जल एवं संविधान (Water & Constitution)


किसी भी देश के लिये जल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संसाधनों में एक है और सिंचाई, पशु पालन तथा स्वच्छता के अन्य उद्देश्यों के लिये हमारे राज्य अधिकतर जल नदियों से ही प्राप्त करते हैं। सभी दिशाओं में बहने वाली, भारत में विभिन्न राज्यों से होकर जाने वाली ये नदियाँ या तो अन्तरराज्यीय (एक ही राज्य के भीतर बहने वाली) होती हैं या अन्तरराज्यीय (दो या अधिक राज्यों से गुजरने वाली) होती हैं, जिसके कारण कभी-कभी राज्यों में विवाद भी हो जाता है। इस स्थिति में ही अन्तरराज्यीय नदियों को संभालने तथा उनसे सम्बन्धित किसी भी विवाद को निपटाने में केन्द्र सरकार की भूमिका और अधिकार काम आते हैं। हमारे संविधान में भी लिखा है कि ‘वनों, झीलों, नदियों तथा वन्यजीवन समेत प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करना एवं उसे बेहतर बनाना और जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना’ हमारा मौलिक अधिकार है।

भारतीय संविधान के अनुसार राज्य सरकार के पास अपने राज्य में जल संसाधनों से सम्बन्धित कानून बनाने का अधिकार होता है। राज्य सूची की प्रविष्टि 17 के अंतर्गत राज्य को अपने विधायी अधिकार का प्रयोग किसी अन्य राज्य के हितों को प्रभावित किये बगैर तथा विवादों से बचते हुए करना होता है। किंतु अन्तरराज्यीय नदियों के नियमन तथा विकास के लिये कानून बनाने का अधिकार केंद्र का है, इसलिए राज्य सरकारें जल के ऊपर अपने अधिकार का प्रयोग तो कर सकती हैं, लेकिन वह संसद द्वारा तय की गई सीमाओं के भीतर ही रहेगा। इसलिये यह कहना ठीक नहीं होगा कि जल पूरी तरह राज्यों का विषय है। वास्तव में यह जितना राज्यों का विषय है, उतना ही केंद्र का विषय भी है क्योंकि इससे सम्बन्धित सभी मामलों में संसद का ही आधिपत्य होता है। यह देखते हुए हमारे संविधान में जल, राज्यों के बीच जल बँटवारे तथा उससे सम्बन्धित विवादों के सम्बन्ध में अनेक प्रावधान हैं।

जल के सम्बन्ध में संविधान का विधायी प्रारूप राज्य सूची की प्रविष्टि 17, केंद्रीय सूची की प्रविष्टि 56 और संविधान के अनुच्छेद 262 पर आधारित है। ये हैंः

अ) अनुसूची 7 की सूची 2 (राज्य सूची) में प्रविष्टि 17: यद्यपि जल राज्य का विषय है और इसीलिए राज्य की सूची में है किंतु यह केन्द्रीय सूची की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों से बंधा है, जो कहता हैः

आ) सूची 1 (केन्द्रीय सूची) की प्रविष्टि 56: संसद ने अन्तरराज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के नियमन एवं विकास को जनहित में उचित कानून घोषित किया है, यदि यह नियमन एवं विकास कार्य केन्द्र के नियंत्रण में है।

अनुच्छेद 248 (कानून की अवशिष्ट शक्तियाँ): राज्यों की सूची अथवा समवर्ती सूची में शामिल नहीं किए गए किसी भी विषय पर कानून बनाने का एकमात्र अधिकार संसद के पास है।

