जल प्रदूषण की मार से कराह उठे मेरठ के गांव

12 May 2012
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मेरठ की ऐतिहासिक व गंगा-यमुना के दोआब की धरती की कोख में समाया हुआ पानी का खजाना प्रदूषण की मार से कराह रहा है तथा इस धरती की छाती पर रहने वाले जीवों को असमय मौंत दे रहा है। जल प्रदूषण की यह काली छाया साफ व मीठे पानी की पहचान रखने वाले इस क्षेत्र को धीरे-धीरे अपने आगोस में ले रही है। ये भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है।

मेरठ जनपद के जिस मीठे पानी की बाते विश्व के अधिकतर देशों में की जाती हैं वही पानी अब धीमे जहर का कार्य कर रहा है। जनपद के करीब 50 प्रतिशत गांवों का भूजल पूरी तरह से पीने योग्य नहीं है। यही कारण है कि इन गांवों में जल जनित बीमारियां पांव पसार रही हैं। ऐसे ही कुछ गांवों की बदहाली पिछले दिनों निकलकर सामने आई। छबड़िया, भलसौना, पल्हैड़ा, सठला, आढ़, कुढ़ला, जलालपुर, नंगलामल, दौराला, पनवाड़ी, बहलोलपुर, शोभापुर, डूंगर, धन्जु व देदवा आदि गांवों का पानी पूरी तरह से पीने के योग्य नहीं है अर्थात वैज्ञानिक मानकों पर यह खरा नहीं उतरता है। संस्था द्वारा इनमें से अधिकतर गांवों में पानी के प्रारम्भिक परीक्षण किए गए, परीक्षण के परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। पानी का पीएच व टीडीएस बढ़ा हुआ था।

इन गांवों में बड़ी संख्या में ग्रामीणों को कैंसर हो रहा है। सैंकड़ों लोग काल के ग्रास में समा चुके हैं और बहुत से बदनसीब कैंसर जैसे जानलेवा रोग के साथ जी रहे हैं। हैण्डपम्पों से निकलने वाला पानी या तो पीला निकलता है या फिर कुछ देर रखने के बाद पीला हो जाता है। बर्तन व गहने तक काले पड़ने लगे हैं। युवा अपनी उम्र से अधिक उम्र के लगते हैं। गांवों का सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है। नपुंसकता की समस्या भी घर करने लगी है। नपुंसकता पशुओं में भी पनप रही है। पथरी, पेट की बीमारी, दिल की बीमारी, सोरायसिस व दमा आदि बीमारियां बड़ी संख्या में हो रही हैं।

जल प्रदूषण से ग्रसित गांवों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। एक तो ऐसे गांव जो कि उद्योग के किनारे या फिर उससे निकलने वाले प्रदूषित जल के नाले या नदी के किनारे बसे हैं, इस श्रेणी में नंगलामल, दौराला, आढ़, कुढ़ला व जलालपुर गांव आते हैं। दूसरे वे गांव जिनमें स्वयं जल प्रदूषण के कारक (कारखाना या उद्योग) मौजूद हैं, इसमें शोभापुर, रोहटा, सठला, व डूंगर आदि गांव आते हैं। जबकि तीसरे वे गांव जो न तो प्रदूषित नाल/नदी के किनारे बसे हैं और न ही उन गांवों में कोई प्रदूषण फैलाने वाला कारक मौजूद है लेकिन इन गांवों में भी जल प्रदूषित है। इसमें छबड़िया, पल्हैड़ा व बहलोलपुर जैसे गांव आते हैं।

मेरठ के गांवों में जमा हुआ पानी जहर बन रहा हैमेरठ के गांवों में जमा हुआ पानी जहर बन रहा हैयह गंभीर चिंतन का विषय है कि जिन गांवों से दूर-दूर तक जल प्रदूषण का कोई भी कारक मौजूद नहीं है उन गांवों का भूजल आखिर प्रदूषित क्यों हो रहा है? इसका जवाब शायद उन्हीं गांवों में मिल भी जाता है। एक तो उन सभी गांवों के तालाब गंदगी से अटे हुए हैं जबकि दूसरे हरित क्रांति के दुष्प्रभाव ही इन गांवों में अब नजर आ रहे हैं। कृषि में धड़ल्ले से प्रयोग किए गए कैमिकल खाद तथा कीटनाशक धीरे-धीरे धरती की कोख में पहुंचकर पानी में समाते रहे जो कि अब हैण्डपम्पों के माध्यम से बाहर आ रहे हैं, जो तालाब साफ पानी को भूजल तक पहुंचाते थे अब वे तालाब सड़े हुए व प्रदूषित पानी को धरती के पेट में भेजने का कार्य कर रहे हैं। इन गांवों में जल प्रदूषण के यही दो कारण प्रथम दृष्टया नजर आते हैं।

जिन गांवों में कुटिर उद्योग के रूप में चमड़े का या अन्य किसी प्रकार का प्रदूषण फैलाने वाला कार्य किया जा रहा है उनमें सही मानकों पूरा न करने के कारण वहीं प्रदूषित पानी धरती के नीचे जा रहा है। तथा प्रदूषित नालों के किनारे बसे गांवों में तो बदहाली अत्यंत गंभीर रूप अख्तियार करती जा रही है। मेरठ की ऐतिहासिक व गंगा-यमुना के दोआब की धरती की कोख में समाया हुआ पानी का खजाना प्रदूषण की मार से कराह रहा है तथा इस धरती की छाती पर रहने वाले जीवों को असमय मौंत दे रहा है। जल प्रदूषण की यह काली छाया साफ व मीठे पानी की पहचान रखने वाले इस क्षेत्र को धीरे-धीरे अपने आगोस में ले रही है। ये भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है।

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