कामयाबी की तरफ दूसरी हरित क्रांति

ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्युशन इन ईस्टर्न इंडिया


भारत का पूर्वी क्षेत्र देश के धान उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को तैयार है। पूर्वी भारत में धान की फसल प्रणालियों की उत्पादकता को सीमित करने वाले अवरोधों को दूर करने के लिए बीजीआरईआई कार्यक्रम बहुत लाभप्रद रहा है। पूर्वी क्षेत्र की मुख्य समस्या जल की उपलब्धता नहीं, बल्कि उसका प्रबंधन है। इसका आधार यह है कि जल के प्रचुर भंडार के साथ फसल की उत्पादकता बढ़ाना तभी सम्भव होगा, जब बेहतर कृषि पद्धतियां अपनाई जाएं, अच्छी गुणवत्ता वाले बीज डाले जाएं तथा खाद और उर्वरक जैसे पदार्थों का इस्तेमाल समझदारी से किया जाए।

कृषि बजट में 22 फीसदी की वृद्धि


बढ़ती आबादी के साथ खाद्यान्न की तेज होती मांग और कृषि उत्पादन में 4 फीसदी का इजाफा हासिल करने का दबाव सरकार पर है। इसी वजह से इस बार के केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र को तवज्जो देने की कोशिश की गई है। कृषि मंत्रालय को इस बार 22 फीसदी की बढ़त के साथ 27049 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसमें 3415 करोड़ रुपए की राशि कृषि अनुसंधान के लिए होगी। पूर्वी भारत में हरित क्रांति की कामयाबी को देखते हुएु वित्तमंत्री पीचिदंबरम ने इस योजना के लिए इस बार एक हजार करोड़ रुपए का इंतजाम किया है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में विभिन्न तरह की फसलों को बढ़ावा देने के लिए 500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।

हरित क्रांति


देश की खाद्यान्न उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने दो साल पहले पूर्वी भारत में ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्यूशन इन ईस्टर्न इंडिया (बीजीआरईआई) कार्यक्रम शुरू किया था। यह कार्यक्रम सात राज्यों-असम, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चलाया जा रहा है। वर्ष 2010-11 में लागू होने के बाद से ही इस कार्यक्रम की बदौलत क्षेत्र में धान और गेहूं की पैदावार के अच्छे नतीजे सामने आए हैं।

देश में हरितक्रांति की शुरुआत वर्ष 1966-67 में हुई थी। इसकी शुरुआत दो चरणों में की गई थी, पहला चरण 1966-67 से 1995-96 और दूसरे चरण में ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्यूशन इन ईस्टर्न इंडिया (बीजीआरईआई) कार्यक्रम 2010-11 में शुरू किया गया। हरितक्रांति से अभिप्राय देश के सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में ज्यादा उपज वाले संकर और बौने बीजों के इस्तेमाल के जरिए तेजी से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी करना है। हरित क्रांति की विशेषताओं में अधिक उपज देने वाली किस्में, उन्नत बीज, रासायनिक खाद, गहन कृषि जिला कार्यक्रम, लघु सिंचाई, कृषि शिक्षा, पौध संरक्षण, फसल चक्र, भू-संरक्षण और ऋण आदि के लिए किसानों को बैंकों की सुविधाएं मुहैया कराना शामिल है। रबी, खरीफ और जायद की फसलों पर हरित क्रांति का अच्छा असर देखने को मिला है। किसानों को थोड़े पैसे ज्यादा खर्च करने के बाद अच्छी आमदनी हासिल होने लगी। हरितक्रांति के चलते हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की उत्पादकता में जबर्दस्त वृद्धि हुई। साठ के दशक में हरियाणा और पंजाब में गेहूं के उत्पादन में 40 से 50 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।

दूसरी हरितक्रांति लाने के कार्यक्रम के ठोस नतीजे सामने आए हैं और पूर्वी भारत में 2011-12 के खरीफ सत्र में 70 लाख टन अतिरिक्त धान का उत्पादन हुआ है। बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, छत्तीसगढ, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान का इतना अधिक उत्पादन हुआ कि यह देश के कुल धान उत्पादन के आधे से भी अधिक है। कृषि सचिव ने चालू वर्ष के दूसरे अग्रिम फसल उत्पादन का अनुमान जारी करते हुए कहा कि इस वर्ष गेहूं उत्पादन 8 करोड़ 83 लाख टन और चावल का 10 करोड़ 27 लाख टन से अधिक होने का अनुमान है। पिछले वर्ष चावल 9 करोड़ 59 लाख और गेहूं 8 करोड़ 38 लाख टन था।

ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्युशन इन ईस्टर्न इंडिया


भारत का पूर्वी क्षेत्र देश के धान उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को तैयार है। पूर्वी भारत में धान की फसल प्रणालियों की उत्पादकता को सीमित करने वाले अवरोधों को दूर करने के लिए बीजीआरईआई कार्यक्रम बहुत लाभप्रद रहा है। वर्ष 2010-11 में लागू होने के बाद से ही इस कार्यक्रम की बदौलत क्षेत्र में धान और गेहूं की पैदावार के उल्लंखनीय नतीजे सामने आए हैं। इस कार्यक्रम के तहत बिहार और झारखंड में धान की पैदावार में भारी वृद्धि हुई है। धान और गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार के लिए क्षेत्र के किसानों तक तकनीक और पद्धतियां पहुंचाने के लिए राज्य सरकारो ने सकारात्मक प्रयास किए हैं। इस परियोजना के तहत पूर्वी क्षेत्र का चयन उसके प्रचुर जल संसाधनों का लाभ उठाने के लिए किया गया है, जो खाद्यान्नों की उपज बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं। पूर्वी क्षेत्र की मुख्य समस्या जल की उपलब्धता नहीं, बल्कि उसका प्रबंधन है। इसका आधार यह है कि जल के प्रचरु भंडार के साथ फसल की उत्पादकता बढ़ाना तभी संभव होगा, जब बेहतर कृषि पद्धतियां अपनाई जाएं, अच्छी गुणवत्ता वाले बीज डाले जाएं तथा खाद और उर्वरक जैसे पदार्थों का इस्तेमाल समझदारी से किया जाए।जहां एक ओर साठ के दशक में हरितक्रांति के दौरान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश फले- फूले, वहीं इन तीनों राज्यों में क्षमता से अधिक दोहन की वजह से जल संसाधन की दृष्टि से स्थिति खराब हुई है। यह बात देश के कृषि संबंधी योजनाकारों के लिए बेहद चिंता का विषय है।

भारत को अपनी बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। प्रत्येक भारतीय की चिंता का विषय बन चुकी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यही है कि घरेलू तौर पर पर्याप्त खाद्यान्न उगाए जाएं। पूर्वी क्षेत्र में नई हरितक्रांति शुरू करने की क्षमता है। बीजीआरईआई को केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा दी जा रही प्राथमिकता की वजह से दूसरी हरितक्रांति की सफलता निश्चित है।इसलिए अनके गतिविधियां शुरू की गई हैं। जिनमें गेहूं और धान की तकनीकों का प्रखंड स्तर पर सामूहिक प्रणाली में प्रदर्शन करना, संसाधन संरक्षण तकनीक को बढ़ावा देने (गेहूं के तहत शून्य जुताई), जल प्रबंधन के लिए परिसम्पत्ति निर्माण गतिविधियों को अंजाम देना (कम गहरे नलकूपों, कुओं, बोरवेल की खुदाई, पम्पसेटों का वितरण), खेती के औजारों के इस्तेमाल और जरूरत पर आधारित विशिष्ट गतिविधियों को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं। धान की संकर तकनीकें अपनाने, श्रृंखलाबद्ध रोपाई, एसआरआई, सूक्ष्म पोषक तत्व आदि कुछ ऐसी कामयाब बाते हैं, जो इस क्षेत्र में राज्य प्रशासनों द्वारा की गई कड़ी मेहनत से सामने आई है। लेकिन उत्पादन में स्थायित्व लाने के लिए इस क्षेत्र के प्रचुर संसाधनों का इस्तेमाल करना होगा। उपज की प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए प्रभावशाली विपणन प्रबंध, खरीद प्रक्रिया, बिजली, सिंचाई, गतिविधियों की श्रृंखला और ग्रामीण संरचना और ऋण आपूर्ति के लिए संस्थागत विकास तथा नवीन पद्धतियों को विस्तार से लागू करना, ताकि बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसानों की उन तक पहुंच संभव हो सके। इसके अलावा, किसानों को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए और उसके लिए किसानों को ग्रेडिंग मानकों के बारे में जागरूक बनाया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में चिन्ह्ति


12वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण-पत्र में योजना आयोग ने इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में चिन्ह्ति किया है ताकि हरितक्रांति को पूर्वी क्षेत्र के सभी कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों, जहां प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की अच्छी संभावना है, में विस्तारित किया जाए ताकि खाद्य सुरक्षा एवं कृषि सत्तता को प्राप्त किया जा सके।

अब देश के समक्ष दूसरी हरित क्रांति के प्रमुख तीन लक्ष्य होने चाहिए जिनमें खाद्यान्न आत्मनिर्भरता, उचित बफर स्टाॅक तथा अनाज का बड़े पैमाने पर विदेश को निर्यात शामिल है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टि से काम करना होगा। आधुनिक तकनीकों का उपयोग तथा कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन करना पड़ेगा। लगभग सभी विकसित देशों में प्रति हेक्टेयर अन्न का उत्पादन भारत के सापेक्ष 2 से 3 गुना है अतः इन्हीं तकनीकों का इस्तेमाल कर भारत में भी अन्न का उत्पादन इसी अनुपात में किया जा सकता है।

विकास के साथ सावधानी जरूरी


उस विकास का क्या लाभ जो किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़े। हमें पंजाब से सीख लेनी चाहिए जहां प्रथम हरितक्रांति के कारण पंजाब जैसे राज्य की मिट्टी की उर्वरक क्षमता खत्म हो गई, पानी जहरीला हो गया। नई हरितक्रांति स्वागत योग्य जरूर है क्योंकि हम पूर्वी राज्यों में हरितक्रांति के तहत निवेश कर रहे हैं परन्तु हमें कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होगा हमें सावधानी बरतनी होगी कि नई हरितक्रांति हमारे उत्पादक संसाधन को नुकसान नहीं पहुंचाए बल्कि उनमें सुधार लाए। दुखद यह है कि अधिकांश जगहों पर इस योजना के अंतर्गत हाइब्रिड बीजों, खासकर चावल एवं मक्के में रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। इस नई हरित क्रांति के फलस्वरुप अतंतः किसानों को गरीब और ऋणी न बनने दिया जाए। किसी की आत्महत्या करने की बारी न आए। हमें सजग रहना होगा हमें आखिरकार उन्नति देखनी है। हमें सिर्फ विशिष्ट पैदावार पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए बल्कि किसानों की शुद्ध आय पर भी पूरा ध्यान लगाना चाहिए।

(सदस्य, अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच, नई दिल्ली)

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