जल संकट समाधान की पहलः जलदूत

19 Jul 2016
0 mins read

देश में यह अपने किस्म का नया प्रयोग था जो जलदूत के रूप में देवदूत बनकर लातूर पहुँचा था। पिछले कुछ समय से लातूर के प्यासे लोगों की प्यास बुझाने में वरूण देव भी असमर्थ लग रहे थे और महाराष्ट्र प्रशासन भी। लेकिन प्रधानमंत्री की दूर-दृष्टि और सूझ-बूझ के साथ रेल मंत्रालय की मुस्तैदी से यह एक बड़ा काम समय से हो गया। हालाँकि मिरज से लातूर की दूरी करीब 340 कि.मी. है।

भारतीय रेल के 160 वर्ष से अधिक के इतिहास में यह पहला मौका है जब देश में जल संकट के दौरान रेल गाड़ी एक नई राह बनकर उभरी है। रेल अभी तक यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने के साथ विभिन्न वस्तुओं एवं पदार्थों को इधर से उधर पहुँचाने का साधन बनती रही है। लेकिन इस बार मराठवाड़ा के भयंकर जल संकट में, भारतीय रेल जल की आपूर्ति में सहायक बन, जिस तरह संकट मोचन बनी वह अद्भुत है।

यूँ महाराष्ट्र के लातूर में सूखा पहले भी पड़ता रहा है और पहले कुछ ऐसे मौके भी आए जब सूखे के कारण लातूर के लोगों को वहाँ से कुछ दिनों के लिये पलायन करना पड़ता था। लेकिन इस बार वहाँ अभूतपूर्व सूखा पड़ने से स्थिति अधिक खराब होने लगी थी। महाराष्ट्र सरकार को ऐसी कोई राह नहीं दिख रही थी कि जिससे वहाँ व्यापक स्तर पर जल की व्यवस्था करायी जा सके। जब यह तत्काल प्रधानमंत्री को पता लगी तो उन्होंने संज्ञान लेते हुए तत्काल अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। उस दौरान प्रधानमंत्री ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु से चर्चा के दौरान कहा कि क्या माल गाड़ियों को लातूर में जल आपूर्ति के लिये प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। जिससे सूखे की विकट समस्या से जूझ रहे महाराष्ट्र के लोगों को राहत मिल सके। प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्देश के बाद रेल मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस बारे में अपने भरसक प्रयास करेंगे।

इसके तुरंत बाद रेल मंत्री ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाकर प्रधानमंत्री की इस कल्पना को साकार करने के लिये एक रूप रेखा तैयार की। विचार विमर्श में स्पष्ट हुआ कि यह कार्य कठिन अवश्य है लेकिन संभव हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस कार्य को साकार करने के लिये समय बहुत कम था। लेकिन रेल मंत्रालय ने महाराष्ट्र सरकार के साथ मिलकर इस कार्य को युद्ध स्तर पर करने का निर्णय लिया। रेलवे बोर्ड ने तत्काल अपने कोटा वर्कशॉप से 100 टैंक वैगन प्रबंध करने को कहा। कोटा ने 50-50 वैगन की दो मालगाड़ियों को एक के बाद एक करके तैयार करने का कार्य तत्काल आरंभ कर दिया। ये वे वैगन थे जो अभी तक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिये प्रयोग में लाए जा रहे थे। लेकिन उनमें पानी भरते हुए किसी प्रकार की गंध न रहे और जल की शुद्धता पर कोई प्रभाव न पड़े इसके लिये वैगन की विभिन्न चरणों में कई बार सफाई की गई। उसके बाद 8 अप्रैल 2016 को 50 वैगन की पहली मालगाड़ी ने राजस्थान के कोटा से महाराष्ट्र के मिरज रेलवे स्टेशन के लिये प्रस्थान किया।

इस कार्य को यथा शीघ्र पूरा कराने के लिये रेलवे बोर्ड के उच्च अधिकारियों के साथ स्वयं रेल मंत्री भी निगरानी रखे हुए थे। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि एक ओर जब कोटा में टैंक-वैगन की सफाई और मरम्मत का काम आरंभ हुआ तभी महाराष्ट्र में मिरज जंक्शन के जल संसोधन संयंत्र से कृष्णा नदी तक करीब 4 किमी पाइप लाइन बिछाने का काम भी युद्ध स्तर पर आरंभ कर दिया गया। जिससे स्टेशन पर जल की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो सके। इतनी जल्दी इतनी लम्बी पाइप लाइन बिछाने का कार्य सुगम नहीं था लेकिन संकट काल में महाराष्ट्र सरकार ने अपने विभिन्न विभागों को दिन रात काम में जुटाकर इतनी बड़ी पाइप लाइन बिछाने का काम 7 दिन में पूरा करके रिकॉर्ड बना लिया। इधर 10 अप्रैल को जब मालगाड़ी कोटा से मिरज पहुँची तो वहाँ इसमें पानी भरा गया और तब यह साधारण मालगाड़ी ‘जलदूत’ बन लातूर के लिये रवाना हो गई। पहली जलदूत 11 अप्रैल को लातूर पहुँची तो वहाँ के लोगों के साथ रेल और महाराष्ट्र सरकार के लोगों के चेहरे भी खिल उठे।

देश में यह अपने किस्म का नया प्रयोग था जो जलदूत के रूप में देवदूत बनकर लातूर पहुँचा था। पिछले कुछ समय से लातूर के प्यासे लोगों की प्यास बुझाने में वरूण देव भी असमर्थ लग रहे थे और महाराष्ट्र प्रशासन भी। लेकिन प्रधानमंत्री की दूर-दृष्टि और सूझ-बूझ के साथ रेल मंत्रालय की मुस्तैदी से यह एक बड़ा काम समय से हो गया। हालाँकि मिरज से लातूर की दूरी करीब 340 कि.मी. है। लेकिन एक ही लाइन होने के कारण इसी लाइन से अन्य यात्री एवं माल गाड़ियाँ भी अपने पूर्व निर्धारित समय से गुजरती हैं। ऐसे में जलदूत के लिये उसी एक पटरी पर समय निकालना भी सुगम कार्य नहीं था। इसीलिए पहली जलदूत को 340 किमी की यात्रा पूरी करने में करीब 17 घंटे का समय लग गया। लेकिन उसके बाद जलदूत के लिये भी इस लाइन पर समय तय करने से अब जलदूत की राह आसान हो गई है।

यहाँ यह बता दें कि जलदूत की एक वैगन में करीब 54 हजार लीटर पानी आता है। इससे जलदूत से एक फेरे में लगभग 25 लाख लीटर पानी पहुँच जाता है। इस समय रेलवे के पास 50-50 वैगन वाली दो जलदूत हैं। एक गाड़ी वहाँ पहुँचती है तो दूसरी मिरज से निकल पड़ती है। जून के पहले सप्ताह तक जलदूत लातूर के 52 फेरे लगा चुकी है और तब तक 1300 करोड़ लीटर पानी वहाँ के क्षेत्र में पहुँच चुका है। यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक वहाँ मानसून के बाद जल संकट समाप्त नहीं हो जाता। जाहिर है मराठवाड़ा यह जल संकट जलदूत के चलते वहाँ राहत ले आया और आशा है अब मानसून के बाद वहाँ की परिस्थितियाँ शीघ्र सामान्य हो जाएगी। लेकिन ‘जलदूत’ निश्चय ही जल संकट में ऐसा वरदान सिद्ध हुई है जिसकी उपयोगिता भविष्य के कठिन समय में भी होती रहेगी।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading