कावेरी जल विवाद - यह जागने का समय है, लड़ने का नहीं


जब यह लेख आप पढ़ रहे हैं, कर्नाटक जल रहा है। तमिलनाडु के टीएन नम्बर की गाड़ियाँ चुन-चुन कर कर्नाटक में हमले की शिकार हो रहीं हैं। यह सारा विवाद पानी का है। आज से बीस साल पहले किसने सोचा होगा कि एक दिन पानी का मोल ना समझने की कीमत हम इस तरह की हिंसा से चुका रहे होंगे?

आइए इस विवाद को समझें- कावेरी जल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को दस दिनों के अन्दर 15,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिये छोड़ने का आदेश दिया था। इससे पहले हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा और यूयू ललित की पीठ ने दोनों राज्यों को जीओ और जीने दो कि सलाह उस वक्त दी थी जब तमिलनाडु के वकील ने अदालत का ध्यान कर्नाटक के मुख्यमंत्री के इस बयान की ओर खींचा कि एक बूँद पानी भी नहीं छोड़ा जाएगा।

दरअसल, तमिलनाडु ने एक याचिका दाखिल कर राज्य के 40 हजार एकड़ क्षेत्र में खड़ी फसल को बचाने के लिए कोर्ट से कर्नाटक को कावेरी का पानी छोड़ने के लिये निर्देश देने की माँग की थी। इसके जवाब में कर्नाटक का कहना था कि वह पहले ही पानी की कमी से जूझ रहा है।

सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार के वकील एफएस नरीमन ने कहा, पिछले कुछ महीनों में बारिश कम होने के कारण कर्नाटक के लिये पानी छोड़ना मुश्किल है। इस पर सुप्रीम कोर्ट पीठ ने निर्देश दिया कि न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कोई फार्मूला दिया है तो कर्नाटक उसे मानने को बाध्य है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कर्नाटक को 20 सितम्बर तक हर दिन तमिलनाडु को 12 हजार क्यूसेक पानी देना है।

कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक के कोडागू जिले से होता है जोकि तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। कर्नाटक और तमिलनाडु कावेरी घाटी में पड़ने वाले प्रमुख राज्य हैं। इस घाटी का एक हिस्सा केरल में भी पड़ता है और समुद्र में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है जो पुदुचेरी का हिस्सा है।

इस नदी के जल के बँटवारे को लेकर इन चारों राज्यों में विवाद का एक लम्बा इतिहास है लेकिन कावेरी जल विवाद इस समय कर्नाटक तथा तमिलनाडु के बीच बढ़ता ही जा रहा है।

कर्नाटक पानी के संकट के इस दौर में न्यायालय के फैसले के बाद तमिलनाडु को पानी देने को बाध्य है। कनार्टक और तमिलनाडु के बीच चल रहा यही विवाद कावेरी जल विवाद है। इसकोे लेकर बंगलुरु जल रहा है। राज्य भर में हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। सड़क पर गाड़ियाँ जलाई जा रही हैं। इसे सम्भालने के लिये 15 हजार से ज्यादा जवानों को राज्य में लगाया गया है।

कावेरी नदी जल विवाद पर कानूनी शुरुआत 1892 और 1924 को हुए समझौतों की वजह से हुई जोकि मैसूर के राजपरिवार और मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद केन्द्र सरकार ने 1990 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्युनल का गठन किया।

साल 2007 में ट्रिब्युनल ने अपने अन्तिम फैसला देते हुए कहा कि तमिलनाडु को 419 टीएमसीएफटी पानी मिलना चाहिए, कोर्ट ने जो आदेश दिया है, ये उसका दोगुना है यही वजह है कि कर्नाटक इस आदेश से सन्तुष्ट नहीं है।। 2007 के ऑर्डर से पहले तलिमनाडु ने 562 टीएमसीएफटी पानी की माँग की जोकि कावेरी बेसिन में मौजूद पानी का तीन चौथाई हिस्सा था। वहीं कर्नाटक ने 465 टीएमसीएफटी पानी की माँग की जोकि उपलब्ध पानी का दो तिहाई हिस्सा था।

