्राली गोबर खाद डाल सकते हैं।
4. हरी खाद के रूप में सनई या कुलथी (हिरवा) बोकर एक-डेढ़ माह बाद रोपाई के पहले सड़ा सकते हैं।

पानी का नियोजन


1. खेत में पानी भर जाने पर निकासी करें।
2. सिर्फ औजार से निराई के समय ही 2-3 दिन के लिये पानी में खेत में भरकर रखें।
3. बाली निकलने से दाना भरने तक खेत में अंगुल भर पानी भरकर रख सकते हैं।
4.. पानी निकासी के लिये नाली बनाना जरूरी है।
5. पानी निकालकर बाजू के खेत या डबरी में रख सकते हैं जिससे जरूरत पड़ने पर सिंचाई की जा सके।

खरपतवार नियंत्रण


1. खेत में पानी भराव न होने से खरपतवार जल्द उग आते हैं
2. रोपाई के बाद 10-11 दिन में कतार के बीच में वीडर (औजार) चलाएँ।
3. रोपाई के 25-30 रोज के बीच में दूसरी बार वीडर चलाएँ।
4. वीडर चलाने के लिये खेत में पानी का भराव जरूरी है इसलिये दो रोज पहले से पानी रोकें।
5. वीडर चलाने के बाद एक-दो दिन में पानी निकासी करें।
6. पौधे की बढ़वार कम होने पर तीसरी बार वीडर चलाएँ।
7. आखिरी बार बचे हुए खरपतवार की हाथ से निराई करें।

सीधा बीज बोकर भी मेडागास्कर पद्धति से धान की खेती कर सकते हैं

1. वर्षा आधारित और कम उपजाऊ खेत में सीधा बीज बोना ज्यादा उचित रहेगा।
2. अच्छी बारिश होने पर 2-3 बार गोबर जोतकर खाद मिट्टी में मिला लें।
3. मिट्टी को भुरभुरी कर समतल बना लें।
4. 10-10 इंच दूरी में खाद डालकर निशान बना लें।
5. उपचारित बीज भिगोकर 2-2 बीज निशान में बोएँ।
6. बीज आधा इंच गहराई पर बोएँ।
7. 8-10 कतार के बाद पानी निकासी के लिये नाली की जगह छोड़े।
8. 10-15 दिन में बीज उगने के साथ-साथ खरपतनार खुरपी से निकाल दें।
9. बारिश की कमी है तो दोबारा इसी तरह निराई करें।
10. पानी भरा होने पर वीडर चलाकर निराई-गुड़ाई करें।
11. दो-तीन दिन से ज्यादा पानी भरा रहने पर निकासी करें।
12. कम अवधि और सूखारोधी किस्मों का ही प्रयोग करें।

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