जरूरी है जनता की नजर और ग्राम सभा की पकड़

23 Mar 2015
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वास्तविक लोकतन्त्र की बहाली के लिए आवश्यक है कि जनता को उसका मालिकाना हक सौंपा जाए। सामाजिक लेखापरीक्षण इस अर्थ में सबसे कारगर औजार है जो देश की गरीब और वंचित जनता को उसका मालिकाना हक लोकतान्त्रिक चेतना के साथ वापस लौटाता है।फरवरी, 2006 को अस्तित्व में आया राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून पहले चरण में देश के 200 जिलों में लागू किया गया। वर्ष 2007-08 के दूसरे चरण में इसे देश के और 130 नये जिलों में लागू किया गया। यूपीए सरकार के घोषणानुसार अप्रैल 2008 से यह कानून समूचे देश में लागू है। इस कानून के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार ने एक नियमावली बनाई है। केन्द्र के अनुरूप सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में भी इसके लिए नियमावली बनानी है। केन्द्र एवं झारखण्ड सरकार की नियमावली के अध्याय 10 एवं 11 में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को सुनिश्चित करने का उल्लेख है। सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में जाने के पहले नियमावली एवं विशेषकर अध्याय 10 एवं 11 को जानना अति आवश्यक है। नियमावली के अनुसार, सामाजिक लेखापरीक्षण करने का प्रावधान ग्राम सभा को दिया गया है लेकिन झारखण्ड में सामाजिक लेखापरीक्षण के सम्बन्ध में किसी को कोई जानकारी या समझ नहीं थी। कई प्रगतिशील जन संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों की पहल से सामाजिक लेखापरीक्षा की प्रक्रिया की समझ लोगों में आई। सामाजिक लेखापरीक्षण के प्रति जन-जागरुकता लाने में मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) एवं परिवर्तन जैसी संस्थाओं ने अग्रणी भूमिका अदा की। राजस्थान के डूंगरपूर एवं आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिलों में सम्पादित राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक लेखापरीक्षण कार्यक्रम के बाद झारखण्ड के राँची जिले में भी सामाजिक लेखापरीक्षण एवं जन सुनवाई का आयोजन सम्पन्न हुआ।

झारखण्ड में कार्यरत कई संगठनों ने मिलकर एक साझा मंच, ‘झारखण्ड नरेगा वॉच’ का गठन किया और इसी मंच के माध्यम से सामाजिक लेखापरीक्षण एवं जन सुनवाई का कार्यक्रम आयोजित किया गया। सामाजिक लेखापरीक्षण के लिए वर्ष 2007 के प्रथम माह से ही कवायद शुरू हो गई थी। कई बैठकों के बाद सामाजिक लेखापरीक्षण की तिथि तय हुई और आयोजन को प्रभावी व सफल बनाने के लिए जिला उपायुक्त के सहयोग से जरूरी सूचनाएँ जुटाई गईं। इसके लिए राँची जिले के चार प्रखण्डों (माण्डर, अनगड़ा, खूँटी व कांके) के कुल 15 पंचायतों का चयन किया गया। इन 15 पंचायतों में सामाजिक लेखापरीक्षण का कार्य करने के लिए योजनाओं का चयन एवं उससे सम्बन्धित सभी सूचनाओं (मस्टर रोल, मापी पुस्तिका, खरीदे गए सामग्री का बिल-वाउचर, कार्यादेश, प्राक्कलन, ग्राम सभा का अनुमोदन या ग्राम सभा प्रस्ताव की प्रतिलिपि इत्यादि) को पूर्व में ही इकट्ठा किया गया।

सामाजिक लेखापरीक्षण की प्रक्रिया 6 मई से 24 मई, 07 तक निर्धारित की गई। इस अंकेक्षण कार्यक्रम में राज्य के सभी जिलों के प्रतिनिधि एवं देश के विभिन्न राज्यों से आए हुए 300 से भी ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। अंकेक्षण में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली, केरल विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं का भी विशेष योगदान रहा। प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए प्रो. ज्याँ द्रेज, अरुणा राय, एनी राजा, निखिल डे, गिरीश भुगड़ा, बलराम, गुरजीत, आन्ध्र प्रदेश के ग्रामीण विकास मन्त्रालय से करुणा एवं सौम्या जी ने भी भाग लिया। तमाम प्रतिभागियों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण दिनांक 13 मई से 15 मई, 2007 तक पंचायती राज प्रशिक्षण केन्द्र ब्राम्बे, राँची में हुआ।