अनुच्छेद 254: संसद द्वारा बनाए गए कानूनों एवं राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों में विसंगतिः यदि किसी राज्य विधानसभा के द्वारा बनाए गए कानून का कोई भी प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए किसी ऐसे कानून के प्रावधान के विरुद्ध है, जिस कानून को लागू करने में संसद सक्षम है अथवा समवर्ती सूची में दिए गए किसी विषय से सम्बन्धित किसी भी वर्तमान कानून के किसी प्रावधान के प्रतिकूल है तो खंड (2) के प्रावधानों के आधार पर संसद द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होगा चाहे वह राज्य विधानसभा द्वारा बनाए कानून के पहले पारित हुआ हो या बाद में पारित हुआ हो। राज्य विधानसभा का कानून जहां भी इसके विरुद्ध होगा, वहाँ उसे रद्द माना जाएगा।

अनुच्छेद 262: (1) संसद अन्तरराज्यीय नदी अथवा नदी घाटी के जल के प्रयोग, वितरण अथवा नियंत्रण से सम्बन्धित किसी भी विवाद अथवा शिकायत पर कानून के अनुसार निर्णय कर सकती है।

(2) इस संविधान के विरुद्ध गए बगैर संसद कानून के द्वारा यह घोषित कर सकती है कि ऐसा कोई भी विवाद अथवा शिकायत न तो उच्चतम न्यायालय के और न ही किसी अन्य न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आती है, जैसा कि खंड (1) में कहा गया है। कुछ अन्य अनुच्छेद एवं प्रविष्टियाँ भी मामले को प्रभावित कर सकती हैं।

नदी बोर्ड अधिनियम 1956


नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 में अन्तरराज्यीय नदियों एवं नदी घाटियों के नियमन तथा विकास हेतु नदी बोर्ड गठित करने का प्रावधान है। राज्य सरकार द्वारा अनुरोध किये जाने पर अथवा उसके बगैर भी केन्द्र सरकार किसी अन्तरराज्यीय नदी अथवा नदी घाटी (अथवा उसके किसी विशेष भाग) के नियमन एवं विकास से सम्बन्धित मामलों में सम्बन्धित सरकार को सलाह देने के लिये बोर्ड का गठन कर सकती है और केन्द्र सरकार इसकी अधिसूचना जारी कर सकती है। विभिन्न अन्तरराज्यीय नदियों अथवा नदी घाटियों के लिये अलग-अलग बोर्ड गठित किये जा सकते हैं। बोर्ड में सिंचाई, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, बाढ़ नियंत्रण, नौवहन, जल संरक्षण, मृदा संरक्षण, प्रशासन अथवा वित्त में विशेष जानकारी तथा अनुभव रखने वाले लोग होंगे। बोर्ड का कार्य सलाह देना होगा और वह अन्तरराष्ट्रीय नदियों के संरक्षण, सिंचाई एवं जल निकासी की योजनाओं, जल-विद्युत के विकास, बाढ़ नियंत्रण की योजनाओं, नौवहन के संवर्द्धन तथा मृदा अपरदन के नियंत्रण एवं प्रदूषण निवारण पर काम करेगा।

अन्तरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956


यह कानून पूरे भारत में मान्य है। यदि किसी राज्य का किसी अन्य राज्य के साथ जल विवाद है तो वहाँ की सरकार इस कानून के अंतर्गत केन्द्र सरकार से अनुरोध कर सकती है कि यह विवाद निपटारे के लिये न्यायाधिकरण को सौंप दिया जाए। यदि केन्द्र सरकार को लगता है कि विवाद बातचीत से नहीं सुलझ सकता तो वह विवाद को न्यायाधिकरण के पास सौंप देती है। न्यायाधिकरण उसके उपरांत मामले की जाँच करता है और निर्णय सुनाता है, जिसे अंतिम माना जाता है और सभी पक्षों के लिये बाध्यकारी भी माना जाता है। यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय और अन्य न्यायालय भी उसके निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। केन्द्र सरकार कोई योजना बना सकती है, जिसमें न्यायाधिकरण के निर्णय को लागू करने के लिये सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ होंगी। योजना क्रियान्वयन का अधिकार दे सकती है। (धारा 6ए)

