कैसे मरने दें गंगा को

25 Jan 2009
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जब हरिद्वार में ही गंगा जल आचमन के योग्य नहीं रहा, तो इलाहाबाद और वाराणसी का क्या कहना
- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती


अनेक वर्षों से मैं माघ मास की मौनी अमावस्या के पर्व पर प्रयाग जाता रहा हूं। कुछ वर्ष पूर्व जब मैं माघ मेले के अपने शिविर में जा रहा था, तब अनेक महात्माओं, कल्पवासियों एवं पुरी के शंकराचार्य जी आदि ने मुझे बताया कि गंगा की धारा अत्यंत क्षीण हो गई है और उसका जल लाल दिखाई दे रहा है। मुझे भी ले जाकर गंगा की वह स्थिति दिखाई गई। मैंने जब लोगों से गंगा की इस दुर्दशा का कारण जानना चाहा, तो पता चला कि गंगोत्री से नरौरा तक गंगा जी को कई स्थानों पर बांध दिया गया है, जिसके कारण हिमालय का यह पवित्र जल कई स्थानों पर ठहर कर सड़ रहा है, और जो जल दिखाई दे रहा है, उसमें अनेक तटवतीü नगरों का मल-जल और कानपुर की चमड़ा इकाइयों द्वारा बहाया गया अपशिष्ट है। मुझे बड़ा दु:ख हुआ और मैंने इसके विरोध में पूरे मेले के लोगों से एक दिन के उपवास का अनुरोध किया। लगभग डेढ़ लाख लोगों ने एक साथ उपवास किया। इसके बाद भक्तों ने गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए स्वत:स्फूर्त प्रयत्न आरंभ किए। न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया गया। परंतु गंगा की अवस्था बिगड़ती जा रही है।
हम लोग मानते हैं कि गंगा ब्रह्मलोक से शिव की जटा में आईं, परंतु शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में रोक लिया। राजा भगीरथ के अनुरोध पर उन्होंने अपनी जटाएं निचोड़ कर छोड़ी, जिससे गंगा की अनेक धाराएं निकली। इनमें तीन प्रमुख हैं, अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी। इनमें से एक धारा पाताल चली गई, जिसका नाम भोगावती हुआ। दूसरी धारा स्वर्ग चली गई, जिसका नाम अलकनंदा हुआ। यही धारा स्वर्ग से उतरकर बद्रिकाश्रम से प्रवाहित होती है। तीसरी धारा भगीरथ के रथ के पीछे चलकर देवप्रयाग आई और भागीरथी कहलाई। आगे चलकर देवप्रयाग में उपयुüक्त तीनों धाराएं मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त शंकर की जटाओं से अनेक अन्य धाराएं निकलती हैं, जिन्हें हिमालय में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। लगभग सभी धाराएं अलकनंदा में ही मिल जाती हैं। इन धाराओं के दोनों तटों का बहुत बड़ा पर्वतीय भू-भाग अपने विकास हेतु इन्हीं धाराओं पर अवलंबित होता है, परंतु इन धाराओं पर बांधों का बनना इस क्षेत्र के विकास में बाधक हो जाता है। प्रचलित मान्यता है कि बांध विकास लाता है, जबकि बांध न केवल नदी का जीवन समाप्त करता है, अपितु नदी तट के समस्त पर्यावरणीय अपघटकों में विनाशकारी परिवर्तन लाता है। वस्तुत: बांधों में पानी के रुकने के कारण प्राकृतिक झरने बंद हो जाते हैं तथा नदी का बहुत बड़ा भू-भाग सूख जाता है। तटवतीü नगरों के पशु-पक्षी एवं मनुष्य जलाभाव जन्य समस्याओं के शिकार होते हैं। जल जब धरती से हटाकर सीमेंट से बनी सतहों से प्रवाहित किया जाता है, तो उसकी गुणवत्ता समाप्त हो जाती है। यदि नदी वेग से प्रवाहित होती है, तो जल के अनेक दोष स्वत: समाप्त हो जाते हैं। लेकिन बीच-बीच में उसका प्रवाह रोक दिया जाता है, तो उसकी दोष निवारण क्षमता समाप्त हो जाती है। नदी का तात्पर्य ही है, बहने वाली जलधारा।

कुछ दिनों पूर्व तक माना जाता था कि गंगा मैदानी क्षेत्रों में ही प्रदूषित होती है। परंतु अब देखा जा रहा है कि बद्रिकाश्रम और गंगोत्री आदि उद्गम स्थलों से ही इसमें प्रदूषण प्रारंभ हो जाता है। क्योंकि वहां से ही आसपास के नगरों का मल-जल नदियों में आ रहा है। ऋषिकेश और हरिद्वार में आकर यह प्रदूषण और भी बढ़ जाता है। हरिद्वार का पवित्र माना जाने वाला गंगाजल आज आचमन के योग्य भी नहीं रह गया है, क्योंकि ऋषिकेश और हरिद्वार के बीच में एक रासायनिक फैक्टरी है, जिसका अवशेष गंगा में गिरता है। प्रयाग के पूर्व ही कन्नौज एवं कानपुर तक गंगा अत्यंत प्रदूषित हो जाती है। दूसरी तरफ हिमालय के यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी राजधानी दिल्ली का समस्त मल-जल लेते हुए मथुरा, वृंदावन और आगरा पहुंचती है। यही यमुना प्रयाग में गंगा से जा मिलती है और अपनी सारी गंदगी गंगा की गोद में डाल देती है।

आगे वाराणसी में गंगा काशी के कभी न छूटने वाले चंद्राकार घाटों को छोड़कर अपने मार्ग से पृथक हो रही है। गरमी के दिनों में उसका जल हाथ में लेने से कीड़े दिखाई पड़ने लगते हैं। न केवल नगरों का मल-जल, अपितु कारखानों का जहरीला पदार्थ भी गंगा में छोड़ा जाता है। गंगा की धारा से तटवतीü क्षेत्रों के तालाब एवं नलकूप आदि जलस्त्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। इस प्रदूषित जल से सींचे गए अन्न, फल-फूल एवं सब्जियों में भी प्रदूषण व्याप्त हो जाता है। यही नहीं, आगे चलकर गंगा और आसपास के कुओं एवं तालाबों में नहाने वाले लोगों को विभिन्न प्रकार के चर्मरोग भी हो रहे हैं। गंगा घाटी में रहने वाले लगभग 35 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य एवं जीवन खतरे में है। जलस्तर घट जाने से गंगा की धारा में गुजरने वाले पानी के जहाज नहीं चल पा रहे। गंगा से सीधे आजीविका चलाने वाले पंडे-पुरोहितों, नौका चालकों एवं पर्यटकों को ठहराने और घुमाने वालों की आजीविका खतरे में पड़ गई है। इन परिस्थितियों का अवलोकन करने पर यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि गंगा को अविरल, निर्मल बहने दिया जाए तथा जिन योजनाओं से इनमें बाधा पड़ती है, उन्हें तत्काल रोका जाए।

हमारा मुख्य लक्ष्य गंगा का अविरल और निर्मल प्रवाह पुन: प्राप्त करना है। इस समय गंगा जिन पांच प्रदेशों को स्पर्श करती हुई गंगासागर पहुंचती है, उनमें किसी एक पार्टी की सरकार नहीं है। हर प्रदेश गंगा के साथ अलग-अलग व्यवहार करता है। इसलिए आवश्यक हो गया है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर पूरे राष्ट्र का प्रतीक बना दिया जाए, जिससे इसकी केंद्रीय स्तर पर हिफाजत की जा सके। साथ ही, गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं को इतना सक्षम बना दिया जाए कि उसके उद्देश्यों में वे सरकारें बाधक न बनकर सहायक बनें। जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए श्री शंकराचार्य गंगा सेवा न्यास का गठन कर मैं राष्ट्रव्यापी गंगा सेवा अभियान में जुटा हुआ हूं। इस उद्देश्य से विगत दिनों माननीय प्रधानमंत्री जी से हम महात्माओं, जन नेताओं, पर्यावरणविदों और नदी विशेषज्ञों की मुलाकात हुई थी। मुझे इस बात का संतोष है कि प्रधानमंत्री ने हमारी बातें ध्यान से सुनीं और कहा कि गंगा मेरी मां है, मैं उसके लिए ईमानदारी से कार्य करूंगा। गंगा सेवा अभियान को आम जन का महत्वपूर्ण सहयोग भी मिलना चाहिए।

(लेखक ज्योतिष एवं द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य हैं)

साभार – अमर उजाला

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