इन सभी प्रशिक्षित प्रतिभागियों को 15 समूहों में बाँटकर सामाजिक अंकेक्षण एवं जन सुनवाई के लिए 15 पंचायतों में भेजा गया जहाँ सभी ने ग्राम सभाओं के साथ मिलकर सामाजिक लेखापरीक्षण के दायित्व को जिम्मेदारी से निभाया। सभी 15 समूहों ने कुल 88 योजनाओं का सामाजिक लेखापरीक्षण किया और लेखापरीक्षण में कई अनियमितताओं को पकड़ा, जिन्हें जन सुनवाई के दौरान ग्रामीणों ने तथ्यों के साथ जिला एवं राज्य स्तरीय पदाधिकारियों के समक्ष रखा। इनमें से प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं :

सामाजिक लेखापरीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे जनचेतना तो बढ़ती ही है, जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित होती है। पारदर्शिता एवं जवाबदेही को सुनिश्चित करने में जनभागीदारी अति आवश्यक है और यह नीचे की सभी इकाइयों में तभी स्थापित होगी जब ग्राम सभा एवं जनता के माध्यम से सामाजिक लेखापरीक्षण की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।1. मजदूरी बकाया मुद्दा महत्त्वपूर्ण समस्या के रूप में उभर कर आई।
2. सभी कार्यस्थलों के निरीक्षण के दौरान मजदूरों ने मजदूरी बकाया का जिक्र किया। कहीं 15 दिन का बकाया तो कहीं तीन महीने से मजदूरों को मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ।
3. तय मजदूरी दर अर्थात न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान का मुद्दा भी सभी जगहों पर देखने को मिला।
4. एक ही व्यक्ति के नाम से दो-दो रोजगार कार्ड देखने को मिला।
5. कार्य के दौरान आकस्मिक दुर्घटना में घायल मजदूरों के इलाज का कोई प्रावधान देखने को नहीं मिला।
6. दवाई एवं प्राथमिक उपचार डिब्बा उपलब्ध होने के बावजूद किसी भी कार्यस्थल पर मजदूरों को उसके बारे में जानकारी नहीं थी।
7. प्राक्कलन में अलग-अलग प्रकार की मिट्टी एवं विभिन्न स्तर पर अलग-अलग दर होने के बावजूद किसी भी मजदूर को प्राक्कलन के आधार पर मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया।
8. मस्टर रोल एवं रोजगार कार्ड में सभी जगह भारी पैमाने पर फर्ज़ी हाजरी पाया गया।
9. डाकघर में मजदूरों के बचत खाता खोलने के नाम पर पोस्ट मास्टर ने 70 रुपए से 150 रुपए तक की रिश्वत ली।
10. कई कार्यस्थलों पर सूचनापट्ट नहीं थे।
11. बिना किसी ठोस कारण के आधे से अधिक कार्य महीने भर से भी अधिक दिनों तक बन्द पाए गए।
12. सभी कार्यस्थलों पर विकलांग व्यक्तियों को किसी प्रकार का कार्य उपलब्ध नहीं कराया गया न ही विकलांग व्यक्तियों के नाम से कोई जॉबकार्ड आवण्टित किया गया।
13. महिलाओं के नाम से भी रोजगार कार्ड देखने को नहीं मिला।
14. एक वर्ष बीतने के बावजूद अनेक परिवारों को रोजगार कार्ड से वंचित रखा गया। काम माँगने पर भी काम नहीं दिया गया, न ही उनका आवेदन स्वीकार किया गया।
15. बेरोजगारी भत्ते के हकदार परिवारों को नियमित रूप से छला जा रहा है।
16. लगभग सभी कार्यस्थलों पर मजदूरों का रोजगार कार्ड अभिकर्ता के पास पाया गया।
17. खूँटी प्रखण्ड के शिलादोन पंचायत के लटरजंग गाँव में 7 फरवरी को काम आरम्भ किया गया जबकि रोजगार कार्ड अप्रैल महीने में आवण्टित किया गया।

