उद्योग
जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन के कारपोरेटी प्रयास
8 October 2008



सीआईआई-जीबीसी राष्ट्रीय पुरस्कार- जल संरक्षण, विषैले पदार्थों को बाहर करके पीने योग्य बनाने और जल प्रबंधन के उत्कृष्ट प्रयासों के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। आज भारत में आर्थिक विकास साल -दर- साल बेहतर होता जा रहा है। इन हालात में संसाधनों की निरंतरता के मुद्दे में उद्योग द्वारा जल, ऊर्जा का दोहन और इनके पर्यावरणीय प्रभाव एक अहम कारक है। पेपर उद्योग , मेटल्स, एग्रो-प्रोसेसिंग , सिंथेटिक फाइबर, पेट्रोलियम, ट्रांसपोर्ट, सीमेंट, ऊर्जा,खाद, सॉफ्ट ड्रिंक और तमाम तरह के ऐसे उद्योग हैं जिनमें ये कारक अहम हो जाते हैं।

सीआईआई से लिए गए स्रोतों के आधार पर विस्तृत तौर पर हम बताने में कामयाब हुए हैं कि कैसे इन उद्योग की कंपनियों ने अपने प्लांट के साथ साथ आस-पास के इलाकों में उपकरणों और उत्पादन प्रक्रियाओं में पर्यावरण संगत विस्तृत बदलाव किये। तकनीकी दायरे, वित्तीय प्रभावों और फायदे-नुकसान को पूरी तरह से दर्ज किया गया। साथ ही औद्योगिक समुदाय के बीच होने वाले अध्ययन के लिए इन प्रभावों को एक बहुमूल्य संसाधन के तौर पर उपयोग किए जाने के योग्य बनाने का प्रयास किया गया। इसमे न केवल कोई ख़ास उद्योग अपने क्षेत्र के लिए अपनाए गए ख़ास उपायों का इस्तेमाल कर सकता है, बल्कि इसमें दिए गए बहुमूल्य विकल्पों के लाभ पूरे उद्योग जगत को मिल सकता है।

श्री एलएस गणपति, अध्यक्ष-जल प्रबंधन में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, सीआईआई पुरस्कार और उसके महत्व के बारे में बता रहे हैं।

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कार्यक्रम के दौरान का एक संक्षिप्त विडियो


व्यापक रुझान:

अगर इस दस्तावेज को ध्यान से देखा जाए तो कई प्रवृत्तियां और समानताएं उभरती हैं।

कूलिंग टॉवर आपरेशनों में सुधार

कूलिंग टॉवर आपरेशन एक उदाहरण हैं। कई उद्योग कूलिंग टॉवर में इस्तेमाल किए गए पानी को संयत्र के भीतर और बाहर धुलाई, आग बुझाने व अन्य कामों में इस्तेमाल के लिए रास्ते खोज रहे हैं जबकि कुछ उद्योग एक कदम आगे आ गए हैं। उन्होंने ऐसा रास्ता खोजा है कि पानी को दोबारा प्रयोग करने की जरुरत ही नही होगी। एक अन्य विकल्प धुलाई में किए गए पानी का कूलिंग टॉवर की जरुरतों के लिए उपयोग करना है। नीचे या वापस धोने का पानी है. लीकेज को रोकने और पानी को बेकार बहने से रोकने के लिए बेहतर सील का उपयोग करने के लिए ध्यान दिया जा रहा है। पानी की खपत को विनियमित करने के लिए शौचालयों को भी संशोधित किया जा रहा है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक सेंसर के अनुसार पानी सीमित मात्रा में ही निकाला जा सके।

अपशिष्ट और अपशिष्ट जल का संशोधन और उपयोग

अपशिष्ट और अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई, सड़क धोने, शौचालय, बागवानी, आदि के लिए करने के अभिनव विचार तेजी से जोर पकड़ रहे हैं। लंबे समय से फ्लाईएश का उपयोग निर्माण सामग्री में करने के लिए वकालत की जा रही है और अब कई उद्योग ईंट निर्माताओं के साथ मिलकर फ्लाईएश जैसे हानिकारक प्रदूषक का उपयोग एक उपयोगी उत्पाद में करने के लिए ईंट निर्माताओं से टाई अप कर रहे हैं. यहां तक कि फ्लाई ऐश को लाने ले जाने के लिए भी सीलबंद परिवहन व्यवस्था पर ध्यान दिया गया है।

जल संचयन और जलागम (वाटरशेड) में सीएसआर गतिविधियों

चैक डैम, मेढ़ों, नाली के पानी का निकास, रूफटॉप प्रणालियां और तालाबों का रखरखाव के साथ जल संचयन देश भर में कंपनियों के लिए सीएसआर का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। निर्माण किया जा रहा है। यह वृक्षारोपण द्वारा किया जा रहा है, संयंत्र के चारों ओर हरियाली से मिट्टी और पानी रोकने में मदद होती हैं। कईं स्थानों पर, कम लागत वाले ड्रिप सिंचाई उपकरणों का भी उपयोग किया जा रहा है, ज्यादा से ज्यादा हरियाली संभव हो सके। प्रमुख वाटरशेड प्रबंधन परियोजनाओं से बड़े पैमाने पर क्षेत्रों का रूपांतरण किया जा रहा हैं और कृषि ग्रामीण समुदायों की मदद की जा रही है। कुछ कंपनियां जल संचयन के लिए ढलान आदि के इस्तेमाल के लिए गूगल अर्थ आदि खुले स्रोत वाली तकनीकों को प्रयोग कर रही हैं।

रवैये और जागरूकता द्वारा पानी ऑडिट

भौतिक संशोधनों के साथ- साथ पानी ऑडिट, जागरूकता, पानी के उपयोग पर नजर रखने के लिए विशेष टीमों के गठन और निगरानी और रिपोर्टिंग की प्रक्रिया का विकास, इस बहुमूल्य संसाधन संरक्षण के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं। कंपनियों अब इन गतिविधियों को उतनी ही प्राथमिकता दे रही हैं जितनी कि पहले प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं को दी जाती थी।

इन कोशिशों का तात्कालिक लक्ष्य तो यही है कि भारतीय उद्योग पानी के प्रबंधन के प्रति इतने कुशल हो जाएं कि वे प्राथमिक घरेलू और कृषि ज़रूरतों पर अधिक से अधिक ख़र्च कर सकें। भारतीय उद्योग के दिग्गजों की इच्छा और उत्साह को देखते हुए शायद अब समय आ गया है कि कुछ उपकरणों और प्रक्रियाओं को ज़रूरी बनाने की ओर कदम बढ़ाया जाए ताकि उद्योग जगत में एक न्यूनतम मानक तय हो सकें। एक तरीका कुछ ऐसी नई तकनीकों का पहचान करना है जिन्हें कंपनियों ने ख़ुद स्वेच्छा से अपनाया है। इसके बाद अच्छी तकनीकों को चुन कर उनका उपयोग बढ़ाने की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है।

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