काम आयी कृषक खेत पाठशाला की पढ़ाई
’’कृषि विकास विभाग की आत्मा परियोजना अंतर्गत संचालित कृषक खेत पाठशाला से जुड़कर अमहा गांव के किसानों ने एक ऐसी पढ़ाई पढ़ी जिसने उन्हें आधुनिक तकनीकि अपनाने और उन्नत पैदावार लेने वाला हुनरगर बना दिया।’’खेत-खलिहानों और किसानों के बीच रची-बसी एक ऐसी पाठशाला जो सिर्फ किताब का कोरा ज्ञान नहीं देती वरन् आधुनिक कृषि तकनीकि के आधार पर खेती को लाभकारी बनाने का हुनर सिखाती है। उमरिया जिला, मानपुर जनपद के सेमरिया पंचायत का गांव अमहा इन दिनों कृषि क्षेत्र में प्रगति पर है।
इस वर्ष यहां के किसानों ने प्रति हेक्टेयर 30 से 45 क्विंटल गेंहूं की पैदावार हासिल की है। ज्यादातर असिंचित भूमि वाले इस गांव में पानी की समस्या से जूझते हुए ग्रामीणों ने न सिर्फ टूटे बांध का श्रमदान से जीर्णोद्धार किया है साथ ही उन्नत खेती की राह पर चलकर नया मुकाम हासिल किया है। अमहा के रामधनी सिंह, जुगन्तीबाई, जगन्नाथ सिंह, प्रहलाद, कंधई सिंह सहित सरपंच रामबाई यादव खेती में आ रहे इस बदलाव का श्रेय कृषक खेत पाठशाला को दे रहे हैं।
आत्मा परियोजना की सहयोगी संस्था ‘निवसीड’ द्वारा संचालित अमहा कृषक खेत पाठशाला के एचीवर फार्मर जगन्नाथ सिंह बताते हैं कि गत वर्ष जब यह कार्यक्रम हमारे गांव में आया तब मन में कई तरह की शंकाएं रहीं लेकिन आज जब हम अपने खेतों और उससे उगाई फसलों की तरफ देखते हैं तब मन में एक नये तरह का आत्मविश्वास महसूस होता है। जगन्नाथ सिंह बताते हैं कि उन्होंने पाठशाला से जुड़े कृषि विशेषज्ञों की बातों को ध्यान में रखकर खेत की गहरी जुताई, लेवलिंग व मेड़ बंधान कराया तथा ड्रिप एरीगेशन, स्प्रिंकलर का प्रयोग करते हुए मृदा-जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया। इसके साथ ही कृषि व उद्यानिकी से जुड़ी अनुदान योजनाओं का लाभ लेते हुए जगन्नाथ सिंह आगे बढ़े तो धान व गेंहू फसल में बीज परिवर्तन, बीजोपचार व श्री विधि अपनाकर दूसरों के लिए आज एक रोल मॉडल बन गये हैं। गांव के युवा फूलचंद यादव बताते है कि पाठशाला के जरिये खेत की तैयारी, बीजोपचार, कतारबद्ध बुआई, रोपड़ी विकास, सूक्ष्म जैविक तत्वों, संतुलित रासायनों का प्रयोग, सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण की कम लागत तकनीकि का उपयोग जैसे प्रक्रियाओं को अपनाने की सीख यहां दी गई। 25 सदस्यों वाले इस पाठशाला को खरीफ व रबी सीजन में फसलों की विविधि 6 क्रांतिक अवस्थाओं पर लगाया गया।
अमहा कृषक खेत पाठशाला से जुड़े आदिवासी कृषक रामधनी सिंह ने कॉलरी से रिटायर्मेंट के बाद खेती को अपना मिशन बनाया और दिन-रात खेती में नवाचार करते हुए पाठशाला में सीखी बातों को साकार करने में जुट पड़े हैं। रेलवे लाइन के ठीक किनारे स्थित रामधनी सिंह का प्रदर्शन फार्म देखने लायक है। यहां के कुएं में जिस तरह दो बोर कराकर पानी की व्यवस्था बनायी गई है वह रोचक है। भरी गर्मी में भी यहां का पानी नहीं सूखता। एक हेक्टेयर वाले फार्म के एक एकड़ में पपीता, दशहरी आम के साथ नासिक प्याज की उन्नत पैदावार और कतारबद्ध भिण्डी, सब्जी व फलोत्पादन की विविधता प्रकट करती है। यहीं वर्मी कंपोस्ट की एक छोटी इकाई भी है जिसका जैविक खाद यहां के फसलों को मिल रहा है। इस बार रामधनी सिंह ने खरीफ सीजन में धान की पूसा सुगंधा व आईआर 64 आधार बीज का विपुल उत्पादन किया तो परिवार की जुगंती बाई ने एक एकड़ में श्री विधि से गेंहू की एमपी 3173 किस्म की बुआई करायी। उनके इस बीज परिवर्तन से प्रेरित होकर समीप के किसानों ने भी नये प्रमाणित बीज की बोवनी की नतीजन पहले की तुलना में डेढ़ गुना उत्पादन हुआ। रामधनी बताते हैं कि आत्मा परियोजना अंतर्गत लगाये गये फसल प्रदर्शन तकनीकि से जहां सिंचाई करने, उर्वरक देने, खरपतवार निकासी में लागत कम हुई वहीं एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल उत्पादन हुआ है जो कि पहले के 20-25 क्विंटल से अधिक है। कृषि तकनीकि अपनाने के फलस्वरूप आज रामधनी सिंह और उनके परिवार को एक हेक्टेयर की खेती से लगभग 2 लाख रूपये का मुनाफा हो रहा है।
आज जब खेती मंहगी पड़ती जा रही है, किसानों को आये दिन प्राकृतिक प्रकोप झेलना पड़ रहा है ऐसे में कृषक खेत पाठशाला की कम लागत तकनीकि ने अमहा गांव के किसानों को खेती की एक नयी राह दी है। एक ऐसी राह जिस पर चलकर खेती को लाभ का धंधा बनाने का सफर पूरा करना है।