जल न्यायाधिकरण


यदि राज्य ऐसे जल के प्रयोग, वितरण अथवा नियंत्रण के सम्बन्ध में हुए किसी भी समझौते की शर्तों को लागू करने में विफल रहते हैं तो राज्य धारा 3 के अन्तर्गत निपटारे के लिये जल विवाद को न्यायाधिकरण में भेजने का अनुरोध केन्द्र सरकार से कर सकता है। यदि केन्द्र सरकार को लगता है कि बातचीत से जल विवाद सुलझाया जा सकता है तो केन्द्र सरकार ऐसा अनुरोध प्राप्त होने की तिथि से एक वर्ष के भीतर ही आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा जल विवाद निपटारे के लिये जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन करेगी। किन्तु अन्तरराज्यीय जल विवाद (संसोधन) अधिनियम, 2002 के लागू होने से पूर्व किसी भी न्यायाधिकरण द्वारा निपटाए गए विवाद पर दोबारा विचार नहीं किया जाएगा।

जब धारा 4 के अन्तर्गत किसी न्यायाधिकरण का गठन किया जाता है तो केन्द्र सरकार (धारा 8 में बताए गये प्रतिबंधों का ध्यान रखते हुए) जल विवाद के मामले को न्यायाधिकरण के पास भेजेगी, जो मामले की जाँच कर सम्बन्धित विषय पर निर्णय देते हुए तीन वर्ष के भीतर अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत करेगा। अभी तक कई मामलों में न्यायाधिकरण का गठन हो चुका है, जैसे कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश के विवाद हेतु कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण, महादायी/मंडोवी/वंशधारा जल विवाद के लिये गोवा एवं ओडिशा से अनुरोध मिले, जहाँ न्यायाधिकरण के गठन का कार्य प्रगति पर है, पंजाब और हरियाणा के लिये रावी एवं व्यास जल न्यायाधिकरण, सतलज-यमुना लिंक कैनाल, जिसमें रावी-व्यास के पानी में हरियाणा के हिस्से की बात है तथा पंजाब में यह नहर अधूरी रहने की बात है।

पंचायती राज कानून


पंचायती राज कानून की धारा 92 के अन्तर्गत जल का समुचित प्रबंधन, समान वितरण, कर संग्रह एवं जल संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये जल समितियाँ बनाना ग्राम पंचायत का अधिकार है।

इसकी धारा 99 के अन्तर्गत घरेलू उपयोग एवं पशुओं के लिये, सिंचाई हेतु प्रयोग होने वाले नालों, कुँओं, झीलों के निर्माण एवं सफाई के लिये, कुएँ, झील, तालाब, पोखर आदि को भरने के लिये पर्याप्त जल उपलब्ध कराना ग्राम पंचायत का कर्तव्य है।इसकी धारा 110 के अन्तर्गत पंचायत के पास जल निकासी के गड्ढे बनाने की मंजूरी देने का अधिकार होता है। धारा 200 के अन्तर्गत पंचायत जल से सम्बन्धित करों का संग्रह कर सकती हैं, पाइप के माध्यम से जल प्रदान करने वाली पंचायत इसके लिये किसी भी रूप में कर संग्रह कर सकती है, घरेलू प्रयोग एवं पशुओं के लिये प्रयोग से इतर अन्य उद्देश्यों के लिये पंचायत के स्वामित्व वाले कुँओं तथा तालाबों से विशेष जल कर संग्रह किया जा सकता है।

संकलनः वाटिका चंद्रा, उपसंपादक (योजना, अंग्रेजी), ईमेलः vchandra.iis2014@gmail.com


TAGS

Water Act and the Indian Constitution (information in Hindi), Indian constitution and water (information in Hindi), indian constitution fundamental rights and water (information in Hindi), About indian constitution and water (information in Hindi), indian constitution and water articles (information in Hindi), Indian constitution and water in Hindi, Water in Indian Constitution (information in Hindi),


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading