जलवायु परिवर्तन (climate change) और क्या है इसके खतरे

17 Jan 2020
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जलवायु परिवर्तन और क्या है इसके खतरे
जलवायु परिवर्तन और क्या है इसके खतरे

जलवायु परिवर्तन और क्या है इसके खतरे

जलवायु परिवर्तन तेज रफ्तार से हो रहा है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद पृथ्वी का औसत तापमान 1.1 डिग्री बढ़ चुका है जिसका लोगों के जीवन पर व्यापक असर हुआ है और अगर मौजूद रुझान इसी तरह से जारी रहे तो इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी 3.4 से 3.9 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है। मानवता के लिए इसके विनाशकारी नतीजे होंगे। स्पेन के मैड्रिड शहर में दिसम्बर 2019 में हुए वार्षिक यूएन जलवायु सम्मेलन (कॉप-25) से ठीक पहले यह चेतावनी जारी की गई।

कॉप 25 सम्मेलन की भूमिका से सम्बन्धित प्रश्न

महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने दो महीने पहले सितम्बर 2019 में न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में जलवायु शिखर वार्ता का आयोजन किया था। दिसम्बर 2019 में कॉप 25 सम्मेलन से जुड़े कुछ सवालों के जवाब यहाँ दिए गए हैं।

  • हाल ही में न्यूयॉर्क में जलवायु शिखर वार्ता आयोजित हुई थी। कॉप-25 बैठक उससे किन मायनों में अलग है।

सितम्बर 2019 में यूएस मुख्यालय में जलवायु वार्ता को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियों गुटेरेश की पहल पर बुलाया गया था। इसका उद्देश्य अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान जलवायु आपदा की ओर आकृष्ट करना और जलवायु परिवर्तन (climate change) को रोकने के लिए तेज प्रवासों को बढ़ावा देना था।  स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आयोजित बैठक जलवायु परिवर्तन पर यूएन संधि पर मुहर लगाने वाले पक्षों का सम्मेलन है। पहले यह सम्मेलन चिली में होना था लेकिन वहाँ अशांति होने के कारण इसे स्पेन में आयोजित किया गया। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संस्था (यूएनएफसीसीसी) का दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि जलवायु संधि और उसे मजबूत बनाने वाले वर्ष 2015 के पेरिस समझौते को अमल में लाया जा रहा है।

  • लेकिन संयुक्त राष्ट्र जलवायु मुद्दो पर इतना ध्यान क्यों केन्द्रित कर रहा है ?

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बारे में तथ्यों के सामने आने से चिंता है- विशेषकर चरम मौसम वाली घटनाओं और उनसे होने वाले असर के बारे में।  विश्व मौसम विज्ञान संगठन का ताजा ग्रीनहाउस गैस (green house gases) बुलेटिन दर्शाता है कि वातावरण में तीन प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों- कार्बनडाइ ऑक्सिड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है। जिससे मानवता के भविष्य के लिए खतरा पैदा हो रहा है।

अगर यह रुझान जारी रहे तो फिर धरती के तापमान में वृद्धि होगी, जल संकट पैदा होगा, समुद्री जल स्तर बढ़ेगा और समुद्री व भूमि पारिस्थितिक तंत्रों के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण संस्था (यूएनईपी) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में सचेत किया है कि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए वर्ष 2020 से 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 7.6 फीसदी की कमी सुनिश्चित करना जरूरी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक आसान लक्ष्य नहीं है और उपलब्ध अवसरों की अवधि लगातार सिकुड़ रही है।

  • सितम्बर 2019 में जलवायु शिखर वार्ता से क्या हासिल हुआ ?

वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में 2020 की एक समय सीमा तय की गई है और उससे ठीक पहले जलवायु संकट पर ध्यान खींचने व कार्रवाई को गति देने में बैठक ने अहम भूमिका निभाई। इस शिखर वार्ता में कई देशों व सैक्टरों के नेता शामिल हुए। करीब 70 देशों ने अपने राष्ट्रीय संकल्प वर्ष 2020 तक और ज्यादा मजबूत बनाने की इच्छा जाहिर की है। ऐसे ही प्रयास 100 बड़े शहरों की ओर से किए जा रहे हैं जिनमें दुनिया के प्रमुख शहर शामिल हैं।

लघु द्वीपीय देशों ने वर्ष 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन को शून्य बनाने का संकल्प लिया है और वर्ष 2030 तक उनकी योजना 100 फीसदी नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने की है। 11 अरब वृक्ष लगाने का संकल्प भी लिया गया है तथा हरित अर्थव्यवस्था की गति को तेज करने का संकल्प लिया है। विश्व में सबसे ज्यादा सम्पत्ति (दो ट्रिलियन डॉलर) वाले एक समूह ने वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रल परियोजनाओं में निवेश करने की प्रतिज्ञा ली है।

यह संकल्प हाल ही में ओसाका में जी-20 शिखर वार्ता के दौरान सम्पत्तियों का प्रबंधन (34 ट्रिलियन डॉलर) करने वाली कम्पनियों के एक समूह द्वारा की गई घोषणा से अलग है।

इस समूह ने राजनैतिक नेताओं से जलवायु कार्रवाई का दायरा बढ़ाने, जीवाश्म ईंधनों पर सब्सिडी रोकने और कार्बन की कीमत तय करने की अपील की थी।

  • यूएनईपी, डब्ल्यूएमओ, आईपीसीसी, यूएनएफसीसीसी, कॉप क्या हैं?

इन सभी से तात्पर्य उन यूएन एजेंसियों या प्रयासों से है जिसके जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाया जा रहै है। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण संस्था (यूएनईपी) वैश्विक स्तर पर पर्यावरण मामलों के एजेंडा को स्थापित करने वाली संस्था है जिसका लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करना है।

विश्व मौसम विज्ञान संस्था डब्ल्यूएमओ मौसम के पूर्वानुमान, जलवायु  आने वाले बदलावों और जल संसाधनों पर शोध सहित अन्य विषयों पर सहयोग को आगे बढ़ाने वाली यूएन एजेंसी है।

वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यूएन पर्यावरण संस्था (यूएनईपी) और विश्व मौसम विज्ञान संस्था (डब्ल्यूएमओ) से जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) के गठन का आग्रह किया। इस पैनल में सैकड़ों विशेषज्ञ शामिल हैं जो आंकड़ों की समीक्षा करते हैं और जलवायु कार्रवाई वार्ताओं के लिए प्रासंगिक वैज्ञानिक तथ्य साझा करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की तीनों संस्थाओं की ओर से प्रकाशित होने वाली रिपोर्टों ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से जगह बनाई है जिसके परिणामस्वरूप जलवायु संकट के प्रति चिंता व जागरूकता का प्रसार हुआ है। जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क संधि (यूएनएफसीसीसी) के दस्तावेज पर वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डि जनेरियो में ‘अर्थ समिट’ के दौरान सहमति हुई। इस संधि में सदस्य देशों ने वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता को स्थिर बनाने पर सहमति जताई है ताकि जलवायु प्रणाली में मानवीय गतिविधियों से होने वाले बदलावों को रोका जा सके।

अब तक 197 देश इस संधि पर मुहर लगा चुके हैं। यह संधि प्रभाव में वर्ष 1994 में आई जिसके बारे में हर साल आगे बढ़ने के रास्ते पर विचार-विमर्श के लिए ‘कॉफ्रेंस ऑफ द पार्टीज’ या कॉप (कॉप) सम्मेलन आयोजित किया जाता है।

साल 2019 में यह 25 वां सम्मेलन है जो स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सम्पन्न हुआ।

  • इस वर्ष जलवायु सम्मेलन क्यों अहम है?

ऐसा इसलिए क्योंकि कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर सदस्य देशों के लिए यूएन संस्था की ओर से कोई बाध्यता नहीं थी और न ही सम्बन्धित प्रावधानों को लागू करने का ढांचा था। इस संधि का विस्तार हाल के वर्षों में हुआ है और सबसे अहम वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौता रहा है। इस समझौते के तहत सदस्य देश वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने और जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रयास करने के लिए राजी हुए हैं।

 वर्ष 2020 से पहले होने वाला यह अन्तिम सम्मेलन है। 2020 को एक निर्धारक साल के रूप में देखा जाता है जब कई देशों को अपनी नए जलवायु कार्रवाई योजनाएं पेश करनी होंगी। लेकिन कई मुद्दों पर अभी पूर्ण सहमति का अभाव है जिनमें एक अहम विषय जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय संसाधनों के इंतजाम से जुड़ा है। मौजूदा समय में इन तीन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैः वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 45 फीसदी की कटौती लाना; वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रिलिटी को हासिल करना (नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य); और इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना।

जलवायु परिवर्तन पर समय निकला जा रहा है और दुनिया ज्यादा समय खराब करने का खतरा मोल नहीं ले सकती। इसलिए एक निडर, निर्णायक और आगे बढ़ने के लिए महत्वाकांक्षी कार्रवाई पर जल्द से जल्द सहमति बनाना बेहद जरूरी है।

(साभारः संयुक्त राष्ट्र समाचार)

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