18. अनगड़ा प्रखण्ड के टांटी पंचायत के नवाडिया गाँव में कुछ निर्माण का काम अधूरा एवं बन्द पाया गया। कुल 1,19,400 रुपए प्राक्लन राशि में अब तक 26,000 रुपए का काम हुआ। इसमें मात्र 19,500 रुपए का भुगतान किया गया और बाकी का भुगतान अब तक नहीं हो पाया है।

19. अनगड़ा प्रखण्ड के सुरसा पंचायत के सारलू गाँव में बबिता कुमारी के नाम एवं हस्ताक्षर से मस्टर रोल संख्या 51890 में 6 दिन की मजदूरी का भुगतान दिखाया गया जो कि सरासर फर्जी है क्योंकि बबिता कुमारी कक्षा 6 की नियमित छात्रा है और वह मजदूरी नहीं करती है।

2. लगभग सभी जगह परिवार के मुखिया के नाम से मस्टर रोल में नामांकन किया गया लेकिन घर के अन्य सदस्यों ने भी काम किया जिसका जिक्र मस्टर रोल में नहीं मिला। खासकर महिलाओं की मजदूरी का भुगतान भी उसी परिवार के मुखिया के नाम से दर्शाया गया।

21. एक ही मस्टर रोल में एक से अधिक बार एक व्यक्ति का नाम आमतौर पर कई जगहों पर पाया गया।

22. खूँटी प्रखण्ड के मुरही पंचायत के बड़कारगी गाँव से लोग पलायन कर बाहर चले गए। यहाँ पर मजदूरों की तालाब निर्माण कार्य की मजदूरी बकाया है। विभाग द्वारा समय पर राशि उपलब्ध नहीं कराने के कारण वहाँ काम बन्द हो गया और मजदूरों के व्यापक दबाव के कारण अभिकर्ता खुदिया मुण्डा ने अपनी निजी जमीन बन्धक रखकर मजदूरों की आंशिक मजदूरी का भुगतान किया।

23. खूँटी प्रखण्ड के शिलादोन पंचायत के ग्राम कुमकुमा में एक साथ तीन (1 तालाब एवं 2 सिंचाई कूप) योजनाओं का अनुमोदन प्रखण्ड से किया गया। जबकि वहाँ किसी प्रकार के काम की माँग मजदूरों द्वारा नहीं की गई, न ही ग्राम सभा से योजनाओं की स्वीकृति ली गई। यह बिचौलियों एवं सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत का परिणाम दिखा।

24. शिलादोन पंचायत के चुकडू गाँव में ग्राम सभा द्वारा कई योजनाओं का प्रस्ताव प्राथमिकता के आधार पर किया गया। लेकिन प्रखण्ड कार्यालय से अन्य योजनाओं को प्राथमिकता दी गई एवं ग्राम सभा के निर्णयों का घोर उल्लंघन हुआ।

25. शिलादोन पंचायत के ही कारगे गाँव में मापी पुस्तिका (एमबी) में फर्जी मापी दर्शा कर अभियन्ता एवं पंचायत सेवक ने घर बैठे ही 100 चौका अधिक मिट्टी कटाई के पैसों की निकासी कर ली।

26. शिलादोन पंचायत के ही रेमाता गाँव में 10 महिलाओं ने अलग-अलग दिन मजदूरों को पानी पिलाने का काम किया था। इन सभी की हाजिरी भी बनाई गई लेकिन किसी को मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया और उन्हें बताया गया कि प्राक्कलन में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कानून का सीधा उल्लंघन है। पूरे सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया के दौरान कहीं पर भी बुनियादी सुविधा, जैसे बच्चों के लिए पालना घर, मजदूरों के विश्राम के लिए छायादार जगह, पानी एवं प्राथमिक उपचार डिब्बा देखने को नहीं मिला।

27. शिलादोन पंचायत के ग्राम सौदाग में एक नये तालाब का प्राक्कलन 31,660 रुपए का तैयार किया गया। लेकिन इस तालाब के निर्माण का काम किसी नयी जगह के बजाय पुराने तालाब में ही कर दिया गया। नये तालाब के काम की जानकारी ग्राम सभा के पास नहीं थी। अभियन्ता, पंचायत सेवक एवं कर्मचारियों की मिलीभगत से पुराने तालाब में ही थोड़ा खर्च कर पूरे पैसे को लूटने का पर्दाफाश सामाजिक लेखापरीक्षण दल ने किया।।

28. खूँटी प्रखण्ड के तिलमा गाँव में बिरसा मुण्डा की जमीन पर तालाब निर्माण का काम चल रहा था। सामाजिक लेखापरीक्षण टीम के गाँव में पहुँचने के एक दिन पहले 23,733 रुपए का एक चेक जो 30 मार्च 2007 को निर्गत किया गया था जिसे 17 मई 2007 को बिरसा मुण्डा ने प्राप्त किया।

सामाजिक लेखापरीक्षण कार्यक्रम के दौरान तमाम अनियमितताओं को ठीक करने हेतु कई सुझाव केन्द्रीय टीम एवं झारखण्ड नरेगा वॉच ने राज्य सरकार को दिया।20 मई, 2007 के दिन सभी 15 पंचायतों में जन सुनवाई हुई जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया। प्रखण्ड, जिला एवं राज्य स्तरीय प्रतिनिधियों ने भी जन सुनवाई में उपस्थित होकर सामाजिक लेखापरीक्षण के प्रतिवेदन एवं जन समस्याओं से अवगत हुए। इन जन सुनवाइयों में कई अनियमितताओं को ठीक करने के लिए मौके पर कार्रवाई भी की गई। इसके दूसरे दिन अर्थात 21 मई, 2007 को चारों प्रखण्ड कार्यालयों में सामाजिक लेखापरीक्षण का काम किया गया। इसमें पंचायत स्तरीय प्रतिवेदन एवं जन समस्याओं को सुना गया। इस प्रखण्ड स्तरीय सामाजिक लेखापरीक्षण के कार्यक्रम में जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जन सुनवाई में मौके पर ही तमाम शिकायत एवं समस्याओं पर अमल करने हेतु आदेश दिया गया। साथ ही साथ लेखापरीक्षण से सम्बन्धित समस्त दस्तावेज उपायुक्त को सौंप दिए गए। सामाजिक लेखापरीक्षण कार्यक्रम के दौरान तमाम अनियमितताओं को ठीक करने हेतु कई सुझाव केन्द्रीय टीम एवं झारखण्ड नरेगा वॉच ने राज्य सरकार को दिया।

29. 15 महीने बीतने के बावजूद राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना को लागू करने के लिए किसी कर्मचारी अथवा पदाधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है जिसके कारण राज्य में करीब 6 हजार पद रिक्त हैं। उन्हें तत्काल भरने की कार्रवाई की जानी चाहिए।।

30. इस प्रक्रिया के दौरान यह पाया गया कि समय पर मापी न होने एवं मापी में अनियमितता के कारण मजदूरों की परेशानी बढ़ी। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी एवं अलग-अलग स्तर के हिसाब से जो मजदूरी दर तय की गई है वह मजदूरों को नहीं दी जा रही है। उसके लिए एक टाईम मोशन स्टडी कर पूरे राज्य में एक प्रकार की दर तय की जाए।।

31. मजदूरी भुगतान में विलम्ब, कम मजदूरी एवं मजदूरी नहीं मिलने के उदाहरण सामाजिक लेखापरीक्षण में सभी जगहों पर देखने को मिले। इसे ठीक करने के लिए सभी मजदूरों का बैंक या डाकघर में बचत खाता खोलने का आदेश तत्काल दिया जाए और प्रत्येक मजदूर का खाता खुलवाया जाए तथा फण्ड फ्लो सिस्टम को नियमित किया जाए।।

32. पंचायत चुनाव नहीं होने के कारण इस कानून को लागू करने में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। सभी गाँवों में ग्राम सभा के बदले अभिकर्ता समिति ज्यादा ताकतवर दिखी। निर्णय तथा निगरानी में प्रत्येक ग्राम सभा की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाए। इससे पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ेगी।।

33. पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाने के लिए सभी तथ्यों, जैसे मस्टर रोल, मापी पुस्तिका की प्रतिलिपि, हाजिरी बही, प्राक्कलन, कार्यादेश, सूचनापट्ट आदि को सभी कार्यस्थलों पर अनिवार्य रूप से रखने का आदेश दिया जाए, ताकि निगरानी समिति तथा अन्य नागरिकों को आसानी से कार्य की विस्तृत जानकारी मिल सके।

केन्द्रीय टीम एवं झारखण्ड नरेगा वॉच द्वारा सौंपे गए सामाजिक लेखापरीक्षण प्रतिवेदन पर राँची के उपायुक्त ने त्वरित पहल करते हुए एक 15 सदस्यीय जाँच समिति गठित की। जाँच समिति ने सात दिनों के अन्दर अपनी जाँच रिपोर्ट उपायुक्त को दे दी। जाँच समिति के प्रतिवेदन पर उन्होंने सोलह कर्मचारियों एवं पाँच पदाधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। मुख्य डाक प्रबन्धक से सम्बन्धित डाक विभाग के कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया। राँची जिला उपायुक्त ने अन्य विभागों के पदाधिकारियों पर भी कार्रवाई करने का आदेश दिया। जोन्हा पोस्ट मास्टर, खूँटी के दो अभियन्ता एवं कुछ पंचायत सेवकों को भी निलम्बित किया गया।

इसके बाद 23 मई, 2007 को झारखण्ड की राजधानी राँची में सामाजिक लेखापरीक्षण के प्रतिवेदनों, निष्कर्षों एवं सुझावों पर गम्भीरता से विचार करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में संयुक्त सचिव, ग्रामीण विकास मन्त्रालय, भारत सरकार, प्रधान सचिव, ग्रामीण विकास मन्त्रालय, झारखण्ड सरकार, राष्ट्रीय नरेगा परिषद के सदस्य, योजना आयोग के सदस्य, राज्य के सभी उपायुक्त, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, बुद्धिजीवी एवं नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बैठक में सामाजिक लेखापरीक्षण प्रक्रिया के प्रतिवेदनों पर गम्भीरता से विचार करते हुए झारखण्ड सरकार ने इस सम्बन्ध में कई निर्देश जारी किए। झारखण्ड के ग्रामीण विकास मन्त्रालय की ओर से भी कार्रवाई हेतु आदेश जारी किया गया।।

34. ग्रामीण विकास मन्त्रालय, झारखण्ड सरकार प्रधान सचिव ने सभी उपायुक्तों को अपने-अपने जिलों में सामाजिक लेखापरीक्षण कराने का आदेश दिया।।
35. अभिकर्ता शब्द कहीं भी नहीं लिखा जाए क्योंकि इस कानून में कोई भी ठेकेदार नहीं हो सकता है। सभी कार्यस्थल पर बच्चों के लिए पालना घर, पानी पिलाने हेतु मजदूरों को रखा जाए।।
36. सभी नियुक्तियों को 3 महीने के अन्दर पूरा कर लिया जाए।।
37. सभी मजदरों के बकाया मजदूरी का भुगतान अविलम्ब किया जाए।

24 मई, 2007 को नरेगा परिषद के सदस्य एवं झारखण्ड नरेगा वॉच के संयोजक मण्डल के सदस्यों ने मुख्यमन्त्री तथा उनके मन्त्रिमण्डल के साथ सामाजिक लेखापरीक्षण के सभी प्रतिवेदनों के साथ, भविष्य में सम्पादन करने हेतु नयी रणनीति पर विचार-विमर्श किया। सामाजिक लेखापरीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे जनचेतना तो बढ़ती ही है, जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित होती है। पारदर्शिता एवं जवाबदेही को सुनिश्चित करने में जनभागीदारी अति आवश्यक है और यह नीचे की सभी इकाइयों में तभी स्थापित होगी जब ग्राम सभा एवं जनता के माध्यम से सामाजिक लेखापरीक्षण की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इस प्रक्रिया को लोकप्रिय बनाने के लिए जरूरी है कि निरन्तर सामाजिक अंकेक्षणों के आयोजन किए जाएँ जिनमें ग्रामीण जनता अपनी पूर्ण भागीदारी के साथ योजनाओं का भौतिक सत्यापन करें। वास्तविक लोकतन्त्र की बहाली के लिए आवश्यक है कि जनता को उसका मालिकाना हक सौंपा जाए। सामाजिक लेखापरीक्षण इस अर्थ में सबसे कारगर औजार है जो देश की गरीब और वंचित जनता को उसका मालिकाना हक लोकतान्त्रिक चेतना के साथ वापस लौटाता है।

(लेखक झारखण्ड में राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कार्यक्रम पर अध्ययन कर रहे हैं)

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