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में चल रहे विरोध प्रदर्शन और कर्नाटक सरकार द्वारा उसके आदेश का पालन ना करने पर नाखुशी भी जताई है। जस्टिस दीपक मिश्रा के अनुसार- ‘लोग कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते हैं।’

बंगलुरु में जलती एक ट्रकजबकि लोग ऐसा कर रहे हैं, जिसकी वजह से कावेरी जल विवाद पर कर्नाटक में हालात बेकाबू हैं। हालांकि पुलिस का दावा है कि बंगलुरु समेत राज्य के सभी जगहों पर हालात नियंत्रण में हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक और तमिलनाडु के लोगों से शान्ति की अपील की। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में जिस तरह के माहौल बने हैं वो चिन्ताजनक है। किसी भी समस्या का समाधान हम लोकतांत्रिक तरीके से कर सकते हैं।

हालात की समीक्षा के लिये कर्नाटक सरकार द्वारा कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई गई है। बंगलुरु में ऐहतियातन धारा 144 लागू किया गया है। बंगलुरु पुलिस ने लोगों से अपील की है कि अगर कोई परेशानी हो तो 100 नम्बर डायल कर पुलिस की मदद ले सकते हैं।

बंगलुरु के 16 थाना क्षेत्रों में 12 सितम्बर को कर्फ्यू लगा हुआ था। राज्य के मंड्या, मैसूर, चित्रदुर्गा और धारवाड़ जिलों में नए सिरे से भड़की हिंसा में सैकड़ों वाहन खाक हो गए। हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित बंगलुरु में तमिलनाडु की 30 बस और ट्रक फूँक दिये गए।

इन बातों का बंगलुरु में जनजीवन पर गहरा असर पड़ रहा है। प्रदर्शनकारियों ने राज्य में तमिल चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा दी है। बन्द का असर बंगलुरु के एयरपोर्ट पर भी पड़ा है। बताया जा रहा है कि कई यात्री एयरपोर्ट पर फँसे हुए हैं। एहतियात के तौर पर स्कूल और कॉलेज बन्द हैं। अधिकांश आईटी कम्पनिया जैसे इंफोसिस व विप्रो ने भी छुट्टी की घोषणा की है। 25,000 पुलिस के जवान बंगलुरु में तैनात किये गए हैं।

कावेरी जल विवाद के उपजे असन्तोष के बाद यह सवाल तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों राज्यों के लिये है कि अपने-अपने राज्यों के जल संकट से निपटने के लिये कावेरी पर निर्भर रहना कितना उचित है? इन दोनों राज्यों ने वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार क्यों नहीं किया? जल संरक्षण, जल संचयन के लिये इन सरकारों ने किस तरह का प्रयास किया?

वर्षा के पानी के संग्रह के लिये क्या इन सरकारों ने कोई जागरुकता अभियान चलाया? पिछले साल तमिलनाडु में आई बाढ़ को कैसे भूलाया जा सकता है। 2015 में चेन्नई अपनी लापरहवाही की वजह से डूब रहा था। पानी के रास्ते में घर और दीवार वहाँ खड़ी कर दी गई है। तमिलनाडु ने उस बाढ़ से कोई सबक लिया है, ऐसा लगता तो नहीं है।

कावेरी की पानी पर लड़ने की जगह तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारें बूँद-बूँद पानी के महत्त्व के लिये प्रति जन-जन को जागरूक कर पाती। वर्षाजल के संरक्षण को हर व्यक्ति का अभियान बना पाती और गाँव-गाँव में तालाब को पहुँचाने के लिये कोई अभियान चला पाती तो सड़कों पर विरोध और न्यायालय की दौड़ भाग से ये दोनों राज्य खुद को बचा सकते थे। दोनों राज्यों के लिये यह आत्मचिन्तन का समय है कि उस दिन क्या करेंगे जब कावेरी में भी पानी नहीं होगा! फिर किस पानी के लिये लड़ेंगे?

 

 

 

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