कौन थी यह नदी पद्मा

फरक्का से लगभग 17 किलोमीटर आगे बढ़ने पर हाईवे के पास एक स्थान आता है धुलियान। धुलियान से छह किलोमीटर और आगे से बाईं ओर मुड़कर चार किलोमीटर चलने पर एक प्यारा-सा गांव है नदी के तट पर, जिसका नाम है जगताई। जिला मुर्शिदाबाद, प्रखंड सूती; नीमतीता। इस गांव के ठीक सामने से नदी के पार बांग्लादेश आरंभ हो जाता है।

यहीं पर गंगा दो भागों- दो धाराओं में विभाजित हो जाती है। एक धारा जो बांग्लादेश की ओर जाती है, उसका नाम पद्मा है और दूसरी धारा का नाम भागीरथी। मुझे याद आया कि गंगोत्री से देव प्रयाग तक गंगा को भागीरथी ही कहा जाता है और यहां आकर यह फिर भागीरथी ही हो जाती है। आखिर इसका कारण क्या है। मुझे यकीन था कि कोई न कोई सांस्कृतिक कारण जरूर होगा। मैंने कई लोगों से पूछा, पर इसका जवाब नहीं मिला। अंत में जब हम चाय की दुकान में थे, एक बूढ़े मल्लाह बिनोद मंडल ने अपने दादा की उक्ति दुहराते हुए जो कहानी बताई, सचमुच रोचक थी।

आगे-आगे भगीरथ, पीछे-पीछे गंगा। भगीरथ जब फरक्का से आगे बढ़े तो रास्ते में पद्मा नाम की एक लड़की खड़ी थी। अनुपम सौंदर्य.. भगीरथ ने देखा तो भूल गए कि किस यातना और किस कारण से गंगा को लेकर आए हैं और उसके पीछे चल पड़े। कुछ दूर गए तो याद आया और लौट आए। फिर कुछ दूर गए तो आगे खड़ी थी, फिर उसके पीछे चल पड़े। यह तीन बार हुआ। फिर पद्मा अपनी राह चल पड़ी और भगीरथ अपनी राह।

वैसे तो गंगा कई स्थानों पर अपनी दोहरी धार में चलती है, लेकिन यहां भौगोलिक दृष्टि से एक धारा बांग्लादेश में आती है, इसलिए यहां के लोग इस बात की चर्चा मजा लेकर बांग्लादेश की युवतियों के संदर्भ में भी करते हैं। यहां के नाविक कहते हैं कि उस काल में गंगा भगीरथ से नाराज हो गई थी, इसलिए यहां के मल्लाह आज भी जब उनकी पूजा जेठ की पूर्णिमा के दिन करते हैं तो मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं और उपवास करते हैं। उनकी औरतें गीत गाकर गंगा को मनाती हैं और वे पूजा के लिए गंगा का पानी नहीं, नारियल का पानी प्रयोग में लाते हैं।

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